संसाधन संरक्षण यन्त्र एवं तकनीकें

भारत विविध प्राकृतिक संसाधनो यथा जल, मृदा, जलवायु, आदि से परिपूर्ण राष्ट्र है। पिछले 6 दशको के दौरान हमारी बढ़ती आबादी तथा उसके भरण पोषण हेतु अत्यधिक उत्पादन देने वाली फसलो की सघन कृषि के माध्यम से हमने एक तरफ खाद्यान्न आपूर्ति तो कर ली है लेकिन यह आपूर्ति हमने अपने बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनो की एक बड़ी कीमत देकर प्राप्त की है। परिणाम स्वरूप बढ़ता मृदा अपक्षरण, उर्वरता ह्नास, घटता जल स्तर, जल व वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने खड़ी है। साल दर साल उत्पादन लागत में वृद्वि के फलस्वरूप किसानो की आर्थिक दशा दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम प्राकृतिक संसाधनो को संरक्षित करने वाली कृषि पद्वतियाॅ, यंत्र व तकनीकों का प्रयोग करके उत्पादकता लाभ के साथ-साथ दीर्घकाल तक कृषि को टिकाऊ बनायें व वातावरण को सुरक्षित रखें।

 

संरक्षण कृषि

संरक्षण कृषि, खेती की वह पद्वति है जिसमें कृषिगत लागत कम रखते हुए अत्यधिक लाभ व टिकाऊ उत्पादकता ली जा सकती है। साथ में प्राकृतिक संसाधनो जैसे जल, मृदा वातावरण व जैविक कारकों में संरक्षण को बढ़ावा मिलता हैं। इसमें कृषि क्रियायें उदाहरणार्थ शून्य कर्षण या अति न्यून कर्षण के साथ-साथ कृषि रसायनों एवं अकार्बनिक व कार्बनिक स्रोतों का संतुलित व समुचित प्रयोग होता है ताकि विभिन्न जैव क्रियाओ पर विपरीत प्रभाव न पड़े।

 

संरक्षण कृषि के सिद्वान्त व विधियाॅं

संरक्षण कृषि तीन प्रमुख सिद्वान्तो पर आधारित है जो कि एक दूसरे के पूरक हैं।

(अ) मृदा का दीर्घ काल तक अति सीमित कर्षण
(ब) भूमि के उपरी सतह का कार्बनिक स्रोतो से ढ़के रहना
(स) फसल विविधीकरण व सघनीकरण

उपरोक्त सिद्वान्तो के आधार पर संरक्षण कृषि की प्रमुख यांत्रिक व शस्य विधियाॅ निम्न है।

 

सीमित कर्षण या न्यूनतम टिलेज

इस तकनीक में स्ट्रिप व रोटरी टिलेज मुख्य है। इसमें खेत की जुताई इतनी कम की जाती है कि बीज के उगने व अच्छी पैदावार हेतु उचित माध्यम तैयार हो तथा साथ में लागत व ऊर्जा का व्यय न्यूनतम हो। उदहारण के तौर पर पंक्ति, जुताई, प्लाऊ-प्लांट टिलेज व ह्नवील टेक प्लांटिंग मुख्य रूप से प्रयोग किये जाते है। इनके उपयोग से परम्परागत बुवाई की तुलना में 70 से 80: समय, मजदूर, डीजल, लागत व ऊर्जा की बचत तथा 5: पैदावार में तथा 10: शुद्व लाभ में वृद्वि होती है।

 

जीरो टिलेज (शून्य कर्षण)

इस तकनीक में जीरो टिलेज मशीन जो कि सामान्य सीड ड्रिल जैसी होती है तथा इसकी फालें चाकू नुमा होती है जो कि खेत में चीरानुमा कॅूड बनाती है तथा बीज व खाद अलग-अलग गहराई पर डाल देती है। इस मशीन के प्रयोग से परम्परागत बुवाई की तुलना में 75 से 85: समय, मजदूर, डीजल, लागत व ऊर्जा की बचत तथा 8-10: पैदावार व 10-12: शुद्व लाभ में वृद्वि होती है। प्रति एकड़ बचत लगभग 1800 से 2000 रूपये होने की वजह से 10-15 एकड़ में प्रयोग करने से ही मशीन की कीमत वसूल हो जाती है।

 

बेड प्लांटिंग

इस तकनीक में बेड प्लांटर मशीन द्वारा खेत की बुआई होती है। इससे 2 बेड व तीन क्यारी क्रम से क्रम तैयार कर खाद व बीज डालकर विभिन्न फसलों की बुआई की जाती है। इस विधि से बेड के ऊपर कम पानी कीआवश्यकता वाली तथा नाली में अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसले बोयी जा सकती है। इस तकनीक से बुवाई में लगभग 76 से 85: समय, मजदूर, डीजल लागत व ऊर्जा की बचत तथा 2-3: पैदावार व 5-6: शुद्व लाभ में वृद्वि होती है। साथ ही लगभग 20 से 30: सिचांई जल की बचत होती है।

 

धान की सीधी बुवाई

खेत की पडलिंग करके धान की रोपाई की तुलना में सीधी बुवाई कम श्रम के साथ अधिक लाभ देती है। इस विधि से सूखे खेत की जुताई करके धान की बुवाई की जाती है। इस तकनीक से 60 से 70ः समय, मजदूर, डीजल लागत व ऊर्जा की बचत के साथ लगभग रोपाई तकनीक के बराबर पैदावार व 10-15: अधिक शुद्व लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 

मशीन से धान की रोपाई

अब स्वचालित एवं हस्तचालित मशीनें उपलब्य हैं जिनसे धान की रोपाई (1 घंटे में आधा एकड़ तक ) की जा सकती है। इससे लगभग 60: श्रम व 80:लागत कम होती है जबकि 10: पैदावार व 15-20:शुद्व लाभ में बढ़ोत्तरी होती है। लेजर पाटा द्वारा भू-समतलीकरण इस आधुनिक पाटा में लेजर किरणों के प्रयोग से बड़े क्षेत्रफल को पूरी तरह समतल किया जाता है। इससे मेड़ व नाली नहीं बनानी पडती, 3: अतिरिक्त क्षेत्रफल मिलता है, पानी पूरे क्षेत्र में बराबर लगता है जबकि लागत लगभग 500 रूपये प्रति घन्टे लगती है ।

 

फसल अवशेष प्रबन्धन

धान की कम्बाइन मशीन से कटाई के उपरान्त हेवी व टर्बो सीडर मशीनों द्वारा गेहूॅ की सीधी बुवाई की जाती है। फसल अवशेष सड़कर मिटटी की उर्वरा शक्ति में वृद्वि करता है। मृदा संरचना में सुधार तथा सिंचाई जल उपयोग क्षमता में भी वृद्वि होती है। इन प्रभावी व पर्यावरण संरक्षण करने वाली कृषि तकनीको को अपनाकर प्राकृतिक संसाधनो का संरक्षण कर उत्पादकता लाभ के साथ-साथ दीर्घकाल तक टिकाऊ खेती की जा सकती है।

 

स्रोत-

  • कृषि प्रणाली अनुसंधान परियोजना निदेशालय
Show Buttons
Hide Buttons