लोबिया के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
1.हरा फुदका (जैसिड)
यह पत्ती की निचली सतह पर बड़ी संख्या में पाया जाता है । शिशु तथा प्रौढ़ दोनों पत्ती की निचली सतह से रस चूस कर हानि पहुंचाता है जिसके फलस्वरूप पत्ती सिकुड़ जाती है और पौधे की बढ़वार रुक जाती है ।
नियंत्रण
बुआई के समय इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस / 5-9 मिली/कि.ग्रा. बीज या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस /5-10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज या थायोमेथोक्जाम 70 डब्ल्यू एस 3-5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें । आजादीरैक्टिन 300 पीपीएम./ 5-10 मि.ली./लीटर या आजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मि.ली./लीटर का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करें । आवश्यकतानुसार किसी भी कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड / 125 ग्राम एआई./है. या थायोमेथेक्जाम 200 ग्राम एआई/है. या फेनप्रोथ्रिन 30 ईसी. /0.75 ग्राम/लीटर या लैम्डा साइहैलोथ्रिन 2.5 एससी./ 0.6 मि.ली./लीटर की दर से 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें ।
2.काला मांहू
काले रंग के शिशु एवं वयस्क दोनों क्षतिकारक होते हैं । जो नई पत्तियों तथा शाखाओं का रस चूसता है । जिससे फसल की बढ़वार रुक जाती है ।
नियंत्रण
पौधे के तने अथवा अन्य भाग जहां मांहू का कालोनी दिखाई दें उसको तोड़कर नष्ट कर दें । आजादीरैक्टिन 300 पीपीएम / 5-10 मि.ली./ली. या आजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत / 0.5-10 मि.ली./ली. की दर से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें । कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल / 0.5 मि.ली./ली. या थायामेथेक्जाम 25 डब्लू जी. / 0.35 ग्राम/लीटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ईसी. / 0.75 ग्राम/लीटर डाइमेथोएट 30 ईसी. / 2.5 मि.ली./लीटर या क्यूनालफाॅस 25 ईसी. / 2.0 मि.ली./लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए ।
3.हड्डा बीटिल
इस कीट का वयस्क तथा भृंग (ग्रब) फसल की पत्तियों को खाकर हानि पहुंचाता है । वयस्क कीट का आकार अण्डाकार और गहरा पीला होता है । प्रथम अवस्था में कीट के भृंग पत्तियों को खरोंचते हैं, जिससे पत्ती पर हल्के हरे रंग की रेखा बन जाती है । वयस्क कीट तथा इसकी सूड़ियाँ पत्ती का पर्ण हरित खा जाती हैं और केवल नसों की जाल दिखाई देती है, जिसके फलस्वरूप पूरी पत्ती एक जाल के कंकाल के रूप में दिखने लगती है । कुछ दिनों के बाद पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं । इसका प्रतिकूल असर पैदावार पर पड़ता है ।
नियंत्रण
वयस्क तथा भृंग (ग्रब) को पकड़कर के उसे नष्ट कर दें । इस कीड़े के नियंत्रण के लिए कोई भी विशिष्ट कीटनशक जैसे रेनेक्सपायर 18.5 एससी./ 0.3 मि.ली./ली. या थायोक्लोप्रिड 21.8 एससी./ 0.55 मि.ली./ली. इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी./ 10 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टेयर का प्रयोग तब करें जब कीड़े की संख्या बहुत ज्यादा हो । मैलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर / 25 कि.ग्रा./हैक्टेयर भी प्रभावकारी पाया जाता है ।
4.फली छेदक
सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाने वाला यह मुख्य कीट है जिससे लगभग 45-50 प्रतिशत की क्षति होती है । शुरू की आसस्था में इसकी सूंड़ी फूल पर समूह के रूप में होते हैं जो आगे चलकर अलग-अलग फूलों पर फैल जाते हैं और बाद की अवस्था में फलियों को उनके अंदर छेद करके खाते हैं । जिससे फलियाँ बिक्री हेतु अनुपयुक्त हो जाती हैं तथा पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
नियंत्रण
क्षतिग्रस्त, फूल और फलियों को पौधों से निकालकर नष्ट करें । एन.एस.के.ई 4 प्रतिशत या बैसिलस थ्रूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी (बी.टी.) / 2.5 ग्राम/लीटर को पुष्पावस्था के दौरान छिड़काव करें । कीटनाशक जैैसे रेनेक्सपायर 18.5 एससी./ 0.3 मि.ली./लीटर या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी./ 0.45 ग्राम/लीटर या इन्डाक्साकार्ब 14.5 एससी / 0.75 मि.ली./लीटर या क्लोरपायरीफाॅस 20 ईसी. / 2 मि.ली./लीटर या डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी./ 1मि.ली./लीटर को 10 दिनों के अंतराल पर दो या तीन बार छिड़काव करें ।
