राई-सरसों उत्तर प्रदेश में तिलहन की प्रमुख फसल है। इसका प्रयोग पशुओं के हरे चारे, हरा साग, मृदा कटाव के रोकथाम एवं कहीं-कहीं हरी खाद के लिए किया जाता है। इसके दाने को अचार, मसाले एवं सब्ली मसाले, करी पाउडर तथा उबटन आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह इसका विभिन्न उपयोग किया जाता है। इसकी बुवाई यदि विधि से नहीं की गई है तो बीज छोटा होने के कारण पर्याप्त उत्पादन नहीं मिल पाता है साथ ही साथ सिंचाई का सही अनुपात एवं सही समय से होना भी आवश्यक होता है।
राई-सरसों में बुवाई प्रबन्धन
बीज की मात्रा
राई-सरसों का बीज छोटा होने के कारण बीज की मात्रा का निर्धारण ठीक ढंग से करना चाहिए। सामान्यतः बीज की मात्रा का निर्धारण करने के लिए भूमि की नमी, बीज की अंकुरण क्षमता तथा मौसम की दशा आदि को ध्यान में रखकर आवश्यक बीज की मात्रा से अधिक बीज की बुवाई की जाती है। जो मात्रा 3-10 किग्रा. के बीज में हो सकती है। सरसों की 3 ग्राम टेस्ट भार की किस्मों के लिए 4 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज तथा इससे बड़े बीजों की प्रजातियों के लिए 5-6 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। मिश्रित फसल के लिए राई-सरसों के बीज की मात्रा साथ बोई जा रही फसल के अनुसार अलग-अलग निर्धारित की जाती है। मोटे तौर पर मिश्रित फसल के लिए शुद्ध फसल की आधी बीज दर प्रयोग की जाती है।
बीज शोधन
2.5 ग्राम थिरम या 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा स्पोर से प्रति किग्रा. बीज को शोधित करके बुवाई करना चाहिए। क्योंकि बीज शोधन से जोरदार और ज्यादा जमाव होता है एवं बीज से होने वाले रोगों से रक्षा होती है तथा मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों को कम करता और रोकता है। बीज शोधन में रसायनों की निर्धारित मात्रा ही प्रयोग करनी चाहिये। दीमक या चींटी से होने वाले नुकसान के लिए बीज को 3 मिली. /किग्रा. क्लोरोपाइरीफाॅस नाम की दवा से उपचारित करके बोना चाहिए।
बुआई की विधि एवं दूरी
राई-सरसों की बुवाई देशी हल के पीछे उथले अर्थात 4-5 सेमी. गहरे कूड़ों में 45 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए। बुआई के बाद बीज ढकने के लिए हल्का पाटा लगा देना चाहिए। कहीं-कहीं लोग छिटकवा विधि से भी बुआई करते हैं। सामान्य तौर पर प्रति वर्ग मीटर 25-30 पौध होना उत्पादन के लिए अनुकूल होता है। इस तरह प्रति हेक्टेयर 2.5-3 लाख पौध इष्टतम होती है।
बुवाई का समय
राई-सरसों का उत्तर प्रदेश में बोने का उचित समय सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम पखवारे तक का है। राई-सरसों की बुवाई के समय 27 डिग्री सेंटीतापक्रम उपयुक्त रहता है। अधिक अगेती तथा विलम्ब से बुवाई करने पर राई-सरसों के उपज में भारी कमी आ जाती है। विलम्ब से बुआई करने पर पौधों की वृद्धि, पुष्पन काल तथा बीज बनने के लिए उपयुक्त समय में कमी आने के कारण बीज छोटे रह जाते हैं साथ ही साथ विलम्ब से बोई गई फसल में माहू कीट का अधिक प्रकोप होता है।
राई-सरसों में सिंचाई प्रबन्धन
सरसों की फसल में समय से सिंचाई करने पर उत्पादन में अच्छी वृद्धि होती है। आमतौर पर राई-सरसों में फूल आने के समय तथा दाना भरने की अवस्थाओं में सिंचाई की विशेष आवश्यकता होती है। यदि राई-सरसों में पर्याप्त रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया गया है तो दो हल्की सिंचाई करनी चाहिए, जिसमें पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई यदि वर्षा नहीं होती है तो 55-65 दिन बाद करनी चाहिए। जिस तरह सरसों की फसल के लिए सिंचाई आवश्यक है उसी तरह इसके लिए जल निकास की भी पर्याप्त सुविधा होनी
चाहिए।
स्रोत-
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कृषि विभाग,उत्तरप्रदेश