लीची फलों का तुराई उपरान्त प्रबंधन एवं मूल्य संवर्धन
परिचय
लीची सोपवरी कुल का सदाबहार वृक्ष है जिसका उत्पादन मुख्यतः उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में होता है। वानस्पतिक रूप से इसे ‘‘लीची चाइनेन्सिस’’ सोन के नाम से जाना जाता है। क्षेत्रीय स्तर पर लीची के अनेकों नाम हैं किन्तु लीची के नाम से ही सभी जगह प्रचलित है। लीची परिवार के ही लाॅगन, रामबूटान और पूलासन जैसे अन्य महत्वपूर्ण फल पौधे हैं।
लीची का उद्भव स्थान चीन के फुकिन्ग एवं क्वान्टाँग प्रान्त हैं जहाँ पर नदियों के साथ एवं समुद्र तट के निकट लीची भली-भाँति फल-फूल रहा हैं। चीन के ग्रन्थों में इसका काफी पुराना (1059. ए.डी.) एवं उल्लेखनीय विवरण है। लीची की खेती का प्रचलन दक्षिण पूर्व एशिया और अपतटीय द्वीप के पड़ोसी क्षेत्रों के माध्यम से फैला है। चीन से लीची भारतीय उप-महाद्वीप के पूर्वी भाग में आया, तत्पश्चात (17वीं सदी के अंत में) बर्मा में और 18वीं सदी में बंगाल में इसका उत्पादन प्रारंभ हुआ।
भारत में लीची एक अत्यंत ही लोकप्रिय फल है। लीची की माँग मौसम के समय काफी बढ़ जाती है जबकि इसकी उपलब्धता (अप्रैल से जून) कम अवधि के लिए (60-80 दिनों तक) सीमित मात्रा में ही होती है। लीची उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है, हालांकि चीन के उत्पादन की तरह भारत मंे इसकी खेती उतने बड़े पैमाने पर नहीं होता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार एवं सांख्यिकी रूप से भारत में लीची उत्पादन का क्षेत्रफल 69,200 हे. है जिससे 418,900 टन उत्पादन होता हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल मुख्य रूप से लीची पैदा करने वाले राज्य हैं।
लीची घना, गोलाई लिए क्षत्रक वाली धीमी गती से बढ़ने वाला (9-30 मी. ऊँचाई तक) समान वृद्धि का वृक्ष है। लीची एक सदाबहार, कुछ हद तक चमड़ें की चमक वाली, चिकनी एवं चमकदार गहरे हरे रंग की पत्तियों वाला वृक्ष हैं। लीची का फल 2-50 के गुच्छों में स्ट्रावेरी के फल की तरह लालिमा लिए जिस पर कभी-कभी गुलाबी या एम्बर का छाप हो पेड़ों पर लटकता हुआ नजर आता है। ज्यादातर फल खुशबूदार, अंडाकार, दिल का आकार लिए 2.5 से.मी. चैड़ा एवं 4 से.मी. लम्बा चमड़े की तरह खुरदरा छिलका का होता है। छिलका हटाने पर साफ एवं मिठास युक्त गुदा जो कि चमकता हुआ मोटी अपारदर्शी सफेद से भूरे रंग की होती है, खाद्य भाग होता है।
गुदा (एरिल) आसानी से बीज से अलग हो जाता है। लीची के फल का स्वाद मिठास व उप-अम्ल के साथ अलग तरह का होता है।। बीज का आकार व वजन किस्म से किस्म विभिन्न होता है। बीज आयताकार, 20 से.मी. लम्बे, कठोर, चमकदार एवं गहरे भूरापन लिए होता है। दोषपूर्ण परागण के कारण कई फल सिकुड़ जाते है एवं आंशिक रूप से ही बीज विकसित होता है जिसे ‘‘चिकन जीभ’’ भी कहते है। इस तरह के फलों में गुदा ज्यादा होने के कारण ज्यादा कीमती एवं वांछनीय होता है।
