बेबी काॅर्न का उत्पादन अनेक देशों जैसे थाइलैंड, ताइवान, श्रीलंका और चीन में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। वर्तमान समय में बेबी काॅर्न के उत्पादन में थाईलैंड और चीन अग्रणी देश है। भारत के भी बेबी काॅर्न के उत्पादन में विश्व में अग्रण्य होने की अनेक संभावनाएं है। बेबी काॅर्न की खेती एक अत्यधिक जल-प्रवण उद्यम है। इस फसल के लिए जल की आवश्यकता व उपलब्ध जल के साथ तालमेल बैठाना, इसकी अच्छी पैदावार लेने के लिए जरूरी है।
बेबी काॅर्न की पैदावार प्रचलित होने से अनेक नए विकल्प सामने आए हैं, जैसे फसल विविधीकरण, मूल्य-संवर्धन और उच्च लाभ प्राप्ति। शीत ऋतु में ठीक से अंकुरण न होना, छुट-पुट वर्षा और धीमी बढ़वार कुछ ऐसे बाधक कारक हैं, जिनसे प्राथमिक बाजार के लिए बेबी काॅर्न की क्वालिटी और जल्दी उत्पादन दोनों प्रभावित होते है। बेबी काॅर्न की फसल धन कमाने का बहुत अच्छा साधन है जिसके द्वारा किसान थोड़े ही समय में काफी धन कमा सकते हैं। उनके इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि किसान बेबी काॅर्न उगाने की उत्तम प्रौद्योगिकी अपनाएं।
उत्पादन प्रौद्योगिकी किस्में
उच्च क्वालिटी के बेबी काॅर्न में भुट्टे का आकार 4-11 सें.मी. लम्बा, 1.0-1.5सं.मी. गोलाई का व्यास, पीला रंग, सीधी सुगठित दानों की पंक्तियां और शुंडाकार या नुकीले सिरे आदि विशेषताओं को प्रमुखता दी जाती है। जिन किस्मों के पौधे लगभग छः फीट ऊंचे हो जाते है उन किस्मों को प्रायः हाथ से तुड़ाई के लिए वरीयता दी जाती है। पूरे देश में बेबी काॅर्न उगाए जाने के लिए उपयुक्त विशेष किस्में है, वी.एल. बेबी काॅर्न 1 और एच.एम. 4। बेबी काॅर्न के लिए एच.एम.-4 किस्म अत्यन्त उपयुक्त किस्म है। बेबी काॅर्न की फसल के लिए इस हाइब्रिड की अनुशंसा, अखिल भाारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियजना द्वारा की गई है।
फसल मौसम
सिंचित: पूरे वर्ष भर
बारानी: जून -जुलाई और सितम्बर-अक्टूबर
बेबी काॅर्न की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
बेबी काॅर्न की फसल के लिए पी.एच. 6-7 मान वाली सुवाहित मिट्टी आदर्श है। फसल की रोपाई सुवाहित मिटटी में ही करनी चाहिए ताकि अगेती रोपाई और स्वस्थ फसल ली जा सके। सुवाहित (अच्छी जलनिकास वाली) मिट्टी शीघ्र गर्म हो जाती है तथा मृदा-जनित रोग भी उसमें कम होते हैं।
खेत की तैयारी
खेत की अच्छी जुताई ट्रैक्टर के द्वारा जिसमें मोल्ड बोर्ड हल और डिस्क हल लगा हो, साथ ही उसमें कल्टीवेटर और रोटावेटर भी लगा हो, से करनी चाहिए और चैड़ी मेड़ और कूंड़ (फरो) बनानी चाहिए।
बीज दर और रोपण सघनता
वांछित बीज दर 22-25 कि.ग्रा./है॰ जो संकर के परीक्षित भार के अनुसार होती है। बेबी काॅर्न के लिए इष्टतम पौधो की सघनता के लिए पौधों के बीच की दूरी 40 सं.मी. ग 40 सं.मी. या 40 सं.मी. ग 35 सं.मी. (2 पौध प्रति हिल की दर से) जिससे 1,25,000 से 1,43,000 पोधे प्रति है. बने रहें, रखी जाती है। बीज दर 22 कि. ग्रा. प्रति है॰ (एच.एम. 4 किस्म) से पौधे से पौधे की दूरी 20 सं.मी. और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सं.मी. हो तो एक हेक्टेयर के खेत में 83,334 पौधे रोपे जा सकते हैं।
बीज उपचार
बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशी और कीटनाशी से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि बीजो का बीज जनित और मृदा जनित रोगों और कुछ कीट-पीड़कों से बचाया जा सके। बेबी काॅर्न के उपचार के लिए कुछ अनुशंसित उपचार नीचे दिए गए हैं- बेबी काॅर्न की फसल का टर्सीकम पत्ती अंगमारी, मोड़क पत्तियां/शीथ अंगमारी, मेडिस पत्ती अंगमारी आदि से बचाव के लिए बाविस्टीन + केप्टान का 1ः1 के अनुपात से 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार। भूरी चित्ती डाउनी मिल्ड्यु के लिए 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से एप्रोन 35 एस.डी. का उपचार। पाइथियम वृन्त सड़न के लिए 2.5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से केप्टान से उपचार तथा दीमक और प्ररोह मक्खी से उपचार के लिए फिप्रोनिल 4 मि.ली./कि.ग्रा. की दर से|
