गतशताब्दी के छठवें दशक के उत्तरार्ध में आई हरित क्रांति के फलस्वरूप् देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्म निर्भर हो सका तथा विकराल रूप से बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण पोषण भी कर सका । अधिक खाद्यान्न उत्पादन के लिए किसानों ने एक तरफ जहां सिंचाई सुविधा का अधिकतम उपयोग किया वहीं दूसरी ओर रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जिसका प्रभाव यह हुआ कि मृदा स्वास्थ्य में गंभीर रूप से गिरावट आई है ।
पौधों के अच्छे विकास के लिए सोलह प्रमुख पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिनमें से तीन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिनमें से तीन पोषक तत्व कार्बन, हाईड्रोजन तथा आॅक्सीजन पौधे वायु मण्डल एवं जल से ग्रहण करते हैं तथा शेष 13 पोषक तत्व जैसे नत्रजन, फाॅस्फोरस, पोटाश, कैल्श्यिम, मैग्नीशियम एवं सल्फर तथा सूक्ष्म तत्व-जिंक, आयरन, काॅपर, मैंग्नीज, बोरान, मालीब्डेनम एवं क्लोरीन पौधे भूमि से ग्रहण करते हैं ।
असंतुलित रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा में प्रमुख पोषक तत्वों नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश के साथ-साथ द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्व तथा सल्फर, जिंक, आयरन, बोराॅन, काॅपर तथा मैंग्नीज की कमी होने लगी है तथा भूगर्भ जल नीचे जाने लगा जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में ठहराव परिलक्षित हो रहा है। वर्तमान में मृदा स्वास्थ/उर्वरता की स्थिति निम्नवत् है –
1.जीवांश कार्बन
स्वस्थ उर्वर भूमि के लिए मृदा में 0.8 प्रतिशत जीवांश कार्बन होनी चाहिए जब कि प्रदेश की अधिकांश भूमि विशेषरूप् से धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में जीवांश कार्बन की मात्रा 0.2-0.3 प्रतिशत रह गई है अर्थात् मृदा में नत्रजन उपलब्धता की स्थिति चिन्ताजनक हो गई है ।
2. उपलब्ध फास्फोरस
प्रदेश के लगभग 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फास्फोरस अतिन्यून तथा न्यून स्तर पर आ गया है अर्थात् मृदा में फास्फोरस आवश्यकता के अनुरूप नहीं डाला जा रहा है ।
3. उपलब्ध पोटाश
यद्यपि पोटाश की स्थिति अपेक्षाकृत संतोषजनक है तथापि संस्तुति के आधार पर पोटाश के निरन्तर उपयोग की आवश्यकता है ।
4. जिंक तथा सल्फर
पश्चिम मैदानी क्षेत्र में जिंक तथा सल्फर की विशेष कमी है । इसके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में इनकी उपलब्धता सीमान्त श्रेणी में है । इन दोनों तत्वों का किसानों को उपयोग प्रारंभ कर देना चाहिए ।
5.आयरन
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पर्याप्त है, इसके अतिरिक्त प्रदेश के सभी क्षेत्रों में आयरन की उपलब्धता सीमान्त श्रेणी के अन्तर्गत है ।
6.मैंगनीज
प्रदेश के भावर एवं तराई क्षेत्र, पश्चिमी मैदानी क्षेत्र, एवं मध्यम पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में मैंगनीज की उपलब्धता सीमान्त श्रेणी के अन्र्तगत है ।
7. कापर
कापर की उपलब्धता प्रदेश के भावर एवं तराई क्षेत्र, मध्यम पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में दक्षिण मैदानी क्षेत्र में सीमान्त श्रेणी में है ।अतः मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर मुख्य पोषक तत्वों के साथ-साथ द्वितीयक तथा सूक्ष्म तत्वों के प्रयोग किये जाने की प्रबल आवश्यकता है ।
