सब्जी फसलों में टमाटर का प्रमुख स्थान है मध्यप्रदेश में टमाटर की खेती अनुमानतः 26384 हेक्टर क्षेत्र में की जाती है जिससे 3.95 लाख टन उत्पादन मिलता है मध्यप्रदेश में इसकी उत्पादकता 150 क्विंटल प्रति हेक्टर है। टमाटर की संकर किस्मों के विकसित होने के कारण इसकी उत्पादकता में काफी बढ़ोत्तरी की सम्भावनाऐं है। संकर किस्मों में विपुल उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों के साथ उन्नत उत्पादन तकनीकी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। टमाटर की उन्नत उत्पादन तकनीकी में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
भूमि
टमाटर की फसल हल्की से भारी भूमि में जिसका पी. एच. मान 6.0 से 7.0 के बीच हो एवं जिसमें जल निकास का उत्तम प्रबंध हो आसानी से उगाई जा सकती है। अतः खेत की तैयारी में रोटावेटर बहुत ही उपयोगी यंत्र होगा। रोटावेटर द्वारा एक बार चलाने मात्र से बढ़िया भुर-भुरा खेत तेयार कर देता है। चूकी जुताई एवं बार – बार खेत की बखराई से मुक्ति मिल जाती है अतः डीजल के साथ-साथ समय एवं पैसे की बचत होती है। चूकि रोटावेटर पूर्व फसल अवशेषों को मिट्टी में ठीक-ठीक मिला देता है।
खेती के लिये 10 टन गोबर खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत की तैयारी के समय मिला लेना चाहिए। नत्रजन की 40 किलो, स्फुर 60 किलो तथा पोटाश 40 किलो प्रति एकड़ खेत की तैयारी के समय मिला देना चाहिए। नत्रजन की 20 किलो मात्रा का प्रथम निंदाई के समय तथा रोपाई के 30 दिन बाद पौधों को लाइनों में देकर मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किलो मात्रा को रोपाई के 40 दिन बाद जमीन में पौधों की लाइनों में देकर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
बुवाई का समय एवं बीज की मात्रा
टमाटर की फसल के लिए दिन का तापमान 28 से.ग्रे. तथा रात का 18 से.ग्रे. हो सबसे उत्तम रहता है, दिन का तापमान 32 से. ऊपर तथा रात का 22 से.गे्र. ऊपर या दिन का 18 से.ग्रे. कम एवं रात का 12 से.ग्रे. से कम होने पर फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। टमाटर की फसल साल में तीन बार जुलाई-अगस्त, सितम्बर – अक्टूबर एवं नवम्बर दिसम्बर में लगाई जा सकती है ।
रोपणी तैयार करना
टमाटर की एक हेक्टर फसल के लिए 100-110 वर्ग मीटर पौध शाला की आवश्यकता होती है । क्यारियों का आकार 10 मी. लम्बा 1 मी.चैड़ा तथा 15 से.मी. ऊॅचा रखा जाता है क्यारियों को अच्छी तरह तैयार कर उसमें 50 किलो कम्पोस्ट खाद 500 ग्राम एन.पी.के. खाद (15:15:15) तथा कार्बोफ्यूरान-3 जी. दवा 25 ग्राम प्रति क्यारी के हिसाब से मिला लेना चाहिए। तैयार क्यारी में 10 से.मी. लाइन से लाइन तथा 2.5 से.मी. बीज से बीज की दूरी पर 0.5 से 1 से.मी. की गहराई पर लाईन बनाकर बीजों को बोना चाहिए । बीज बोने के बाद गोबर की सड़ी खाद एवं मिट्टी का बारीक मिश्रण बनाकर बीजो को ढ़क देना चाहिए ।
बुवाई के बाद क्यारी में 2 ग्राम कैप्टान दवा का एक लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर प्रति वर्गमीटर एक लीटर का छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद नर्सरी को हजारे से तर कर देना चाहिए तथा उसको पुआल या सूखी घास से ढक देना चाहिए। नर्सरी में प्रतिदिन आवश्यकतानुसार पानी देते रहना चाहिए । नर्सरी अंकुरण के बाद घास को हटा देना चाहिए। जमाव के 6-7 दिन बाद कैप्टान या डाईथेन एम-45, 2 ग्राम दवा का प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। जमाव के बीस दिन बाद मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई.सी. दवा की 1.5 मि.ली.या डाईमेथोऐट 30 प्रतिशत 1.0 मि.ली. या ईमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत दवा की 0.3 मि.ली. मात्रा का प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
