परिचय
सीताफल (शरीफा) अत्यंत पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल है। इसे गरीबों का फल कहा जाता हैं। इसका उत्पत्ति स्थल उष्ण अमरीका माना जाता हैं। अमरिका में इसका नामकरण इसके स्वाद के अनुरूप् ‘‘शुगर एप्पिल‘‘ दिया गया हैं। सीताफल के नियमित उद्यान कम हैं। यह मध्यप्रदेश में जंगली रूप में सर्वत्र पाया जाता हैं। अतः इसके विकास की काफी अच्छी संभावनायें हैं।
मानक किस्मों का अभाव है, अतः उन्नतशील किस्मों का विकास चयन विधि द्वारा किया जाना अपेक्षित हैं। यह मध्यप्रदेश के अलावा आन्ध्रप्रदेश, अत्तरप्रदेश, आसाम राज्यों के जंगलों में बहुतायत से उपलब्ध हैं।
यह फल दुनिया के सभी उष्ण तथा उपोष्ण देशों में जहाँ पाले का प्रकोप नही होता है, पैदा किया जाता हैं। अब विभिन्न देशों में इसकी खेती हो रही हैं, जैसे आॅस्ट्रेलिया, ब्राजील, म्यांमार, भारत, चिली, इजराइल, मैक्सिको, स्पेन एवं फिलीपीन्स आदि।
सीताफल मुख्यतः ताजे फल के रूप में खाने के काम आता है। परंतु फल में बीज अधिक संख्या में होने के कारण खानें में अरूचि पैदा करता है। साथ ही फल पकने के बाद शीघ्र ही खराब होने लगता है। इसका गूदा दूध में मिला कर पेय के रूप में उपयोग किया जाता है। गूदे से आइस्क्रीम भी बनाई जाती है तथा इसे कुछ समय के लिये जैम व जेली के रूप में भी रखा जा सकता है।
आन्ध्र प्रदेश में फलों को भून कर खाते हैं। फल में शर्करा, कैल्शियम, फाॅस्फोरस तथा विटामिन ‘‘बी‘‘ समूह अधिकता से पाया जाता है। इसके फलों में 1.6 प्रतिशत प्रोटीन, 0.3 प्रतिशत वसा, 2.4 प्रतिशत रेशे के अतिरिक्त 24.2 प्रतिशत अन्य कार्बोहाइड्रेट्स पाये जाते हैं। इसका 100 ग्राम भोज्य पदार्थ, 114 कैलोरी उर्जा प्रदान करता हैं।
फल मीठा, स्वादिष्ट श्रेष्ठ बलवर्धक, रक्तवर्धक, शीतलता दायक, दाहशामक, पित्तरोधक, वमनरोधी तथा हृदय के लिये औशधि हैं। इसके बीज से प्राप्त तेल का उपयोग साबुन तथा रंग उद्योग में होता हैं।सीताफल का वृक्ष पर्णपाती सहनशील 5-6 मी. उंचा होता है।
पौधे लगाने के चार से पाँच वर्ष में यह फलने लगते हैं। पूर्ण विकसित वृक्ष से 70-90 फल प्रति वृक्ष प्राप्त होते हैं। जो नवम्बर, दिसम्बर एवं जनवरी में प्राप्त होते हैं। फलों का औसत भार 150 ग्राम से 250 ग्राम तक होता है। औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती हैं। ऐसे स्थानों में जहाँ पानी की कमी है और भूमि कम उपजाउ तथा अनुपयोगी है, इस फल को लगाया जा सकता है। उन्नतशील किस्मों के प्रसार की मध्यप्रदेश में प्राथमिक आवश्यकता हैं।
जलवायु
शरीफा का पौधा काफी सहिष्णु (कठोर) होता है, और शुष्क जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसके पोधों पर पाले का भी असर कम पड़ता हैं। अधिक ठंडे मौसम में फल कड़े हो जाते हैं, तथा पकते नही हैं। फूल आने के समय शुष्क मौसम होना आवश्यक होता है परंतु 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर फूल झड़ने लगते हैं। वर्षा ऋतु आने के साथ फल लगने प्रारंभ हो जाते है। सीताफल हेतु 50-75 से.मी. वार्षिक औसत वर्षा उचित मानी जाती है।
भूमि एवं भूमि की तैयारी
