ग्रीष्मकालीन भिन्डी की उन्नत उत्पादन तकनीक(Okra Cultivation)

परिचय(Introduction)

ग्रीष्मकालीन सब्जियों में भिण्डी(lady finger) का प्रमुख स्थान है हालांकि इसे वर्षाकालीन फसल के रूप में भी उगाया जाता है। हरी मुलायम फली का उपयोग सब्जी बनाने के साथ-साथ डिब्बा बन्दी व सूखाने के बाद उपयोग किया जाता है। यह पौष्टिक सब्जी है जिसमें बिटामिन ’ए’ व ’बी’ की प्रचुर मात्रा व बिटामिन ’सी’ की पर्याप्त मात्रा मिलती है। इसमें प्रोटिन, वसा व खनिज पदार्थ की समुचित मात्रा पाई जाती है। औषधि के रूप में यह दिल व दिमाग, पेट व मर्दानगी की कमजोरी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अधिक लाभकारी होती है। भिण्डी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते है|

 

भिंडी की किस्में (Lady finger Varieties)

१. वी.आर.ओ-६ 

इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है यह किस्म भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी द्वारा 2003 में निकाली गई यह किस्म यलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है औसतन 40 दिन मे फल निकलना शुरू हो जाते हैं गर्मियों में इसकी औसत पैदावार 130 से 140 क्वि./हे. एवं बरसात में 180 क्वि./हे. तक ली जा सकती है।

.वी.आर.ओ-22

यह किस्म भी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी द्वारा विकसित की गई है यह भी यलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है गर्मियों में इसकी औसत पैदावार 140 क्वि./हे. एवं बरसात में 160 क्वि./हे.तक ली जा सकती है।

३.अर्का अनामिका

यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बैगलोर द्वारा निकाली गई है जो कि यलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है। इसके पौधे 120 से 150 से.मी. ऊंचाई तक होते हैं फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती है यह प्रजाति दोनो ऋतुओं में उगाई जा सकती है इसकी उपज 130-150 क्वि./हे. तक हो जाती है।

४.हिसार उन्नत

यह प्रजाति चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विष्वविद्यालय हिसार द्वारा निकाली गई है। पौधे मध्यम उंचाई 90 से 120 सेमी. तथा इंटरनोड पास-पास होते हैं पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती है इसकी औसत पैदावार 120 से 130 क्वि./हे. तक हो जाती है। इस किस्म को गर्मियों तथा बरसात दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है।

५.परभनी क्रान्ति

यह प्रजाति चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विष्वविद्यालय हिसार द्वारा निकाली गई है। पौधे मध्यम उंचाई 90 से 120 सेमी. तथा इंटरनोड पास-पास होते हैं पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती है इसकी औसत पैदावार 120 से 130 क्वि./हे. तक हो जाती है। इस किस्म को गर्मियों तथा बरसात दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है।

उपरोक्त किस्मों के अलावा भिन्डी की उन्नत किस्मे

पूसा ए-4, वर्षा उपहार,पंजाब केसरी,
संकर किस्में – डी0वी0आर0-1, वाराणसीडी0वी0आर0-2,डी0वी0आर0-3

 

भिन्डी उत्पादन के लिए जलवायु की आवश्यकता(Climate Requirement for lady finger)

यह उष्ण व उपोष्ण जलवायु की सब्जी है। अच्छी पैदावार के लिए गरम व आर्द्र जलवायु सर्वत्र उपयुक्त मानी जाती है। तापक्रम का अन्तराल 25-26 डिग्री सेन्टीग्रेड उपयुक्त माना जाता हैं सामान्यतः तापक्रम 20 डिग्री सेन्टीग्रेड से नीचे जाने पर बढ़वार रूक जाती है लेकिन बीज का जमाव 10-15 डिग्री सेन्टीग्रेड तक हो जाती है।

उत्तर भारत के मैदानी भागों में भिण्डी की खेती फरवरी के प्रथम सप्ताह से पहले भी की जा सकती है। लेकिन कभी-कभी तापक्रम फरवरी के मध्य तक 15 से 20 डिग्री सेन्टीग्रेड तक बना रहता है। जिसके कारण बीज जमने के बाद भी बढ़वार रूक जाती है और पौधा बौना रह जाता है। जिससे उपज बहुत ही कम होती है। गर्मी के दिनों में वातावरण का तापक्रम ज्यादा रहने के बावजूद भी खेत को हमेषा नम रखने से पौधे की स्थानीय जलवायु उपयुक्त बनी रहती है, और तापक्रम 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेड सदा बना रहता है जिससे परागण तथा सेचन क्रिया में कोई अवरोध नहीं होता है।