पौधे की संकर परिमित वृद्वि वाली किस्मों को लाइन से लाइन 90 से. मी. तथा पौध से पौध 30 से.मी. की दूरी पर तथा संकर किस्मों की अपरिमित वृद्वि वाली किस्म को 120 से.मी. लाइन से लाइन एवं 30 से.मी. पौध से पौध की दूरी पर रोपित करते है।रोपई करने के लिए सब्जी प्ररोपक उन्नत यंत्र का उपयोग कर कम समय एवं लागत में बैंगन रोपाई का काम किया जा सकता है। कतार से कतार की दूरी आवश्यकतानुसार सुनिश्चित कर इससे उन्नत यंत्र में दो व्यक्ति मशीन के साथ लगी दो कुर्सियों पर बैठकर मशीन की उंगलियों में पौध फसाते जाते है, जिसे मशीन रोपाती जाती है।
निंदाई हेतु उन्नत यंत्र
हस्त चालित खूटिदार शुष्क भूमि निंदाई यंत्र एवं खुरचने वाला ग्रवर निंदाई यंत्र बहुत ही प्रभावी तथा कम खर्चीला एवं उपयोगी होगे, 11 से 12 श्रमिक एक दिन में एक हेक्टेयर की निंदाई कर लेते है इस तरह निंदाई बहुत ही सस्ती एवं आराम दायक हो जाती है। रासायनिक नींदा नियंत्रण के लिये प्रति एकड प्लूक्लौरालिन (बासालिन) 800 मि.ली. का छिड़काव पौध लगाने से पूर्व करना चाहिये तथा एक निंदाई तीस से पैतीस दिन बाद करनी चाहिए या एलाक्लोर (लासो 10 जी) 8 किलो दवा का रोपाई पूर्व भुरकाव तथा 30-35 दिन बाद एक निंदाई करनी चाहिए ।
सिंचाई एवं पौध संरक्षण प्रौद्योगिकी
उन्नत सिंचाई साधन जैसे टपक- सिंचाई पद्धति द्वारा – 50 से 80 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती हैं। 25 से 40 हजार रूपया प्रति हेक्टेयर का खर्च आता है, समुचित एंव समय पर पानी मिलने से उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है, सिंचाई आवश्यकतानुसार 8-10 दिन अन्तर से करते रहना चाहिए।
पौध संरक्षण यंत्रों का उपयोग
खाद एवं पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग के लिए स्प्रेयर तथा डस्टर जैसे उन्नत मानव चलित या टैªक्टर चलित उपकरणों का उपयोग करके समय पर खाद एवं दवाओं का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाता हैं। खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रति हेक्टर एलाक्लोर (लासो) दवा की 2 ली. (लासो 10 जी. 20 किलो का भुरकाव) या प्लूक्लोरिन एक लीटर (वासालिन 2 लीटर) दवा का रोपाई पूर्व स्प्रे करना चाहिए तथा 30 दिन बाद उर्वरक देते समय निंदाई करके मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
आवश्यकतानुसार दूसरी निंदाई 50 दिन बाद करके खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। टमाटर की फसल को बीमारियों एवं कीड़ों से बचाव हेतु रोपाई के 15 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.3 मि.ली. या मोनोक्रोटोफाॅस 36 प्रतिषत 1.5 मि.ली. या डाइमेथोएट 30 प्रतिशत 1.0 मि.ली. तथा 2.5 ग्राम जिनेब प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । दूसरा छिड़काव 35 दिन बाद क्लोरोपायरीफाॅस 20 प्रतिशत या क्वीनालफाॅस 25 प्रतिशत की 2 मि.ली. तथा काॅपर आक्सीक्लोराइड (फाइटोलान) या मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर दवा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । यही छिड़काव दोबारा 43 दिन बाद तथा 51 दिन में दोहराना चाहिए
जैविक कीट नियंत्रण
जैविक कीट नियंत्रण हेतु नीम कीटनाशक 3 मि.ली. प्रति लीटर का घोल बनाकर 8-10 दिन के अन्तर पर छिड़काव करना चाहिये । फलबेधक चने की इल्लियों के नियंत्रण हेतु फेरोमेन टेªप 8-10 प्रति हेक्टर तथा एन.वी.व्ही. (एच.ए.) का इल्लियों की प्रारम्भिक अवस्था में 250 एल.ई. प्रति हेक्टर का 7 दिन के अन्तर से दो छिड़काव सायंकाल के समय करना चाहिए। चिड़ियों द्वारा नियंत्रण हेतु 50 खुटिया टी आकार की बनाकर प्रति हेक्टर के हिसाब से लगाना चाहिये।
पौधों को सहारा देना
संकर किस्मों से अधिक उत्पादन लेने के लिये उनको सहारा देना आवश्यक है । इसके लिये बांस या लकड़ी के खम्भे को 4 से 5 मीटर की दूरी पर गाड़कर उसमें 45 से.मी., 90 से.मी. एवं 135 से.मी. की ऊॅचाई पर मजबूत रस्सी या तार लगाकर पौधों को ढीला बांध देते है जिससे पौधा रस्सी के सहारे सीधा खड़ा रहे।
उपज
टमाटर की संकर किस्मों से 500-800 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार होती है।
स्रोत-
- केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नबीबाग, बैरसिया रोड, भोपाल