मृदा, उद्यान का आधार होता है। सामान्यतः जीवांशयुक्त बलुई, दोमट, पथरीली चट्टानी भूमि जहाँ पानी का निकास अच्छा होता है, सीताफल अच्छी तरह से होते हैं एवं फलन भी अच्छा होता है। भूमि का पी.एच.मान 5.5 से 6.5 बीच उत्तम माना जाता हैं भूमि की एक, दो जुताई मिट्टी पलटाने वाले हल से कर के मृदा को भुरभुरी तथा खरपतवार रहित कर लें।
गड्ढे तैयार करना
उद्यान लगाने से 2 महीने पहले 50 ग 50 ग 50 से. मी. आकार के गड्ढे 4.5 से 5.0 मीटर की दूरी पर खोद लें। एक महीने तक गड्ढे खुदे रहने के बाद 10-15 किलो पकी हुई गोबर की खाद तथा आवश्यकतानुसार 250 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 50 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश मिट्टी में मिला दें। दीमक के बचाव के लिये लिन्डेन की 100 ग्राम मात्रा प्रति गड्ढा मिलायें। गड्ढे की खुदाई के समय 25 से.मी. की गहराई तक की मिट्टी एक तरफ तथा निचली 25 से.मी. गहराई मिट्टी दूसरी तरफ डालें तथा भरते समय उपर की मिट्टी नीचे तथा नीचे वाली मिट्टी के साथ खाद मिला कर उपर भर दें।
सीताफल की उपयुक्त जातियाँ
सीताफल की कुछ उत्त्म जातियाँ निम्नानुसार हैं
१.अर्का सहान
यह एक संकर किस्म है जिसे भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर से विकसित किया गया हैं। यह किस्म अपने मीठे स्वाद, सफेद गूदे, उन्नत भण्डारण क्षमता व कम बीजों (9 ग्राम/100 ग्राम फल भार) के कारण पहचानी जाती है। इसमें शर्करा 22.8 प्रतिशत प्रोटीन 2.49 प्रतिशत फाॅस्फोरस 42.29 मिलीग्राम, कैल्शियम 225 मिलीग्राम पाया जाता हैं। जबकि सीताफल की अन्य किस्मों में प्रोटीन 1.33 प्रतिशत फाॅस्फोरस 17.05 मि.ग्रा. व कैल्शियम 159 मि.ग्रा. पाया जाता हैं।
२.लाल सीता फल
इस किस्म के फल हल्के गुलाबी रंग के एवं आकर्षक होते हैं। फलों में बीजों की संख्या अधिक होती है तथा औसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष 40-50 फल आते हैं। फलों में 30.5 प्रतिशत गुदा, कुल विलेय ठोस (कुल घुलनशील पदार्थ) 22.3 प्रतिशत तथा अम्लता 0.24 प्रतिशत होती हैं।
३.मैमथ
फल गोलाकार, आँखे बड़ी तथा गोलाकार होती हैं। फलों का स्वाद अच्छा होता हैं। प्रति वृक्ष 60-80 फल प्राप्त होते हैं। फल की फाँके गोलाई लिये काफी चैड़ी होती हैं। फलों में 44.8 प्रतिशत गूदा, कुल विलेय ठोस 20 प्रतिशत तथा अम्लता 0.19 प्रतिशत होती हैं।
४.बालानगर
फलों का औसतन भार 137 ग्राम और औसत उपज 5 से 7 कि.ग्राम प्रति वृक्ष होती हैं।
५.बारबाडोज सीडलिंग
फलों का भार 145 ग्राम तक होता है, औसत उपज 3.5 से 4.5 कि.ग्रा. प्रति वृक्ष होती है।
६.ब्रिटिश ग्वाईना
फलों का औसत भार लगभग 150 ग्राम होता हैं एवं औसत उपज लगभग 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है।
बीज की मात्रा
इसकी सफल खेती हेतु औसतन 900 से 1200 बीज प्रति हेक्टेयर बोये जाते हैं।
प्रवर्धन
भारतवर्ष में सीताफल के पौधे मुख्यतः बीज द्वारा तैयार किये जाते हैं किन्तु अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाये रखने, आसानी के साथ उनका तेजी से विकास करने तथा शीघ्र फसल लेने के लिये आवश्यक है कि वानस्पतिक विधि से तैयार किये हुये पौधे ही लगायें।
पौधा खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें
