परिचय
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में फसलों की खेती के साथ-साथ कीड़ों की खेती भी की जाती है। इन कीड़ों की खेती के अंतर्गत मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन तथा लाख कीटों की खेती की जाती है। मधुमक्खी पालन एवं रेशम कीट पालन हेतु विशेष ज्ञान की आवश्यकता के साथ समय भी काफी देना पड़ता है लेकिन लाख कीट पालन में थोड़े तकनीकी ज्ञान से तथा कम समय देकर इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
छत्तीसगढ़ राज्य में इन कीड़ों की खेती की प्रचुर संभावनाएं है तथा कई क्षेत्रों में इनकी खेती भी की जा रही है लेकिन इसकी खेती भी कुछ सीमित क्षेत्रों में की जा रही है जिसे और अधिक क्षेत्रों में बढ़ाया जा सकता है। इसकी खेती में किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी तथा इसे ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाया जा सकता है। इस की खेती में किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार भी उपलब्ध होगा। बड़े पैमाने में लाख कीट पालन को ही लाख की खेती कहा जाता है।
लाख एवं लाख कीट
यह एक प्रकार का प्रकृतिक राल है जो लाख कीट लेसीफेरा लेक्का (Leccifera lacca) के मादा कीट द्वारा स्त्राव के फलस्वरूप बनता है। पूरे विश्व में लाख कीट की नौ जातियाँ पायी जाती है परंतु भारतवर्ष में दो ही जातियाँ है जिनका नाम लेसीफेरा एवं पैराटेकारडिना है। इनमें से लेसीफेरा की लेक्का उपजाति मुख्य रूप से पूरे देश में पायी जाती है जिसकी दो प्रजातियाँ कुसमी तथा रंगीनी होती है।
लाख कीट अपना जीवन शिशु कीट के रूप में शुरू करता है। यह शिशु कीट अपने मुखाग्र के द्वारा पेड़ों की टहनियों का रस चूसते हुए जीवन चक्र पूरा करता है। कुछ समय पश्चात शिशु टहनियों के एक स्थान में स्थायी रूप से बैठ कर रस चूसते हुए, इसका स्त्राव करके अपने शरीर के ऊपर एक आवरण बनाता है। यह आवरण मुँह, मल द्वारा एवं दोनों श्वसन छिद्रों में नहीं बनता क्योंकि इन स्थानों पर मोम का जमाव होने से इसका का जमाव नहीं हो पाता है। इसका नर वयस्क कीट, शंखी (प्यूपा) से निकलने के बाद मादा वयस्क कीटों से प्रजनन करने से तीन दिन बाद मर जाते है।
प्रजनन के बाद मादा कीटों द्वारा प्रचुर मात्रा में इसका स्त्राव होता है तथा इसके साथ ही साथ अंडों का विकास होता रहता है। एक मादा कीट पंद्रह दिनों तक शिशु को जन्म देती है जिसकी संख्या 400 तक होती है। मादा कीट का जीवन चक्र पूरा होते-होते इसका स्त्राव बंद हो जाता है और शिशु के बाहर आने के बाद मादा कीटों की मृत्यु हो जाती है। शिशु कीट जिस डंठल में रहते है, उस डंठल को बहिन लाख कहते है, जिसको लेकर अगली फसल की तैयारी की जाती है।
लाख उत्पादन देश
भारत देश लाख उत्पादन की दृष्टि से विश्व में सर्वप्रथम देश है। पूरे विश्व की कुल उत्पादन का करीब 80 प्रतिशत लाख भारत में होता है। भारत के बाद इसका उत्पादन थाइलैंड में अधिक होता है। इनके साथ-साथ इसका उत्पादन चीन, बर्मा, रूस एवं वियतनाम में भी होता है। भारत में इसका उत्पादन झारखण्ड राज्य के छोटा नागपूर के क्षेत्र में, छत्तीसगढ़ राज्य, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश एवं महाराष्ट्र में होता है ।
छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यतः सरगुजा (रामानुजगंज, सीतापुर, भैयाथान, कुसमी, शंकरगढ़, बैकुंठपुर), रायगढ़, (धरमजयगढ़, लैलुंगा, सारंगढ़), जाँजगीर, दुर्ग, राजनांदगाँव, कांकेर, दंतेवाड़ा आदि जिलों में मुख्यतः पलाश के पौधों में इसकी खेती की जाती है। मध्यप्रदेश में इस की खेती कई जिलों में की जाती है, जिनमें से शहडोल, मंडला, डिंडोरी, दमोह, सागर के कुछ भाग के साथ-साथ सीधी जिले में भी इसकी खेती की जाती है लेकिन वैज्ञानिक तरीके से इस की खेती के प्रचार-प्रसार की काफी संभावनाएं है। इसी तरह कांकेर जिले में कुसमी लाख की बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक विधि से खेती की जा रही है।
लाख फसल
भारत में कुसमी और रंगीनी दो प्रकार की लाखफसल होती है। कुसमी लाख कुसुम के पौधों पर होती है जबकि रंगीनी लाख मुख्यतः पलाश, बेर के पौधों पर पाले जाते है। कुसमी तथा रंगीनी दोनों से एक वर्ष में दो-दो फसल ली जाती है। कुसमी लाख से ठंड और गर्मी समय की क्रमशः अगहनी और जेठवी फसल ली जाती है। अगहनी फसल के लिये शिशु कीट संचारण (इनाकुलेशन) जून-जुलाई और जेठवी फसल के लिये जनवरी-फरवरी माह में करते है। यहीं फसल क्रमशः जनवरी-फरवरी तथा जून-जुलाई में काटते है।
रंगीनी लाख से वर्षा ऋतु की फसल कतकी तथा ग्रीष्म ऋतु की बैसाखी फसल ली जाती है जिसके लिए शिशु कीट संचारण (इनाकुलेशन) जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में करते है जो क्रमशः अक्टूबर-नवम्बर तथ जून-जुलाई में परिपक्व हो जाती है। इन चारों फसलों के नाम उन हिन्दी महीने के नामानुसार रखे गये है जिनमे वे क्रमशः पकते है। इसके बीज की मात्रा लगाने का समय तथा अन्य महत्वपूर्ण बातें तालिका में दर्शायी गई है।
तालिका : खेती के प्रमुख आयाम
क्र. | प्रजाति | फसल की किश्त तथा बीहन लाख बांधने का समय | नर कीड़ों के निकालने का समय | निकालने का समय | बीहन लाख प्राप्त करने का समय | प्रति वृक्ष बीहन लाख की मात्रा (ग्रा.) | वृक्ष छँटाई का समय | वृक्ष छँटाई तथा बीहन लाख बांधने के बीच का उपयुक्त अंतराल |
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1. | रंगीनी | 1.कतकी जून-जुलाई | अगस्त-सितम्बर | अक्टूबर-नवम्बर | अक्टूबर-नवम्बर | 1.पलाश 200-1000 2.बेर 250-1500 |
अप्रैल
अप्रैल |
6 माह
6 माह |
2.बैसाखी अक्टूबर-नवम्बर | फरवरी-मार्च | अप्रैल-मई | जून-जुलाई | |||||
2. | कुसुमी | 3.अगहनी जून-जुलाई | सितम्बर | दिसम्बर-जनवरी | जनवरी-फरवरी | 3.कुसुम 1000-4000 | जुलाई | 10 माह |
4.जेठवी जनवरी-फरवरी | मार्च-अप्रैल | जून-जुलाई | जून-जुलाई | फरवरी | 10 माह |
पोषक पौधे
इसके कई पोषक पौधे है, जिनमें लाखकीट पालन करके इसकी खेती की जाती है। सामान्यतः पोषक पौधों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है|
क) | रंगीनी लाख की फसल हेतु पलाश (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा), बेर (जिजीफस माटीसियाना), गूलर (फाइकस रेसीमोसा), पीपल (फाइकस रेलिजियस) |
(ख) | कुसमी लाख की फसल के लिये मुख्य पोषक वृक्ष कुसुम (सलीचेरा ओलियोसा) है, और |
(ग) | ऐसे पौधे जिन पर रंगीनी और कुसमी दोनों प्रकार के यह कीट पाले जाते है। इसके अन्तर्गत आकाशमनी, गलवग, भलिया तथा पुतरी आते है। |
कीट पालन की अवस्थाएँ