लीची बिहार के उद्यान परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि बिहार में लीची की खेती के लिए भौगोलिक दशा सर्वथा उपर्युक्त है एवं इसकी उत्पादन से खेत पर व खेत के बाहर लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। हालाँकि बिहार में लीची का उत्पादन का क्षेत्रफल भारत के कुल लीची उत्पादन क्षेत्र का करीबन आधा है परंतु 70 प्रतिशत देश का लीची उत्पादन इसी राज्य से होता है। लीची उत्पादक जिलों में मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, पूर्वी चम्पारण एवं पश्चिमी चम्पारण मुख्य हैं।
तुड़ाई उपरांत अवस्था में बहुत से मध्यस्थ व्यापारियों का होना, ढाँचागत अपर्याप्तता और बाजार में व्याप्त अनियमितता के साथ-साथ लीची फल का तुरंत खराब होने की प्रक्रिया से निजात पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। कुछ चुनौतियाँ निम्न है:-
1) तुड़ाई का समय बड़ा ही कम होना
बाजार में लीची का फल अप्रैल के अंत में आता है और जून के अंतिम सप्ताह आते-आते बाजार में उपलब्धता न के बराबर हो जाती है।
2) मूल्य पता करना एवं वितरण
लीची में पूर्व फसल तुड़ाई अनुबंध काफी प्रचलित है एवं लघु अवधि के फसल होने के साथ-साथ भण्डारण क्षमता कम होने से खरीदने वाले एवं प्रसंस्करण करने वाले दोनों तुरंत ही बाजार में बेचने की कोशिश करते हैं। एक महीने तक की फसल की उपलब्धता होने के कारण मूल्य की ऊँचाई हमेशा आसमान में ही रहती है।
3) ढांचागत अंतराल
लीची की परिवहन के लिए कोल्ड श्रृंखला सुविधाएँ आवश्यक है जिसकी उपलब्धता बिहार में नगण्य है। दूरस्थ बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त करने के लिए उत्पाद को फल की तापमान झटके से रक्षा करना आवश्यक है। यह विपणन का एक बहुत बड़ा बाधक है। लीची फलों का मौजूदा प्रसंस्करण क्षमता भी मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने एवं शेल्फ जीवन बढ़ाने के लिए प्राप्त नहीं है।
4) अप्रयुक्त संभावित निर्यात
लीची का वर्तमान में अनुमानित निर्यात बाजार 100.00 लाख है। यूरोप, हांगकांग और सिंगापुर के बाजारों में 35 प्रतिशत लीची भारत से ही भेजा जाता है। विदेशी बाजारों में लीची के ताजे फल एवं मूल्य संवर्धित उत्पाद की माँग काफी ज्यादा है एवं ऊंची कीमत भी मिल सकती है।
विश्व के वेशकीमती फलों में से एक है लीची फल । अपने स्वाद, अर्द्धपारदर्शी सफेद बीजोंपांग और आकर्षक लाल छिलका के कारण ही जाना जाता हैं। लीची के छिलके का भूरापन होना, तुड़ाई उपरांत विघटन एवं फलों का सूक्ष्म फटना आदि मुख्य बाधाएं हैं जो कि परिवहन, भंडारण एवं फसलोपरांत रख-रखाव के समय वाणिज्यिक गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
लीची का परिपक्वता सूचकांक
लीची एक गैर-क्लैमेक्ट्रीक फल है। पेड़ पर पूर्णतः परिपक्वता के बाद ही फलों को तोड़ा जाता है। फल आकार (व्यास में कम से कम 25 मी.मी.) केे साथ फलों पर लाल रंग चढ़ना (एन्थोसायमिन के कारण) परिपक्वता का द्योतक है। लीची फल की माँग दूरस्त बाजार में ज्यादा होना, जल्दी फल तोड़ने से भंडारण क्षमता अधिक होना एवं श्रम एवं परिवहन की उपलब्धता के चलते ही फलों की तुड़ाई पूर्णतः परिपक्व होने से पहले ही ज्यादातर व्यापारीगण कर लेते है। इससे लीची की उपलब्धता कुछ हद तक लम्बी अवधि तक हो जाती है।