1.हमेशा कलमी पौधे ही लगायें, जिसे किसी विश्वसनीय एवं प्रमाणित नर्सरी से खरीदें।
2. रोपण हेतु स्वस्थ, कीट एवं बीमारियों से मुक्त पौधे का प्रयोग करें।
3. पौधों की जड़े तथा मिट्टी की पिण्डी ठीक हो यह जाँच ले जिससे आसानी से पौधा लगाया जा सकें।
4. पौधा ओजस्वी हो, एक तने वाले सीधे तथा कम उँचाई वाले फैले हुए हों।
पौधों की रोपाई एवं देखभाल
1. पौधों को पौधशाला (नर्सरी) से रोपने की जगह पर लायें।
2. प्रत्येक गड्ढे के पास में एक पौधा रखते जायें।
3. पाॅलीथिन की थैली या पिण्ड के आकार एवं माप के अनुसार ही गड्ढे में जगह खाली रखें।
4. मिट्टी के पिंड के बाहर लगी पुआल या घास को हटा दें। यदि पौधे पाॅलीथिन की थैली में उगायें, तो चाकू से उपर से नीचे तक चीर दें। इसके बाद पौधों को थैली से बाहर मिट्टी के पिंड सहित निकालें। पाॅलीथिन की थैली को पूरी तरह अलग कर दें।
5. पौधों को मिट्टी के पिंड के साथ आधे भरे हुए गड्ढे के बीचो-बीच रखें। अब इसके चारों तरफ मिट्टी डालें और पैर से अच्छी तरह दबा दें।
6. पौध रोपण हमेशा शाम के समय करें।
7. पौधे जुलाई-अगस्त तथा फरवरी-मार्च में लगायें।
नये पौधे लगाने के बाद बाँस की सोंटी से सहारा दें। रोगी व झुकी हुई टहनी को सावधानी से काटते रहें। पौधा रोपने के बाद 10 से 15 दिन बाद पौधों के चारों ओर आधे मीटर दूर तक के क्षेत्र में निराई करके घास आदि उखाड़ दें। रोपे हुए पौधो के आस-पास की मिट्टी को गैंती से थोड़ा-थोड़ा खोदकर ढीला करें। इससे बरसात का अधिक से अधिक पानी गड्ढे में उतरेगा। कोई बेल पौधे पर चढ रही हो तो उसे काट दें। यदि कोई पौधा मर गया हो तो उसे निकालकर दूसरा पौधा लगा दें।
पौधे लगाने के एक से दो वर्ष तक मूलवृंत पर आने वाले फुटाव (छोटी शाखाये) को तोड़ते रहें, लगाए गए पौधों को जानवरो द्वारा चरे जाने से बचायें। यदि रोपे गये पौधों को दीमक से नुकसान हो रहा हो तो तुरंत जरूरी उपाय करें। इसके लिये 50 मिली लीटर क्लोरोपायरीफाॅस दवा लेकर15 लीटर पानी में घोल दें। अब इस घोल को प्रत्येक पौधे की जड़ के पास मिट्टी में छोटा सा छेद बना कर डालें। लगभग 250 मिली लीटर घोल प्रति पौधे की दर से डालें। घोल डालने के बाद छेद को मिट्टी से ढंके। जिससे घोल का वाष्पीकरण न हो। जब भी पौधों में दीमक का प्रकोप देखें उपर बताये गए ढंग से उपचार करें।
सीताफल के खाद एवं उर्वरक
सीताफल को अधिकांशतयः कमजोर मिट्टी या अनुउपजाउ भूमि पर लगाते हैं, जहाँ खाद व उर्वरकों का उपयोग नही किया जाता हैं। अतः अच्छे फल एवं अधिक उत्पादन के लिये आवश्यक खाद एवं उर्वरकों की मात्रा समय समय पर दें।
पौधे की आयु |
गेबर की खाद (कि.गा्र.) |
अमोनियम सल्फेट(ग्राम) |
सिंगल सुपर फास्फेट(ग्राम) |
म्यरेट आॅफ पोटाश(ग्राम) |
पौधा लगाते समय | 10 | 50 | 100 | 25 |
1-3 वर्ष | 20 | 100 | 200 | 50 |
4-7 वर्ष | 20 | 150 | 300 | 75 |
8 वर्ष या अधिक | 20 | 200 | 400 | 100 |
खाद एवं उर्वरक सामान्य नियमों के अनुसार दें। इन्हें माॅनसू के आने के समय बगीचों में डालना लाभप्रद होता है। इसके अतिरिक्त वर्षा ऋतु के प्रारंभ में सनई, मूँग या उड़द जैसी फसल बो कर तथा फूल आने के थोड़ा पहले इसे मिट्टी में जोत कर मिलाने से काफी लाभ होता हैं।
सिंचाई
