आज के इस परिवेश में पर्यावरण बहुत तेजी से बदल रहा है। कभी सामान्य से कम वर्षा तो कभी बहुत अधिक, कभी ठण्ड तो कभी बहुत अधिक तापमान, देर से ठण्ड पड़ना,,जल्दी गर्मी आ जाना इत्यादि बदलते परिवेश के मुख्य लक्षण है। ऐसी परिस्थिति में सब्जियों की खेती सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। खुले वातावरण में खेती करने पर फसल रोग-व्यधि, कीड़े-मकोड़े, ठण्ड, गर्मी, वर्षा, तुषार ओला जैसे अनेकों प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होती है। इस प्रकार बदलते परिवेश में सब्जियो की खेती करना एक जटिल समस्या बनती जा रही है।
परिणाम स्वरूप पैदावार कम होने से सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। बहुत सब्जियाँ जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, करेला, खीरा, खरबूजा,बैंगन इत्यादि की खेती बदलते पर्यावरण, बीमारी व कीड़ों से काफी प्रभावित हो रही हैं। ऐसी परिस्थिति में सब्जियों की खेती नियंत्रित वातावरण में करना एक विकल्प बन सकता है। यहाँ नियंत्रित वातावरण से अभिप्राय है सब्जियों की खेती ऐसी दशा में करना जहाँ रोग-व्याधि, कीड़े मकोड़ों, ठण्ड, गर्मी, वर्षा, ओला कुहरा इत्यादि से सब्जी फसल की सुरक्षा हो सके। या यों कहा जाय कि उपरोक्त पर्यावरण कारको से सुरक्षा के लिए जहाँ हम सब्जियों की खेती करते हैं नियंत्रित वातावरण या प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन कहा जाता है।
कीट-व्याधियों से बचाव के लिए किसान भाई नित नये दवाओं और नये हथकण्डे का प्रयोग कर रहे है| जिसके प्रयोग से आज हम तरह-तरह के जानलेवा बिमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं और असमय ही काल के मुह में समाते जा रहे हैं। उपरोक्त से बचाव के लिए हम इन सब्जियों को आवश्यकतानुसार वातावरण प्रदान करके अधिक पैदावार व उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते है।
नियंत्रित वातावरण में सब्जियाँ उगाने से लाभ
- विपरीत परिस्थितियों (जैसे ठण्डा, गर्मी, वर्षा, बीमारी व कीड़ों का प्रकोप) में सब्जियों की लाभप्रद खेती सम्भव।
- सामान्य से 5-10 गुना अधिक सब्जियों की पैदावार।
- गुणवत्तायुक्त सब्जियों की पैदावार से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति।
- पूरे वर्ष भर सब्जियों की उपलब्धता समान रूप से सम्भव।
- बेमौसमी खेती की अपार संम्भावनाएं।
- कीड़े व बिमारियों का समुचित नियंत्रण
- लागत का सही-सही उपयोग-तात्पर्य खाद, बीज, दवा का समुचित प्रबन्धन। प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक आमदनी।
- छोटी जोत वाले कृषकों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद।
- शहरी क्षेत्र के आसपास सिमटती भूमि में इस प्रकार की खेती की अपार सम्भावनाएं।
शिमला मिर्च की खेती करना तो पुर्वांचल में एक अभिशाप बनता जा रहा है। अतः यदि शिमला मिर्च की खेती कम लागत से बने नेट हाउस में करे तो आशातीत् सफलता प्राप्त की जा सकती है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र के किसान भाई अर्ध नियंत्रित दशा में शिमला मिर्च के आलावाँ अनेकों सब्जियों की खेती करके मनचाहा लाभ प्राप्त कर सकते है। यहाँ तक कि कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती से दोगुना लाभ प्राप्त करने एवं सामान्य से 1-1 माह पहले फलत प्राप्त करने के लिए कद्दूवर्गीय सब्जियों की बीज बुआई थैलियों में तैयार करके पौध प्राप्त की जा सकती है।
अधिक उत्पादन देने वाली और मंहगी सब्जियों जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा इत्यादि की खेती जालीदार घर (नेट हाउस) में सफलता पूर्वक किया जा सकता है। साथ ही साथ जाड़ें के दिनों में गर्मी के मौसम की सब्जियाँ जैसे खरबूजा, तरबूज, खीरा, लौकी, कुम्हण, कद्दू इत्यादि बिना उर्जा खर्च किए बिजली के बिना पैदा किया जा सकता है। सब्जियों की खेती के लिए एक नहीं बल्कि कई तरह के
