यह एक नमी धारक पदार्थ एवं जीवाणु का मिश्रण है,जिसके प्रत्येक एवं एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं| यह जैव उवर्रक केवल दलहनी फसलों में ही प्रयोग किया जा सकता है तथा यह फसल विशिष्ट होते है अथार्त अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग प्रकार राइजोबियम जवै उवर्रक का प्रयोग होता है |राइजोबियम जैव उवर्रक से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु से बीज पर चिपक जाते है| बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड़ मूल रोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियाँ का निर्माण करतें है| नत्रजन स्थिरीकरण इकाइयां तथा पौधों की बढवार इनकी सख्ंया पर निभर्र करती है|अधिक ग्रन्थियाँ होने पर पैदवार भी अधिक होती है।
किन फसलों में प्रयोग किया जा सकता है ?
अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जैव उर्वरक के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं तथा निम्न फसलों में प्रयोग किये जाते हैं।
1. मूंग,उर्द,अरहर,चना,मटर,मसूर आदि।
2. तिलहनी मूंगफली,सोयाबीन।
3. अन्यः रिजका,बरसीम एवं सभी प्रकार की बीन्स।
प्रयोग करने की विधि
200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से 10 किग्रा. बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट खोलें तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर 50 ग्राम गुड़ एवं 500 मिली. पानी में डालकर अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को किसी साफ सतह पर इकट्ठा कर जैव उर्वरक के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें और हाथों से तब तक उलटते पलटते जायें जब तक कि सभी बीजों पर जैव उर्वरक की समान परत न बन जाये। अब उपचारित बीजों को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर 10-15 मिनट तक सुखा लें और तुरन्त बो दें।
राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से लाभ
1. इसके प्रयोग से 10-30 किलो रासायनिक नत्रजन की बचत होती है।
2. इसके प्रयोग से फसल की उपज 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
3. राइजोबियम जीवाणु कुछ हारमोन एवं विटामिन भी बनाते हैं, जिससे पौधों की बढवार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
4. इन फसलों के बाद बोई जाने वाली फसलों में भी भूमि की उर्वराशक्ति अधिक होने से पैदावार अधिक मिलती है।
प्रयोग में सावधानियाँ
1 .राइजोबियम जीवाणु फसल विशिष्ट होता है। अतः पैकेट पर लिखी फसल में ही प्रयोग करें।
2 .जैव उर्वरक को धूप व गर्मी से दूर किसी सूखी एवं ठंड़ी जगह में रखें।
3 .जैव उर्वरक या जैव उपचारित बीजों को किसी भी रसायन या रासायनिक खाद के साथ न मिलायें।
4 .यदि बीजों पर फंफूदी नाशी का प्रयोग करना हो तो बीजों को पहले फफंूदी नाशी से उपचारित करें तथा फिर जैव उर्वरक से उपचारित करें।
5 .जैव उर्वरक का प्रयोग पैकेट पर लिखी अन्तिम तिथि से पहले ही कर लेना चाहिए।
6 .जैव उर्वरक किसी प्रमाणित संस्था से ही क्रय करें अन्यथा उसके जीवाणु क्रियाशील नहीं होते हैं।
Source-
- Krishi Vibhag , Uttarpradesh