शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की उच्च उत्पादकता एवं अच्छी फसल के लिए ध्यान देने योग्य कुछ विशेष बातें:-
१.उपयुक्त किस्म का चयन
अल्प अवधि, मध्यम ऊँचाई तथा अधिक फलने वाले एकल सकंर किस्म का चयन करना चाहिए। एचएम-4, प्रकाश इत्यादि शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की उपयुक्त संकर किस्में हैं।
२.आगेती परिपक्वता वाली एकल संकर किस्म
शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) वाली फसल से कम से कम अवधि में बहतर आय अर्जित करने के लिए जल्दी तैयार होने वाली एकल संकरों की अनुशंसा की जाती हैं जिनकी सिल्किंग अवधि खरीफ के दौरान 45-50 दिनों की हो , बसंत में 75-80 दिन तथा उत्तर भारतीय राज्यों में ठंड के मौसम में 120-130 दिन हों।
३.मध्यम ऊँचाई तथा झुकाव (लाजिंग) प्रतिरोध
शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की काफी सघनता में उगाया जाता है| सामान्यतः अधिक पादप सघनता के साथ लाजिंग की समस्या पाई जाती है। अतः मजबूत प्रकार के संकर पौधें जिनकी जड़ प्रणाली बेहतर हो को लगाया जाना चाहिए।
४.अधिक उपजाऊपन
शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की अधिक उपज के ऐसी किस्म हो जिसके प्रत्येक पौधे में एक से अधिक शिशु भुट्टे (इयर) लगते हो।
५.उर्वरक की अधिक खुराक के प्रति सकारात्त्मकता
शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) को अधिक सघनता को साथ लगाया जाता है, अतः ऐसी किस्में जो उर्वरक के प्रति अधिक सकारात्मक हों उपयुक्त होती है।
६.बाझंपन का न होना
ऐसी किस्में जिसमे निश्फलता या बाझंपन न हो को लगाना चाहिए।
७.खडी़ पत्तियाँ
प्रति इकाई क्षत्रेफल में अधिक पौधे उगाने के लिए उठी र्हइु (खडी़ ) पत्तियाँ होना है इससे बेहतर प्रकाश मिलने के कारण प्रकाश संश्लेष्ण (फोटोसिंथेसिस) में वृद्धि होती है।
८.छिलका रहित भुट्टे के लम्बाई
छिलका उतारने के पश्चात भटुटे की लम्बाई 11 से. मी. से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा व्यास 1.0 से 1.5 से.मी. के आसपास होना चाहिए। छिलके सहित और बिना छिलके के भुट्टों का अनुपात 5-6:1 के अनुपात में होना चाहिए।
९.विकृृिति न होना
प्रत्येक पौधे शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की तीन से चार तुडाई मिलनी चाहिए तथा प्रत्येक शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) में इच्छित आकार व रंग होना चाहिए|
१०.तुड़ाई की अवधि
खरीफ/बसतं के शिशु मक्का (बेबी कॉर्न) की तुड़ाई की अवधि 10 से 12 दिन तथा शीतकाल में यह 20 दिन होनी चाहिए।
११.हरापन बने रहना
उत्तम चारे की प्राप्ति के लिए उगाए जा रहे बेबी कॉर्न में हरा भरा बना रहने का गुण अवश्य होना चाहिए। बेबी काॅर्न की तुड़ाई के बाद पूरा पौधा हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।
Source-
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद