सब्जियों की बेहतर उपज हेतु स्वस्थ पौध उत्पादन

कुछ सब्जियों की फसलें जैसे टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, मिर्च, गांठ गोभी, पत्ता गोभी, फूल गोभी, लेट्यूस, सिलेरी तथा चायना गोभी व प्याज में बिना स्वस्थ पौध रोपड़ के बेहतर उत्पादन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बहुत महीन या छोटे बीजों की बुवाई यदि हम सीधे खेत में करते है तो एक तरफ अंकुरण कम होता है वही दूसरी तरफ पौधों के बढ़वार में काफी समय लगता है जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अतः कम लागत से अच्छा उत्पादन लेने के लिए पौधशाला में पौध तैयार करना अनिवार्य होता है।

 

पौधशाला तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

अच्छी पौध तैयार करने के लिए निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिए।

 

मिट्टी

पौधशाला के क्षेत्र की भूमि मुलायम, आसानी से पानी सोखने वाली तथा पानी न भरने वाली होनी चाहिए अर्थात दोमट या बलुई दोमट जिसमें उचित मात्रा में पोषक पदार्थ हों व अम्लीयता व क्षारीयता से मुक्त भूमि का चुनाव करना चाहिए

 

मृदा शोधन

कः मृदा सौर्यीकरण विधि (मृदा सोलेराइजेशन)

पौधशाला की मृदा (मिट्टी) को सूर्य के प्रकाश में शोधन करने को मृदा सौर्यीकरण (सोलराइजेशन) कहते है। इस विधि से पौधशाला में जहाँ पौध उगानी हो क्यारी बनाकर उसकी जुताई कर दें तथा हल्की सिंचाई करके थोड़ा गीला कर दें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहें। इसको पारदर्शी 200 गेज की पाॅलीथीन की चादर से ढककर चारों तरफ के किनारे मिट्टी से दबा देते है ताकि पालीथीन के अन्दर से हवा तथा वाष्प न निकलें। इस तरह से लगभग 4-6 सप्ताह तक छोड़ देते है। यह कार्य 15 अप्रैल से 15 जून तक किया जा सकता है। यदि पालीथीन के अन्दर का तापमान 48 से 52 डिग्री सेन्टीग्रेट तक बना रहता है तो पौधशाला के रोग से बचावअच्छी तरह हो सकता है।

आवश्यकतानुसार 4-6 सप्ताह बाद पाॅलीथीन की चादर हटाकर मिट्टी की अच्छी तरह गुड़ाई करके क्यारियाँ बनाते है और फिर बीज की बुआई करते है। यह विधि उन स्थानों पर अधिक फायदेमन्द है जहाँ पर गर्मी के महीनें में सूर्य के प्रकाश का तीब्रता अधिक होती है और दिन का तापमान 45 डि.से. तक जाता है। इसके साथ ही साथ शुष्क गर्मी की अवधि लम्बी होती है। सौर्यीकरण से रोगकारक मर जाते हैं तथा मित्र जैविक नियत्रंक फफूँदी की बढ़वार हो जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण में होता है जिससे खरपतवार लगभग 19 दिन तक बिलकुल नहीं दिखाई देते है।

मृदा सौर्यीकरण से मिट्टी में उपस्थित मूल सूत्रकृमि की संख्या में कमी हो जाती है। पौधशाला में जिवाणु धब्बा बीमारी से लगभग पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है। सोलेराइजेशन से पौधों को मिट्टी में उपस्थित फास्फोरस, पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है जिससे पौध की बढ़वार अच्छी होती है|

 

खः जैविक विधि

पौधशाला में आर्द्रगलन बीमारी से बचाव करने के लिए मृदा सौर्यीकरण एवं रसायन के अलवा जैविक विधि द्वारा मृदा शोधन भी काफी फायदेमंद है। पौधशाला में ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियाँ सुडोमोनास फ्लोरोसेन्स, एस्परजिलस नाइजर का प्रयोग बीज शोधन एवं भूमि शोधन में किया जा सकता है। परन्तु जैव पदार्थ के उपयोग करने पर कईसावधानियों की जरूरत पड़ती है। सर्वप्रथम जैव पदार्थ उस क्षेत्र विशेष का होना चाहिए जिससे कि उसकी मिट्टी में बढ़वार अच्छी तरह हो। इसके लिए पौधशाला में कम्पोस्ट तथा अन्य कार्बनिक खाद की मात्रा होनी चाहिए। जिससे जैव पदार्थ की अच्छी तरह वृद्धि हो सकें।

