पौधे का परिचय
श्रेणी (Category) : औषधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : वृक्ष
वैज्ञानिक नाम : मधुका इंडिका
सामान्य नाम : महुआ
पौधे की जानकारी
उपयोग
1. छाल का उपयोग कुष्ठ रोग का इलाज करने और घावों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
2. फूलों का उपयोग खांसी, मतली और हद्य से संबधित रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
3.फूलों का उपयोग गैर शराबी उत्पाद जैसे जेम, जेली, शरबत, अचार, बेकरी और मिठाई से संबंधित खाद्य पदार्थ बनाने में किया जाता है।
4.फलों का उपयोग रक्त संबंधी रोगो में किया जाता है।
5. इसका उपयोग पारंपरिक शराब बनाने में किया जाता है।
6.महुआ तेल का उपयोग साबुन निर्माण में किया जाता है।
उपयोगी भाग
संपूर्ण वृक्ष
रासायिनक घटक
फूल चीनी, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के समृध्द स्त्रोत होते है।
उत्पति और वितरण
यह मूल रूप से भारत का वृक्ष है और शुष्क क्षेत्रो के लिए अनुकूल है। यह प्रजाति संपूर्ण भारत, श्रीलंका और संभवत: म्यमार (पहले वर्मा) में पाई जाती है। भारत में यह गर्म भागों उष्णकटिबंधीय हिमालय और पश्चिमी घाट में पाया जाता है।
वितरण
महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है। यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है।
वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत
कुल
सपोटेसी
आर्डर
एरीकेलीस
प्रजातियां
एम. लांगीफोलिया
वितरण
महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है। यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है।
आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप
स्वरूप
यह एक विशाल और मोटी छाल वाला पर्णपाती वृक्ष है।
पेड़ की छाल भूरे रंग की और लंबवत् ददारों के साथ होती है।
पत्तिंया
पत्तियाँ शाखाओ के शिरे में समूहों के रुप में, अण्डाकार और आयताकार आकार की होती है।
युवा पत्तियाँ रोमिल होती है।
अधिकांश पत्तियाँ फरवरी से अप्रैल माह में गिर जाती है।
फूल
इस वृक्ष में फूल 10 वर्ष की आयु से शुरू होते है और लगभग 100 वर्ष तक लगातार आते रहते है।
फूल घने, अधिक मात्रा में आकार में, छोटे और पीले सफेद रंग के होते है।
फूलों से कस्तूरी जैसी सुगंध आती है।
फूल मार्च – अप्रैल माह में आते है।
फल
फल अंडाकार और 1-2 इंच लंबे होते है ।
फल प्रारंभ मे हरे और परिपक्व होने पर पीले दिखाई देते है।
फलों का बाहरी आवरण भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
फल मई से अगस्त माह में आते है।
परिपक्व ऊँचाई
यह वृक्ष लगभग 20 मी. तक की ऊँचाई तक बढ़ता हैं।
बुवाई का समय
जलवायु
इसे 1200 मी. तक की ऊँचाई पर उगाया जा सकता है।
इसे 20 से 460C तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
जहाँ 800-1800 मि.मी. तक की वर्षा होती है वहाँ यह फसल अच्छी होती है।
भूमि
पौधे को गहरी चिकनी बुलई या रेतीली दोमट मिट्टी के साथ उगाया जा सकता है।
इसके अलावा इसे पथरीली, मटियार और चूनेदार मिट्टी के साथ भी उगाया जा सकता
मौसम के महीना
बुबाई के लिए उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त का होता है।
बुवाई-विधि
भूमि की तैयारी
रोपाई के पहले खेत के खरपतवार को काटकर और जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
गर्मियों में 9 X 9 मी. अथवा 10 X10 मी. की दूरी पर गड्ढ़े खोदे जाते है।
