सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के सामान्य लक्षण

सूक्ष्म तत्वों की कमी से होने वाले सामान्य लक्षण:-

मिट्टी परीक्षण आवश्यक क्यों है

क्योंकि मृदा में सूक्ष्म तत्वों के स्तर का पता मिट्टी की जांच के बाद ही लगाया जा सकता है । सूक्ष्म तत्वों की कमी के लक्षण का पता पौधों के विभिन्न भागों पर दिखाई पड़ते हैं ।

 

बोरोन

इसकी कमी से पौधे के शीर्ष भाग का उचित विकास नहीं हो पाता । लंबाई में सिरों के कलियों की मृत्यु हो जाती है तथा पुरानी पत्तियां सूख जाती हैं । बोरान की कमी में फूलगोभी के फूल का रंग भूरा हो जाता है ।

 

तांबा

विभिन्न फसलों में तांबे की कमी के लक्षण विभिन्न होते हैं, परन्तु सामान्यता नई पत्तियां बिना कोई दाग या हरीमाहीनता दिखलाए सूख जाती हैं । इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है, तथा कल्ले कम निकलते हैं । मक्के की पत्तियां पीली हो जाती हैं और वृद्धि रुक जाती है । पोटाश के अभाव के लक्षणों की तरह पत्तियों के किनारे एवं छोरों पर मृत उत्तक दिखने लगते हैं, पत्तियां हरिमाहीनता के कारण हरे नीले रंग की हो जाती हैं जो मुड़ जाती हैं तथा फूल आना बंद हो जाता है ।

 

लोहा

इसकी कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर दिखाई पड़ते हैं । पौधे में हरमाहीनता इसके मुख्य लक्षण हैं । पत्तियों के शिराओं के बीच तन्तुओं का हरापन हल्के पीले रंग का हो जाता है, परन्तु शिराओं एवं उसके पास के तन्तु हरे रहते हैं । यह लक्षण नवीन पत्तियों के आधार से शुरू होकर पत्ती सफेद रंग की हो जाती है । चूना युक्त भूमि में धान एवं दलहनी फसलों पर लोहे की कमी अधिक दिखाई पड़ती है ।

 

मैगनीज

जई के पौधे पर इसकी कमी का अधिक प्रभाव प्रकट होता है । जब पौधे छोटे होते हैं उसी समय निचली पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे की धारियां प्रकट होती हैं जो मिलकर उत्तकों के रंग को बादामी कर देती है और पत्तियां टूटने लगती हैं । जड़ों का विकास ठीक नहीं होता है । मैगनीज सल्फेट में 36.3 प्रतिशत मैगनीज रहता है । पीट चूना युक्त तथा छारीय भूमि में मैगनीज की कमी रहती है । इसकी कमी को पीट मिट्टी में 42.50 किलो मैगनीज सल्टेट प्रति हैक्टेयर देने से दूर कर सकते हैं । टिकाऊ खेती के लिए यह आवश्यक है कि संतुलित पौषक तत्वों का व्यवहार किया जाए । रसायनिक उर्वरक के साथ जैविक खाद मिलाकर देने से अधिक लाभ होता है, जिससे फसलों को संतुलित मात्रा में सभी पोषक तत्व मिलते हैं तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी नहीं हो पाती ।

 

जस्ता

जस्ते की कमी के लक्षण विभिन्न फसलों पर विभिन्न होते हैं । धान के पौधे के तीसरी पत्ती के आधार पर लाल भूरे रंग का बिन्दू दिखाई पड़ता है, जो तुरंत एक दूसरे से मिलकर भूरे रंग का धब्बा बन जाता है फिर पूरी पत्तियों को ढंक लेता है । पत्तियां तने से अलग होकर गिर जाती हैं, इसे खैरा रोग भी कहते हैं । तन्तुओं का हरा रंग खत्म हो जाता है तथा पत्तियां मध्य भाग से सिकुड़ने लगती हैं जो नोक की ओर झुक जाती हंै । मक्का का नवीन पत्तियों के आधार तन्तु मध्य शिरा की दोनों ओर सफेद रंग में बदलने लगता है तथा धीरे – धीरे पूरी पत्तियां सफेद पीले रंग की हो जाती हैं तथा तने के ही गांठों की दूरियां कम हो जाती है, तथा पौधे नाटे दिखाई पड़ते हैं । रब्बी मक्का में यह लक्षण अधिक दिखाई पड़ता है ।

