हमारे प्रदेश में रबी की फसलों में गेहूँ की खेती का प्रथम स्थान हैं। इसके अलावा हमारे किसान भाई चना भी बहुतायत से लगाते हैं। प्रदेश में 2011-2012 में 49 लाख हेक्टेयर में गेहूँ एवं 30 लाख हेक्टेयर में चना की फसलें ली गई थी जिनका कि औसत उत्पादन क्रमशः 27 क्विंटल/हे. एवं 32 क्विंटल/हे. था। रबी की फसलों में सभी आदानों के समुचित उपयोग उपयोग एवं तकनीकी के बावजूद किसान भाईयों को अपेक्षित परिणाम नही मिल पा रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण खरपतवार या नींदाओं का सही समय पर प्रबंधन न हो पाना है।
खरपतवारों से होने वाली हाति
नींदा या खरपतवार फसल के साथ उगकर पानी, वायु, प्रकाश एवं पोषक तत्वों के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं एवं साथ ही साथ कई कीटों एवं रोगों को भी फैलने में मदद करते हैं। अत्याधिक खरपतवारों से फसलों की कटाई में बाधा उत्पन्न होती हैं। खरपतवारों के द्वारा खेतों में यांत्रिक कार्यो, शस्य क्रियाओं में भी बाधाएं आती हैं। फसलों की गुणवत्ता में कमीं एवं बाजार मूल्य में कमी भी खरपतवारो के कारण होती हैं। इसी प्रकार खरपतवारों का नियंत्रण न होने पर फसल के बीजों में इनका मिश्रण हो जाता है फलस्वरूप अगली फसल में भी खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता हैं।
रबी फसलों में पाये जाने वाले खरपतवार
रबी के मौसम में प्रायः घास कुल एवं चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता हैं। रबी मौसम में पाये जाने वाले प्रमुख खरपतवार निम्नानुसार हैं।
खरपतवार का हिन्दी नाम |
वानस्पतिक नाम |
प्रभावित प्रमुख फसलें |
कृष्ण नील | एनागेलिस आरवेसिंस | गेहूँ, जो, चना, मसूर, सरसों, अलसी, बरसीम |
सत्यानाशी प्याजी | आर्जिमोन मेक्सिकाना
एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस |
बंजर भूमियों में, चना, मसूर, सरसों,
गेहूँ, जौ, चना, अलसी, सरसों, मटर, मसूर, धनिया |
जंगली जई | एविना फतुआ | गेहूँ, जौ |
बधुआ | चिनोपोडियम एलबम | गेहूँ, चना, आलू, मटर, मसूर, सरसों, अलसी |
खरतुआ/खरबथुआ | चिनोपोडियम मुरेल | गेहूँ, चना, आलू, मटर, मसूर, सरसों, अलसी |
कटेली | सिरसियम आरबेंस | गेंहू, जौ, चना, बरसीम, मटर, मसूर, आलू, सरसों |
हिरनखुरी | कन्वाल्वुलस आरवेंसिस | गेहूँ, जौ, जई, गन्ना, आलू, मटर, मसूर, सरसों, अलसी, तम्बाखू |
बनसोया/पित्त पापड़ा | यूमेरिया पारविलोरा | गेहूँ, जौ, चना, जई |
चटरी मटरी
जंगली गोभी जंगली लुर्सन सफेद सेंजी |
लेथाइसरस अफाका
लेनिया एस्पेलनिफोलिया मेडिकागो डेन्टिकुलेटा मेलिलोटस एल्बा |
गेहूँ, चना, मटर
रबी मौसम की सब्जियाँ मेथी, बरसीम गेहूँ, जौ, चना, जई, मटर, आलू, सरसों, मसूर, अलसी |
पीली सेंजी | मेलिलोटस इण्डिका | गेहूँ, जौ, जई, चना, मटर, आलू, सरसों, मसूर |
रूखड़ी/बिल्ली/
बांदा/भुई फोड़ |
आरोबंकी एजिप्टियाका | सरसों, टमाटर, बैंगन, तम्बाखू |
गुल्ली डण्डा/गेहूँ
का मामा गेहूँसा/ मण्डूसी |
फेलेरिस माइनर | गेहूँ, जौ |
बैंगनी कटेली/
महू कट्या |
सेलेनम जेन्थाकारपम | ब्ंजर भूमि बगीचे व सड़कों के किनारे |
सतगठितया/वनधनिया | स्पर्गुला आरवेसिंस | गेहूँ, चना, मटर
|
मुनमुना/चटरी
गेगला/अकरी |
विसिया हिरसुटा
विसिया सेटाइवा |
गेहूँ, जौ, जई, मटर, चना, आलू
गेहूँ, जौ, जई, चना, मटर |
गेंहू की फसल में खरपतवार प्रबधंन
हमारे प्रदेश में रबी के मौसम में गेंहू का प्रथम स्थान हैं। गेहूँ की फसल में प्रथम सिंचाई के बाद खरपतवारों का प्रकोप अधिक रहता हैं। खरपतवारों की सघनता विभिन्न जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। खरपतवारों के कारण प्रति पौधे प्ररोहों की संख्या, दानों का भार, प्रति बाली दाने एवं उपज कम हो जाती हैं।
यांत्रिक विधियों एवं शस्य क्रियाओं द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण
खरीफ की फसल कटने के पष्चात खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिये। इसके पश्चात 3-4 जुलाई धारदार हिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। पलेवा करने के पश्चात उगने वाले खरपतवारों को जुताई द्वारा नष्ट कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला लेना चाहिये। गेहूँ की बुआई के बाद यदि खेत में खरपतवार दिखाई दे तो ‘हैंड हो‘ खुरपी या कुदाली से निंदाई, गड़ाई करना अच्छा रहता हैं।
