उत्तर भारत में गन्ने की बिजाई सामान्यतः सर्दियों के बाद शुरू हो जाती है तथा गर्मियों का मौसम शुरू होने तक पूरी हो जाती है । इस संदर्भ में, देशान्तर रेखा जितनी पूर्व की तरफ होगी, बिजाई के लिए उतनी जल्दी का ही समय उपयुक्त रहेगा । मार्च माह का पहला पक्ष पंजाब और हरियाण के लिए गन्ना बिजाई के उद्देश्य से सर्वोत्तम माना गया है । इसी तरह उत्तर प्रदेश के लिए फरवरी और बिहार के लिए जनवरी – फरवरी बिजाई के लिए उपयुक्त माह है ।
लेकिन सब जगह देरी से गेहूं बोने और काटने के कारण गन्ने की बिजाई भी देरी से होती है । इस स्थिति में, कृषिक या तो गन्ने की फसल की बिजाई नहीं कर पाते या फिर अप्रैल – मई के महीने में देर से की जाती है जिसका विपरीत असर पैदावार और चीनी के परते पर पड़ता है क्योंकि फसल का जमाव सही नहीं हो पाता और उसे बढ़वार के लिए भी पूरा समय नहीं मिलता । अप्रैल – जून में उपोष्ण कटिबंधीय वातावरण बहुत ही गर्म और सूखा रहता है जिससे सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है । इस सब विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए कुछ प्रबंधन तकनीक नीचे दी गई हैं|
बिजाई का समय
जल्दी बिजाई ( फरवरी – मार्च ) में देरी से बोये गये ( अप्रैल – मई ) गन्ने की अपेक्षा अधिक जमाव रहता है तथा पैदावार भी अधिक मिलती है । असौज बिजाई किए हुए गन्ने में सूखा सहन करने की क्षमता बसंतकालीन बिजाई किए हुए गन्ने से अधिक होती है ।
दूरी
सूखे की स्थिति में 60 – 75 से.मी. खूड़ से सूड़ की दूरी में 90 से.मी. के मुकाबले अधिक गन्नों की संख्या रहती है ।
जमाव प्रतिशत बढ़ाना
देर से बिजाई किए हुए और सूखे की स्थिति वाले गन्ने में जमाव कम होता है । जमाव बढ़ाने के लिए बिजाई से पहले गन्ने के बीज टुकड़ों को एक घण्टे तक संतृप्त चूने के घोल ( भट्ठी में जल हुआ चूना 30 कि.ग्रा. प्रति 200 लीटर पानी ) में डुबा लें । इस तकनीक से जल्दी और अच्छा जमाव होगा और पौधों की सूखा सहन करने की क्षमता भी बढ़ेगी । वैकल्पिक तौर पर, फरवरी – मार्च में नर्सरी बनाकर ( एस.टी.पी. विधि ) या पोली बैग द्वारा पौध बनाई जा सकती है जिसको खेत में गेहूं कटाई के बाद लगा सकते हैं । इस तरह से जमाव में लगने वाले समय की बचत होगी और फुटाव भी अधिक होगा ।
बिजाई के तरीके
बाकी सब तरीकों की अपेक्षा, गड्ढ़ा और ट्रेंच विधि सूखे की स्थिति में बिजाई के लिए अधिक उपयुक्त है ।
सूखी पत्ती की मल्चिंग
बिजाई के बाद सूखी पत्ती ( 10 से.मी. मोटाई ) द्वारा मल्चिंग करने से मिट्टी में नमी बनी रहती है, जमाव प्रतिशत बढ़ता है और खरपतवार नियंत्रण होता है । सूखी पत्ती की मिट्टी चढ़ाते समय जुताई की जा सकती है ।
हानिकारक कीडो की रोकथाम
देरी से बिजाई किए गए गन्ने में कनसुआ का प्रकोप अधिक होता है, इसलिए क्लोरपायरीफाॅस 2 ली. प्रति एकड़ 350 – 400 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के समय डालें ।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
गोबर की सड़ी खाद 4 – 5 टन प्रति एकड़, 2.5 % यूरिया + 2.5 % एम.ओ.पी. ( 2.5 कि.ग्रा. यूरिया + 2.5 कि.ग्रा. पोटाश + 20 मि.ली. टीपोल को 100 लि. पानी में घोलकर) का पर्णीय छिड़काव बिजाई/कटाई के 90, 105 और 120 दिन बाद करने से बढ़वार और पैदावार अधिक होती है ।
सिंचाई
अगर पानी की कमी है, तो एक खूड़ छोड़कर ( स्किप फ्रो ) सिंचाई करें । गड्डा विधि के अन्र्तगत बूंद – बूंद सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किफायती सिद्ध हुआ है ।
स्रोत-
- गन्ना प्रजनन संस्थान( भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) क्षेत्रीय केन्द्र करनाल