दाल वाली सब्जियों में लोबिया एक प्रमुख सब्जी की फसल है । हरी एवं अपरिपक्व फलियों एवं सूखे बीजों का प्रयोग किया जाता है । इसके अलावा लोबिया को बिस्कुट बनाने के लिए बेकिंग पाउडर के रूप में शासकीय दूध बनाने में प्रयोग करते हैं । मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ाने एवं मृदा क्षरण को रोकने के लिए आवरण फसल के रूप में भी इसकी खेती की जाती है । इसमें महत्वपूर्ण पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, शर्करा, वसा, विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । इसकी खेती गर्मी तथा वर्षा दोनों ऋतुओं में की जाती है तथा संपूर्ण भारतवर्ष में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है । लोबिया की बीज हेतु फसल की बुवाई ऐसे समय करते हैं कि बीज परिपक्वता के समय मौसम शुष्क रहे । बीज हेतु फसल के किस्मों के बीच आवश्यक पृथक्करण दूरी 10 मीटर रखते हैं । बीज हेतु फसल में फूल आने के समय एवं फल परिपक्वता के समय रोगिंग करना आवश्यक है । फूल आने के समय, पौध वृद्धि एवं फूल के रंग एवं आकार के आधार पर अलग तरह के पौधों को निकाल देते हैं ।
जलवायु एवं मिट्टी
लोबिया की खेती के लिए बलुई दोमट से लेकर दोमट मिट्टी जिसका पी.एच.मान 6.0-7.0 के मध्य हो उपयुक्त है । खेत की 2-3 जुताई करके पाटा लगा देते हैं ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए |
उन्नत किस्में
1.काशी उन्नति
यह एक अगेती एवं बौनी किस्म है जिसकी बुआई फरवरी से अगस्त तक किसी भी समय की जाती है । खाने योग्य हरी फलियों की तुड़ाई बुआई के 40-45 दिनों बाद शुरू हो जाती है । फलियाँ हल्की हरी, मुलायम, गूदेदार, पार्चमेंट से मुक्त तथा 30-35 से.मी. लंबी होती हैं । इसकी हरी फलियों की उपज 125-150 कु./है. है । यह स्वर्ण पित्त विषाणु के प्रति अवरोधी है ।
2.काशी कंचन
यह एक बौनी एवं अगेती किस्म है जिसकी बुआई फरवरी से अगस्त तक कभी भी कर सकते हैं । इसमें खाने योग्य हरी फलियाँ बुआई के 50-55 दिनों बाद मिलनी शुरू हो जाती हैं । फलियाँ गहरे हरे रंग की, मुलायम, गूदेदार, पार्चमेंट से मुक्त तथा आकार में 30-35 से.मी. लंबी होती है । यह प्रजाति स्वर्ण पित्त विषाणु रोग के प्रति अवरोधी है । इसकी हरी फलियों की उपज 150-175 कु./है. है ।
3.काशी निधि
यह एक अगेती एवं बौनी किस्म है जिसकी बुआई फरवरी से अगस्त तक किसी भी समय की जा सकती है । खाने योग्य हरी फलियाँ, बुआई के 45-50 दिनों बाद तुड़ाई योग्य तैयार हो जाती हैं । फलियाँ हरी, मुलायम, गूदेदार, पार्चमेंट रहित तथा आकार में 30-35 से.मी. लंबी होती है । इसकी हरी फलियों की उपज 125-150 कु./है. है तथा यह प्रजाति स्वर्ण पीत्त विषाणु एवं पर्णदाग रोगों के प्रति अवरोधी है ।
4.पूसा कोमल
यह खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त किस्म है । इसके पौधे छोटे, फलियाँ मध्यम तथा हल्के हरे रंग की, 15-20 से.मी. लंबी होती है । हरी फलियों की औसत उपज 70 कु./है. है । यह प्रजाति बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के प्रति अवरोधी है ।
5.लोबिया – 263
यह एक अगेती किस्म है जो गर्मी तथा वर्षा दोनों मौसम के लिए उपयुक्त है । पौधे आकार में छोटे, फलियां मध्यम हरी, अर्ध चपटी तथा मुलायम, लगभग 20 से.मी. लंबी होती है । यह स्पर्ण पीत्त विषाणु रोग के प्रति अवरोधी है । इसकी हरी फलियों की औसत उपज 120 कु./है. है ।
6.अर्का समृद्धि
यह किस्म वर्षा ऋतु उपयुक्त है । इसके पौधे छोटे तथा झाड़ीनुमा होते हैं । इसकी फलियाँ हल्की हरी, गूदेदार, पार्चमेंट रहित तथा आकार में 15-18 से.मी. लंबी होती हैं । इसकी औसत उपज 100-125 कु./है. है ।
7.सेलेक्शन 2-1
यह एक झाड़ीनुमा तथा बौनी किस्म है । इसके पौधे 70-75 से.मी. लंबे तथा फलियाँ हरी, 25-30 से.मी. लंबी होती हैं । उनके बीजों का रंग काला होता है । यह प्रजाति पर्णदाग तथा स्वर्ण पीत्त रोगों के प्रति सहिष्णु है ।