लोबिया के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
1.कालर राॅट
इस रोग का प्रारंभिक लक्षण पौधों पर पड़ता है जो नमी की अधिकता के कारण जमीन की सतह से प्रारंभ होता है और संपूर्ण छाल सड़न से ढंक जाती है । जिससे संक्रमण भाग पर सफेद फफूंद वृद्धि हो जाती है जो छोटे-छोटे टुकड़ों में बनकर धीरे-धीरे स्क्लेरोटिनिया में बदल जाती है । जो मिट्टी में जीवित रहते हैं और उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुनः सक्रिय हो जाती है ।
नियंत्रण
बीजों का उपचार बुआई से पूर्व ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम/कि.ग्रा. की दर से करनी चाहिए । खरपतवार नियंत्रण समय-समय पर करते रहें । बुआई के 20 दिन उपरान्त, ट्राईकोडर्मा के घोल से (10 ग्राम/लीटर पानी) जड़ों को तर करना चाहिए । बोड़े में त्वरित रोग नियंत्रण के लिए, संध्या के समय जड़ के समीप काॅपर आक्सीक्लोराईड 4 ग्राम/लीटर पानी की दर से जड़ों को तर करें ।
2.रस्ट
यह फफूंद जनित रोग है जो पौधों के सभी ऊपरी भाग पर छोटे, हल्के उभरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं तने पर साधारणतः लंबे उभरे हुए धब्बे बनते हैं ।
नियंत्रण
खेत में औसतन दो धब्बे प्रति पत्तियों के दिखने पर, फफूंदनाशक जैसे फ्लूसिलाजोल/हेक्साकोनाजोल/बीटरटेनाॅल/ ट्राईआडीमेफाॅन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी का 5-7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए ।
3.स्क्लेरोटीना ब्लाईट
यह फफूंदजनित रोग है जो लोबिया की फसल को काफी हानि पहुंचाता है । प्रारंभिक अवस्था में लक्षण सफेद होकर सड़ना, बाद में सड़े भाग पर फफूंद का बढ़ना व संक्रमित भाग एवं फलों एवं छिलके के अंदरूनी भाग में जालीनुमा स्क्लेरोटीना का सफेद माइसीलीयम (फफूंद) में परिवर्तित हो जाता है । संक्रमण प्रायः फूलों से शुरू हो कर बाद में फलियों तक पहुंचता जाता है ।
नियंत्रण
पौधों में पुष्पधारण करने के साथ फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) एवं मैंकोजेब (2.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम $ मैंकोजेब 1.5 ग्राम/लीटर पानी) के घोल का 7-10 दिन के अंतराल पर क्रम से छिड़काव करना आवश्यक है ।
4.लोबिया का विषाणु रोग (गोल्डेन मोजैक)
यह वायरस जनित रोग है । लक्षण में ऊपरी पत्तियों पर पीले एवं हरे रंग के धब्बे बनते हैं । बाद में अधिकांश पत्तियाँ पूर्णतया पीली पड़ जाती हैं । संक्रमित फलियाँ साधारण हरे रंग से पीली पड़ जाती हैं ।
नियंत्रण
इसके नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूराॅन 1.5 कि.ग्रा./हैक्टेयर की मिट्टी में मिलने के उपरांत बुआई करनी चाहिए । फूल लगने तक इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मि.ली./ली. या थायमेथोक्जोन 1 मि.ली./3 लीटर पानी के घोल का छिड़काव 7-10 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए ।
5.बैक्टीरीयल ब्लाईट्स
यह जीवाणु जनित रोग है, जिसमें सवंमित उत्तक पीले पड़ जाते हैं एवं मरने के उपरान्त विभिन्न आकार एवं नाप के उभार/धब्बे बनाते हैं । जो बाद में (वर्षा ऋतु) बड़े धब्बे के समान लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं । वर्षा ऋतु में, फलियों पर भी छोटे धब्बे बनते हैं ।
नियंत्रण
साफ, रोगमुक्त एवं अवरोधी बीजों का प्रयोग करें । बुआई के पूर्व बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन घोल (100 पी.पी.एम. की दर से) 30 मिनट के लिए डुबोने के उपरांत बुआई करें ।
6.पत्ती का धब्बा रोग
इसके लक्षण छोटे धब्बों के रूप में बनते हैं एवं धब्बों को घेरे हुए हल्की वृत्ताकार की आकृति होती है। पत्तियाँ भूरे रंग की होकर सूख जाती हैं । 90 प्रतिशत से अधिक हानि, सामान्यतः बीज जनित कवक से होती है ।
नियंत्रण
डाईफेेनोकोनाजोल 1 मि.ली./लीटर पानी या थायोफेनेट मिथाईल 1 ग्राम/लीटर पानी के दो छिड़काव दस दिनों के अंतराल पर करना चाहिए ।
स्रोत-
- भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान पो.आ.-जक्खिनी (शाहंशाहपुर), वाराणसी 221 305 उत्तर प्रदेश