जिस भी जैव नियंत्रक पदार्थ का प्रयोग करना है उसमें उसके जीवित तथा सक्रिय विजाणु की पर्याप्त मात्रा होनी आवश्यक है। इसके प्रयोग करने के कुछ दिन तक पौधशाला में वर्षा एवं धूप से बचाव करने की व्यवस्था होनी चाहिए। उस पौधशाला में किसी रसायन का प्रयोग बिना तकनीकी जानकारी के नहीं करना चाहिए। जैव नियंत्रक मिलाते समय पौधशाला में मिट्टी में पर्याप्त नमी (ओट) होनी चाहिए। लेकिन यह ध्यान रहे कि मिट्टी गीली अवस्था में भी न हो।

जैविक विधि से भूमि शोधन करने से पौधों की बढ़वार शीघ्र हो जाती है। इसका प्रयोग दो तरह से किया जाता है। पौधशाला को अच्छी तरह तैयार करके उसमें तैयार किया गया मिश्रित जैव नियंत्रक पदार्थ 10 से 25 ग्राम प्रति मीटर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें उसके एक या दो दिन बाद बीज की बुआई करें। जैव नियंत्रक पदार्थ से बीज का शोधन भी किया जाता है। इसके लिए 6 से 10 ग्राम तैयार मिश्रित जैव पदार्थ प्रति किलो की दर से इस तरह बीज में मिलावें कि पूरा का पूरा जैव नियंत्रक बीज की सतह पर चिपक जाऐ।

तत्पश्चात उसे थोड़ी देर के लिए छाया में फैलाकर क्यारियों में बुआई करें। दूसरी विधि में बीज को शुद्ध जैव पदार्थ से शोधित किया जाता है लेकिन यह प्रयोगशाला में किसी अनुभवी आदमी से ही करवाना चाहिए। बीज बुआई के बाद पौधाशाला को अधिक तापक्रम और अधिक वर्षा से बचाना चाहिए।

 

गः रासायनिक विधि

एक भाग फार्मल्डिहाइड तथा 100 भाग पानी को अच्छी तरह से मिलाकर फार्मलीन का घोल तैयार करें। इस घोल की 5 लीटर मात्रा के प्रति वर्ग मी. क्षेत्र के हिसाब से अच्छी तरह छिड़काव करें तथा छिड़काव के तुरन्त बाद मिट्टी को पाॅलीथीन की चादर या जूट के थैलों द्वारा 7 से 10 दिन तक अच्छी तरह से ढक दें। मिट्टी को ढ़कने के 8 से 10 दिन बाद चारट या थैलों को हटाकर मिट्टी को खुला छोड़ दें ताकि वाष्पीकरण द्वारा गैस वातावरण में उड़ सकें। इस उपचार से मिट्टी जनित रोग को सफलतापूर्वक नियन्त्रण किया जा सकता है। यदि मिट्टी में सूत्रकृमियों की समस्या हो तब इनका नियन्त्रण ईडीबी रसायनों द्वारा करना चाहिए।

 

खेत की तैयारी

खेत की तैयारी के लिए मिट्टी को मुलायम तथा ढेले रहित करें। इसके लिए फावड़ा, खुर्पी तथा कुदाली आदि यंत्रों का उपयोग करें।

 

पौधशाला की भूमि का सुधार

पौधशाला क्षेत्र की भूमि हल्की जल निकास वाली तथा बड़े कणों वाली होनी चाहिए। यदि मिट्टी अधिक सख्त हो तब इसे बालू रेत या अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर तैयार करें ताकि मिट्टी में जल धारण क्षमता और जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ सकें।

 

पौधशाला की क्यारियों के प्रकार

मौसम तथा जलवायु के आधार पर पौधे विभिन्न प्रकार की क्यारियों में तैयार किये जाते हैं इनमें निम्नलिखित तीन प्रकार की नर्सरी अधिक प्रचलित है।

अ. उठी हुई क्यारियों में पौध तैयार करना

इस प्रकार की क्यारियों का प्रयोग वर्षा ऋतु में पौध तैयार करने के लिए किया जाता है। अच्छी तरह से तैयार किए गए खेत में 1 से 1.5 मी. चैड़ी तथा आवश्यकतानुसार लम्बी (सामान्य तौर पर 5 से 6 मी. से अधिक न रखें) और 15 से 20 से.मी. धरातल से उपर उठी हुई क्यारियां बनानी चाहिए। प्रत्येक दो क्यारियों के बीच 50 से 60 सेमी. चैड़ाई का रास्ता छोड़ना चाहिए ताकि पौधों में खाद, सिंचाई व निराई-गुड़ाई करने में आसानी रहें। इन क्यारियों में बीजाई से पूर्व 2.5 से 3 किग्रा प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी प्रकार से भूमि में मिला दें।