चढ़ने वाली किस्में
1. अर्का गरिमा
यह किस्म वर्षा ऋतु के लिए अधिक उपयुक्त है । इसके पौधे 2.5-3.5 मी. लंबे होते हैं । इसकी फलियाँ हल्की हरी, गूदेदार, पार्चमेंट रहित एवं आकार में 15-20 से.मी. लंबी होती है । यह किस्म स्वर्ण पीत्त रोग के प्रति अवरोधी है । हरी फलियों की उपज 80-52 कु./है. होती है ।
लंबी फलियों वाली लोबिया की कुछ क्षेत्रीय प्रजातियाँ भी सामान्यत: संपूर्ण भारतवर्ष में उगाई जाती हैं । ये गर्मी एवं वर्षा दोनों ऋतुओं के लिए उत्तम प्रजाति है । फलियाँ हल्के से गहरे रंग की 40-45 से.मी. लंबी होती हैं । पौधों की लंबाई लगभग 3 मी. और उपज 100-110 कु./है. है ।
खाद एवं उर्वरक
लोबिया की अच्छी फलत के लिए 20-25 टन कम्पोस्ट खाद प्रति हैक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए । तत्व के रूप में 30 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में मिलाना चाहिए । शेष नत्रजन की आधी मात्रा बुआई के 25 दिनों बाद छिटककर प्रयोग करना चाहिए ।
बुआई का समय
उत्तर भारत में लोबिया की बुआई वर्षा एवं गर्मी दोनों ऋतुओं में की जाती है । इसकी बुआई का उत्तम समय वर्षा ऋतु में जून-जुलाई एवं बसन्त ऋतु में फरवरी-मार्च है ।
बीज की मात्रा
बौनी किस्में के लिए 18-20 कि.ग्रा. बीज तथा चढ़ने वाली किस्मों के लिए 12-15 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यकता पड़ती है ।
बुआई की विधि
इसकी बुआई पंक्तियों में मेड़ बनाकर करना चाहिए । बीजों की बुआई करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से.मी. एवं बीज से बीज 15 से.मी. रखना चाहिए ।
अंतःसस्य क्रियाएं
बीज बुआई के 25 दिन बाद निकाई, गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देना चाहिए इससे फलत अच्छी मिलती है । खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशी जैसे स्टाम्प की 3.3 लीटर मात्रा 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज बुआई के 48 घंटे के अंदर छिड़काव करें ।
सिंचाई
बीज बुआई के समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमीं होना आवश्यक है । सिंचाई की मात्रा एवं संख्या मौसम पर निर्भर करती है । वर्षा ऋतु में सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है । किन्तु ग्रीष्म में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए जिससे भूमि में पर्याप्त नमी बनी रहे ।
तुड़ाई
अगेती किस्मों में हरी फलियां लगभग 45-50 दिनों बाद तुड़ाई योग्य तैयार हो जाती हंै । तुड़ाई के समय फलियां पूर्ण विकसित एवं कोमल होना आवश्यक है जिससे फलन काल लंबा हो व अधिक उपज प्राप्त हो सके । पूरे फसल काल में लगभग 10-12 तुड़ाई किया जा सकता है ।
लोबिया के बीज उत्पादन हेतु ध्यान देने योग्य बातें
1.बेमेल पौधों को निकालना (रोगिंग)
बौनी किस्में सीमित बढ़वार वाली है इसमें से असीमित बढ़वार वाले पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर कर देते हैं । फूलने की अवधि एवं रंग के आधार पर अलग तरह के पौधों को बाहर कर देते हैं । फलियांे के रंग एवं बनावट के आधार पर अलग तरह के पौधों को बाहर कर देते हैं ।
2. बीज के लिए फलियों की तुड़ाई
लोबिया की बीज वाली फसल की तुड़ाई फली सूख जाने पर करते हैं । सूखी फलियों की तुड़ाई, फसल अवधि में तीन-चार वार करनी पड़ती है । सूखी हुई फलियों को पक्का थ्रेसिंग फ्लोर पर फैलाकर ट्रैक्टर से थे्रसिंग करके बीज अगल करते हैं । बीज को संसाधन के पहले 9 प्रतिशत नमी तक सुखाते हैं ।
3. बीजों की सफाई उपचार एवं रख रखाव
लोबिया के बीजों को साफ-सुथरा करके उसे 0.05 प्रतिशत क्लोरोपायरीफास दवा से उपचारित करके उचित आकार के बर्तन में भण्डारित कर लेते हैं ।
स्रोत-
- भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान पो.आ.-जक्खिनी (शाहंशाहपुर), वाराणसी 221 305 उत्तर प्रदेश