वातावरण नियंत्रक प्रयोग किये जाते है जो निम्न हैं-
ग्रीनहाउस
इसमें आवश्यक वातावरण जैसे तापमान, प्रकाश तीव्रता, कार्बन डाईआक्साइड इत्यादि शत-प्रतिशत पौधों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है- इसमें टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा, खरबूजा बैंगन इत्यादि सब्जियों की खेती सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
पालीहाउस
इसमें कूलर की तरह पैड व फैन पद्धति होता है जिसमें सामान्य से 5-70 डिग्रीसेन्टीग्रेड तापमान नियंत्रित किया जा सकता है-जिससे मुख्य रूप से शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा इत्यादि की खेती की जा सकती है।
टनलहाउस
टनल बड़ा, छोटा, व मध्यम आकर के अलग-अलग होते है इसमें शरद ऋतु (दिसम्बर-जनवरी माह) में अगेती कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती हेतु पालीथीन की थौलियों में पौध तैयार किये जा सकते हंै। शरद ऋतु कद्दूवर्गीय सब्जियों, शिमला मिर्च, टमाटर, बैंगन इत्यादि की खेती भी की जा सकती है।
नेटहाउस
महीन जाली (नेट हाउस-40 मेस) यानि एक इंच में 40 धागे में सफेद मक्खी तथा अन्य कीडां़े से नियंत्रण कर टमाटर मिर्च व शिमला मिर्च बैंगन, करेला इत्यादि की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
छायादार घर ()
तापमान नियंत्रित करने के लिए अप्रैल से सितम्बर तक पौध- (नर्सरी) तैयार करने के लिए उपयुक्त है।
पलवार (मल्च)
ठण्ड के समय मिट्टी का तापमान पौधों के लिए सामान्य बनाए रखने, तथा खरपतवार नियंत्रित करने व पानी की ह्रास (क्षति) को रोकने के लिए जमीन की सतह पर फसल कीं जड़ों को ढ़कने के लिए प्रयोग किया जाताहै। पलवार विभिन्न रंगों के पालीथीन चादर या कार्बनिक पदार्थ जैसे पुआल, कार्बनिक खाद, सूखी घास इत्यादि से किया जा सकता है। पालीथीन के रंगों का हमारे उत्पादक भाइयों को ज्ञान होना अत्यन्तआवश्यक है। विभिन्न रंगों के पालीथीन चादर का प्रभाव अलग अलग है जो इस प्रकार है।
(1) काले रंग का पालीथीन से पलवार
खरपतवार व मिट्टी का तापमान नियंत्रित करने के लिए कारगर।
(2) सफेद पारदर्शी पालीथीन चादर से पलवार
कीड़े बीमारियों से बचाव के लिए भूमिशोधन एक आवश्यक उपचार है। गर्मी के दिनों में (मार्च-अप्रैल से जून तक)
पौधशाला की मिट्टी का शोधन करने के लिए पौधशाला की क्यारी बनाकर उसके उपर 200 गेज मोटाई के पालीथीन चादर से ढक कर पालीथीन चादर के किनारे को मिट्टी से दबा देते हैं ताकि वायु अवरूद्ध हो जाये। इसी अवस्था में कम से कम 5-6 सप्ताह पलवार रखने पर पौधशाला की मिट्टी का शोधन हो जाता है। साथ ही साथ अधिक ठण्ड के समय पौधों की जड़ों के पास पलवार करके मिट्टी का तापमान बढ़ाने के लिए भी पलवार का प्रयोग उपयुक्त है।
(3) सिल्वर (चांदी) के रंगकापलवार
कटुईकीट, माहूकीट, पर्ण कुंचनरोग फैलाने वाले सफेद मक्खी से बचाव के लिए उपयुक्त
(4) लालरंग के पालीथीन चादर से पलवार
अगेतीझुलसा व सूत्रकृमि से बचाव के लिए
(5) नीलारंग के पालीथीन चादर से पलवार
माहू कीट से बचाव के लिए इन्हें क्यारियों या मेड़ों पर इस प्रकार फैलावे कि तने बाहर निकलने के लिए एक छोटा छिद्र (1-2श् व्यास का) व पौधे का पूरा फैलाव व विकास ऊपर की तरफ हो तथा नीचे केवल जड़े रहें। अच्छा होगा कि पहले पालीथीन चादर क्यारियों/मेड़ों पर फैला देवे और रोपण/बीज की बुआई 2-3 ईंच व्यास का छिद्र बनाकर बीजों की बुआई कर दते है। जमाव के उपरान्त ठण्ड भरी रातों में फसल कीे जड़ों को गर्मी प्रदान करने के लिए पलवार किया जाता है।