प्रगतिशील किसान लीची फल का रंग एवं नुकीलेदार छिलका का चपटा होने पर ही फल को तोड़ते है। जल्दी फल तोड़ने पर कुल घुलनशील पदार्थ (TTS) 14-150 degree ब्रिक्स ही होता है जबकि उपयुक्त सूचकांक 18-22 degree ब्रिक्स होना चाहिए। इसी प्रकार परिपक्वता का निर्धारण तब पता चलता है जब फल का जनइमतबसमे चिपटा हो जाता है तथा फलों के बाहरी आवरण थोड़ा सा चिकना भी हो जाता है। लीची परिपक्वता के समय अम्लता में गिरावट तो आती है परन्तु TTS (कुल घुलनशील पदार्थ) बढ़ जाते है। लीची में लाल पिगमेंट एन्थोसायनिन (सायनिडिन-3-ग्लुकोसाईड, सायनिडिन-3 ग्लैक्टोसाइड, पेलारगोनिडिन- 3-गलुकोसाईड और पेलारगोनिडिन 3, 5-डाइग्लुकोसाइड) के कारण होता है जो कि अच्छे प्रकाश प्रवेशन से विकसित होता है।
किस्मों के अनुसार लीची फल 65-80 दिनों (फल लगने के बाद) के बाद पूर्णतया हो जाता है। ब्रिक्स: अम्ल अनुपात सबसे अच्छा परिपक्वता का द्योतक है। हालांकि ज्यादातर बगीचों में स्वाद चखकर एवं रंग देखकर ही फल को तोड़ लिए जाते है। ज्यादा पके फल मिठे तो होते हैं परन्तु बड़ी जल्दी नर्म भी हो जाते है। अम्लता का अनुपात 50 व अधिक होने पर फल को तोड़ लिया जाता है।
इसके फल हमेशा गुच्छों में तोड़े जाने चाहिए जिसके साथ कुछ पत्तियाँ भी लगी हुयी हो। तुड़ाई के बाद फल की गुणवत्ता में तुरंत गिरावट आने लगती है। भण्डारण के दौरान विटामिन सी, फेनाॅलस, शर्करा व कार्बनिक अम्ल की मात्रा में कमी आती है। वर्तमान समय में फलों की (तुड़ाई उपरांत) गुणवत्ता में सुधार अहम् मुद्दा है। परिपक्वता सूचकांक के लिए फल का आकार, छिलके का रंग या बनावट, बीजोपांग (एरिल) शर्करा ,अम्ल अनुपात एवं स्वाद आदि प्रमुख है। फलों की परिपक्वता का भण्डारण क्षमता पर क्या असर है शोध योग्य विषय है। कम पके फलों में पानी का ह्ास पुराने फल के अपेक्षा ज्यादा होता है। कुल मिलाकर भौतिक विशेषताएँ और भण्डारण क्षमता के साथ फल परिपक्वता की भी एक सीमा है।
लीची फलों की तुड़ाई
लीची के फल के पूरे गुच्छे को सिकैटियर से काटकर या पोल हार्वेस्टर से एक-एक फल को ऐठकर या काटकर अलग कर सकते हैं। अगर फल को ऐंठकर तोड़े गये तो ध्यान रहे जरा सा भी छिलका फल से अलग न हों। यांत्रिक चोट से बचाने के लिए फल को हमेशा सावधानी से रखे या हैडल करें। शोध में यह पाया गया है कि फल जब कठोर सतह पर 30 से.मी. से या सबसे ज्यादा ऊँचाई या अन्य फलों पर 60 से.मी. की ऊँचाई या उससे अधिक से गिरता है तो फल फट सकते हैं।
पेड़ पर लगे फलों में पानी की मात्रा दिन भर बदलता रहता है। फलों की तुड़ाई एकदम सुबह अथवा देर शाम में तोड़ने पर फल में अच्छी पानी की मात्रा होती है। साथ ही साथ विभिन्न रसायनिक अवयव संतुलित मात्रा में रहते है जिससे फल के सूखने, झुलसने की संभावना कम हो जाती है। एक बार फल की तुड़ाई कर लेने के बाद धूप या हवा के सम्पर्क में आने पर दस गुना पानी का ह्ास होता है। एक त्रिपाल बिछाकर लीची फलों की सावधानी से छँटाई कर अलग कर सकते हैं परन्तु इसके साथ ही इसकी सफाई बहुत जरूरी है जिससे कि किसी तरह का संक्रमण न हो।
फल की तुड़ाई के तुरन्त बाद छायेदार स्थान या पैकहाउस पर ले जाना चाहिए ताकि गर्म एवं शुष्क वातावरण से बचाया जा सके।
