शकरकंद की खेती ( Sweet potato cultivation )-मध्यप्रदेश

परिचय(Introduction)

शकरकंद विश्व के उष्ण कटिबंधीय और उपोषण कटिबंधीय देशों में प्रमुख फसल हैं। इसकी खेती सारे भारत में की जाती हैं। शकरकंद को सफेद आलू या आईरिस आलू के नाम से जाना जाता हैं। भारतवर्ष में इसका क्षेत्रफल 1,91,500 हेक्टेयर हैं। जिससे 1,31,200 टन प्रति वर्ष  उपज प्राप्त होती हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 9,110 हेक्टेयर भूमि पर शकरकंद की खेती होती हैं जिसका उत्पादन 52,780 टन प्राप्त होता हैं। शकरकंद की उत्पत्ति शीतोष्ण अमेरिका हैं।

पोषक मूल्य

शकरकंद को उबाल कर या भून कर खाया जाता है कुछ लोग इससे सब्जी या हलुआ भी बनाते हैं। इससे स्टार्च और अल्कोहल भी बनाये जाते हैं। अमेरिका में कुछ किस्में ऐसी भी विकसित की गई हैं जिसकी पत्तियों की सब्जी बनाई जाती हैं। इसमें प्रोटीन रेशा, खनिज पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन ए. तथा विटामिन सी. प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता हैं।

 भूमि का चुनाव (Land selection for Sweet Potato)

शकरकंद की फसल के लिये मुख्यतः गर्म जलवायु की आवश्यकता होती हैं। जहाँ वर्ष में 4 माह मौसम गर्म हो तथा धूप काफी समय तक रहती हो एवं वर्षा सामान्य हो। इसकी खेती के लिये 80˚ फैरिन्हाईट तापमान उपयुक्त होता हैं। यह सूखे की स्थिति को काफी हद तक सहन कर सकता हैं। इस फसल को पाला मुक्त क्षेत्रों में ही उगायें।

इसकी खेती के लिये रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी होती हैं। यदि ऊपरी सतह रेतीली एवं नीचे की कुछ भारी भूमि हो तो अधिक उपयोगी होती हैं। इसकी खेती के लिये भूमि का पी.एच.मान 5.8 से 6.7 के मध्य होना चाहिये तथा जल निकास उचित होना चाहिये।

 भूमि की तैयारी (Land Preparation for Sweet Potato) 

प्रथम जुताई गहरी अथवा मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 या 3 जुताई कल्टीवेटर या देषी हल से करके पाटा चलाकर भूमि को समतल बनायें।

शकरकंद की जातियाँ ( Sweet Potato varieties )

शकरकंद की बहुत सी जातियाँ उगाई जाती है। इनको मुख्यतः कंद की त्वचा के आधार पर तीन भाग, लाल, सफेद एवं सुनहरे में बाँटा जाता हैं।

१.पूसा लाल

इस किस्म के कन्द लगभग 120 दिन में तैयार हो जाते हैं। कंद का रंग लाल एवं गूदा सफेद होता है । कंद मध्यम आकार के तथा बीच में मोंटे होते हैं। इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती हैं तथा यह मैदानी पर्वतीय भागों में लगाने के लिये उपयुक्त होती हैं।

२.पूसा सफेद

इस किस्म के कंद लगभग 125 दिन में तैयार हो जाते हैं। कंद मध्यम आकार के आकर्षक होते हैं इसका छिल्का और गूदा दोनों सफेद होते हैं। उपज 235 से 376 क्विं/हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।

३.पूसा सुनहरी

इस किस्म को संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त किस्म से चयन द्वारा विकसित किया गया हैं। गूदा सुनहरा पीले रंग का होता हैं। जिनमें कैरोटिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। यह किस्म उत्तरी भारत के मैदानों एवं पहाड़ी भागों के लिये उपयुक्त होती हैं।

४.जवाहर शकरकंद 145

इसके कंद मध्यम आकार के ताँबे के समान लाल रंग के होते हैं। गूदा, संतरे के रंग का होता हैं। इस किस्म में वीविल कीट का प्रकोप कम होता हैं। फसल अवधि 90-120 दिनों की होती है और औसत उपज 250 क्विं/हेक्टेयर हैं।