 

मोलिब्डेनम

इसकी कमी के लक्षण की कमी के जैसा मालूम पड़ता है । पत्तियों में कलेरोफिल काह हास, धब्बे मुरझाना एवं झुलसना मुख्य लक्षण हैं । फूलगोभी में इसकी कमी से बीच की पत्तियों में हरेपन का हास प्रकट होता है । पत्तियां मुड़कर सूखने लगती हैं तथा गिरने लगती हैं तथा पत्तियों में मात्र डंठल बच जाती है ।

 

सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपयोग विधि

पौध लोह को फेरस एवं फेरिक आयन, मैगनीज को मैगनस एवं मैगनिक, तांबे को कुपरस तथा कुपरिक रूप में लेते हैं । जिंक को जिंक आयनरूप में अतिशोषक करते हैं । बोरन का बोरेट तथा मोलिब्डेनस को, मेलिवडेट लवण के रूप में पौधे लेते हैं । अधिकांश सूक्ष्म तत्वों को फेरस सल्फेट, मैगनीज सेल्फेट आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है । ये सभी उर्वरक पानी में घुलनशील हैं ।

अतः इन्हें छिड़क कर भी दे सकते हैं । भूमि में 25 किलो जिंक सल्फेट 22.7 प्रतिशत प्रति हैक्टेयर में दे सकते हैं । दस टन कम्पोस्ट के साथ 12.5 किलो जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर मिलाकर देने से 25 किलो जिंक सल्फेट के बराबर हो जाता है । चूना युक्त मिट्टी में चार तथा चूनारहित मिट्टी में छः फसलों के लेने के बाद जिंक सल्फेट मिट्टी में देते हैं ।

बोरा की कमी से गेहूं एवं चने में दाना नहीं बनता । इसके निदान के लिए 10 – 15 किलो बोरेक्स प्रति हैक्टेयर के हिसाब से देते हैं । बोरेक्स में 2.8 प्रतिशत बोरेन पाया जाता है । सूक्ष्म तत्वों का व्यवहार, भूमि जांच के बाद ही किया जाता है । फेरस सल्फेट में 20 प्रतिशत लोहा होता है । फेरस सल्फेट को घोलकर पत्तियों पर छिड़काव कर लोहा की कमी को दूर कर सकते हैं । तांबा, जस्ता एवं मैगनीज की मात्रा आवश्यकता से अधिक होने पर लोहे की कमी हो जाती है ।मोल्ब्डिेनम आक्साइड में 66.6 प्रतिशत मोलिब्डेनम रहता है । इसकी कमी को पूरा करने के लिए 100 – 500 ग्राम मोल्किडेनम आक्साइड प्रति हेक्टेयर की दर से डाली जाती है ।

दलहनी फसलों में इसका अच्छा प्रभाव पाया जाता है । काॅपर सल्फेट में 25.4 प्रतिशत तांबा होता है । तांबे की उपस्थिति में जस्ता पौधे पर अपना असर डालता है । तांबे की कमी 2.5 से 5 किलो प्रति हैक्टेयर काॅपर सल्फेट डालकर दूर कर सकते हैं । मैगनीज सल्फेट में 36.3 प्रतिशत मैगनीज रहता है ।पीट चूना युक्त तथा छारीय भूमि में मैगनीज की कमी रहती है । इसकी कमी को पीट मिट्टी में 42.50 किलो मैगनीज सल्फेट प्रति हैक्टेयर देने से दूर कर सकते हैं ।

टिकाऊ खेती के लिए यह आवश्यक है कि संतुलित पोषक तत्वों का व्यवहार किया जाए । रसायनिक उर्वरक के साथ  जैविक खाद मिलाकर देने से अधिक लाभ होता है, जिससे फसलों को संतुलित मात्रा में सभी पोषक तत्व मिलते हैं तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी नहीं हो पाती है ।

 

 

स्रोत –

  • डाॅ. वी.एस. चौहान , सीनियर डी.ई.एस., कृषि विज्ञान केन्द्र, अंबाला
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