 

भिन्डी उत्पादन के लिए भूमि का चुनाव एवं तैयारी(Land Selection and Preparation for lady finger)

भिण्डी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। जायद की अगेती फसल के लिए भी बलुई दोमट मिट्टी ही उपयुक्त होती है। जल निकास का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए, क्योंकि इसकी जड़े पानी लगने के प्रति अति
असहनषील है। पानी लगने से पौधों को काफी नुकसान होता है। भिण्डी का खेत बार-बार बदलते रहना चाहिए नहीं तो एक ही खेत में बोने से फली छेदक कीड़े का प्रकोप बढ़ जाता है।

 

बुआई का समय(Time of Sowing for ladyfinger)

उत्तरी भारत के मैदानी भागों में जायद की फसल फरवरी-मार्च तथा पूर्वी भारत में इसकी बुआई का सही जनवरी-फरवरी है। बरसात की बुआई का उचित समय पूरे देष में जून-जुलाई ही उपयुक्त माना जाता है। सबसे अच्छी पैदावार बरसात के समय ही प्राप्त की जाती है। लेकिन उत्तर भारत में व्यवसायिक दृष्टि से अगेती फसल का काफी महत्व है। अगेती फसल की बुआई का समय फरवरी माह का प्रथम पखवाड़ा उचित माना जाता है।

बीज एवं बीजोपचार- ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 18-20 किग्रा. बीज एक हेक्टर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है। ग्राष्मकालीन भिण्डी के बीजों को बोबाई के पहले 12-24 घण्टे तक पानी डुबाकर रखने से अच्छा एवं शीघ्र अंकुरण होता है। बुआई से पहले भिण्डी के बीजों का 3 ग्राम थायरम या कार्बेन्डाजिम नामक फफूंदनाषक दवा से प्रति किलो बीज दर से उपचार करना चाहिए।

 

बुआई की विधि(Method of sowing)

भिण्डी की बुआई मेड़ तथा समतल भूमि पर दोनों ही तरीकों से की जाती है। जहाँ मिट्टी भारी तथा जल निकासी का उचित प्रबन्ध न हो वहाँ पर इसकी बुआई मेंड़ों पर करते हैं। बलुई दोमट भूमि में इसकी बुआई समतल भूमि पर ही करते है। यदि बुआई मेंड़ों पर करते हैं तो मेंड़ों की दिषा पूरब-पष्चिम की तरफ रखते हैं, ताकि गर्मी एवं बरसात में चलने वाली हवायें सुगमता से आ जा सके और पौधों को गिरने से बचाया जा सकें।

 

भिन्डी बोने का समय और बीज की मात्रा (Time of sowing and quantity of seeds for cultivating lady finger)

मैदानी छेत्रों में-

मौसम समय बीज की मात्रा/हे.
ग्रीष्मकालीन फसल जून से मार्च १८-२० किग्रा.
वर्षाकालीन फसल जून से जुलाई १०-१५ किग्रा.

दूरी

ग्रीष्मकालीन फसल के लिए- पक्तियों और पौधों में क्रमषः 30 सेमी और 15 सेमी दूरी रखनी चाहिए।

वर्षाकालीन फसल के लिए – पक्तियों और पौधों में क्रमषः 45 सेमी और 15 सेमी दूरी रखनी चाहिए।

 

बीज की तैयारी(Preparation of seed)-

बीज के अंकुरण क्षमता की परख करते हैं तथा उसी बीज का चुनाव करते हैं, जिसमें अंकुरण की क्षमता 70 प्रतिशत से कम न हो, 70 प्रतिशत से कम होने पर उस बीज को बदल देना चाहिए। या फिर बीज की मात्रा बढाकर बोना चाहिए।

 

खाद एवं उर्वरक (requirement of Fertilizers for lady finger) –

भिण्डी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेयर क्षेत्र मे लगाभग 15-20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद एवं नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाष की क्रमषः 80ः60ः60 प्रति हेक्टर. की दर से बुआई के समय देना चाहिए नत्रजन की आदी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुआई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। शेष नत्रजन की आदी मात्रा 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए|

