खेती के लिए सूक्ष्म जैविक प्रौद्योगिकी

सूक्ष्म जैविक प्रौद्योगिकी इस प्रकार है:-

1.राइजोबियम

राइजोबियम टीका, दलहन एवं तिलहन और चारे वाली फसलों में प्रभावकारी सहजीवी है और इससे 20-100 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। राइजोबियम टीके द्वारा उपचारित करने पर जलवायु परिस्थिति, उगायी गई फसल तथा कीट नियन्त्रण के तरीकों पर भी निर्भर करती है। राइजोबियम टीका प्रत्येक दलहन के लिए विशिष्ट है। अतः प्रत्येक फसल जैसे चना, मसूर, मटर, सोयाबीन, मूंगफली, अरहर, मूंग, उर्द, लोबिया, बरसीम, रिजका, ढैंचा एवं सनई में फसल विशेष के लिए अनुमोदित टीके का ही प्रयोग करें।

 

2.एजोटोबैक्टर

एजोटोबैक्टर टीके का प्रयोग अदलहनी फसलों जैसे गेहू, धान, मक्का, जौ, टमाटर, कपास एवं सरसों की फसल के लिए अनुमोदित किया जाता है। एजोटोबैक्टर वायुमंडलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण करता है। इस प्रकार से यह 15-20 कि.ग्रा. नत्रजन की बचत में सहायक है। एजोटोबैक्टर पादप वृद्धि को बढ़ाने वाले पदार्थों का स्राव भी करता है, जिससे बीज अंकुरण व जड़ों का विकास अच्छा होने के साथ-साथ पोषक तत्व उपलब्धता में भी बढ़ोत्तरी होती है। एजोटोबैक्टर मृतोपजीवी एवं रोगकारक सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को जड़ क्षेत्र में कम कर देता है जिससे पादप रोगों द्वारा फसल को हानि कम होती है। एजोटोबैक्टर टीका फसल की बेहतर पौध संख्या वृद्धि सम्पन्न करने तथा उपज बढ़ाने में सहायक है। साधारणतः एजोटोबैक्टर टीके द्वारा 10-20 प्रतिशत उपज में वृद्धि, अनुपचारित के सापेक्ष दर्ज की गई है।

 

3.एजोस्पिरिलम

यह टीका अदलहनी फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, राॅगी, तथा दूसरे मोटे अनाज जैसे बार्न यार्ड़ मिलेट, कोदों आदि सभी छोटे अनाज तथा जई आदि के लिए अनुमोदित किया गया है। विभिन्न चारे वाली घास फसलों में भी एजोस्पिरिलम टीके का अच्छा प्रभाव होता है। इस टीके द्वारा मिलेट्स में दाने एवं
चारे की उपज में वृद्धि 15-20 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर के बराबर होती है।

 

4.फाॅस्फेट विलायक जीवाण

फाॅस्फोरस पौध पोषक तत्वों में एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। फाॅस्फोरस विलायक सूक्ष्म जीवों द्वारा उपचार करने से, मृदा में उपलब्ध अघुलनशील फाॅस्फोरस की उपलब्धता में सुधार होता है एवं फाॅस्फेटिक उर्वरक जैसे सुपर फाॅस्फेट की उपयोग क्षमता में वृद्धि होती है। इस प्रकार जो फाॅस्फोरस मृदा में स्थिर होता है, इन सूक्ष्म जीवों के प्रयोग से अधिक प्रभावशाली तरीके से फसल को प्राप्त हो जाता है। इन सूक्ष्म जीवों के उपयोग से विभिन्न फसलों जैसे गेहु, धान, लोबिया, मसूर, चना तथा आलू आदि की उपज में 10-50 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। साधारणतः राॅक फाॅस्फेट एवं फाॅस्फेट विलायक सूक्ष्म जीवाणुओं के समूह को साथ-साथ प्रयोग करने से 40 प्रतिशत सुपर फाॅस्फेट की बचत की जा सकती है। फाॅस्फो सूक्ष्म जीवाणुओं को सभी फसलों में प्रयोग के लिए अनुमोदित किया गया है।