लेटराइट मिट्टी में गड्ढ़ों का आकार 300 X 300 X 300 मि.मी. रखना रोपाई के लिए अच्छा होता है।
हालांकि गड्ढ़ों का आकार प्रकृति और मिट्टी की मोटाई पर निर्भर करता है।
फसल पद्धति विवरण
वाणिज्यिक प्रयोजनो के लिए बीजों द्दारा इसकी खेती की जाती है।
सीधे वुवाई विधि में 4 से 6 बीजों को प्रति गड्ढ़े की दर से बोया जाता है और 15 से 25 मिमी मिट्टी से ढ़क दिया जाता है।
बुवाई के पहले गड्ढ़ों को मिट्टी, रेत और खाद के मिश्रण को 3:2:1 में मिलाकर भरना चाहिए।
बुबाई के तुरंत बाद गड्ढ़ों को पानी देना चाहिए।
पौधशाला प्रंबधन
नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation) :
नर्सरी की मिट्टी रेतीली होना चाहिए यद्पि महुआ को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है।
इकट्ठे किये गये बीजों को शीघ्र ही बोया जाता है और नर्सरी में क्यारियों को 20 मि.मी. मोटाई की मिट्टी से ढ़क दिया जाता है।
बुवाई के बाद क्यारियों की सिंचाई की जाती है।
अंकुरण 10 दिनों में आ जाता है।
बीजों को पालिथीन बैग या टोकरी में बोया जा सकता है।
कीट प्रबंधन
१.इनदेरबेला सप्प . (बार्क ईटिंग केटरपिलरस)
क्षति पहुंचना
यह महुआ का सबसे गंभीर कीट होता है।
लार्वा तने की छाल को खा जाती है जिसके परिणाम स्वरूप पेड़ कमजोर और अनुत्पादक हो जाता है।
यह कीट फरवरी से मार्च तक बहुत स्रकिय होता है।
नियंत्रण
कीट को नियंत्रित करने के लिए पेड के तने से जाले हटा लेना चाहिए और गड्ढ़ो में कपास को 0.06% डिचालार्वोस के घोल के साथ भिगोकर रखना चाहिए।
मोनोक्रोटोफांस (0.05%) का घोल भी कीट नियंत्रण के लिए प्रभावी होता है।
तने के गड्ढ़ो को मिट्टी से भर देना चाहिए।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद
10 कि.ग्रा. FYM , 100 ग्राम N2, 50 ग्राम P2O2 और K2O की खुराक एक वर्ष पुराने पौधे को दी जाती है।
10 वर्षो तक इसी खुराक को बढ़ते हुए अनुपात में प्रत्येक वर्ष देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई बारिश की स्थिति को देखकर करनी चाहिए।
सिंचाई बेसिन प्रणाली से करना चाहिए ताकि युवा वृक्षो को जल प्राप्त हो सके और सिंचाई में एक समान वितरण बना रहे।
सिंचाई पत्तियों के झड़ने और फूलों (मार्च-अप्रैल) के आने के दौरान करना चाहिए।
फलों के गुच्छे आने के बाद उन्हे बनाए रखने और विकास के लिए सिंचाई महत्वपूर्ण होती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन
वृक्षो को खरपतवार मुक्त रखने के लिए हल्की निंदाई की आवश्यकता होती है।
कटाई
तुडाई, फसल कटाई का समय
फल मई के तीसरे सप्ताह से लेकर जून के तीसरे सप्ताह तक तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है।
पके फलों से बीजों को लिया जाता है।
बीजों को एक सप्ताह के भीतर फलो से निकाल लेना चाहिए, अन्यथा वे अंकुरित हो जाते है वे तेल के लिए अनुपयुक्त होते है।
सूखी गिरी का उपयोग तेल प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
सुखाना
गिरी को सुखाया जाता है।
सुखाई गई गिरी का उपयोग तेल प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
पैकिंग (Packing)
गिरी को जूट के थैलों में पैक किया जाता है।
भडांरण (Storage)
गिरी और बीजों को गोदाम में भंडारित कर रखा जा सकता है।
दोनो को अलग – अलग भंडारित करना चाहिए।
परिवहन
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
महुआ जाम
महुआ तेल
Source-
- jnkvv-aromedicinalplants.in