ब. समतल क्यारियों में पौध तैयार करना

इन क्यारियों का प्रयोग गर्मियों तथा पतझड़ ऋतु में पौध तैयार करने के लिए किया जाता है। क्यारियों का आकार तथा माप उपरोक्त वर्णित क्यारियों के अनुसार ही रखें।

स. दबी हुई या गहरी क्यारियों में पौध तैयार करना

सर्दी ऋतु में पौध तैयार करने के लिए इस प्रकार की क्यारियों की आवश्कता पड़ती है। खेत की तैयारी व क्यारियों का आकार व माप उपरोक्त के भाॅति रखते हैं परन्तु इन्हें
धरातल से 20-25 से.मी. गहरी बनायी जाती है। इस प्रकार जल्दी पौध तैयार करने तथा पौधों का पाले से बचाव के लिए इन क्यारियों का प्रयोग उत्तम रहता है। मिर्च, प्याज तथा कुकर विटस के विभिन्न पौधे तैयार करना परन्तु आजकल यह कार्य पोली हाऊस तथा नेट हाऊस में सुगमता पूर्वक किया जा सकता है।

 

बीज का चुनाव

बीज बोने से पहले बीज की अंकुरण क्षमता भौतिक शुद्धता व रोग और कीटों से मुक्त का अच्छी तरह से निरीक्षण कर लेना चाहिए। बीच किसी सरकारी या विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदना चाहिए।

 

बीज की मात्रा एवं स्थान (क्षेत्र) की आवश्यकता

रोपण के लिए विभिन्न सब्जियों में अलग-अलग बीज की मात्रा व स्थान की आवश्यकता पड़ती है। यह मात्रा बीज के आकार, उसकी गुणवत्ता, जमाव की क्षमता व बीज बोने के समय पर निर्भर करती है। नीचे दी गयी सारिणी में बीज की मात्रा व पौधशाला में बोने के लिए आवश्यक क्षेत्र का विवरण दिया गया है।

 

बीज उपचार

बीजों को रोगों व कीटों से बचाने के लिए रसायनों द्वारा उपचार करना बीजोपचार कहलाता है। इसके लिए बीजों को फफूंदीनाशक तथा कीटनाशक दवाईयां द्वारा उपचारित करके बोएं। सामान्य तौर पर बीजों को कवकों से लगने वाले रोगों से बचाने के लिए कार्बेण्डाजिम, मेंकोजेब इत्यादि हैं।रसायनों की 2 ग्राम मात्रा को प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें। दवा को बीज में अच्छी प्रकार मिलाने के लिए मिट्टी या लकड़ी के ढक्कनदार बर्तन का प्रयोग करें।

दवा व बीज बर्तन में डालकर ढक्कन बन्द कर दे और अच्छी प्रकार से हिलाएं ताकि दवा बीज के चारों तरफ अच्छी प्रकार चिपक जय। बीज को बर्तन से बाहर निकाल कर तैयार क्यारी में बुआई करें। इसी प्रकार बुवाई से पूर्व बीजों को कीटनाशक द्वारा एवं राइजोबियम कल्चर द्वारा भी उपचारित किया जा सकता है। परन्तु तीनों से बीजों को उपचारित करने के लिए क्रमशः पहले कीटनाशक, फफँूदीनाशक तथा अन्त में जैविक नियंत्रक से उपचारित करने के बाद इसे अच्छी तरह छाया में सुखाकर बुवाई करना चाहिए।

 

बीज की बुआई

अः छिटकवाँ विधि

क्यारियों में बीज की बुआई किसान भाई ज्यादातरछिटकवाँ विधि से करते है। जिससे बीज एक समान नहींगिरता और जमाव होने पर पौधे किसी-किसी स्थान पर घनाहोने के कारण तने पतले व लम्बे हो जाते है और कई पौधेबहुत दुर-दुर हो जाते हंै। तने की लम्बाई अधिक व पत्तियोंका वजन ज्यादा होने से जड़ों के पास से पौधे गिरने लगते
है। जो पौधा तैयार भी होता है वह पतला व लम्बा होता है और रोपण के बाद मुख्य खेत में उचित बढ़वार नहीं कर पाता परिणाम स्वरूप फलत मारी जाती है। यदि छिटकवाँ विधि से ही पौधे तैयार करनी है तो यह ध्यान रखें कि लगभग 1.0 सेमी. की दूरी पर बुआई करे या पौधे जमाव के बाद 1.0 सेमी. की दूरी पर पौधे छोड़कर अन्य को उखाड़ दें।

