अधिकतर भारतीय मृदाओं में फाॅस्फोरस की कमी है, साथ ही लगातार फसल लेने से इसमें कमी बढ़ती ही जा रही है । हकीकत यह है कि जितना फास्फोरस प्रतिवर्ष फसल उत्पादन में खर्च होता है उसकी मात्रा, डाले जाने वाले फाॅस्फोरस से कहीं अधिक है । यदि कम्पोस्ट बनाने की पारंपरिक प्रौद्योगिकी को पोषक अंश के संदर्भ में सुधारा जाए तो यह घटते पोषक की कमी को बहुत हद तक दूर करने में सहायक हो सकता है ।
भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (आई आई एस एस), भोपाल ने फाॅस्फो कम्पोस्ट/नाइट्रोजन समृद्ध फाॅस्फो कम्पोस्ट प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है । इस प्रौद्योगिकी में फाॅस्फेट को घोलने वाले सूक्ष्म जीवों (एस्परजिलस आवामोरी, सूडोमोनास स्ट्रेटा और बेसिलस मेगाटेरियम),राॅक फाॅस्फेट और जैव ठोसों का उपयोग किया जाता है ।
- फाॅस्फो कम्पोस्ट और नाइट्रोजन समृद्ध कम्पोस्ट को विंडरो विधि द्वारा और एनएडीइपी कम्पोस्ट के लिए तैयार गड्ढों में बनाया जाता है ।
- एक टन फाॅस्फो कम्पोस्ट बनाने के लिए 1900 कि.ग्रा. कार्बनिक/शाक अपशिष्ट/भूसा, 200 कि.ग्रा. गोबर (शुष्क भार के आधार पर) और 250 कि.ग्रा., राॅक फाॅस्फेट (18 प्रतिशत फाॅस्फोरस पेन्टाआॅक्साइड) का उपयोग किया जाता है ।
- खेत में प्रयोग के लिए कम्पोस्ट 90 से 100 दिन की अवधि में तैयार हो जाता है ।
- फाॅस्फोकम्पोस्ट में 2 से 3 प्रतिशत फाॅस्फोरस पेंटाआॅक्साइड होता है ।
- भारतीय मृदाओं में बहुपोषक कमी देखी गई है । जिसे दूर करने के लिए आईआईएसएस, भोपाल ने नाइट्रोजन समृद्ध फाॅस्को कम्पोस्ट विधि का विकास किया है, जिससे कि खाद का पोषक मान बढ़ सके, विशेषकर कम्पोस्ट में गंधक और नाइट्रोजन अंश बढ़ सके । इसके लिए कम्पोस्ट बनाने वाले मिश्रण में नाइट्रोजन के लिए यूरिया 0.5 से 1 प्रतिशत (भार/भार) की दर से और पाइराइटस 10 प्रतिशत (भार/भार) की दर से मिलाये । नाइट्रोजन में समृद्ध फाॅस्फोकम्पोस्ट में सामान्यतया 1.4-1.6 प्रतिशत नाइट्रोजन और 15-20 कार्बन और नाइट्रोजन का अनुपात होता है ।
आर्थिकी
एक किलो सुपर फास्फेट की आपूर्ति के लिए फाॅस्फो कम्पोस्ट पर लगभग 9 रुपये का खर्चा आता है । इसकी तुलना में सिंगल सुपर फाॅस्फेट अथवा डाइअमोनियम फाॅस्फेट पर 16 से 17 रुपये तक का खर्चा आता है ।
स्रोत-
- भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (भा.कृ.अनु.प.) नबी बाग, बेरसिया रोड, भोपाल