मक्का की शीघ्र पकने वाली किस्में

भारत में मक्का, खाद्यान्न एवं पशु आहार, दोनों रूप से महत्वपूर्ण फसलों में से एक है । लगभग 25% मक्का के दानों का उपयोग मानव – भोजन हेतु किया जाता है जबकि कुल उत्पादन के लगभग 60% का उपयोग मुर्गी पालन एवं सूअर पालन उद्योग में किया जाता है । मक्का के दाने में पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं । मनसून के देरी से पहुँचने के कारण खरीफ ऋतु में मक्का की समय से बुआई नहीं हो पाती है । अतः शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के प्रजनन पर बल दिया गया क्योंकि शीघ्र एवं अति शीघ्र पकने वाली किस्मों/संकर किस्मों की बुआई यह सुनिश्चित करती है कि जुलाई के अंतिम सप्ताह में बुआई करने पर अगली फसल की बुआई हेतु अक्टूबर माह तक खाली हो जाएगा । इसके साथ – साथ, ये बुआई तिथियों में हेर-फेर के लिए समय देती है, जिससे एक ऋतु में बहुफसल बुआई भी संभव होती है ताकि एकल फसल में अगेते सूखे के कारण क्षति का जोखिम न हो तथा शीघ्र पकने के कारण फसल को पकते समय सूखा – दबाव से हानि नहीं पहुँच पाती है ।

 

भा0 कृ0 अ0 संस्थान से विकसित शीघ्र पकने वाली किस्में

क्र.सं.
किस्म / संकर किस्म
श्रेणी
अनुकूल क्षेत्र
औसत उपज
1. पी.ई.एच.एम.-1 (पूसा अगेती संकर मक्का-1) शीघ्र आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, एवं महाराष्ट्र 4.5 टन/ हेक्टेयर
2. पी.ई.एच.एम.-2 (पूसा अगेती संकर मक्का-2) शीघ्र आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, एवं मध्यप्रदेश 4.5 टन/ हेक्टेयर
3. पी.ई.एच.एम.-3 (पूसा अगेती संकर मक्का-3) शीघ्र आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु, 2.9 टन/ हेक्टेयर
4. पी.ई.एच.एम.-5 (पूसा अतिअगेती संकर मक्का-5) अतिशीघ्र दिल्ली, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तरप्रदेश 4.9-5.2 टन/ हेक्टेयर
संकुल किस्म
5. पी.सी.-4 (पूसा कम्पोजिट-4) शीघ्र दिल्ली 4.4 टन/ हेक्टेयर

 

स्रोत-

  • आनुवांशिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
Show Buttons
Hide Buttons