लौकी की उन्नत खेती / घिया की खेती / Bottle gourd cultivation -Madhya Pradesh

परिचय

कद्दू वर्गीय सब्जियों में लौकी का प्रमुख स्थान हैं इसे धीया के नाम से जाना जाता हैं। इसके हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाइयां, रायता, कोफते, खीर आदि बनाये जाते है। इसकी पत्त्यिां तनों और गूदे से अनेक प्रकार की औषधियाँ बनायी जाती हैं पहले लौकी के सूखे खोल का षराब या स्प्रिट भरने के लिये उपयोग किया जाता था इसलिये इसे वोटल गोर्ड के नाम से भी जाना जाता हैं।

 

जलवायु (Climatic requirement for Bottle gourd cultivation)

लौकी की खेती के लिये गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती हैं। इसकी बावाई गर्मी और वर्षा में की जाती हैं।

 

लौकी उत्पादन हेतु भूमि की आवश्यकता (Land Preparation for growing bottle gourd)

इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांषु युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिये सर्वोत्तम मानी गई है कुछ अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती हैं। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें फिर 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाना चाहिये।

 

लौकी की किस्में (Bottle gourd varieties)

१.कोयम्बटूर-1

यह जून और दिसम्बर में बोने के लिये उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है जो लवणीय क्षारीय और सीमान्त मृदाओं में उगाने के लिये उपयुक्त होती हैं।

२.अर्का बहार

यह खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिये उपयुक्त हैं बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुड़ाई की जा सकती है इसकी उपज 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जाती हैं।

 

लौकी की गोल किस्म

१.पूसा समर प्रोलिफिक राउड़

यह अगेती किस्म हैं इसकी बेलो की बढवार अधिक और फैलनेवाली होती है फल गोल मुलायम/कच्चा होने पर 15 से 18 से.मी. तक के घेरे वाले होते हैं। जो हल्के हरे रंग के होते हैं। वसंत और ग्रीष्म दोनो ऋतुओ के लिये उपयुक्त हैं।

२.पंजाब गोल

इस किस्म के पौधे घनी षाखाओं वाले होते हैं। और यह अधिक फल देने वाली किस्म है फल गोल कोमल और चमकीले होते हैं। इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकते हैं। इसकी उपज 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।

 

लौकी की लम्बी किस्में

१.पूसा समर प्रोलिफिक लाग

यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसमों में उगाने के लिये उपयुक्त रहती है इसकी बेल की बढवार अच्छी होती है इसमें फल अधिक संख्या में लगते हैं इसकी किस्म के फल 40 से 45 से. मी. लम्बे तथा 15 से 22 से.मी. घेरे वाले होते हैं जो हल्के हरे होते हैं। इसकी उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

२.नरेन्द्र रश्मि

यह फैजाबाद में विकसित प्रजाति है प्रति पौधा औसतन 8 फल प्राप्त होते हैं। फल बोतलनुमा और सकरी होती है डन्ठल की तरफ गूदा सफेद और करीब 300 क्विं/हे. उपज प्राप्त होती हैं।

३.पूसा संदेश

इसके फलों का औसतन वनज 600 ग्राम होता है एवं दोनो ऋतुओ में बोई जाती हैं। 60-65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता है और 300 क्विं/हे. उपज देती हैं।

४.पूसा हाईब्रिड -3

फल हरे लंबे एवं सीधे होते हैं फल आकर्षक हरे रंग एवं 1 किलो वनज के होते हैं दोनो ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है यह संकर किस्म 425 क्विं/हे. की उपज देती है। फल 60-65 दिनों में निकलने लगते हैं।

५.पूसा नवीन

यह संकर किस्म है फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते हैं एवं औसतन उपज 400-450 क्विं/हे. प्राप्त होती है यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म हैं।

 

लौकी के लिए खाद और उर्वरक (Fetilizers for Bottle gourd)

मृदा की जाँच कराकर खाद और उर्वरक डालना आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है यदि मृदा की जाँच न हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर की दर से खाद और उर्वरक डालें।

गोबर की खाद – 20-30 टन

नत्रजन – 50 किलोग्राम

स्फुर – 40 किलोग्राम

पोटाश – 40 किलोग्राम

खेत की प्रारंभिक जुताई से पूर्व गोबर की खाद को समान रूप से टेªक्टर या बखर या मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर देनी चाहिये। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा का मिश्रण बनाकर अंतिम जुताई के समय ड्रिल या पोरे की सहायता से भूमि में डालना चाहिये। नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बाँटकर दो बार में 4-5 पत्तियाँ निकल आने पर और फूल निकलते समय उपरिवंषन (टाप डेªसिंग) द्वारा पौधों के चारों ओर देनी चाहिये।

 

बोने का समय( Sowing time)

ग्रीष्मकालीन फसल के लिये – जनवरी – मार्च

वर्षाकालीन फसल के लिये – जून -जुलाई

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 मीटर पौधे से पौधे की दूरी 1.0 मीटर

 

बीज की मात्रा(Quantity of seed)

  1. जनवरी – मार्च वाली फसल के लिये 4-6 किलोग्राम/हेक्टेयर।
  2. जून – जुलाई वाली फसल के लिये 3-4 किलोग्राम/हेक्टेयर।

 

सिंचाई(Irritation of Bottle gourd)

ग्रीष्म कालीन फसल के लिये 4-5 दिन के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि वर्षा कालीन फसल के लिये सिंचाई की आवश्यकता वर्षा न होने पर पड़ती है। जाड़े में 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिये।

 

निंदाई गुड़ाई (Weeding )

लौकी की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं अतः इनकी रोकथाम के लिये जनवरी – मार्च वाली फसल में 2-3 बार और जून-जुलाई फसल में 3-4 बार निंदाई गुड़ाई करें।

 

लौकी के कीड़े(Insects of bottle gourd)

1.लाल कीड़ा

पौधों पर दो पत्तियाँ निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता हैं। यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है इस कीट की सूडी भूमि के अंदर पौधों की जड़ो को काटता हैं।

रोकथाम

1000 मि.ली. मैलाथियान को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

 

लौकी के रोग(Diseases of bottle gourd)

चूर्णी फफूंदी – यह रोग फफूंदी के कारण होता है। पत्तियों एवं तनों पर सफेद दाग और गोलाकार जाल सा दिखाई देता है जो बाद में बढ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है पूरी पत्तियाँ पीली पड़कर सूख जाती है पौधों की बढवार रूक जाती हैं।

रोकथाम
  1. रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देवें।
  2. घुलनशील गंधक जैसे कैराथेन या सल्फेक्स की 3 किलो ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

 

तुड़ाई (Harvesting of Bottle gourd)

फलों की तुड़ाई उनकी जातियों पर निर्भर करती हैं फलों को पूर्ण विकसित होने पर कोमल अवस्था में किसी तेज चाकू से पौधे से अलग करना चाहिये।

 

उपज(Bottle gourd yield per acre)

प्रति हेक्टेयर जून-जुलाई और जनवरी-मार्च वाली फसलों से क्रमशः 150 से 200 क्विंटल और 80 से 100 क्विंटल उपज मिल जाती हैं।

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्व विद्यालय,जबलपुर,मध्य प्रदेश
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