निंदाई गुड़ाई हमेशा प्रथम सिंचाई के बाद 10-12 दिन के अन्दर कम से कम एक बार अवष्य करें इससे खरपतवारों द्वारा पानी का अवषोषण व वाष्पीकरण नही हो पायेगा और खेत में ज्यादा दिन तक नमी बनी रहेगी जो फसल के उपयोग में आयेगी। बाद में भी आवश्यकतानुसार समय≤ पर निंदाई गुड़ाई द्वारा खरपतवारों को निकालते रहें। दो निंदाई गुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ मृदा में वायु संचरण भी अच्छा होता हैं। साथ ही साथ गेहू की उपज भी बढती हैं।
रासायनिक दवाओं का प्रयोग
गेहूँ की फसल में समय पर सही दवाओं की उचित मात्रा का प्रयोग खरपतवारों का प्रभावी रूप से नियंत्रण कर सकता हैं। गेहूँ में निम्न में से किसी भी रासायनिक दवाओं का प्रयोग किसान भाई सुविधानुसार कर सकते हैं।
क्र. | खरपतवारनाशी दवा | रासायनिक मात्रा ग्राम/हे. | उपयोग का समय | नियंत्रित होने वाले खरपतवार |
1 | मेटसल्यूरान | 40 | फसल बोने के बाद 24-28 दिन तक | सभी चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण |
2 | फिनाक्साप्राप | 100 | फसल बोने के 25-28 दिन तक | गेहूँ के प्रमुख खरपतवार जंगली जई एवं गेहूँ का मामा के लिये अत्यंत प्रभावी |
3 | सल्फोसल्यूरान | 25 | फसल बोने के 25-28 दिन बाद तक | घास कुल के खरपतवार ण्वं चैड़ी पत्ती के खरपतवारों के लिये प्रभावी |
4 | 2-4 डी | 500-800 | फसल बोने के 25-28 दिन बाद तक | चोड़ी पत्ती के खरपतवारों हेतु प्रभावी |
5 | आइसोप्रोटयूरान | 750-1000 | फसल बोने के 25-28 दिन बाद तक | सभी घास कुल के खरपतवार के लिये प्रभावी |
चने की फसल में रासायनिक नींदा नियंत्रण
इसकी फसल में उपज कम होने का एक मुख्य कारण खरपतवारों की वृद्धि और समय से उनका प्रबंधन न करना हैं। चने की कम ऊँचाई एवं जल्दी पकने वाली किस्मों में खरपतवारों की समस्या और बढ़ जाती हैं। चने की फसल में खरपतवार नियंत्रण से उपज के अलावा प्रोटीन की मात्रा में भी वृद्धि हो सकती हैं। किसान भाई शस्य एवं यांत्रिक विधियों के अलावा निम्न में से किसी एक रासायनिक दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
- चने की फसल में पेंडीमिथेलीन नामक दवा की सक्रिय तत्व की एक लीटर मात्रा बीज बोने के 3 दिन के अंदर 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर ही दर से छिड़काव करें। या
- इसकी फसल में बोनी से 25-30 दिन बाद क्लोडिनोफास या क्यूजालाफास नामक रसायन की 60 ग्राम सक्रिय तत्व की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कने से घास के खरपतवार प्रभावी रूप से नियंत्रित होते हैं।
राई एवं सरसों की फसल में खरपतवार
राई-सरसों की फसल में भी खरपतवार एक प्रमुख समस्या हैं। ऊपर बताई गई यांत्रिक विधियों एवं शस्य विधियों के अलावा निम्न रासायनिक दवाओं में से किसी एक का प्रयोग किसान भाई कर सकते हैं।
क्र. | रसायन का नाम | सक्रिय तत्व मात्र (ग्राम/हे.) | दवाई डालने का समय |
1 | फ्यूक्लोरोलीन | 1000 | सरसों की बुआई होने से पूर्व खेत में छिड़काव करके अच्छे से मिला दें। |
2 | क्यूजेलोफाप | 60 | बुआई के 20-25 दिन बाद छिड़काव करना चाहिये |
3 | आक्सीडायजान | 750 | सरसों की बोनी के बाद परंतु उगने के पूर्व छिड़काव करके अच्छी तरह मिला दें। |
मटर की फसल में खरपतवार प्रबंधन
प्रदेश के कई जिलों में मटर की फसल रबी के मौसम मे बहुतायत से की जाती हैं। मटर की फसल में खरपतवार प्रबंधन उपज बढाने के लिये आवश्यक हैं। यदि किसान भाई बोनी से पूर्व पेंडीमिथेलीन नामक दवा की मात्रा 1000 मिली सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये । इसके बाद बुआई से 20-25 दिन बाद एक बार निंदाई कराने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता हैं।
यदि किसान भाई चाहे तो इसके स्थान पर मेट्रीब्यूजीन नामक दवा का प्रयोग (500 ग्राम सक्रिय तत्व/हे.) बुवाई के तुरंत बाद या बोनी के 20-21 दिन बाद छिड़काव कर सकते हैं।
Source-
- Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Jabalpur(M.P.)