परिचय(Introduction)
मध्यप्रदेश में सूर्यमुखी की खेती तीनों मौसम में की जा सकती है। खरीफ में मध्यप्रदेश के उन क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है जहाँ वर्षा 750 मि.मी. तक होती हैं। सूर्यमुखी फसल की खेती सिंचित क्षेत्रों में रबी, पिछेती रबी एवं जायद की फसल के रूप् में नरसिंहपुर, छिदवाड़ा, होषंगाबाद, बालाघाट, जबलपुर व सतना जिलों में की जा रही हैं।
निमाड़ तथा मालवा का पठार में सूरजमुखी एक सह फसल के रूप् में मूँग तथा कपास फसल के साथ ली जा सकती हैं। मध्यप्रदेश के रीवा, सीधी, सतना, पन्ना, दतिया, सिवनी, बैतूल व मंडला जिलों में जहां कम उपज देने वाली दालें जैसे बटरा, बटरी व तिवड़ा उगाई जाती हैं वहां सूरजमुखी उगाकर अधिक लाभ लिया जा सकता हैं। सूर्यमुखी के बीज में 45-48 प्रतिशत तेल होता हैं। इसके तेल का सेवन उच्च रक्त चाप एवं हृदय रोगियों के लिये स्वास्थवर्धक माना गया हैं। सूर्यमुखी के तेल में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं।
सूर्यमुखी उत्पादन हेतु भूमि एवं खेत की तैयारी(Land preparation for sunflower cultivation)
हल्की से भारी मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो वहाँ खरीफ बोनी के लिये यह उपयुक्त हैं। ढलाऊ भूमि इस फसल के लिये उपयुक्त होती हैं। दोमट, काली व चिकनी भूमि में सिंचित, अर्धसिंचित, रबी और गर्मी की फसल सफलता पूर्वक ली जा सकती हैं। खेत में एक या दो बार गहरी जुताई कर बखर चलाकर नींदा नष्ट कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। यथासम्भव खत समतल करें, जिससे सिंचाई का जल समान रूप से खेत में फैलेगा।
बीज का चुनाव(Seed selection)
दो प्रकार की किस्मों का बीज बाजार में उपलब्ध हैं। (1) साधारण किस्में (2) संकर किस्मे/साधारण किस्मों का बीज किसानों को हर साल बदलना नही पड़ता है एवं इन किस्मों के बीजो को किसान तीन वर्ष तक प्रयोग में ला सकता है, किन्तु संकर किस्मों का बीज हर वर्ष नया उपयोग करना पड़ता हैं एवं इन किस्मों का चयन प्रदेश के विभिन्न कृषि अंचलों की जलवायु को देखते हुए करना चाहिये। अधिक देर से पकने वाली किस्में प्रदेश की जलवायु के लिये उपयुक्त नही हैं। उन्नत किस्मों तथा संकर किस्मों के गुणों को सारिणी-1 में दर्षाया गया हैं।
सारणी-1 मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लिये अनुशांसित सूर्यमुखी की उन्नत किस्मों के गुण(Sunflower varieties for Madhya Pradesh)
क्र. | किस्म अनुकूलता | उपयुक्त क्षेत्र | मौसम | पकने की अवधि
दिन |
पौधों की ऊँचाई (से.मी.) | उपज प्रति हे. (क्विं.) | फूलों का व्यास से.मी. | तेल प्रतिशत
|
1 | मार्डन | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | खरीफ रबी व गर्मी में | 80-90 | 80-100 | 12-15 | 12-15 | 38-40 |
2 | सी.ओ.2 | सतपुड़ा का पठार निवाड-मालवा का पठार | खरीफ, रबी | 90-95 | 120-130 | 16-18 | 15-20 | 38-40 |
3 | ई.डी.आर.एस.एफ-108 संकर | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | रबी | 95-100 | 150-170 | 12-14 | 15-16 | 40-42 |
4 | के.बी.एस.एच.-1 | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | खरीफ, रबी गर्मी | 90-95 | 150-180 | 24-30 | 15-20 | 42-45 |
5 | एस.एस.आर.एच.1 | सतपुड़ा का पठार निवाड़, मालवा का पठार | रबी, गर्मी | 90-95 | 120-150 | 20-30 | 15-20 | 40-42 |
