हरा फुदका सब्जी फसलों का प्रमुख कीट है। ये हरे रंग का 3 से 5 मिमी. लम्बा बेलनाकार कीट होता है। इस कीट का वयस्क एवं अवयस्क पत्तियों का रस चूसकर पत्तियों में अपना लार प्रवेश करा देती है। पत्तियों का अत्यधिक रस चूसने से पत्तियाँ प्यालेनुमा आकार की हो जाती है। पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती है एवं सूखकर जमीन पर गिर जाती है। इस कीट के प्रकोप से किसानों को भिण्डी, लोबिया, बैंगन, कद्दूवर्गीय आदि फसलों में 40 से 60 प्रतिशत तक की भयंकर हानि का सामना करना पड़ता है।
जीवन चक्र
इस कीट की तीन अवस्थायें पायी जाती हैं। अण्डा, अवयस्क फुदके एवंवयस्क फुदके। इस कीट की मादा वर्ष भर निषेचन करके पत्तियों के बीच की धारियों पर अण्डे देती हैं। ये अण्डे गोल आकार के अति महीन होते है। करीब 4 से 5 दिन बाद अण्डे से छोटे अवयस्क फुदके निकल कर पत्तियों का रस चूसना प्रारम्भ कर देते हैं। अवयस्कफुदके पंखहीन होते हैं। इनको छूने पर यह तिरछे चलते हैं। जबकि वयस्क फुदके छूने पर उड़ जाते हैं। आर्दता एवं तापक्रम इस कीट की वृद्धि में सहायक होते हैं।
आर्दत एवं तापमान बढ़ने पर इनकी संख्या बढ़ती है और घटने पर घटती है। गर्मियों में हरे फुदके का जीवन चक्र 30 से 32 दिन का होता है। जबकि जाड़ों में 40 से 45 दिनों का होता है। वर्षभर में इस कीट की 14 से 15 पीढियाँ पायी जाती हैं। पोषक फसलों की उपस्थिति भी इनके जीवन चक्रो की संख्या को निर्धारित करती है।
विषैले कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग करने से जैसिड हरा फुदका का संतोषजनक रूप से नियंत्रण नहीं किया जासकता है क्योंकि इन रसायनों के बराबर प्रयोग होने से हरा फुदका में कीटनाशकों के प्रति सहनशीलता विकसित हो जाती है जिससे इन्हे आसानी से नहीं मारा जा सकता।
रसायनों के प्रयोग से परभक्षी मित्र कीट जैसे मेंटिड लेडीबर्ड भृंग, रोव बिटल आदि भी मर जाते हैं। ये परभक्षी कीट हानिकारक कीट, हरा फुदका को खाकर इससे होने वाली क्षति को कम करने में सहायक होते हैं। रोयेनुमा पत्तियो(ज्तपबीवउम) सघनता का प्रभाव हरा फुदका को प्रभावित करता है। कुछ भिण्डी प्रजातियाँ जिनमे रोये की संख्या ज्यादा होती है, उनमें इस कीट से कम क्षति होती है|
प्राकृतिक शत्रु
एनाग्रस फ्लेवियोलस और स्टीथिनियम ट्राइडेवेटम का प्रयोग हरा फुदका के अण्डों को खाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के प्राकष्तिक शत्रु का प्रयोग खेत में हराफुदका के नियंत्रण के लिए करना चाहिए। अन्य फसलों को हरा फुदका से मुक्त रखने के लिए सीमा फसल के रूप में भिण्डी को लगाया जाना चाहिए। ऐसा करने से लोबिया, टमाटर एवं कद्दू वर्गीय आदि फसलों में हरा फुदका का प्रकोप कम होता है।
नियंत्रण
1. हरा फुदका प्रतिरोधी प्रजातियों की बुवाई करें।
2. खेत में उचित नमी एवं खरपतवार की साफ-सफाई करते रहें।
3. खेत में उपयुक्त पौध अंतराल रखें।
4. नाइट्रोजन एवं पोटाश की संस्तुति मात्रा का प्रयोग करें।
5. बीज उपचार के उपरान्त सब्जियों की बुवाई करें। क्रुजर या गाउचो 70 डब्लू पी (इमिडाक्लोप्रिड) की 3 ग्राम मात्रा प्रतिकिलोग्राम बीज को उपचारित करके बुवाई करें।
6. खड़ी फसलों में हरा फुदका के प्रकोप से बचने के लिए एक्टारा 25 डब्लू. पी. की 0.3 मि.ग्रा. मात्रा या कानफिडोर 17.8 ई. सी. 0.3 मि.ली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें।
7. फ्यूराड़ान 3 जी की 30 से 32 किलोग्राम प्रति हे. की दर से खेत में मिला देने से हरे फुदके का नियंत्रण हो जाता है।
8. जैव नियंत्रण – लेस विंग बग, रोव बिटल, लेडी बर्ड बिटल का खेत में संरक्षण करें।
9. सिन्थेटिक रसायानों जैसे साइपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन का हरा फुदका के नियंत्रण के लिये प्रयोग कदापि न करें। इन रासायनो के प्रयोग से हरा फुदका की संख्या कापुर्नवर्धन होता है।
Source-
- भारतीय सब्जी अनुसधान संसथान