ग्रीन हाउस, नेट हाउस इत्यादि का (प्रति वर्ग मीटर)दर वर्तमान समय में इस प्रकार है।
क्र. | विवरण | लागत प्रति वर्ग मीटर (रू.) |
1. | ग्रीन हाउस | 1000-1200 |
2. | लोटन पाली हाउस | 800-1000 |
3. | शेड हाउस | 700-800 |
4. | नेट हाउस | 700-800 |
5. | अस्थायी नेट टनल | 100-200 |
6. | पलवार | 10-15 |
पालीहाउस में सब्जियों की खेती के लिए उनके बढ़वार व फैलाव के अनुसार सामान्य की अपेक्षा कुछ अलग प्रकार की किस्मों की आवश्कता पड़ती है तथा पौधों को सहारा देकर चढ़ाया जाता है। सिंचाई के लिए (बूंद-बूंद) ड्रिप सिंचाई व पत्तियों को तरोताजा बनाये रखने के लिए महीन फौव्वारा (मिस्ट) का प्रबन्ध रहता है। इसमें खाद का प्रयोग करना हो तोएक छोटे टैक में जल घुलनशील खाद-उर्वरक घोल कर ड्रिप पाइप के द्वारा पौधों के जड़ों में सीधे पहुँचा दिया जाता है। इस प्रकार टमाटर के पौधों का बढ़वार 20 फीट ऊँचाई तक व शिमला मिर्च की 7-10 फीट तक हो जाती है साथ ही फलों की गुणवत्ता भी अच्छी बनी रहती है। इसके साथ-साथ फलत भी लम्बे समय तक प्राप्त होता रहता है।
अगेती खेती के लिए पौध तैयार करनाः
कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे लौकी, चिकनी तोरई, नसदार तोरई, खरबूजा, खीरा, तरबूज इत्यादि की 15 फरवरी के बाद ही खेतों में बीज की बुआई की जाती है क्योंकि जमाव के लिए आवश्यक तापमान (18-200 सेन्टीग्रेड) 15 फरवरी के आस-पास ही हो पाता है। एक साथ बीज बुआई करने पर सभी के उत्पाद एक साथ तैयार होकर बाजार में आते है जिससे दाम कम हो जाता है और उन्हें फायदा कम मिलता है परन्तु यदि पालीथीन
की 15×10 से.मी. आकार के थैलियों में उर्वरक मिश्रण भरकर एवम् बीज की बुआई दिसम्बर के अंत में या जनवरी के प्रारम्भ में कर दिया जाय तो उनका रोपण 15 फरवरी के आसपास कर देने से फलत सामान्य से एक से डेढमाह पूर्व ही मिलने प्रारम्भ हो जाते है और किसान भाईयों को मुह मांगा दाम प्राप्त हो सकता है।
पौध तैयार करने की विधि
(1) 15X10 सेमी. आकर की थैलियों का चयन।
(2) इनकी पेंदी में 2-3 छिद्र बनाना ताकि आवश्यकता से अधिक पानी बाहर निकलता रहे।
(3) थैलियों में उर्वरक मिश्रण (कम्पोस्टः मिट्टीः रेत- २:1:1) में मिलाकर कैप्टान/थिरम से शोधित करके भरना।
(4) दो-तीन बीज प्रति थैली बुआई करना।
(5) अच्छी अंकुरण के लिए बीजों को पानी में रात भर भिगों कर उन्हें सूती कपड़े या बोरे में लपेट कर किसी गर्म स्थान पर 2-3 दिनों तक रखना (कच्चा गोबर में/अलाव बुझने के बाद नीचे, चुल्हे पर खाना बनाते समय बगल में या भूसे में) इससे बीजों में फुटाव हो जायेगा और इन्हे थैलियों बुआई कर देते है।
(6) बीज बुआई उपरान्त थैलियों की फव्वारे से सिंचाई करना।
(7) थैलियों को उपयुक्त स्थान पर रखना कि पूरे दिन रोशनी मिलती रहे।
(8) एक मीटर उपर से पारदर्शी चादर से ढकना ताकि ठण्ड भरी रातों में भी अन्दर 18-200 सेन्टीग्रेड तामान बना रहे।
(9) जब सामान्य लोग 15 फरवरी के आसपास बीज की बुआई कर रहे होगे तो अपनों खेतो में तैयार पौधों का रोपण करना।
(10) रोपण के लिए थैली की आकार से थोड़ा बड़ा गड्ढा खोदना तथा उसमें खाद-उर्वरक मिश्रण डाल कर पौध लगाना।
(11) यदि पालीथीन आराम से निकला जाये तो ठीक अन्यथा यदि जड़ों का वाल फूटने का डर हो तो थैलियों पर ब्लेड से 3-4 चीरा खड़े आड़े लगाकर थैली सहित गडढे में लगा देना इससे जड़े स्वंय मिट्टी में पकड़ लेती है।
(12) रोपण पश्चात् सिंचाई करना। इसके बाद सामान्य विधि अपनायी जा सकती है।इस प्रकार किसान भाई विपरीत परिस्थितियों में सफलता पूर्वक सब्जियों की खेती कर सकते हैं और अधिक आमदनी व उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं।
स्रोत-
- भारतीय सब्जी अनुसंधान संसथान