फल तोड़ने के तरीके एवं तकनीक
लीची फल को पेड़ पर पूरी तरह से पक जाने के बाद ही तोड़ते है क्योंकि फल तोड़ने के बाद फल नहीं पकता है। स्थानीय बाजारों के लिए फल जब पूरी तरह लालिमा लिए हो तब ही तोड़ना चाहिए। दुरस्थ बाजार के लिए फल को थोड़ा पहले (जब फलों में लाल रंग आने लगे) तब तोड़ते हैं। एकाकी फल की तोड़ाई केवल तुरंत खाने के उद्देश्य को छोड़कर कभी नहीं करते हैं क्योंकि शाखा से लीची फल इतनी आसानी से नहीं टूटता है एवं लीची के छिलके फट भी जाते हैं जिसके चलते फल की सड़न वहीं से शुरू हो जाती है। जब गुच्छों में फल को तोड़ते हैं तो थोड़ा सा तने (6-8″) के साथ पत्तियों के रहने से फल की ताजगी बनी रहती है। बाद में एक-एक कर फल को गुच्छों से अलग कर लेते है।
फलों की तोड़ाई मौजूदा वातावरण के अनुसार 2-4 दिन के अंतराल पर 2-3 सप्ताह तक करते हैं। वर्षा होने के तुरंत बाद कभी भी फल को नहीं तोड़े क्योंकि उच्च आर्द्रता होने से फलों में सड़न जल्दी शुरू हो सकती हैं।
लीची के पेड़ पर सीढ़ी लगाकर फल को तोड़ना आसान नहीं होता है। दुरस्थ शाखाओं में लगे फल को बाँस या धातु के लम्बे डंडे में लगे ब्लेड की सहायता से ही तोड़ते हैं । एक श्रमिक 25 कि.ग्रा.फल को एक घंटा में तोड़ सकता है।
इसके फल हारवेस्टर की सहायता से फल तोड़ने पर फल को चोट एवं त्वरित भूरापन से बचाया जा सकता हैं। स्वाद चखकर एवं रंग के विकास को देखकर चिन्हित गुच्छों को (जिनकी परिपक्वता प्राप्त हो गयी हो) पहले तोड़ते हैं। फलों की तोड़ाई (जब योग्य आद्रता एवं तापक्रम हो) सुबह में 10 बजे से पहले ही करते हैं। फल को तोड़ते वक्त ऐसा ध्यान रहे कि कोई भी फल जमीन पर न गिरे।
लीची फलों/उत्पाद का रख-रखाव एवं पैकिंग घर में प्रक्रिया
लीची एक नाजुक फल है जिसका रख-रखाव बड़ा ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए। लीची फल की भण्डारण क्षमता अल्प होती है और छिलके लाल से भूरे होकर जल्दी ही भंगुर हो जाते है। एक पुरानी चीनी कहावत है कि ‘‘लीची एक बार पेड से तोड़ लेने के बाद पहले ही दिन बदरंग हो जाता हैं, दूसरे दिन बदस्वाद हो जाता है, तीसरे दिन फलों की खुशबू चली जाती है एवं चैथे दिन लीची का सब कुछ चला जाता है।’’ फलों में तोड़ाई उपरांत भूरापन आना लीची की सबसे बड़ी बाधा है जो कि भंडारण क्षमता तो कम करता ही है, गुणवत्ता में गिरावट, व्यापारिक मूल्यों में हास एवं आर्थिक लाभ में कमी का भी प्रमुख कारण है। फलों में पानी की मात्रा में अचानक गिरावट के तत्पश्चात इन्जाइमेटिक भूरापन, लीची फल के तोड़ाई उपरांत प्रमुख ऋणात्मक बिन्दु हैं।
एशियाई उत्पादन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों द्वारा लीची के फलों की तुड़ाई, पैकिंग एवं विपणन पत्तियों व तने के साथ ही किया जाता है। कटाई उपरांत अल्प जीवन काल वहाँ के लिए बड़ी समस्या नहीं है जहाँ पर स्थानीय स्तर पर ही फलों की खपत हो जाती है। व्यापारिक उत्पादन प्रक्षेत्रों में दुरस्थ बाजार के लिए परिवहन हेतु समुचित व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि वहाँ पर आपूर्ति एवं खपत बराबर नहीं है। तुड़ाई उपरांत प्रबंधन प्रभावी विपणन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