पौधा लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करें। सीताफल का पौधा सूखे के प्रति सहनशील है और अच्छी फसल उत्पादित कर सकता हैं क्योंकि फल बनने और बढने के लिये पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है और यह अवस्था वर्षाकाल के समय आती है। जब वातावरण में तथा मृदा में नमी अच्छी रहती हैं। सीताफल में 2 से 3 सिंचाई अवष्य करें, विशेशकर वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने के पूर्व, जिससे फल धारण करने की क्षमता बढती है और एक से दो सिंचाई, वर्षा उपरांत करने से फल का आकार अच्छा बनता है।
गर्मी में सप्ताह में एक बार व ठण्ड में 15-20 दिन में एक बार पानी देने से पैदावार व पेड़ की वृद्धि ठीक रहती है। बीजू पौधे 3-4 वर्ष में फल देने लगते हैं अतः फलन के समय सितम्बर से नवम्बर के बीच एक बार सिंचाई करें। फल तोड़ने से पहले सिंचाई बंद कर दें। फूल खिलते समय सिंचाई नही करें।
अन्तर्वर्तीय फसलें
प्रारंभ के 4-5 वर्षो तक पौधों की बढवार धीरे धीरे होती है और मुख्य पौधों से कोई खास पैदावार नही होती हैं। इस समय अंतः फसल (कम अवधि की अन्य फसल, जो मुख्य फसल के विकास के अनुकूल हो) उगायें। इससे किसान को अतिरक्ति आय मिलेगी एवं साथ ही साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढेगी और कटाव कम होगा।
अन्तर्वर्तीय फसलों के कारण खरपतवारों में भी कमी आयेगी। अतः कतारों के नीचे खाली जमीन में सब्जियों व दलहनी फसले जैसे मटर, बरबटी उगा कर अतिरिक्त आय प्राप्त करें। अन्तर्वर्तीय फसलों के रूप में मूंगफली, छोटे धान्य तथा अलसी को वर्षा ऋतु मे तथा मटर तिलहन व चना को शरद ऋतु में उगायें एवं अतिरक्ति आय प्राप्त करें। बाग जब फलने लगें तब अंतः फसलें लेना बंद कर दें।
सधाई एवं छटाई
सधाई आवश्यकतानुसार एक निश्चित रूप प्रदान करने के लिये आवश्यक हैं। समय -समय पर सूखी टहनियों को काट दें एवं फल तुड़ाई पश्चात अनावश्यक रूप से बढी हुई शाखाओं की पेड़ को आकार देने के लिये हल्की छटाई करें।
हस्त परागण
सीताफल के पुष्प् अनाकर्षक होते है एवं इनमें मधु की मात्रा भी कम होती है जिससे कीट परागण की संभावना बेहद कम होती है। परागकणों के समूह में न होने के कारण वायुपरागण की सफलता भी सीमित होती है। इसलिये प्राकृतिक परागण के स्थान पर कृत्रिम हस्त परागण से बेहतर परिणाम प्राप्त होते है।
फसल सुधार के लिये हाथ द्वारा परागण में काफी सफलता मिलती हैं।
अनुसंधान से यह सिद्ध हुआ है कि हाथ से परागण करने पर 44.4-60 प्रतिशत फूलों पर फल लगते हैं जबकि प्राकृतिक दशा में छोड़ देने पर केवल 1.3 से 3.8 प्रतिशत फूलों में ही फल आते हैं। इसके लिये एक प्लास्टिक के कप में सीताफल के नव विकसित एक दिन पहले के खिले फूल जिनकी पंखुड़ियाँ सूखना शुरू हो गयी हों, से परागकण इकट्ठा कर लें। पराग कण को इकट्ठा करने के लिये फूल को हिला कर या उंगलियों की बीच में रगड़ कर इकट्ठा करें।
पराग कण को इकट्ठा करने के लिये फूल को हिला कर या उंगलियों के बीच में रगड़ कर इकट्ठा करें। यह कार्य सुबह 6.00 से 7.00 बजे के बीच करें। तत्पश्चात एक पेन्टिंग ब्रश (2 या 3 नम्बर) लेकर उसको परागकणयुक्त कप में डाल कर परागकण की क्रिया करें। परागकण का कार्य करने के लिये सुबह 9.30 बजे के पहले का समय उत्तम माना गया है। सुविधा के लिये परागकणयुक्त कप को शर्ट की जेब में रखें और फिर ब्रश से परागकण की क्रिया करें।