संकर किस्में

१.एच 41

इस किस्म को बिहार, आसाम तथा केरल में सफलतापूर्वक उगाया जाता हैं। तथा अक्टूबर में मध्य भारत में उगाने के लिये उपयुक्त हैं। यह फसल 3 से 3.5 माह में तैयार हो जाती हैं कंद का भार 300 से 500 ग्राम तक होता हैं। कंद 27 से 30 से.मी. लम्बे तथा 15 से 20 से.मी. चैड़े होते हैं। उपज 270 क्विं प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।

२.एच 42

यह मध्यम आकार की तथा छिल्का गुलाबी रंग का होता हैं। गूदा सफेद रंग का होता हैं। यह किस्म अधिक भण्डारण क्षमता वाली होती हैं तथा कंदों का प्रकोप कम होता हैं।

फसल चक्र

  1. भिंडी, शकरकंद एवं मटर
  2. बरबटी, शकरकंद एवं टमाटर अथवा फूलगोभी
  3. लौकी, शकरकंद एवं बैंगन अथवा पत्तागोभी
  4. करेला, शकरकंद एवं पालक अथवा धनिया

शकरकंद बोने का समय एवं विधि ( Sowing time for Sweet Potato cutlivation)

उत्तरी भारत में बेलों की रोपाई जुलाई में करें। बेलों की रोपाई 15 से.मी. मोटी और 22.5 से.मी. चैड़ी मेढो पर करें। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में क्यारियों में रोपाई करें। बेलों का निचला भाग थोड़ा सा काट दें और शेष भाग को रोपाई के लिये उपयोग करें। 60 से 90 से.मी. लम्बी बेलों के टुकड़े काटे तथा, बेलों को 60 से.मी. पर बनी मेढ़ो पर 30 से.मी. की दूरी पर रोपें। बेल का मध्य भाग मिट्टी में दबा दें। रोपाई हेतु औसतन 59000 टुकड़े प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। जिसका औसत वनज 6 से 7 क्विं. होता हैं।

पौधशाला

शकरकंद के कन्दों को पौधशाला में बो कर बेलें तैयार करें फिर इन्हे काट कर रोपाई करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र की बुवाई के लिये 1/20 हेक्टेयर की पौधशाला की कटिंग की आवश्यकता होती हैं। कंद को तैयार पौध शाला में फरवरी-मार्च में बोयें तथा पौधशाला की नियमित रूप् से निंदाई गुड़ाई एवं सिंचाई करें। इस प्रकार जून-जुलाई में बेलें रोपाई के लिये तैयार हो जाती हैं।

शकरकंद की सिंचाई(Irrigation of  Sweet Potato)

रोपाई के तुरंत बाद ही सिंचाई करें दूसरी सिंचाई आठवें दिन करे। यदि वर्षा न हो तो गर्मी और शरद ऋतु में क्रमशः 8 से 10 दिन में और गर्मी में 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करें वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

शकरकंद के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक (Fertilizers for Sweet Potato) 

अधिक उपज लेने के लिये समुचित खाद की मात्रा प्रयोग में लाये कंदो की वृद्धि एवं विकास के लिये नाइट्रोजन के साथ-साथ फास्फेट तथा पोटाश उर्वरकों को देना भी अत्यन्त आवश्यक हैं। ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की खाद अधिक मात्रा न दें। अन्यथा बेलें अधिक लम्बी और कंद कम तथा पतले हो जायेंगें।

खाद व उर्वरकों की संतुलित मात्रा देने के लिये मृदा जाँच करायें। अगर मृदा जाँच न हो पाये, तब सामान्य भूमि में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिये। नाईट्रोजन की आधी मात्रा तथा फ़ॉस्फ़ोरस, पोटाश की पूरी मात्रा को रोपाई के पूर्व भूमि में ड्रिल की सहायता से दें। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को रोपाई के 70 दिन बाद टाॅप ड्रेसिंग के रूप में डालें। उर्वरक को डाल कर मिट्टी चढायें।

निंदाई-गुड़ाई(Weeding)