अच्छी उपज के लिए नेप्थिलीन एसिटिक एसिड का 15 मिलीग्राम को 2 लीटर पानी में मिलाकर हिसाब से घोल बनाकर जब भिण्डी के पौधों में 5 पत्तियाँ हो तो छिड़काव करने से गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

 

निराई-गुडाई(Weeding) एवं खपतवार नियंत्रण(Weed control)

खरपतवारों से भिण्डी की फसल को 20-60 प्रतिषत तक नुकसान होता है अच्छी उपज के लिए खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमिथीलीन 1.25 ली. प्रति हेक्. की दर से खरपतवार नाषक दवा को बुवाई के दो-तीन दिन बाद लेकिन अंकुरण के पूर्व पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए। तथा 35-40 दिन की फसल होने पर एक बार हाथ से निदाई, गुडाई करके खरपतवार को निकाल देना चाहिए।

 

भिन्डी फसल  की सिंचाई(Irrigation of lady finger)

बुआई के समय प्र्याप्त नमी का होना अति आवष्यक है। प्रथम हल्की सिंचाई अंकुरण के तुरन्त बाद दे देनी चाहिए इसके बाद गर्मी के दिनों में जरूरत के अनुसार 5-6 दिन के अन्तराल पर पानी देते रहना चाहिए।

 

तुड़ाई

भिण्डी की तुड़ाई का समय विभिन्न किस्मों के अनुसार फूल लगने के 5-7 दिन में कर लेना चाहिए। तुड़ाई करते समय फली, कोमल व रेषा रहित होनी चाहिए। समय से तुड़ाई करते रहने से पौधें में बढ़वार होती रहती है तथा फलों की संख्या भी बढ़ जाती है। तुड़ाई के समय फलों को छाये में रखना चाहिए। जिससे फल ताजे व हरे रहते हैं। तुड़ाई में देर करने से फली कड़ी हो जाती है तथा इसके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फली की तुड़ाई शाम को या सुबह के समय करते है फली की तुड़ाई करते समय हाथ में कपड़े के दास्ताने का प्रयोग किया जाता है क्योंकि फल के व पौधो के ऊपर उपस्थित रोये हाथ में चुभते है जो कि जलन पैदा करते है।

सामान्यतः बरसात वाली फसल 60-100 दिन तक तथा गर्मी की फसल 80-90 दिन तक चलती है। गर्मी में इसकी उपज किस्मों के अनुसार 75-120 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तथा बरसात में 115-200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है।

रोग एवं कीट नियंत्रण(Disease and pests management of lady finger)

कीट नियंत्रण(Pest Management of lady finger)

1. जेसिड- यह हरे रंग का कीट होता है जो पत्तियों का रस चूसता है जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। और पत्तियां ऊपर की ओर मुड जाती है।

नियंत्रण- कीटनाषक दवा ट्राइजोफाॅस 40 ई.सी. 2 मिली प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 0.30 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
2.भिन्डी का तना छेदक- यह कीट भिण्ड़ी के तनों में प्रवेष कर जाता है जिससे तने खोखले हो जाते हैं।

नियंत्रण-

इसके नियंत्रण हेतु फिप्रोनिल 1 मिली/लीटर की दर से छिडकाव करें।

रोग नियंत्रण(Disease Management of lady finger)

१.पीत शिरा मौजेक- यह भिण्डी का सबसे भयंकर रोग है यह रोग विषाणु के द्वारा फैलता है। पत्तियां और फल पीले पड़ जाते हैं, फल बेडौल व कठोर हो जाते है।
नियंत्रण-

  • रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें
  • फसल पर एसीफेट (0.15ः) या इमिडाक्लोप्रिड (0.3ः) का छिड़काव करें।
  • रोग प्रतिरोधी किस्में- टत्व्6 , वर्षा उपहार, पंजाब केसरी एवं अर्का
    अनामिका उगाएं|

२.पाउडरी मिल्डयू रोग- यह रोग इरीसाईफी सिनकोरेसियरम नामक फफूँदी के द्वारा होता है पत्तियों की निचली सतह पर सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ जमा हो जाता है जिससे पत्तियाँ गिली होकर गिरने
लगती हैं।

नियंत्रण-

  • इसके नियंत्रण हेतु 25 किग्रा/हे. की दर से गंधक पाउडर का भुरकाव करें
  • हेक्साकोनेजोल (0.05 प्रतिषत) या प्रोपीकोनाजोल (0.03 प्रतिषत)
    का दो से तीन बार 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

 

Source-

  • Krishi Vigyan Kendra(M.P.)
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