मिर्ची की कीट व्याधियाँ

मिर्ची के कीट

मिर्ची की कीट इस प्रकार है:-

१.सफेद मक्खी

इस कीट के शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं । कीट पर्ण कुंचन रोग को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाते हैं ।

 

२.थ्रिप्स

यह छोटे – छोटे कीड़े पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं । इसका आक्रमण प्रायः रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद शुरू हो जाता है । फूल लगने के समय प्रकोप बहुत भयंकर हो जाता है । पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं तथा मुरझाकर मुड़ जाती हैं । थ्रिप्स द्वारा क्षतिग्रस्त पौधों को देखने से मोजेक रोग का भ्रम होता है । पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । उपज बहुत कम हो जाती है ।

 

३.माहू

यह कीट पत्तियों एवं पौधों के अन्य कोमल भागों से रस चूसकर पत्तियों एवं कोमल भागों पर मधुरस स्त्राय करते हैं, जिससे सूटी मोल्ड विकसित हो जाती है । परिणाम स्वरूप फल काले पड़ जाते हैं । यह कीट मोजेक रोग का प्रसार करता है ।

नियंत्रण
  • कीट की प्रारंभिक अवस्था में नीमतेल 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  • डायमिथिएट की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  • कीट के अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में एसीफेट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में इमीडाक्लोप्रिड 18.5 एस.एल. की 5 मि.ली. मात्रा 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  • कीट के अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में एसीफेट 1 ग्रा. प्रति लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 18.5 एस.एल. की 5 मि.ली. मात्रा 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।

 

४.मकड़ी

यह छोटे – छोटे कीट होते हैं, जो पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं । परिणाम स्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ कर नीचे की ओर मुड़ जाती है ।

नियंत्रण
  •  इस कीट की प्रारंभिक अवस्था में नीमतेल 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  •  डायमिथिएट की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  •  कीट के अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में एसीफेट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में इमीडाक्लोप्रिड 18.5 एस.एल. की 5 मि.ली. मात्रा 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
  •   फेनप्रोपाथ्रिन 0.5 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।

 

५.फल छेदक

इस कीट की इल्ली फलों में छिद्र करके नुकसान पहुंचाती है । यह फलों में गोल छिद्र बना कर उसके अन्दर के भाग को खाती हैं । परिणाम स्वरूप फल झड़ जाते हैं ।

नियंत्रण

इस कीट की प्रारंभिक अवस्था में नीमतेल 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।

स्पाइनोसेड 0.4 मि.ली. या इण्डोक्साकार्ब 1 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।

 

६.कटुआ इल्ली

इस कीट की इल्ली रात्रि के समय पौधों को आकार से काट देती हैं । दिन के समय यह इल्लीयाँ मिट्टी की दरारों के नीचे छुप जाती हैं

 

७.सफेद लट

पहली वर्षा के समय इस कीट की मादा भूमि में अण्डे देती हैं जिनसे ग्रब निकलते हैं जो कि पौधों की जड़ों को खाते हैं । बड़े होने पर कीट पौधों की पत्तियों को खाते हैं ।

नियंत्रण

नीम की खली 1000 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी करते समय दें । क्लोरोपायरीफाॅस 0.1 प्रतिशत का टोआ दें ।

 

एकीकृत प्रबन्धन

 

१.उकटा रोग

यह रोग फ्यूजेरियम आॅक्सीस्पोरम उप जाति लाइकोपर्सिकी नामक फफूंद से होता है । इस रोग में पत्तियाँ नीचे की ओर झुक जाती हैं और पीली पड़कर सूख जाती हैं । अन्त में पूरा पौधा मर जाता है ।

 

२.फल गलन

यह रोग फाइटोप्थोरा केपसिकी नाम फफूंद से होता है । इस रोग में फलों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं एवं फल सड़ जाते हैं ।

 

३.आर्द्र गलन

यह रोग पीथियम एफिनिडेडडरमेट्स फाइटोप्थोरा स्पी नाम फफूंद से होता है । इस रोग में भूमि की सतह से पौधा गलकर नीचे गिर जाता है । नर्सरी में पौधों की सघनता, अधिक नमी, भारी मिट्टी, जल निकासी का न होना, उच्च तापमान रोग फैलाते हैं ।

नियंत्रण

10 दिन के अन्तर पर मेंकोजब या मेटालेक्सिल (0.25 प्रतिशत ) का छिड़काव करें ।

 

४.चूर्णिल आसिता

यह रोग ( एरीसाइफी साइकोरेसिएरम ) नामक फफूंद से होता है । रोग के लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर सफेद चूर्णी धब्बे  पाउडर के रूप् में दिखाई देते हैं ।

प्रबंधन

घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम या कैराथन 1 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें ।

 

५.पत्तियाँ मुड़ना

यह एक विषाणु जनित रोग है । यह तम्बाकू पण। कुंचन विषाणु से होता है । इस रोग में पत्तियाँ छोटी होकर मुड़ जाती हैं । पूरा पौधा बोना हो जाता है । यह रोग सफेद मक्खी के द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है ।

 

६.जीवाणु पत्ती धब्बा

इस रोग में नई पत्तियों पर हल्के पीले हरे एवं पुरानी पत्तियों पर गहरे जल सोक्ता धब्बे विकसित हो जाते हैं । अधिक धब्बे बनने पर पत्तियाँ पीली हो कर गिर जाती हैं ।

प्रबंधन:
  •  यह एक बीज एवं मिट्टी जनित रोग है । इसके लिए बीजोपचार एवं फसल चक्र अपनाना अतिआवश्यक है ।
  •  पौध रोपण के पूर्व बोर्डो मिश्रण 1 प्रतिशत या कापर आक्सीक्लोराइड  3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर मृदा उपचार करें ।
  • ट्रायकोडर्मा 4 ग्राम एवं मेटालेक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें ।
  • रोग के प्रकोप की अवस्था में स्ट्रेप्टोमाइसिन 2 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें

 

 

स्रोत-

  • जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर
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