पौधे की जानकारी
उपयोग
शंखपुष्पी को शक्तिशाली मस्तिष्क टानिक, प्राकृतिक स्मृति उत्तेजक, और एक अच्छी तनाव दूर करने की औषधी के रूप मे माना गया है।
इसकी पत्तियों का उपयोग फेफड़े की सूजन एवं अस्थमा के इलाज में किया जाता है।
इस पौधे की जड़ बच्चों के बुखार के इलाज के लिए प्राकृतिक उपचार के रूप में उपयोग की जाती है।
पौधे का रस पागलपन और खून की उल्टी के इलाज के लिए अच्छा माना जाता है।
इसका चूर्ण जीरा और दूघ के साथ मिश्रित करके अनिद्रा के लिए उपयोग किया जाता है।
पौधे का नियमित सेवन प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।
यह पाचन क्रिया में मदद करता है।
यह शरीर को तनाव देने वाले हार्मोन उत्पाद को नियंत्रित कर चिंता और तनाव को कम करता है।
इसके रासायनिक गुणों के कारण यह अल्सर में प्रभावी होता है।
यह दिल की बीमारी के लिए भी उपयोगी है।
कब्ज के इलाज के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
उपयोगी भाग
संपूर्ण पौधा
उत्पादन क्षमता
शुष्क रूप में 150 से 200 किलो/हेक्टेयर
उत्पति और वितरण
यह मूल रूप से संपूर्ण भारत में पाये जाने वाला पौधा है। जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मेहरौनी और ललितपुर के जंगल की पर्वतमालाओं में पाया जाता है। इसे श्रीलंका और म्यांमार में भी उगाया जाता है।
वितरण
यह बारहमासी शाकीय पौधा है जो संपूर्ण भारत में पाया जाता है। प्राचीन काल से ही औषधीय गुणों के कारण इसका प्रयोग किया जा रहा है। चरक ने बुध्दि और याददाश्त में सुधार करने के लिए इसके विशिष्ट उपयोगों का वर्णन किया है।
वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत
कुल
काबाल्बुलेऐसी
आर्डर
सोलेनलेस
प्रजातियां
सी. प्लुरीकौलिस
वितरण
यह बारहमासी शाकीय पौधा है जो संपूर्ण भारत में पाया जाता है। प्राचीन काल से ही औषधीय गुणों के कारण इसका प्रयोग किया जा रहा है। चरक ने बुध्दि और याददाश्त में सुधार करने के लिए इसके विशिष्ट उपयोगों का वर्णन किया है।
आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप
स्वरूप
यह एक बारहमासी शाकीय पौधा है।
इसमें अनेक तने, जो 5 से.मी. से अधिक लंबे, झुके हुये, फैलने वाले और कठोर होते है।
पत्तिंया
पत्तियां अण्डाकार एवं रेश्मी रेशेंदार होती है। जिनका आधार नुकीला होता है।
पत्तियाँ हल्की हरी होती है।
फूल
फूल हल्के नीले रंग के होते है।
फूल जुलाई से नवम्बर माह में आते है।
बीज
बीज काले रंग के होते है।
बुवाई का समय
जलवायु
यह पौधा समशीतोष्ण क्षेत्र में अच्छी तरह से बढ़ता है।
इसे समुद्र तल से 1200 से 1300 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जा सकता है।
उपयुक्त तापमान 300 से 350C तक होना चाहिए।
85 से.मी. से 130 से.मी. वर्षा वाले क्षेत्र इसके समुचित विकास के लिए उपयुक्त होते है।
भूमि
लाल रीतीली दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी पैदावार होती है।
इसे काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
अच्छी जल निकासी के साथ सीमांत भूमि में भी इसे उगाया जा सकता है।
मिट्टी का pH मान 5.5 से 7 होना चाहिए।
मौसम के महीना
मानसून की पहली बौछार के बाद यानी जुलाई के पहले सप्ताह में इसकी खेती की जाती है।
बुवाई-विधि
भूमि की तैयारी
बुबाई के पहले भूमि को दो बार जुताई करके तैयार किया जाता है।
मई माह में भूमि को अच्छी तरह महीन किया जाता है।
मानसून के पहले मिट्टी में 10 -14 टन/हेक्ट की दर से FYM मिलाया जाता है।
भूमि को छोटे – छोटे भूखंडो में विभाजित किया जाता है।
इन्ही भूखंडो में बीजों की बुवाई की जाती है।
फसल पद्धति विवरण
छिड़का विधि से बुवाई की जाती है। इसके लिए 12-15 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।
पंक्ति से पंक्ति बुवाई की जाती है। इससे अन्तरशस्य कि्याओं में सहायता मिलती है।
30X30 से.मी. की दूरी पर पंक्ति में बुवाई की जाती है।
बुवाई के बाद हल्की सिंचाई की जाती है।
बुवाई के 20-25 दिनों के बाद अंकुरण आरंभ हो जाता है।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद
जुताई के दौरान FYM दिया जाता है।
FYM की अगली खुराक बुवाई के बाद दी जाती है। जो पौधों के स्वस्थ विकास के लिए पर्याप्त होती है।
आम तौर पर किसी भी रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।
सिंचाई प्रबंधन
यह वर्षा आधारित फसल है। यदि वर्षा नियमित अंतराल और पर्याप्त रूप में होती है तो कोई विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
सूखे की स्थिति के दौरान जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन
2-3 बार निंदाई करके खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।
पहली निंदाई बुबाई के 15-20 दिनों के बाद की जानी चाहिए।
अगली निंदाई 1 से 2 महीने के बाद की जानी चाहिए।
कटाई
तुडाई, फसल कटाई का समय
रोपाई के 4-5 महीने के बाद अक्टूबर माह में फूल आते है।
बीजों का विकास अगले माह दिसम्बर में होता है।
परिपक्वता के बाद पूरा पौधा जनवरी से मई महीने के दौरान काटा जाता है।
कटाई के दौरान संपूर्ण पौधे को उखाड़ा जाता है।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
सुखाना
संपूर्ण पौधे को सूखी और छायादार जगह में सुखाया जाता है ।
पैकिंग (Packing)
वायुरोधी थैले इसके लिए उपयुक्त होते है।
नमी के प्रवेश को रोकने के पालीथीन या नायलाँन थैलों में पैक किया जाना चाहिए।
भडांरण (Storage)
पौधे शुष्क स्थानों में संग्रहीत किया जाना चाहिए।
गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है।
शीत भंडारण अच्छे नही होते है।
परिवहन
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions)
अभ्रक भस्म
अगस्त हरितिकी रसायन
ब्राह्रा रसायन
ब्राह्रा घृति
ब्राह्री वटी
इन्द्र रसायन
गोरोचंडी वटी
मेघा कश्य
मेमोरिन कैप्सूल
सारस्वत चूर्ण
स्रस्वतारिष्ट
शंखपुष्पी पिनाक
शंखपुष्पी टानिक
Source-
- jnkvv-aromedicinalplants.in