कीटपालन गृह
रेशम कीटपालन हेतु एक अलग गृह की आवश्यकता होती है। कीटपालन गृह में समुचित स्थानों पर खिड़कियाँ भी आवश्यक हैं, जिससे कक्ष में पर्याप्त मात्रा में हवा का आवागमन हो सके। साथ ही यह भी आवश्यक है कि कीटपालन गृह को विशुद्धीकरण हेतु एयरटाइट किया जा सके।
फसल चक्र
प्रथम वर्ष में स्थापित शहतूत वृक्षारोपण में समुचित देखभाल में द्वितीय वर्ष में शहतूत पत्ती का उत्पादन समुचित मात्रा में हो जाता है। प्रदेश में विभिन्न स्थानों/प्रक्षेत्रों में तापमान आद्रता को ध्यान में रखते हुए रेशम कीटपालन वर्ष में चार – पाँच बार ही किया जा सकता है। एक बार का कीटपालन एक फसल कहलाता है। पूर्ण वर्ष में कीटपालन फसल हेतु निम्न फसल चक्र निर्धारित किया गया है।
क्र०स० | फसल का नाम | कीटपालन फसल अवधि | कीट प्रजाति |
1 | 20 फरवरी से 20 मार्च तक | बसन्त फसल | बाईबोल्टीन X बाईबोल्टीन |
2 | 01 अप्रैल से 25 अप्रैल तक | ग्रीष्म फसल | मल्टी X बाई |
3 | 20 अगस्त से 15 सितम्बर तक | मानसून फसल | मल्टी X बाई |
4 | 01 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक | पतझड़ फसल | मल्टी X बाई |
नोट – शहतूत की पत्ती की उपलब्धता एवं तापक्रम तथा आद्रता के अनुरूप उपरोक्त फसल चक्र में परिवर्तन सम्भव है।
कीटपालन की तैयारी (विशुद्धीकरण)
प्रत्येक कीटपालन फसल से पूर्व सभी कीटपलन उपकरण एवं कीटपालन गृह की अच्छी तरह सफाई धुलाई करते हुए फार्मलीन से विशुद्धीकरण किया जाता है। फर्मलीन के 2% अथवा 3% घोल का उपकरणों/गृह के दीवाल, छत, फर्श आदि में छिड़काव किया जाना चाहिए, जिससे बीमारियों के जीवाणु नष्ट हो जायें। कीटपालन गृह को फार्मलीन छिड़काव के उपरान्त 24 घण्टे तक हवारोक (एयरटाइट) बन्द किया जाना चाहिए। लगभग 7 से 8 लीटर 2% फार्मलीन घोल से लगभग 100 वर्गमीटर क्षेत्र में विशुद्धीकरण किया जाता है। इसके अतिरिक्त कीटपालन उपकरणों को ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग कीटपालन गृह के आस-पास शहतूत वृक्षारोपण में विशुद्धीकरण के रूप में भी किया जाता है।
रेशम कीटाण्डों का सेवन (इन्क्यूबेशन)
रोगरहित रेशम कीटाण्डों को कीटपालन गृह में ट्रे में एक पतली तह के रूप में रखा जाता है। गृह में तापमान 25 डिग्री सेण्टीग्रेट एवं आर्द्रता लगभग 80-90 सुनिश्चित की जाती है। आर्द्रता सुनिश्चित करते हुए पैराफिन पेपर एवं फोम पैड का प्रयोग किया जाता है। कीटाण्डों में जब ‘पिन हेड स्टेज’ आती है, तो कीटाण्डों को अंधेरे में रखा जाता है। प्रस्फुटन की सम्भावित तिथि को प्रात: काल में कीटाण्डों को प्रकाश में रखा जाता है। जिसमें लगभग 90-95 % कीटाण्डों में प्रस्फुटन हो जाता है।
ब्रशिंग
कीटाण्डों में प्रस्फुटित लार्वों को अधिक समय तक भूखा नहीं रखा जाना चाहिए। लार्वा को शहतूत की मुलायम पत्तियाँ छोटे आकार (0.5 सेंटीमीटर से लेकर 1 सेंटीमीटर तक) की काटकर डाली जाती है। सभी लार्वा पत्तियों पर चढ़ जाते हैं। 10-15 मिनट के पश्चात रेशम कीटों को एक मुलायम पंख से धीरे-धीरे कीटपालन ट्रे में पत्तियों के साथ झाड़ देते हैं एवं कीटपालन बेड तैयार कर लेते हैं। पत्तियों को सूखने से बचाने के लिए एवं कीटपालन बेड में आवश्यक आर्द्रता सुनिश्चित करने हेतु फोम पैड लगाते हुए कीटपालन ट्रे को पैराफीन पेपर से ढ़क दिया जाता है।