फूल की पंखुड़ियों को एक हाथ की सहायता से दूर करें ताकि स्त्रीकेशर पर दूसरे हाथ से सरलता से पराग कण छिड़के जा सकें। यह ध्यान रखें कि जिस फूल के स्त्रीकेशर पर परागकण स्थापित करना है वह अधखुला हो या कुछ समय में खुलने वाला हो। इस विधि में विशेश सावधानी यह रखें कि जब अधिकतम पुष्प् विकसित हों तभी परागकण स्थापित करें। ऐसा करने पर फलों के बनने की अधिकतम संभावना रहती हैं।
नींदा नियंत्रण
बगीचे की घास नींदा की समय-समय पर सफाई करते रहें। सितम्बर में एक बार जुताई करें। जिससे खरपतवार एवं घास खत्म हो जायेगी तथा असिंचित क्षेत्रो मे इस क्रिया द्वारा खेत में नमी संरक्षित की जा सकेगी।
फसल की तुड़ाई, उपज एवं विपणन
सीताफल के पौधे के रोपण के 4-6 वर्ष बाद फल आना प्रारंभ हो जायेगें और 12-15 वर्ष तक अच्छी उपज देंगे। फलों की तुड़ाई का काम सितम्बर से नवम्बर के महीने तक करें जो कि फूल आने के समय पर निर्भर करेगा। पूर्ण विकसित वृक्ष से जब फल कुछ कठोर रहते हैं, तभी तोड़ लें इनकी तुड़ाई की अवस्था का निर्धारण इन बातों से करें –
1.जब फल कड़े रहें एवं उनमें रंग परिवर्तित होकर हल्के हरे से पीला होने लगे।
2. फल की फाँको के छिल्के के बीच का रंग पीला-सफेद होने लगे।
3. जब फल की फाँको के बीच के छिल्के में दरार सी दिखाई देने लगे।
इस अवस्था पर फल को वृक्ष से सावधानी पूर्वक तोडे़। सीताफल के फल पूरी तरह से पहले ही तोड़ लें अन्यथा फल फट कर सड़ना प्रारंभ हो जायेंगे। तोड़ने के लगभग एक सप्ताह बाद ये फल खाने योग्य हो जाते हैं। पक जाने पर ये फल सावधानी से उठायें और बाजार तक शीघ्र पहुँचाये। इन्हे बाजार भेजने के लिये टोकरियाँ (टोकरियों में सूखी घास बिछायें एवं धीरे से एवे सावधानीपूर्वक फल रखें) प्रयोग करें।
अन्य सावधानियाँ
सीताफल की सफल खेती हेतु निम्न सावधानियाँ बरते:-
1.सूखी टहनियों को काट दें एवं फल तुड़ाई के पश्चात अनावश्यक रूप से बढी हुई शाखाओं को पेड़ का आकार देने के लिये हल्की छटाई करें|
2. अच्छी फसल लेने हेतु फलों को 50 पी.पी.एम. (50 मि.ग्रा./एक लीटर) जब्रे लिक अम्ल के घोल में एक मिनट तक डुबाकर पौधों को उपचारित करें ताकि फलों के आकार एवं भार में वृद्धि, और बीजों की संख्या कम हो।
3. फसल सुधार के लिये हाथ द्वारा परागण करें। पौधों को निकट लगाने, ग्रीष्म ऋतु में नियमित सिंचाई आदि से भी परागण बढायें।
4. सीताफल को आमतौर पर कोई रोग या कीट विशेश हानि नही पहुँचाता है फिर भी कभी-कभी मिली बग को पौधों की कोमल शाखाओं व पत्तियों को नुकसान पहुँचाते देखा गया हैं। इसकी रोकथाम हेतु 0.03 प्रतिशत पैराथियाॅन का छिड़काव 15 दिन के अंतर से 2-3 बार करें, साथ ही पिंक रोग की रोकथाम हेतु बोर्डो मिश्रण 1 प्रतिशत का छिड़काव 15-20 दिनों के अंतर से करें।
5. फलों को खुली टोकरियों में फलवृक्ष की पत्तियों एवं पुआल के साथ रख कर पकायें जिससे फलों में मिठास बढेगी एवं फल अधिक दिनों तक सुरक्षित रहेंगे।
Source-
- Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Madhya Pradesh.