 

वाहक आधारित जीवाणु टीके/जीवाणु खाद की प्रयोग विधि

बीज को उपचारित करने के लिए राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम तथा फाॅस्फो जीवाणु टीको का प्रयोग किया जाता है। बीजोपचार के लिए,बाजार में उपलब्ध 150-200 ग्रा. टीके का पैकिट एक एकड़ क्षेत्र में बोने के लिए पर्याप्त है। इसके लिए गुड़ या चीनी का 5 प्रतिशत का घोल पानी में तैयार किया जाता है। इस घोल में पानी की मात्रा केवल इतनी हो कि बीज गीले हो सकें। घोल को उबालकर पूर्णतः ठंडा कर लें। टीके के पैकिट को खोलकर ठंडा किये गये घोल में अच्छी प्रकार मिलाऐं। इस प्रकार तैयार घोल द्वारा एक एकड़ में बोई जाने वाली इच्छित फसल के बीजों पर एक समान परत चढ़ायें। उपचारित बीजों को छाया में इकहरा सुखाकर तुरन्त बुवाई कर दें।

 

सावधानियाँ

प्रत्येक फसल के लिए, अनुमोदित टीके उसकी समाप्ति तिथि से पूर्व प्रयोग करें। टीके के पैकिट तथाउपचारित बीजों को सूर्य की सीधी किरणों, रसायनिक खादों तथा कीटनाशकों के सम्पर्क में आने से बचायें तथा टीके का ठंडे स्थान में भंडारण करें।

 

कम्पोस्ट टीका

यह टीका बहुत से सूक्ष्म जीवों का एक समूह है जो सेल्युलोज, हेमी-सेल्युलोज तथा लिग्निन के विघटन के लिए उपयुक्त है। अच्छी प्रकार से टीकाकृत कृषि अवशेष 6-8 सप्ताह में कम्पोस्ट तैयार हो जाता है, जबकि अनुपचारित कृषि अवशेषों से कम्पोस्ट तैयार होने में 12 सप्ताह से अधिक लगते हैं। इन टीकों के प्रयोग द्वारा धान की पुआल से लगभग 6-9 सप्ताह में कम्पोस्ट तैयार हो जाती है। 500 ग्रा. के टीके का पैकिट, एक टन कृषि अवशेष को उपचारित करने के लिए पर्याप्त है जिससे कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया तेजी से हो सके। इस टीके का गड्ढों अथवा हवादार गड्ढों में पानी के साथ प्रयोग किया जाता है, जिससे कम्पोस्ट बनाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला पदार्थ नमीयुक्त हो जाये।

 

आॅरबस्कुलर-माइकोराईजा (न्युट्रिलिंक)

आॅरबस्कुलर-माइकोराईजा (ए.एम.) के कवक तन्तु पौधे तथा मृदा के बीच एक पुल का निर्माण करते हैं, जोकि पादप पोषक तत्वों, मुख्य रूप से फाॅस्फोरस तथा अल्प मात्रा में ग्रहण किये जाने वाले पोषक तत्वों जैसे जस्ता, लौहा, तांबा, कोबाल्ट, मैग्निशियम, माॅलिब्डेनम आदि के प्रबन्ध कर्ता के रूप में कार्य करते हैं। ए.एम. द्वारा पौध जड़ों में उपनिवेश होने से पौध वृद्धि में बढ़त होती है, पौषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है तथा लवण की कमी या अधिकता में होने वाली हानि कम होती है।