रेशम कीटपालन शैशव अवस्था
वेट अवस्था | दिवस | तापक्रम आर्द्रता (प्रतिशत) | कीटपालन बेड का आकार | फीडिंग | बेड की सफाई |
प्रथम अवस्था | 1 | 9″ x12″ | 4 | ——– | |
3 | 18″ x 12″ | 4 | ——– | ||
3 | 8″ x 16″ | 4 | ——- | ||
4 | 27 डिग्री से० ग्रे० 90 | 9″ x 12″ | 4 | 01 मोल्ट | |
द्वितीय अवस्था | 1 | उपर्युक्तानुसार | 24″ x 24″ | 4 | 01 |
2 | उपर्युक्तानुसार | 30″ x 24″ | 4 |
इसके कीटों की प्रथम एवं द्वितीय अवस्था को शैशव अवस्था कहा जाता है। शैशव अवस्था में तापक्रम, आर्द्रता एवं कीटों के फैलाव हेतु निम्न मापदण्ड होते है:-
शहतूत की पत्तियों का चुनाव एवं गुणवत्ता
ब्रशिंग (प्रस्फुटन) से द्वितीय अवस्था की समाप्ति तक रेशम कीटों को मुलायम पत्तियाँ खिलाई जाती हैं। ऊपर की प्रथम चमकदार बड़ी पत्ती से नीचे तीसरे अथवा चौथी पत्ती का चुनाव करते हुए तोड़ना चाहिए। उनके नीचे की 5 से 7 पत्तियों को द्वितीय अवस्था तक दिया जाता है। प्रथम अवस्था में पत्ती का आकार 0.5 से 1 से० मी० वर्ग आकार की काटकर खिलाई जाती है।
शहतूत की पत्ती का रख-रखाव
पौष्टिकता एवं नमी से भरपूर उच्च गुणवत्ता की पत्तियों के भोजन से रेशम कीटों में सर्वोत्तम विकास होता है। शहतूत पत्तियों से जो रेशम कीटों का एकमात्र भोज है, को सही ढंग से सुरक्षित रखा जाना आवश्यक है, जिससे इसकी नमी में गिरावट न आये। शहतूत पत्तियों को भीगे गनी क्लाथ में ढक कर रखा जाता है। उक्त हेतु लीफ चैम्बर का भी प्रयोग किया जाता है।
सफाई
रेशम कीटपालन के समय कीटपालन बेड की सफाई आवश्यक है, क्योंकि उसमें रेशम, कीटों का मल एवं पुरानी बची हुई पत्तियाँ होती हैं। प्रथम अवस्था में मोल्ट से एक दिन पूर्व मात्र एक सफाई की जाती है। द्वितीय अवस्था में दो सफाई की जाती हैं। पहली मोल्ट खुलने के बाद फीडिंग देने के बाद एवं दूसरी द्वितीय मोल्ट से एक दिन पूर्व सफाई की जाती है। द्वितीय अवस्था में दो सफाई की जाती हैं। 0.5 x 0.5 आकार वाली नेट को कीटपालन बेड के ऊपर डालते हुए ताजी शहतूत की पत्तियाँ नेट के ऊपर डाली जाती हैं। रेशम कीट नेट के छिद्रों से रेंगकर ताजी पत्तियों के ऊपर चढ़ जाते हैं। करीब आधा घण्टे बाद नेट को कीटों सहित दूसरे कीटपालन ट्रे में स्थानांतरित कर दिया जाता है एवं बची हुई पत्तियों एवं रेशम कीट के मल (एक्सक्रीटा) को खेत मे गड्ढा बनाकर दबा दिया जाता है।
मोल्ट
मोल्ट एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें रेशम कीट अपने शरीर की त्वचा को बदलते हैं। इस प्रक्रिया में रेशम कीट पत्ती नहीं खाते हैं। रेशम कीटों में लार्वा की 5 अवस्था में 4 मोल्ट होते हैं। जब रेशम कीट मोल्ट में जाने की तैयारी करते हैं, तो कीटपालन बेड से फोम पेड एवं पैराफिन पेपर हटा दिया जाता है। इस अवस्था में कीटों को छोटी आकार की पत्तियां दी जाती हैं। मोल्ट के प्रारम्भ से लेकर मोल्ट की समाप्ति तक सावधानी से सभी रेशमकीटों में समान विकास होता है। मोल्ट के समय कीटपालन बेड पतला एवं सूखा होना चाहिए एवं गृह में हवा का आवागमन सुचारू होना चाहिए। मोल्ट की अवस्था में अधिक आर्द्रता रेशम कीट हेतु नुक्सानदायक होती है।