साधारण रूप से, फलों को तोड़ाई के दिन ही दूरस्थ या स्थानीय विपणन के लिए भेज दिया जाना चाहिए। तोड़े गये फल सबसे पहले ठंढा घर में रखकर छांट लेते है, तब ग्र्रेडिंग कर फल की उष्मा को कम करने के लिए ठंढा पानी या ठंढी हवा से उपचारित करते है। इसके बाद ही किसी तरह का कवकरोधी रसायन का प्रयोग करते हैं। प्रयोग के तौर पर गर्म पानी जिसमें कवकरोधी रसायन मिला हो का छिड़काव फलों पर कर सकते हैं तब ही पनैट्स में सुखी पैक करके परिवर्तित (संशोधित) वातावरण में भण्डारित करते है।
भंडारण करने से पहले पनैट्स को तापित सील बंद कर देना चाहिए। पनेट्स की परिवहन एवं विपणन वातानूकुलित गाड़ियों में ही करना चाहिए। फलों की तुरंत ग्र्रेडिंग करें तथा दबे, कुचले, सड़े, कीट प्रभावित फलों को अलग करके पैकिंग करने तक नमी बनाएं रखने से फल की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है। पैकिंग करने से पहले अगर 5-120 सैल्सियस पर जलशीतन की जाय तो फलों के तापमान को कम किया जा सकता है। अगर फलों को 200 गेज की पाॅलीथीन के थैलों में (जिसमें सूक्ष्म छिद्र भी हो) अगर पैकिंग की जाय तो उच्च आद्रता वाले कमरे में रखने से फल की ताजगी बनी रहती है। कम अवधि के भंडारण के लिए 100 सैल्सियस तथा लम्बी अवधि के लिए 50 सैल्सियस तापमान बेहतर माना जाता हैं।
लीची फलों की छँटाई एवं श्रेणीकरण (ग्रेडिंग)
लीची उत्पादक शायद ही इस तरह के आॅपरेशन पर ध्यान देते है। परंतु अगर अच्छी तरह से ध्यान दी जाए तो फलों की गुणवत्ता विशिष्ट हो सकता है। सबसे पहले दबे, कुचले, सिकुडे फलों को छाँट ले। तुच्छ प्रकार के फल आदि की छँटाई के लिए प्रकाश की समुचित व्यवस्था होना आवश्यक हैं। बारीकी से फलों की छँटाई करें ताकि एक भी क्षतिग्रत फल पेटी में पैक न हो अन्यथा एक फल ही पहले एरिल (बीजोपांग) को सड़ा देगा तत्पश्चात दूसरे ताजे फल को भी प्रभावित करेगा। यही कारण है कि खीचकर तोड़े गये फल, फटे व चिराई लगे फल और कीट से प्रभावित फलों को तुरंत ही फेंक देते हैं या उपयुक्त होने पर खा जाते हैं। कम पके फल एवं सड़न रखने वाले फलों को भी छँटाई के दौरान अलग कर लेते हैं।
अंततः लीची फलों की ग्रे्रडिंग, आकार, वजन, रंग-रूप एवं परिपक्वता के आधार पर करते है। विभिन्न बाजारों के लिए अलग-अलग ग्रेड कें फलों को रखते हैं। ज्यादातर लीची उत्पादकों के पास दो तरह के ग्रेड के ही फल होते है। ग्रेडिंग या तो छँटाई के दौरान या उसके बाद भी कर सकते हैं।
ग्रेडिंग तंत्र बाजार की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है, लेकिन सामान्य रूप से फलों की ग्रेडिंग आकार, रंग एवं दाग को देखकर भी कर सकते हैं। विदेशी बाजारों के लिए उच्च मानक होता है (जैसे समरूपता एवं बिना किसी दाग के फल) वनिस्पत घरेलू बाजारों के। घरेलू बाजार में भी श्रेणीकरण विभिन्न बाजारों के लिए अलग-अलग होता है। फल एवं सब्जियों के श्रेणीकरण एवं
अंकन अनुसूची नियम 2004 के अनुसार लीची निर्यात के लिए निम्न ग्रेड, पदनाम एवं गुणवत्ता का मानकीकरण किया गया है जो कि सारणी-3 में इंगित है।
Source-
- National Research Centre on Litchi.