ए.एम. भूमि के कटाव तथा विघटन को रोकता है एवं पादप सूत्रकृमि तथा रोगजनक कवकों द्वारा होने वाली हानि को कम करता है। 5 कि.ग्रा. ए.एम. टीका एक एकड़ में बोई जाने वाली फसल के लिए पर्याप्त होता है। टीके को मृदा, गोबर की खाद, कम्पोस्ट या केंचुए की खादमें 1ः20 के अनुपात में मिलाकर पोषक जड़ों के पास प्रयोग करें। गन्ना, आलू एवं रोपाई की गई फसल तथा बागवानी पौधों में इस टीके को बार-बार प्रयोग करने का अनुमोदन किया जाता है।बागानों में 200-250 ग्रा. प्रति पौधा के हिसाब से जुलाई- अगस्त एवं फरवरी-मार्च में पौधे केचारों ओर 1-2 वर्ग मी. के क्षेत्र में प्रति वर्ष इस टीके का प्रयोग करना चाहिए। यह टीका काॅफी,चाय, कोका तथा पाम आयल की फसलों में बहुत लाभदायक पाया गया है। इस टीके के प्रयोग से अनाज तथा फलों के गुणों एवं उपज में सुधार होता है।

 

नील-हरित शैवाल (नी.ह.शै.)

धान की खेती में नील हरित शैवाल टीके द्वारा न केवल नत्रजन ही प्रदान की जाती है, अपितु कार्बनिक कार्बन तथा पादप वृद्धि को बढ़ाने वाले पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। नी.ह.शै. का मुलतानी मिट्टी में मिश्रित टीका तैयार किया गया है, जिससे धान की खेती में अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। इस टीके का 500 ग्रा. का पैकिट एक एकड़ धान की खेती के लिए पर्याप्त है। 500 ग्रा. टीके को 4-5 कि.ग्रा. प्रक्षेत्र मिटटी में मिला लें तथा धान की फसल की रौपाई के बाद खड़े पानी में इसका प्रयोग करें। इस टीके के प्रयोग के बाद धान के खेत में लगभग 10 दिन तक पानी भरा रहना चाहिए, जिससे खेत में नी.ह.शै. की अच्छीवृद्धि हो सके।

अनुमोदित कीट नियन्त्रण तथा प्रक्षेत्र प्रबन्धन की क्रियाओं का नीह.शै. की क्रियाशीलता तथा स्थापना पर साधारणतः कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। इस टीके का कम से कम लगातार 2-4 फसल मौसम में अनुमोदित फाॅस्फोरस की मात्रा के एक भाग के साथ प्रयोग, नी.ह.शै. के स्थापन तथा धान की उपज पर दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ता है। यदि रसायनिक खादों का प्रयोग न किया जाये तो नी.ह.शै. टीके द्वारा 20-30 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर का लाभ होता है।

 

एजोला

एजोला मुक्त रूप से प्लाॅवन करने वाला एक जलीय फर्न है जो कि एनाबिना एजोला के साथ सहजीवी संबन्ध द्वारा 40-60 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्रति फसल प्रदान करता है। एजोला का धान की फसल में जीवाणु खाद के रूप में प्रयोग करने का मुख्य कारण इसका मृदा में तेजी से विघटन तथा इसमें काफी मात्रा में उपलब्ध नत्रजन का फसल को प्राप्त होना है।

 

सूक्ष्मजीवीय टीकों/संवर्धन का प्रयोग

एजोस्पिरिलम, एवं फास्फोरस विलायक जीवाणुओं का प्रयोग बीज उपचार के लिए किया जाता है। 200 ग्रा. का एक जैव उर्वरक का पैकेट एक एकड़ भूमि में बीज बोने के लिए काफी है।

 