खरपतवारों की रोकथाम के लिये निंदाई करते रहें यह क्रिया तब तक करें जब तक बेलें खेत कों ढँक न लें। खरपतवारों के नियंत्रण के लिये 2-4 डी का उपयोग करें।

यदि मेढ़ो पर रोपाई की गई हो तो निंदाई गुड़ाई करते समय डालियों को ऊँचा एवं समतल करते रहें मुख्य बेल को छोडकर अन्य बेलों की कटाई करें उपज में वृद्धि होगी।

ज्ब बेलें बढनी शुरू हो जाये तब ध्यान रखें कि उनसे निकलने वाले कल्ले भूमि से पोषक तत्व व नमी खींच लेते हैं अतः फसल को बहुत हानि होती हैं। इस अवस्था से बचने हेतु थोड़े समय के बाद बेलों को पलटते रहें।

शकरकंद के कीट (Pests of Sweet Potato)

१.पत्ती खाने वाली सूंडी

यह कीट ऋतु में बहुत हानि पहुँचाता हैं। ये कीट पत्तियों को खाते है जिसके कारण पत्तियाँ छलनी हो जाती हैं।

रोकथाम

  1. शुरू में सुंडियों को पकड़कर नष्ट कर दें।
  2. ठसके पश्चात फॉन्ट और आकार ठीक करें। 25 किलो ग्राम 1.3 प्रतिशत लिन्डेन के चूर्ण का भुरकाव प्रति हेक्टेयर करें।

२.शकरकंद वीविल कीट

यह कीट शकरकंद के कंदों में प्रवेश कर के हानि पहुँचाते हैं। जिसके कारण कंद बेकार हो जाते हैं।

रोकथाम

  1. बेलों को रोकने से पहले क्लोरपायरीफास के 0.05 प्रतिशत घोल में भिगों कर लगायें।
  2. रोपाई हेतु कंद और बेलों को रोग मुक्त फसल से लेना चाहिये।

शकरकंद के रोग(Diseases of Sweet Potato)

१.तना सड़न

यह एक फफूंदी जनित रोग हैं। जिसमें तना सड़ जाता है पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं।

रोकथाम

  1. रोग अवरोधक जातियाँ लगावे।
  2. रोग मुक्त लताओं और बेलों को ही रोपें।

२.काली सड़न

इस रोग के कारण कंदो की सतह पर धुंधले से काले रंग के धँसे हुये गोलाकार धब्बे बन जाते हैं। धब्बों की सतह पर चांदी जैसी चमक होती हैं।

रोकथाम

  1. रोग रहित कंदो से तैयार बेलों को रापाई के लिये प्रयोग करें।
  2. बीज के रूप में प्रयोग में आने वाले कंदो को 2.5 प्रतिशत बोरैक्स के घोल से उपचारित करें।

शकरकंद की खुदाई (Digging Sweet Potato)

शकरकंद की खुदाई उसकी रोपाई के समय पर निर्भर करती हैं। जो बेलें जुलाई में रोपी जाती हैं वे फसल नवम्बर में खुदाई के योग्य हो जाती हैं। जब कंद पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तभी खुदाई करें। फसल पकने की मुख्य पहचान पत्त्यिाँ पीली पड़ कर सूखना होता हैं। षकरकंदो की खुदाई फावड़े अथवा कुदाली से करें तथा इसके उपर ही छोटी-छोटी जड़ों को तोड़ दें तथा मिट्टी को साफ कर दें।

भण्डारण

निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं।

  1. भण्डारण हेतु कंद पके हुये तथा सूखे होने चाहिये।
  2. कंद कटे, चोट लगे एवं रगड़ खाये न हों।
  3. भण्डारण गृह नमी के पास नही होना चाहिये।
  4. भण्डार के लिये 59˚ फा. तापक्रम और 85 से 90 प्रतिशत आर्द्रता वाला भण्डार गृह होना चाहिये।

उपज(Yield per acre)

औसतन प्रति हेक्टेयर 125 से 150 क्विं उपज मिलती हैं।

 

Source-

  • Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Jabalpur,Madhya Pradesh.
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