6 | एम.आर.एस.एच.8 | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | रबी, गर्मी | 90-95 | 120-150 | 20-30 | 15-20 | 15-20 |
7 | एफ.ए.एस.एच.17 | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | रबी, गर्मी | 90-95 | 120-150 | 20-30 | 15-20 | 15-20 |
8 | ज्वालामुखी | सम्पूर्ण मध्यप्रदेश | खरीब, रबी | 85-90 | 160-170 | 30-35 | 15-20 | 42-44 |
बोनी का समय एवं मात्रा(Sowing time for Sunflower)
सिंचित क्षेत्रों से खरीफ फसल की कटाई के बाद अक्टूबर माह के मध्य से नवम्बर माह के अंत तक बोनी करना चाहिये। अक्टूबर माह की बोनी में अंकुरण जल्दी और अच्छा होता हैं। देर से बोनी करने में बीजों की अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।
असिंचित क्षेत्रों (वर्षा निर्भर खेती) में सूरजमुखी की बोनी वर्षा समाप्त होते ही सितम्बर माह के प्रथम से आखिरी सप्ताह के मध्य करना चाहियें।
ग्रीष्म (जायद) फसल की बोनी का समय जनवरी माह के तीसरे सप्ताह से फरवरी माह के अंत तक का समय उपयुक्त होता हैं।
बोनी का समय इस तरह से निश्चित करना चाहिये ताकि फसल, वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व काटकर उसकी गहाई की जा सके।
उन्नत किस्मों के बीज की मात्रा -10 किलोग्राम/हेक्टेयर
संकर किस्मों में बीज की मात्रा -5 किलोग्राम/हेक्टेयर
सूर्यमुखी का बीजोपचार एवं बुवाई की विधि(Seed treatment and sowing method of Sunflower)
बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिये 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण को प्रति किलो ग्राम बीज की दर से अथवा 3 ग्राम थायरम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। डाउनी मिल्डयू बीमारी के नियंत्रण के लिये रीडोमिल 6 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचारित करें अथवा डाइकोडरमा विरीडी 50 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये।
बोनी कतारों में सीडड्रिल की सहायता से अथवा तिफन/दुफन से सरता लगाकर करें। पिछेती खरीफ एवं जायद की फसल के लिये कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं रबी फसल के लिये 60 से.मी. होना चाहिये। बोनी 4-5 से.मी. गहराई तक की करें। बुवाई के 15-20 दिनों बाद कतारों में उगे अतिरिक्त पौधों को खेत से निकालें।
सूर्यमुखी में उर्वरकों की मात्रा(Fertilizers for Sunflower)
सूर्यमुखी से विपुल उत्पादन के लिये कम्पोस्ट/गोबर की पची हुई खाद 5-10 टन/हेक्टेयर की दर से बोनी के पूर्व खेत में डालें। एजोटोबेक्टर जैव उर्वरक एवं पी.एस.बी. जैव उर्वरक का उपयोग करें। एजोटोबेक्टर जैव उर्वरक का एक पेकेट एक हेक्टेयर बीज के उपचार हेतु प्रयोग करें। पी.एस.वी. जैव उर्वरक के 15 पैकेट को 50 किलो ग्राम गोबर या कम्पोस्ट खाद में मिलाकर आखिरी बखरनी के समय प्रति हेक्टेयर खेत में डालें। इस समय खेत में नमी होना चाहिये। रासायनिक खाद का प्रयोग मिट्टी परीक्षाणोपरांत आवश्यकतानुसार करना अधिक लाभप्रद होगा। बोनी के समय 30-40 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम स्फुर एवं 30 किलोग्राम पोटाष की मात्रा प्रति हेक्टेयर खेत में डालें।
खड़ी फसलों में नत्रजन की 20-30 किलो ग्राम हेक्टेयर मात्रा बोनी के लगभग एक माह बाद प्रथम सिंचाई के पश्चात पौधे के कतारों के बाजू में दें। स्फुर तत्वों की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक से देना अधिक लाभप्रद होगा जिसे गंधक तत्व की पूर्ति हो जावेगीं।