प्रदेश में मृदा स्वास्थ्य गिरावट के निम्नलिखित मुख्य कारण हैं:
- रासायनिक उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग ।
- एक ही प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग एवं भूमि से समस्त पोषक तत्वों का दोहन ।
- कार्बनिक खादों का अत्यन्त कम या नही के बराबर प्रयोग ।
- कम्बाइन तथा हार्वेस्टर से फसलों की कटाई के उपरान्त फसलों की ठूंठ को जला दिया जाना ।
- फसल चक्र में ढैंचा, सनई की खेती एवं हरी खाद के प्रयोग पर ध्यान न देना ।
- फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश न किया जाना ।
- बायो फर्टिलाइजर के उपयोग के प्रति जागरूकता की कमी होना ।
- नमी संरक्षण के प्रति कृषकों के जागरूक न होने के कारण प्रत्येक खेत की मेड़ बन्दी न होने से सतह की उपजाऊ मिट्टी बहकर दूर चली जाती है ।
मृदा परीक्षण
यदि भूमि को सुधारना है तथा कम लागत में उत्पादन प्राप्त करना है तो यह आवश्यक है कि किसान भाई अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य करायें । इससे किसानों को जानकारी होगी कि किस उर्वरक की कितनी मात्रा किसानों को अपने खेत में उपयोग करनी चाहिए तथा न केवल मिट्टी स्वस्थ बनी रहेगी बल्कि उत्पादन लागत में कमी के साथ-साथ प्रजाति की अनुवांशिक क्षमता के अनुरूप गुणवत्ता युक्त उत्पादन तथा उत्पादकता भी प्राप्त होगी ।
वर्तमान में प्रदेश के समस्त जनपदों में मुख्य पोषक तत्व नत्रजन, फास्फेट तथा पोटाश विश्लेषण हेतु स्थिर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं कार्य कर रही है तथा द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का विश्लेषण मण्डलीय प्रयोगशालाओं पर किया जा रहा है इसके अतिरिक्त दूरस्थ अंचलों के मृदा परीक्षण हेतु सचल मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालायें मिट्टी परीक्षण कार्य कर रही हैं । खेत से मृदा नमूना एकत्र करने का सही समय: प्रत्येक फसल की बुआई/रोपाई के पूर्व सूखे खेत से मृदा नमूना एकत्रित किया जाना चाहिए ।
मृदा नमूना लेने की विधि
- जिस खेत से मृदा नमूना एकत्र करना हा उसमें आठ से दस स्थानों पर 6 इंच ग 4 इंच ग 6 इंच आकार के गढ्ढे बनायें ।
- खुर्पी से उस गढ्ढे की दीवार से लगभग 2.5 से.मी. पर्त ऊपर से नीचे तक की मिट्टी लें ।
- खेत के विभिन्न गढ्ढों से प्राप्त मिट्टी को साफ कपड़े या कागज या बर्तन में डालकर अच्छी तरह मिला लें अब मिट्टी का ढेर बना लें तथा उसके चार भाग कर लें आमने-सामने के दो भाग फेंक दें एवं दो भागों को फिर अच्छी तरह मिलायें पुनः ढेर बनाकर चार भाग करके उक्त प्रक्रिया को तब तक करें जब मिट्टी आधा किलो रह जाये । अब उसे साफ सफेद कपड़े की थैली में भर दें ।
- अब दो लेबिल लें उन पर कृषक का नाम ग्राम, न्याय पंचायत, विकास खण्ड एवं तहसील का नाम तथा खेत की पहचान/खसरा सं., क्षेत्रफल व ली जाने वाली फसल का नाम अवश्य लिख दें । एक लेबिल थैली के अन्दर एवं एक थैली के ऊपर बांध दें । ताकि उसी के अनुसार उर्वरकों की संस्तुति दी जा सके ।
- यदि मिट्टी गीली हो तो उसे छाया में सुखा कर थैली में भरना चाहिए ।
एकत्रित मृदा नमूनों को यथाशीध्र प्रयोगशाला में विश्लेषण हेतु भेज देना चाहिए । प्रयोगशाला से जांच के परिणाम एवं उर्वरक संस्तुतियों आवश्यक सुझाव एवं संस्तुतियां प्राप्त कर लें । - समस्त किसान जनपद में मृदा नमूना अभियान के अन्तर्गत मृदा परीक्षण कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें । .
मृदा नमूना लेते समय ध्यान देने योग्य बातें
सही ढंग से मृदा नमूना न लेने पर जांच परिणाम उस खेत की उर्वरता का सही सूचक नहीं हा सकता । मृदा नमूना लेते समय निम्नलिखित सुझाावों का ध्यान रखें:-
- खेत को मिट्टी की बनावट, ढाल, और उत्पादकता के आधार पर बांट लें ।
- पुरानी मेंडे़ं, कम्पोस्ट के गढ्ढ़े तथा खाद डाले गये स्थान से मृदा नमूना न लेें ।
- पेड़ के पास, सड़क के किनारे व नाली के पास से मृदा नमूना नहीं लेना चाहिए ।
- मिट्टी की किस्म भिन्न हो या फसल में कोई रोग हो तो मृदा नमूना अलग-अलग एकत्र करना चाहिए ।
- खड़ी फसल से मृदा नमूना नहीं लेना चाहिए ।
- मृदा नमूनों की थैलियों को खाद के बोरों में न भरें न ही उन्हें बोरों के सम्पर्क में आने दें ।
- फसल कटने के बाद मिट्टी का नमूना अतिशीघ्र लेने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि अगली फसल की बुवाई के समय पर परीक्षण परिणाम प्राप्त हो सकें ।
मृदा परीक्षण शुल्क
- प्रयोगशाला को उपलब्ध कराये जाने वाले मृदा नमूनों में एन.पी.के. (प्रमुख पोषक तत्व) के विश्लेषण हेतु रू0 7.00 प्रति नमूना ।
- सूक्ष्म (जिंक, आयरन, काॅपर, मैंगनीज) व द्वितीयक पोषक तत्व (सल्फर) के लिए रू0 30.00 प्रति नमूना ।
- सचल प्रयोगशाला पर उपलब्ध कराये जाने वाले मृदा नमूनों में एन0पी0के0 (प्रमुख पोषक तत्व) के विश्लेषण हेतु रूपया 10.00 प्रति नमूना ।
- यदि कोई सीमान्त कृषक अपने खेत का मृदा नमूना सीधे स्थिर प्रयोगशाला में विश्लेषण हेतु लाता है तो उसका विश्लेषण निःशुल्क करने का प्रावधान है परन्तु यह सुविधा वार्षिक लक्ष्य के 10 प्रतिशत तक ही सीमित है ।
मृदा परीक्षण से लाभ
- मिट्टी की जांच के आधार पर विभिन्न फसलों में प्रमुख पोषक तत्वो का संतुलित रासायनिक एवं जैविक खादों के रूप में प्रयोग करके उत्पापकता में वृद्धि कर सकेंगे ।
- मृदा नमूनों में सूक्ष्म पोषक तत्वों का विश्लेषण कर कमी की दशा में कृषकों को सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली खादों की संस्तुतियां उपलब्ध कराई जायेंगी, जिसका प्रयोग कर किसान भाई उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ मृदा में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता को संतुलित बनाने में सक्षम हो सकेंगे ।
- मृदा विश्लेषण परिणामों के आधार पर टिकाऊ खेती के लिए एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्धन की कार्यवाही में सफलता मिलेगी ।
- ऊसर भूमियों के सुधार हेतु ऊसर मृदा नमूनों का विश्लेषण कर जिप्सम की मात्रा का निर्धारण कर कृषकों को आवश्यक संस्तुतियां उपलब्ध कराई जाती है जिससे ऊसर भूमि को कृषि योग्य सामान्य भूमि में बदलने के लिए सहायता मिलती है ।
- मिट्टी विश्लेषण परिणामों के आधार पर संस्तुत रासायनिक एवं जैविक खादों के प्रयोग से मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है जो भूमि को जीवित रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है ।
- मिट्टी परीक्षण कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने हेतु मृदा विश्लेषण परिणामों के आधार पर किसानों के खेत पर प्रदर्शन के आयोजन से संतुलित उर्वरकों एवं जैविक खादों के प्रयोग करने की जागरूकता उत्पन्न होगी एवं मृदा परीक्षण कार्यक्रम का किसानों में प्रचार- प्रसार होगा ।
स्रोत-
- कृषि विभाग,उत्तरप्रदेश