तरल टीक

संस्थान द्वारा एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, राइजोबियम एवं फाॅस्फोरस, पोटेशियम व जस्ता विलायक जीवाणुओं के तरल टीके विकसित किये गये हैं।तरल निरूपण से तैयार टीकों में जीवाणुओं का जीवनकाल अपेक्षाकृत एक वर्ष या उससे भी अधिक होता है, जबकी वाहक अधारित तैयार टीकों में जीवाणुओं का जीवन काल लगभग 3-6 माह तक होता है। तरल टीकों में जीवाणुओं की 12 कोशिकाएं 10 /मि.ली. तक होती है। तरल टीकों का प्रयोग बुवाई के लिए बीज उपचारित करने, को पौधारोपण के लिए जड़ उपचारित करने तथा वृक्षों के लिए मृदा को उपचारित करने के लिए किया जा सकता है। 50 मि.ली. तरल निरूपण में तैयार टीके को 1 ली. पानी मिलाकर 1 एकड़ क्षेत्रफल में बिजाई करने वाले बीज को उपचारित करने के उपयुक्त होता है। उपचारित बीजों को छाया में 30 मिनट के लिए इकहरा दाना कर सुखाएं और बुवाई कर दें।

 

पोटेशियम को घुलनशील करने वाले जीवाणु का तरल निरूपण

पौधों के लिए पोटाश एक आवश्यक पोषक तत्व है। यहां अनेक मृदाओं में अघुलनशील पोटाश के भण्डार है, जिनमें अधिकांश एल्यूमिनो सिलिकेटखनिज के रूप में होते हैं। इनमें उपस्थित पोटाश को पौधे प्रत्यक्ष रूप से अवशोषित नहीं कर पाते। सम्भाग द्वारा पोटाश को घुलनशील करने वाले जीवाणुओं का तरल निरूपण तैयार किया गया है। जिसे सभी फसलों में प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग करने से ये लगभग 10-15 कि.ग्रापोटाश/है. उपलब्ध कराते हैं। विकसित किए गये तरल निरूपण में अत्यधिक कुशल पोटाश विलायक जीवाणु हैं। जिनहें विभिन्न प्रकार की मृदा में सभी फसलों में प्रयोग किया जा सकता है। तरल निरूपण में तैयार टीके में जीवाणुओं का जीवनकाल एक वर्ष होता है।

 

जस्ते (जिंक) को घुलनशील करने वाले जीवाणुओं का तरल निरूपण

जंक की पौधे के ऊतकों में अपेक्षाकृत कम सांद्रता (5-100 मि.ग्रा./कि.ग्रा.) की आवश्यकता होती है। जस्ते की कमी की सूचना पुरे विश्व की मृदा में अच्छी प्रकार  दी गई है। बेड़े पैमाने में मृदा पर जस्ते की कमी की समस्या जस्ते के अघुलनशीन होने के कारण है न कि जस्ते की कम मात्रा के कारण है।जस्ते को घुलनशील करने वाले जीवाणु जस्ते के एक निश्चित आकार को घुलनशील करने में सहायता करते हैं। इस प्रकार घुलनशील जस्ते को पौधोंको उपलब्ध कराकर पौध वृद्धि में अग्रणी भूमिका निभाते हैं एवं अनाज में जस्ते की पुष्टि करते है।

सस्थान द्वारा जस्ते को घुलनशील करने वालेजीवाणु का तरल निरूपण तैयार किया गया है। इस उत्पाद में जस्ते को घुलनशील करने में सक्षम ब्रैसिलस प्रजाति के जीवाणु हैं, जो विभिन्न स्रोतोंजैसे जिंक आॅक्साइड, जिंक फाॅस्फेट एवं जिंक कार्बोनेट से जस्ते को घुलनशील कर सकते हैं। इसका प्रयोग सभी प्रकार की मृदा में सभी फसलों के लिए किया जा सकता है। यह जीवाणु मृदा में उपलब्ध है। जमा जस्ते को उपयोग करने में पौधों मदद करता है।

 

Source-

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान

One thought on “खेती के लिए सूक्ष्म जैविक प्रौद्योगिकी

  1. Sir, we don’t get these products at our small town. Can you send me. Since I am having a kitchen garden, our requirements are less and no supplier provides us. Thanks

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