सिंचाई एवं निंदाई गुड़ाई(Irrigation of Sunflower)
बोनी से पहले आवश्यकतानुसार पलेवा देना चाहिये। रबी फसल में 3-4 तथा जायद की फसल में 6-8 सिंचाई करें। कली बनने, (स्टार) फूल खिलने एवं बीज भरते समय सिंचाई देने से उपज में वृद्धि होती हैं। किसी भी फसल अवस्था पर खेत में पानी का भराव नही होने देना चाहिये।
खरपतवार प्रबंधक(Weed management)
खरपतवारों की रोकथाम हेतु फ्लूक्लोरोलीन नामक दवा 2 लीटर/हेक्टेयर की दर से बोनी से पूर्व खेत में छिड़के या बोनी के बाद खेत में छिड़काव करके सिंचाई करें। खरपतवारों के अधिक प्रकोप होने पर एक निंदाई बोनी के 35-40 दिन बाद अवश्य करवाना चाहिये।
पौध संरक्षण(Plant Protection)
(अ) सूर्यमुखी में कीड़े (Sunflower pests)
सूर्यमुखी के फसल को कटुआ इल्ली, सफेद मक्खी, एफिड, जेसिड, तम्बाकू कीट एवं चने की इल्ली से विभिन्ना अवस्थाओं में क्षति पहुँचती हैं। पत्ती भक्षक, कटृआ इल्ली एवं चने तथा तम्बाकू कीट की रोकथाम के लिये क्वीनालफास 25 ई.सी. की 500 मि.ली. या प्रोफेनोफास 50 ई.सी. 1500 मि.ली. की 1000 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर उपयोग करें। रसचूसक कीटों हेतु मिथाइल डेमेट्रान 25 ई.सी. की 1000 मि.ली. या ट्राइजोफास 40 ई.सी. की 1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। कीटनाशक दवा का छिड़काव दोपहर 2 बजे से सायंकाल 5 बजे तक करना चाहिये। जहां तक हो सके इन्डोसल्फान कीटनाशक दवा का ही उपयोग करें।
(ब) सूर्यमुखी की बीमारियाँ (Sunflower diseases)
पत्ती का गेरूआ, पत्ती का झुलसन, जड़ तथा सड़न इसके प्रमुख रोग हैं। जड़ तथा सड़न की रोकथाम हेतु बीजोपचार एवं गर्मी में खेत की गहरी जुताई कर पौध अवशेषों को एकत्र कर जला देना चाहिये। खेत में पानी के निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। पत्ती रोग से रोकथाम के डायथेन एम. 45 (25 ग्राम दवा प्रति 10 लीटर पानी में) घोलकर फसल पर छिड़काव करें। सूरजमुखी के चूर्णिल आसिता रोग का प्रकोप होने पर प्रोपिकोनेजोल 0.1 प्रतिशत के छिड़काव से अच्छा नियंत्रण होगा।
कटाई, गहाई भंडारण एवं पैदावार(Harvesting of Sunflower)
कटाई के लिये जब फसल के पौध पककर पीले रंग में बदलने लगते हैं तब मुण्डकों की कटाई करके उन्हें सुखा लेना चाहिये। सूखे मुंडकों को लाठी से पीट कर दो मुंडको को आपस में रगड़ कर गहाई की जा सकती हैं। उड़ावनी के लिये सूपों से फटककर बीज को साफ करना चाहिये तथा धूप में सुखाना चाहिये। गहाई के लिये बिजली से चलने वाले गहाई यंत्र का उपयोग किया जा सकता हैं। सूर्यमुखी की 15-20 क्विंटल/हेक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती हैं।
विशेष
फूल अवस्था पर मधुमक्खियों द्वारा सूर्यमुखी के परागण में अनुकूल प्रभाव होता है एवं उपज में वृद्धि होती हैं अतः सूर्यमुखी के साथ-साथ मधुमक्खी की काष्त करने पर शहद का अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं। साथ ही फसल ही उत्पादकता भी बढ़ती हैं। तोतो के द्वारा पुष्पावस्था के बाद सूर्यमुखी के फसल को अत्यधिक क्षति पहुँचती हैं। इसलिये कई किसानों को मिलकर अधिक से अधिक क्षेत्रों में सूर्यमुखी लगाना चाहिये, ताकि पक्षियों से होने वाली क्षति को कम किया जा सकें। फूल अवस्था के बाद फसल की सुरक्षा तोतों एवं अन्य चिड़ियों से करने हेतु फसल रखवाली करें।
Source-
- Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Jabalpur(M.P.)