मूंगफली के अधिक उत्पादन हेतु सुझाव

भारत में मूंगफली एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है । वर्ष 2010-11 में भारतवर्ष में मूंगफली का क्षेत्रफल एवं उत्पादन क्रमशः 58.6 लाख हेक्टेयर तथा 82.6 लाख टन था, जबकि उत्पादकता मात्र 1411 किग्रा/हेक्टेयर थी । मूंगफली उत्पादक राज्यों में गुजरात, तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान का मुख्य स्थान है । मूंगफली सभी वर्गों के लोगों द्वारा पसंद की जाती है तथा संतुलित आहार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसका भूसा पालतू जानवरों के लिए स्वादिष्ट एवं पोषक तत्वों से भरपूर चारे का स्त्रोत है ।मूंगफली की खली जानवरों को खिलाने और जैविक खाद के रूप में काम में ली जाती है । वर्तमान में मूंगफली से विभिन्न प्रकार के परिष्कृत खाद्य पदार्थ बनाये जाने लगे हैं जिनकी बाजार में बहुत माँग  है । मूंगफली का छिलका जलाने के काम में या जैविक खाद बनाने के काम में भी लिया जाता है ।

 

अधिक उत्पादन हेतु सुझाव-

१.गीष्मकाल में खेत की गहरी जुताई करे|

2. प्रति हेक्टेयर 20:80:20 कि. ग्रा नत्रजन स्फुर एवं पोटाश का प्रयोग कर, साथ में 10 टन गोबर की खाद का प्रयोग करें।

३. बीजोपचार के रूप में राईजोबियम कल्चर, पी.एस.एम. कल्चर एवं फफुंदनाशी (2 ग्राम थाईरम $ 1 ग्राम कार्बनडेझिम प्रति किलो बीज) या ट्रायकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलो बीज का प्रयोग करें।

४. पी.एस.एम. के प्रयोग से स्फुर की मात्रा को आधी (40 कि.ग्रा./हैक्टेयर) किया जा सकता है।

५. अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु 500 कि.ग्रा/हैक्टेयर जिप्सम एवं सूक्ष्ज्ञम तत्वों की आपूर्ति हेतु लौह, जस्ता एवं बोरान की क्रमशः 10 ,5 एवं 1 किग्रा. मात्रा/हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

६. खरीफ मे मूगफली में खाद की समुचित मात्रा का प्रयोेग करने पर रबी में गेंहू की फसल में 30 प्रतिषत तक नत्रजन बचाया जा सकता है।

७. (अ.) मूंगफली एवं अरहर की अंतरवर्तीय फसल (3:1) के अनुपात मे लेना लाभकारी सिद्ध हुआ है।
(ब.) मूंगफली एवं मक्का की 3:1 अनुपात में अंतरवर्ती फसल लेना लाभकारी सिद्ध हुआ है।

८. रासायनिक खरपतावार नियंत्रण हेतु मेटलाक्लोर (सक्रिय तत्व) 1 किलेा/हैक्टेयर का प्रयोग, अंकुरण पूर्व करने से, एवं तत्पष्चात 2 बार निंदाई गुडाई करने से, खरपतवारों का कारगर रूप से नियंत्रण किया जा सकता है, इसी प्रकार इमेजाथापायर 1 ली./है. (बोनी के बाद 20-25 दिन) का प्रयोग भी लाभकारी सिद्ध हुआ है।

 

 

Source-

  • Central Institute of Agriculture Engineering
  • मूंगफली अनुसंधान निदेशालय
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