रबी राजमा की खेती / फ्रेंच बीन की खेती -उत्तरप्रदेश

राजमा (फेसियोलस वल्गेरिस) को फ्रेंच बीन  कहते है। इसकी फलियां किडनी के आकार जैसी होती है, इसलिए इसे किडनी बीन के नाम से भी जाना जाता है ।  मटर एवं बरबटी की तरह राजमे की खेती भी  द्विउद्देश्य यानि  सब्जी एवं दाना के लिए की जाती है|

 

भूमि

राजमा की खेती के लिये दोमट अथवा हल्की दोमट भूमि उपयुक्त होती है। भूमि में जल निकास की अच्छी व्यवस्था आवश्यक है।

 

भूमि की तैयारी

प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करें। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिये।

 

संस्तुत प्रजातिया

क्रं.सं

प्रजातिया

बीज का रंग

उत्पादन

क्षमता (कु./हे.)

पकने की

अवधि (दिन)

उपयुक्त क्षेत्र

1. पी.डी.आर-14

(उदय)

 

लाल चित्तीदार 30-35 125-130 प्रदेश मध्य एवं

पूर्वी क्षेत्र

 

2. मालवीय-15 सफेद 25-30 115-120 मध्य एवं पूर्वी क्षेत्र

 

3. मालवीय-137 लाल 25-30 110-115 मध्य एवं पूर्वी क्षेत्र

 

4. वी.एल.-63  भूरा चित्तीदार 25-30 115-120 रबी में मैदानी क्षेत्र

 

5. आई.पी.आर.

98-4 (अम्बर)

 

25-30 135-140 पूर्वी उ.प्रपत्तीवेध्
प्रति सहिष्णु

 

बीज की मात्रा

120-140 किलोग्राम/हेक्टेयर।

 

बुवाई

अक्टूबर का तृतीय एवं चतुर्थ सप्ताह उपयुक्त हैं। पूर्वी क्षेत्र में बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में की जाती है। बीज 8-10
सेन्टीमीटर गहराई में करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी|

 

उर्वरक

राजमा में राइजोबियम ग्रन्थियां न होने के कारण अधिक नत्रजन की आवश्यकता होती है। 120ः60ः30 किलोग्राम/ हेक्टेयर नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना आवश्यक है। नत्रजन की आधी फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुआई के 30 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में दें। 20 किलोग्राम/ हेक्टेयर गंधक देने से लाभदायक परिणाम प्राप्त होते हैं।

 

सिंचाई

2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के चार सप्ताह बाद प्रथम सिंचाई अवश्य करें। सिंचाई हमेशा हल्की करें। खेत में पानी अधिक देर तक नहीं रुके।

 

निराई-गुड़ाई

प्रथम सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई अवश्य करें। गुड़ाई के समय थोड़ी मिट्टी पौधे पर अवश्य चढ़ा दें ताकि फली लगने पर पौधे को सहारा मिल सके।

 

बीज शोधन

कार्बेन्डाजिम या थीरम 3 ग्राम से प्रति किग्रा. बीज शोधित करके बोयें। बीज शोधन से अंकुरण के समय रोगों का प्रकोप रुक
जाता है।

 

खरपतवार नियंत्रण

फसल उगने से पहले पेन्डीमेथलीन का छिड़काव 3.3 लीटर/हेक्टेयर करने से खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है।

 

रोग नियंत्रण

पत्तियों पर मोजैक देखते ही रोगार, डेमेक्रान एवं नुवाक्रान का पानी में घोल 1.5 सी.सी./लीटर बनाकर छिड़काव करने से
मक्खियों का नियंत्रण हो जाता है। रोगी पौधे को प्रारम्भ में ही निकाल दें।

 

कटाई एवं भण्डारण

जब फलियाँ पक जायें तो फसल की कटाई करें। मड़ाई करके दाना निकालें।

 

स्रोत-

  • कृषि विभाग उत्तर प्रदेश

 

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