पेड़ों की कटाई-छँटाई
पोषक पेड़ों में कोमल तथा रसदार टहनियाँ पाने के लिए पेड़ों की हल्की कटाई-छँटाई एक निश्चित समय में आवश्यक है जिससे इसके कीट का पालन आसानी से किया जा सके। कुसुम वृक्ष के लिए कटाई-छँटाई जनवरी-फरवरी एवं जून-जुलाई में की जाती हैं। पलाश के वृक्ष की कटाई-छँटाई हमेशा पतझड़ के बाद नई कोपलें आने के पहले की जानी चाहिए। बेर फसल की कटाई-छँटाई मई महीने में करना चाहिए।
बीहन लाख से संचारण (इनाकुलेशन)
यह कीट पोषक पौधों के डंठलों में रहते है, जिनमे शिशु कीट निकलते है। इन डंठलों को बीहन लाख कहते है। लाखकीट को पोषक पेड़ों पर संचारित करने के लिए बीहन लाख की 6 से 9 इंच लम्बी, 3 से 4 डंठलों (मोटाई अँगूठे के बराबर) का बंडल बना लिया जाता है (चित्र-2), जिसे लाख पोषक पेड़ों के कई स्थानों पर डालियों के समानान्तर ऊपर की ओर बाँध देते है। इन बीहन लाख से शिशु कीट बाहर आकार नई टहनियों पर रेंगने लगते है और बाद में कोमल एवं रसदार टहनियों पर हमेशा के लिए बैठ जाते है।
यदि बीहन लाख में दुश्मन कीट हों तो इसे 60 मेश की नायलान जाली के थैले में भरकर लगाने से सिर्फ लाख के कीट ही संचारित होते है। जबकि शत्रु कीट इस थैली में फस जाते है। यदि 60 मेश की नायलान जाली के थैले उपलब्ध न हो तो बीहन लाख के बंडल बनाकर कीटनाशक थायोडान के 0.05 प्रतिशत अर्थात 2 मी.ली.प्रति लीटर पानी के घोल में 8 से 10 मिनट तक डुबाकर रखने के बाद बीहन लाख को सूखा लें, फिर संचारण करें, जिसमें शत्रु को आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। पलाश, बेर, कुसुम और गलवान पर यह किया काट-छाँट के करीब 6 माह बाद तथा कुसुम और आकाशमनी पर 18 महीने बाद करते है।
फूंकी उतारना
बीहन लाख से शिशु कीट निकल जाने के बाद बँधी लाख डंठलों को “फुंकी” कहते है। शिशु कीट के बीहन लाख से निकल जाने के बाद डंठलों को पेड़ से हटा लेना चाहिए अन्यथा इसमें मौजूद शत्रु कीट बीहन लाख से जन्में शिशुओं पर आक्रमण करना शुरू कर देते है।
फसल कटाई
रंगीनी लाख की ग्रीष्मकालीन (बैसाखी) और वर्षा कालीन (कतकी) फसल, संचारण के क्रमशः 8 और 4 महीने बाद परिपक्व हो जाती है। इसी प्रकार कुसमी की ग्रीष्मकालीन (जेठवी) और शीतकालीन (अगहनी) फसल क्रमशः जून-जुलाई और जनवरी-फरवरी में तैयार हो जाती है। परिपक्व फसल को फिर से बीहन लाख के लिए उपयोग करना हो तो पेड़ों पर सही समय पर अर्थात कीटों के निकलने के समय से काटते हैं, लेकिन यदि छिली लाख के रूप में उपयोग करना है तो समय से पहले भी काटा जा सकता है।
छिलाई
फसल परिपक्व होने के बाद लाख युक्त डंठलों तथा फुंकी लाख डंठलों में से इस को खुरचकर अलग किया जाता है। इस विधि को लाख छिलाई कहते है तथा इस खुरची लाख को छायादार स्थान में ज़मीन पर फैलाकर सुखाया जाता है तथा सुखाने के बीच-बीच में छिली लाख को पलटना पड़ता है।
खण्ड प्रणाली से लाख की खेती
पोषक वृक्षों को खण्डों में बराबर संख्या में बाँटकर इसकी खेती करने को खण्ड प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली से इसकी खेती करने से कई लाभ हैं। जैसे फसल लगातार मिलती रहती है, बीहन लाख की कमी नहीं होती, वृक्षों को विश्राम का पूरा समय मिलता हैं, शत्रु कीटों का प्रकोप कम होता हैं तथा इसका उत्पादन अधिक होता हैं।
Source-
- igau.nic.in