सौंफ की खेती

परिचय

सौंफ एपियेसी कुल का मौसमी शासकीय पौधा होता है । इसकी खेती पंजाब, बिहार, उत्तरप्रदेश, मैसूर एवं उड़ीसा में होती है । इसके दानों का उपयोग मसाला एवं दवाइयों में होता है । यह कार्मिनेटिव व उत्तेजक सौंफ, काजग ( अर्क ) के रूप में प्रयोग होता है । इससे उड़नशील तेल निकलता है जिसका उपयोग इत्र तथा मदिरा उद्योग में होता है । इसका दवा के रूप में पेट की बीमारियों में प्रयोग होता है ।

 

औषधीय उपयोग

बीजों का उपयोग हैजा, गोनोरिया, पेटदर्द के इलाज में किया जाता है । यह कृमि नाशक, कफनि, कामोद्दीपक, हृदय के लिए बल्य तथा स्त्रियों की ऋतु संबंधी व्याधियों के निराकरण में उपयोगी है ।

 

रासायनिक संगठन

सौंफ की पत्तियों व बीजों में कई तरह के फ्लैवोनाॅइड्स जैसे – क्वैरसेटिन  3 अराबिनोसाइड आदि पाये जाते हैं । इसकी जड़ों में अम्बैलीफेरोन, डिकरसिनोल, बरगैप्टेन तथा ग्रांडीविटिन नामक फ्लैवोनाॅइड्स होते हैं । इसकी पत्तियों व बीजों में सुगंधित तेल पाया जाता है, जिसमें 50-60 प्रतिशत एनीथाॅल, 10-15 प्रतिशत फेनकोन, लिमोनीन, टरपाीनोलीन, पारस्ले, डायइलापिओल तथा मेथिल चैवीकोल पाये जाते हैं ।

 

जलवायु

सौंफ समशीतोष्ण जलवायु की फसल है । औसत वर्षा 75-90 से.मी. होनी चाहिए, परंतु 125-130 से.मी. वर्षा वाले स्थानों में भी यह होती है । सौंफ मुख्यतः रबी की फसल है । यह खरीफ फसल के रूप में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं, परंतु सौंफ के फूलने के समय तथा बीज बनने के समय वर्षा होने से एफिड (माहो) कीट का प्रकोप हो जाता है ।

 

खेत की तैयारी

भूमि की जुताई करीब 12 सेन्टीमीटर गहरी होना चाहिए । 10-15 टन सड़े गोबर की खाद डालकर दो जुताई करें फिर पाटा चलाकर भूमि समतल कर लें ।

 

बेनी का समय

बीज बोने का समय अक्टूबर-नवम्बर है, परन्तु अक्टूबर के प्रथम पखवारे में सौंफ बोने पर अधिक पैदावार होती है सौंफ की खरीफ फसल की बोनी जुलाई के प्रथम पखवारे में करना चाहिए । गुजरात में सौंफ की बोनी अगस्त-सितम्बर में होती है ।

 

बीज की मात्रा व उपचार

10-12 किलोग्राम/हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है । पारायुक्त दवा से 2.5 ग्राम/किलो ग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें ।

 

उर्वरकों की मात्रा

सिंचित फसल-बीज बोने के पहले 20:50:15 किलो ग्राम नत्रजन, स्फूर एवं पोटाश/हेक्टेयर देना चाहिए ।10 किलो ग्राम नत्रजन/हेक्टेयर बीज बोने के पहले अथवा बीज बोते समय कतारों में उर्वरक सीड ड्रिल दुफन या पारी हल से डाल सकते हैं ।
टसंचित फसल जुलाई में बोई जाने वाली सौंफ की फसल में पहले कतारों में 10:25:10 किलो ग्राम नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश/हेक्टेयर की दर से डालें । हल्का पानी गिरने के बाद बीज बोना चाहिए । रबी में बोने वाली सौंफ की असिंचित फसल में 10:10 किलोग्राम नत्रजन व स्फुर/हेक्टेयर जुताई के समय डालें ।

 

सौंफ की उन्नत जातियाँ

1. पी.एफ. 35 – इसे गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है । यह अच्छी उपज देने वाली उन्नत जाति है 19 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है ।

2. यू.एफ. 8 – ये उदयपुर विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई उन्नत जाति है ।

3. सिलेक्शन 16 तथा ई.सी. 58 – राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय ढ़ोली (बिहार) द्वारा चयन किया है । यह माहो कीट निरोधी है ।

 

फसल की कटाई

सौंफ में 80 – 100 दिनों में फूल लगना शुरू हो जाता है तथा फसल 150 – 180 दिन में तैयार हो जाती है । सौंफ की फसल को जब अधिकांश बीज पूर्ण विकसित हो जाये व जब बीज हरे रंग के हो जाये तब काटना चाहिए । पौधों को हंसिया से काट का हल्की धूप मेें फैला कर 3 से 4 दिन में सुखाना चाहिए । तत्पश्चात् पौधों को लकड़ी से पीटकर तथा उड़ाबनी कर बीज साफ करना चाहिए ।

 

उपज

8 – 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज सिंचित फसल में प्राप्त होती है एवं असिंचित सौंफ 4 – 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है ।

 

बोनी की विधि

1. बीज द्वारा –

बीज की सीधी बोनी, 80 सेंटीमीटर के अंतर पर कतारें बनाकर की जाती है । जब पौधे 4 – 5 सप्ताह के हो जावे तो पौधों की छटनी करके कतार में पौधे से पौधे की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर करें ।

2. रोपाई द्वारा –

उत्तर प्रदेश व बिहार के कुछ स्थानों में सौंफ की खेती रोपाई करके की जाती है । इसके लिए 7 – 10 किलो ग्राम बीज/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है । इस बीज को 100 वर्गमीटर क्षेत्र में नर्सरी डालनी चाहिए । बीज को चार पाँच दिनों तक पानी में भिगोकर छायादार जगह पर हल्का सुखाते हैं, फिर उसे नर्सरी की क्यारियों में डालते हैं तथा खुरपी से मिलाते हैं । नर्सरी को केले के पत्ते अथवा कांस या पलास या धान के पुआल से ढंकना चाहिए । 8 – 10 दिनों  बाद पुआल हटा देना चाहिए । नर्सरी में पौधा जब 40 – 50 दिनों का हो जाता है तब पौधों का उखाड़ कर खेत में रोपाई 20 – 25 सेंटीमीटर के संतर से कर देनी चाहिए ।

 

पौध संरक्षण

सौंफ के अंगमारी रोग ( ब्लाइट ) के नियंत्रण के लिए डायथेन, एम.45 या जिनेब नामक दवा को 2 – 2.5 किलो ग्राम प्रति 500 – 800 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें । यह छिड़काव 10 – 15 दिनों के अंतर से आवश्यकतानुसार करना चाहिए ।
सौंफ के फूल व कोमल बीजों पर माहू ( एफिड ) के नियंत्रण के  लिए कीटनाशी दवा मेलाथियान 0.5 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करना चाहिए या डायक्लोसेवास 250 – 400 मि.लीटर, 500 – 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें ।

 

बीज भंडारण

जूट के बोरे में जिसके भीतर पोलीथीन की पट्टी लगी हो सौंफ के बीज रखने के लिए उपयुक्त है । सौंफ की असिंचित खेती में लगभग 5000 रूपय/हेक्टेयर तथा सिंचित खेती में 7000 – 8000 रूपये प्रति हेक्टेयर खर्च होता है ।

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर     

 

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