बः कतारों में बीज की बुआई

यह विधि सर्वेतम मानी जाती है क्योंकि सभी पौधे लगभग एक समान दूरी पर रहने के कारण स्वस्थ्य व मजबूत होते है। इस विधि में सर्वप्रथम क्यारी की चैड़ाई के समानान्तर 5 से.मी. की दूरी पर 0.5 से.मी. गहरी पंक्तियाॅ बना लेते हैं तथा इन्ही पंक्तियों में बीज लगभग 1.0 से.मी. की दूरी पर डालते हैं। बीज बोने के बाद उसे कम्पोस्ट, मिट्टी व रेत केमिश्रण (1:1:1) से ढॅक देते हैं इस प्रकार से तैयार पौधे घनान होने के कारण पद गलन बीमारी की समस्या से बच जाते है और पौधे स्वस्थ्य तथा मजबूत होते है।

 

बीजों को ढ़कना

क्यारियों में बीज बुआई करने के बाद उनको ढकना अत्यन्त आवश्यक है। अतः मिट्टी, सड़ी हुई गोबर/कम्पोस्ट की खाद व बालू तीनों को बराबर अनुपात में मिलाकर (1:1:1) क्यारी में इस प्रकार डालें की सभी बीज ढक जाए और कोई बीज खुला न दिखाई पड़ें। परन्तु यह ध्यान रखें कि इस मिश्रण को 5 से 6 ग्राम थिरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम की दर से शोधित अवश्य कर लें अन्यथा पूरी मेहनत जो पीछे भूमि बीज शोधन के लिए किए है व्यर्थ चली जायेगी। केवल मिट्टी से इस लिए नहीं ढका जाता कि मिट्टी सिंचाई के द्वारा पानी पाकर सख्त हो जायेगी और बीज का जमाव ठीक ढंग से नहीं हो पायेगा।

 

क्यारियों को ढ़कना

क्यारी में बीजों को उर्वरक मिश्रण से ढकने के बाद क्यारी को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पुआल, सरकण्डा, सरपत, गन्ने के सूखे पत्ते, नरई या अन्य घास फूस की पतली तह से ढकते है ताकि नमी बनी रहे और सिंचाई करने पर पानी सीधे ढके हुए बीजों पर न पड़ें अन्यथा मिश्रण बीजों पर से हट जायेगा और बीज का जमाव प्रभावित होगा। इस प्रकार से बीज को तेज धूप व पक्षियों से बचाया जा सकता है। जहाॅ तक हो सके प्रयास करना चाहिए कि शुरू के पाँच से छः दिनों तक हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें ताकि बीज ज्यादा पानी पाकर बैठ न जाय।

यदि वर्षा ऋतु का समय हो और वर्षा होने का अंदेशा हो तो 5-6 दिनों तक वर्षा के समय क्यारी को पालीथीन की चादर से ढॅके इससे वर्षा का पानी क्यारियों पर नहीं पड़ेगा और वर्षा समाप्त होते ही पालीथीन की चादर हटा दें। ध्यान रहे कि यह क्रिया शुरू के 5-6 दिनों तक ही प्रभावी होती है। यदि इसके बाद भी आवश्यकता पड़े तो क्यारी के चारो किनारों की तरफ 2.5 से3 फीट ऊँची खुटियाँ गाड़कर पालीथीन जमीन की सतह से थोड़ा उठा दे अन्यथा जमे हुए पौधे टुट जायेंगे। यदि आसमान साफ हो और बहुत तेज धूप हो रही हो तो क्यारी को छाया प्रदान करने वाली जाली जो हरे या हरे काले रंगों की अलग-अलग कम या ज्यादा छाया वाली आती है खम्भें गाड़कर उस पर फैलाकर क्यारी को छाया प्रदान करें। इस प्रकार उचित ढकाव करने से पौधे सुरक्षित रहते हैं।

 

सिंचाई

प्रारम्भ में 5-6 दिनों तक क्यारी को फुहारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें व बीज जमने के बाद आवश्यकतानुसार खुली सिंचाई कर सकते है। वर्षा ऋतु के समय जब बारिश हो रही हो तो सिंचाई की आवश्कता नहीं पड़ती बल्कि क्यारी की नालियों में उपस्थित अधिक पानी पौधशाला से बाहर निकालना चाहिए। पौधे उखाड़ने के 4 से 5 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर दें ताकि पौधों में प्रतिकूल वातावरण सहन करने की क्षमता विकसित हो जाये व पौधे कठोर हो जाय। पौध उखाड़ने से पहले हल्की सिंचाई कर दें। इससे पौधे आसानी से उखड़ जाते है और जड़े टूटती नहीं।

 

स्रोत-

  • भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान
Show Buttons
Hide Buttons