उत्तरावस्था रेशम कीटपालन
रेशम कीटों की तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम अवस्था को उत्तरावस्था कीटपालन कहा जाता है। तापक्रम एवं आर्द्रता की आवश्यकता बढ़ती अवस्था के साथ होती जाती है। तृतीय एवं चतुर्थ अवस्था में कुछ बड़ी पत्तियां एवं पंचम अवस्था में पूर्ण पत्तियां रेशमकीट को दी जानी चाहिए। अधिक पुरानी एवं पीली पत्तियां रेशम कीटों को नहीं खिलाई जानी चाहिए। उत्तरावस्था के विभिन्न अवस्थाओं में तापक्रम एवं आर्द्रता की आवश्यकता निम्नवत् है:-
तृतीय अवस्था | चतुर्थ अवस्था | पंचम अवस्था | |
तापक्रम ( 0 सें० ग्रे०) | 26 | 25 | 24 |
आर्द्रता (प्रतिशत) | 80 | 70-75 | 70 |
माउण्टिंग
अन्तिम अवस्था में जब रेशम कीट पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं, तो वे पत्ती खाना बन्द कर देते हैं। ये कीट रेशम कोया निर्माण हेतु तैयार होते हैं। इस अवस्था में रेशम कीटों का शरीर थोड़ा पारदर्शी हो जाता है एवं कीट अपने सिर को ऊपर कर स्थान की तलाश करता है। इस अवस्था में रेशम कीटों को चुनकर माउण्टेज(चन्द्राकी) में रखा जाता है। परिपक्व रेशम कीटों को माउण्टेज में स्थानांतरित करने में विलम्ब से रेशम कीट रेशम की क्षति कर देते हैं। माउण्टेज में कीटों को 40-45 कीट प्रति वर्गफुट की दर से रखा जाना चाहिए। इस प्रकार 6×4 के आकार की चन्द्राकी में लगभग 1000 कीट माउण्ट किये जा सकते हैं।
रेशम कोयें को तोड़ना(हार्वेस्टिंग)
माउण्टेज में कीट रखने के पश्चात 48 से 72 घण्टे में रेशमकीट कोया निर्माण कर लेते हैं, परन्तु इस अवस्था में कोयों को नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि कीट अत्यन्त नाजुक एवं मुलायम होते हैं। कोयों को माउण्ट करने की तिथि से पाँचवे/छठवें दिन तोड़ा जाना चाहिए, जब रेशम कोयों के अन्दर प्यूपा का निर्माण हो जाये। माउण्टेज (चन्द्राकी) में रेशम कोयों को तोड़ने से पूर्व मरे हुए कीटों, खराब कोयों को पहले निकाल देते हैं एवं अच्छे कोयों को ग्रेड कर छांट लेते हैं।
रेशम कोयों की ग्रेडिंग
कोयों को तोड़ने के उपरान्त कोयों में ग्रेड के अनुसार छटाई आवश्यक है। फ्लिमजी/डेमेज्ड/एवं डबर कोयों को छांटकर अलग किया जाता है। जिससे अवशेष मात्र रीलिंग योग्य कोये रख कर रीलिंग योग्य कोयों को ‘अ’,’ब’,’स’ श्रेणी में बॉट लिया जाता है तत्पश्चात श्रेणीवार कोयों का विपणन किया जाता है। कोयों की ग्रेडिंग किया जाना इसलिए भी आवश्यक है कि कृषक को उचित मूल्य प्राप्त हो सके। उदाहरण के लिए यदि कोई कृषक उत्पादित 10 कि० ग्रा० कोया की ग्रेडिंग नहीं करता है, तो उसे मात्र ‘स’ श्रेणी की दर ही प्राप्त हो पाती है। यदि उसी कोये को श्रेणीवार विपणन किया जाए, तो कृषक को श्रेणीवार कोया मूल्य प्राप्त होता है, जो पहले से ज्यादा मूल्य का होता है
रेशम कोयों का विपणन
कोया तोड़ने (हार्वेस्टिंग) के उपरान्त रेशम कोया विपणन हेतु रेशम विभाग के विभिन्न केन्द्रों पर एकत्र किया जाता है, जहाँ से कोये को कोया बाजारों में प्रेषित किया जाता है। बाजार में प्रतिस्पर्धा के आधार पर अधिकतम दर पर कोया का विक्रय किया जाता है एवं रेशम कोयों का भुगतान कृषक को उपलब्ध कराया जाता है
स्रोत-
- रेशम विकास विभाग , उत्तरप्रदेश