बुवाई की विधि
व्यवसायिक रूप से इस फसल की बुवाई सीड ड्रिल की सहायता से की जाती है। खरीफ़ में बुवाई के लिए इष्टतम गहराई 7-8 सं.मी. होनी चाहिए और रबी में 4-5 से.मी. होनी चाहिए। स्वीट काॅर्न के लिए इष्टतम रोपण गहराई 3-4 सें.मी. होनी चाहिए, जबकि सुपर स्वीट काॅर्न के लिए यह केवल 2.5 से.मी. ही होती है। सभी प्रकार की मक्का के लिए एक बीजांकुर/हिल अनुकूल है, तथापि बेबी काॅर्न के लिए द¨ बीजांकुर/हिल इष्टतम हैं। लेकिन निष्कर्षतः एक पोध प्रति हिल की अनुशंसा ही की जाती है।
बेबी कॉर्न की बुवाई का समय
उत्तर भारत में इसकी बुवाई फरवरी से नवम्बर तक की जाती है। उत्तर भारत में दिसम्बर-जनवरी में कंड़ों में रोपण के द्वारा इसकी
बुवाई की जा सकती हैं। इस उद्देश्य के लिए नवम्बर में ही नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए। बेबी काॅर्न की नर्सरी सुरक्षित संरचना में
ही तैयार की जा सकती हैं, मुख्यतः प्लास्टिक की ट्रे में मिट्टी रहित माध्यम में ही करनी चाहिए। नर्सरी तैयार करने के लिए 3ः2ः1ः6
के अनुपात में कोकोपिट, वर्मीकुलाइट, परलाइट और वर्मी कम्पोस्ट का मिश्रण तैयार करके प्लास्टिक-प्लग-ट्रे में भर देना चाहिए
और एक-एक बीज प्रत्येक गड्ढा (केविटी) में बोना चाहिए। बीजांकुर 20 से 30 दिन में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। अगस्त से
नवम्बर तक रोपण करने से बेबी काॅर्न की सर्वोत्तम क्वालिटी मिल सकती है|
ड्रिप सिंचाई
ड्रिप सिंचाई विधि द्वारा कम गहराई पर बार-बार सिंचाई की जाती है जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है। इसके परिणाम स्वरूप
पानी की प्रयोग क्षमता अधिक हो जाती है और उपज भी बेहतर प्राप्त होती है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली के तहत बेबी काॅर्न पूरे वर्ष
अर्थात एक साल में तीन फसलें लगातार उगाई जा सकती हैं। ड्रिप सिंचाई प्रणाली के शीर्ष एक हाइड्रो-साइक्लोन फिल्टर, बालू
के माध्यम वाला स्वयं सफाई वाली यांत्रिकी से युक्त छन्नक होता है। मुख्य लाइन (पी.वी.सी. के पाइप 60 सं.मी. व्यास के, 6 कि.ग्रा.
प्रति सें.मी. वर्ग दाब वाला), उपमुख्य लाइन (40 सें.मी. व्यास के पी.वी.सी. के पाइप, 6 कि.ग्रा. प्रति सं.मी. वर्ग दाब वाला) पाश्र्विक
(लेटरल्स), ड्रिपर, दाब मापी, दाब विमोचक बाल्व (प्रेशर रिलीज़ वाल्व) और फ्लश वाल्व आदि होते है। इस प्रणाली द्वारा सतह के
ऊपर और उप-सतह दोनों मे नमी का वितरण समरूप होता है।
बेबी कॉर्न का खरपतवार नियंत्रण
बेबी काॅर्न फसल में कम से कम दो बार खरपतवार निकालना जरूरी है।जैसे-जैसे फसल बढ़ती है और पौधा फैल जाता है तो खरपतवार नियंत्रण रोक देना चाहिए। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार और बड़ी घास के नियंत्रण केलिए, एट्राज़ीन का 500-600 लीटर पानी में 1.0-1.5 कि.ग्रा./है. की दर सेछिड़काव करना चाहिए। बचे हुए खरपतवारों को निकालने, और वातायन केलिए एक से दो बार निराई करने की सिफ़ारिश की जाती है। निराई करतेसमय निराई करने वा्ले व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह पीछे की अ¨र चले ताकि मिट्टी की संघनन न हो, मृदा वातायन सुगमता से होता रहे।
पादप सुरक्षा उपाय
तना भेदक के नियंत्रण के लिए प्रोफेनफाॅस 2 मि.ली./लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। तना भेदक, गुलाबी तना भेदक व ज्वार प्ररोह मक्खी का नियंत्रण कार्बारिल के 2 छिड़काव 10 व 20 दिनों बाद क्रमशः 500 ग्रा. व 750 ग्रा./है. दवा 600-700 ली. पानी में घोलकर करें।
Source-
- ICAR-Indian Agriculture Research Institute