धनिया की उन्नत उत्पादन तकनीक / Coriander Cultivation Practices – Madhya Pradesh

कोरिएण्डम सेटाइवम (धनिया)  “अम्बेलीफेरा” कुल का पौधा है। इमसें सफेद और गुलाबी फूल छतरी के रूप में लगते है। यह मध्यप्रदेश की उपजाऊ दोमट मिट्टी की एक महत्वपूर्ण फसल है।

 

जलवायु एवं मृदा

धनिया के पौधे के लिये फूल एवं बीज बनते समय पाला रहित वातावरण होना चाहिए। यदि फूल एवं सामान्य ठण्डा वातावरण रहता है तो उपज बढ़ने के साथ बीज की गुणवत्ता भी बढ़ती है। सिंचित अवस्था में इसके उत्पदन हेतु दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है जबकि असिंचित अवस्था में काली मिट्टी दोमट मिट्टी की तुलना में इसकी कास्त हेतु अधिक उपयुक्त मानी जाती है। क्षारीय एवं अम्लीय भूमि इसकी कास्त हेतु उपयुक्त नही है।

 

धनिया की  किस्में

1. आर सी आर 41 – इसके पौधे लम्बे तथा छोटे बीजो वाले होते है इसके पौधे 130-140 दिन में परिपक्व हेा जाते है। तथा इसकी औसत उपज 9.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

2. आर.सी.आर 20 – इसके पौधे फैले हुये मध्यम लम्बाई के होते है। पौधे से अण्डाकार एवं बडें आकार के बीज प्राप्त होते है यह 100-110 दिनों में तैयार हो जाते है तथा इनकी औसत उपज 10 क्विं./हे. हैै।

3. आर.सी.आर 435 – इसके पौधे तीव्र वृद्धि करने वाले एवं मध्यम आकार के बीज प्राप्त होते है ये पौधे 110-130 दिन में परिपक्व हो जाते है। तथा इनकी औसत उपज 10.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

4. आर.सी.आर 446 – इसके पौधे पत्तियों युक्त एवं सीधे होते है यह अधिक बीज उत्पन्न करते है तथा इसके बीज मध्यम आकार के होते है यह 110-130 दिनों में परिपक्व हो जाते है। इसकी औसत उपज 12 क्विं/हे. होती है।

5. सी.एस 6 – इसके पौधे मध्यम उंचाई के फैले हुये होते है इसके पौधे लगभग 110-120 दिन में परिपक्व हो जाते है तथा औसत उपज लगभग 15-20 क्विं/हे. होती है।

 

बुवाई

बुवाई के पहले बीजों को मसला जाता है ताकि उसके फलाशंक अलग-अलग हो जाऐं फिर इन्हे  सिंचित दशा में बीज दर 12-15 किग्रा./हेक्टेयर जबकि असिंचित दशा में बीज दर 25-30 किग्रा/हे. से बुवाई 30 से 10 सेमी. दूरी पर करनी चाहिए यदि भूमि अधिक उपजाऊ है तो कूड़ से कूड की दूरी 40 सेमी रखना चाहिए। धनिया की बवुाई के लिये उपयुक्त समय अक्टूबर का अंतिम सप्ताह है यदि बुवाई देर से की जाती है तो पौधों का विकास ठीक से नही होता तथा कीट व्याधि के प्रकोप की संभावना रहती है। बुवाई के बाद बीजाकुंरण 10-15 दिन में होता है।

 

खाद एवं उर्वरक

पोषक तत्वों की पूर्ति मृदा परीक्षण के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए। सामान्यतः खेती की तैयारी के समय 10-20 टन गोबर की सड़ी खाद अच्छी तरह मिलाना चाहिए तथा नत्रजन 20 किग्रा, स्फूर 30 किग्रा तथा 20 किग्रा. पोटाश असिंचित भूमि में बुवाई के समय आधार खाद के रूप में देना चाहिए। सिंचित धनिया में 40 किग्रा. नत्रजन अतिरिक्त दो समान विभाजित मात्रा में बुवाई के 30 दिन एवं 75 दिन बाद देना चाहिए।

 

खरपतवार नियंत्रण

जब पौधों की वृद्धि प्रारंभिक अवस्था में धीमी होती है उस समय अतिरिक्त पौधों को निकाल देना चाहिए। लगभग 30 दिन की फसल हो जाने पर कर्षण  क्रियाओं द्वारा खरपतवार निकालना चाहिए। यदि पुनः खरपतवार दिखते है तो आवश्यकतानुसार 50-60 दिन की फसल होने पर पुनः खरपतवारों को निकालना चाहिए। रसायनिक नियंत्रण में बुवाई के बाद पौधो के उगने से पहले आक्सीफ्लूरफेन 0.15 किग्रा./हे. या पेण्डामिथेलिन 1 किग्रा./हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।

 

सिंचाई

किस्म, मृदा की जलधारण क्षमता एवं वातावरणानुसार 4-5 सिंचाई 30-35 दिन, 60-70 दिन 80-90 दिन 10-105 एवं 110-150 बुआई के बाद क्रमशः आवश्यकतानुसार करना चाहिए।

 

गहाई एवं गहाई पूर्व प्रबंधन

गुणवत्ता युकत उत्पादन के लिये गहाई पूर्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण क्रिया विधि है। जब बीज 50 प्रतिशत पीले पडने लगे उस समय फसल की कटाई करना चाहिए। कटाई के बाद संपूर्ण पौधों को छायादार जगह पर सुखाना चाहिए। जिससे बीज का रंग एवं गुणवत्ता उत्कृष्ठ बनी रहें। यदि छायादार स्थान पर न सुखा सके तो पौधो को काटने के बाद उन्हे खेतों में उल्टा रख देना चाहिए। जिससे सुर्य की सीधी किसणों से बचाया जा सके। जब सुख जाऐ तो डण्डों से पीट कर बीजो को अलग कर लें और दानों को भूसे से अलग कर लें।

 

उत्पादन

सिंचित अवस्था में औसत उत्पादन 12-25 क्विं./हे. तथा असिंचित अवस्था में 7-8 क्विं/हे. प्राप्त होता है।

 

कीट एवं व्याधिया

धनिया में माहू कीट का प्रको होता हे। इसके नियंत्रण के लिये दैहिक रासायनिक कीटनाशी जैसे इमिडाक्लोप्रिड 125 मिली. / हे. की दर से लगभग 600-800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे। मृदुरोमिल आसित एवं चूर्णिल आसिता व्यधियों का धनिया की फस्ल में प्रकोंप हेाता है। इसके नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम/किलोबीज की दर से बीजोपचार करे तथा रोग आने पर पानी में घुलनशील सल्फर 3 ग्राम/ लीटर पानी की दर से पर्णीय छिड़काव करं।

 

स्रोत-

  • कृषि विज्ञान केन्द्र ज्ञान तंत्र-ICAR

 

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