मसूर, रबी में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसल है|मसूर की संरचना ही कुछ ऐसी है कि ये पानी का उपयोग कम से कम करती है। इसकी पूरी ब्राहयाकृति छोटी सी झाड़ी जैसी है , तने पर सूक्ष्म रोयें पाये जाते है एवं पत्तियां भी बारीक व लंबी होती है, यही कारण है कि अन्य दलहनी फसलों की अपेक्षा मसूर की खेती को प्रति इकाई उत्पादन में पानी की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
भूमि
दोमट से भारी भूमि इसकी खेती के लिए अधिक उपयुक्त है। धान के बाद खाली खेतों में मसूर विशेषकर बोयी जाती है।
भूमि की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयां देशी हल से करके पाटा लगाना चाहिए।
संस्तुत प्रजातियां
आई.पी.एल-81, नरेन्द्र मसूर-1, डी.पी.एल.-62, पन्त मसूर-5, पन्त मसूर-4, डी.पी.एल.-15, एल.-4076, पूसा वैभव, के.
-75(मालवीय विश्वनाथ), एच.यू.एल.-57, के.एल.एस.-218, आई.पी. एल-406, शेखर-3, शेखर-2
बुवाई का समय
अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक इसकी बुवाई करना उपयुक्त है। पन्तनगर जीरो टिल सीड ड्रिल द्वारा मसूर की बुवाई अधिक लाभप्रद है
बीज दर
समय से बुवाई हेतु 40-60 किग्रा. तथा पिछेती एवं उत्तेरा बुवाई के लिए 65-80 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त हैं।
बीजोपचार
10 किग्रा. बीज को मसूर के एक पैकेट 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बोना चाहिए। विशेषकर उन खेतों में जिनमें
पहले मसूर न बोई गयी हो। पी.एस.बी. कल्चर का अवश्य प्रयोग करें।
उर्वरक
सामान्य बुवाई में 20 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश तथा 20 किग्रा. गंधक प्रति हेक्टयर प्रयोग करें। उत्तेरा विधि से बुवाई के लिए 20 किग्रा. नत्रजन धान की कटाई के बाद टापडेसिंग करें तथा फास्फोरस 30 किग्रा. को दो बार फूल आने तथा फलियां बनते समय पर्णीय छिड़काव करें।
सिंचाई
एक सिंचाई फूल आने के पूर्व करनी चाहिए। धान के खेतों में बोई गई मसूर की फसल में यदि वर्षा न हो तो एक सिंचाई फली बनने के समय करनी चाहिए
खरपतवार नियंत्रण
बुवाई के 20-25 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
(1) एलाक्लोर 3-4 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के तुरन्त बाद (तीन दिन के अंदर) छिड़काव करें।
(2) वासालिन 1.65-2.2 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के पहले छिड़काव करें।
(3) पेंडीमिथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद छिड़काव करें।
फसल सुरक्षा
बीज शोधन
मसूर की फसल को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज को थीरम 2.5 ग्राम व 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा से
प्रति किग्रा. बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
मसूर के प्रमुख रोग
(1) उकठा रोग, (2) गेरूई रोग, (3) ग्रीवा गलन, (4) मूल विगलन।
अपनाई जाने वाल प्रमुख क्रियाएं
- मसूर के प्रमुख रोग उकठा तथा गेरूई हैं। अतः इन रोगों की प्रतिरोधी प्रजातियों के प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए।
- बीज एवं मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा पाउडर 5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज अथवा थीरम या कार्बेन्डाजिम 1ः1, 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करने के उपरान्त बुवाई करनी चाहिए।
- मृदा जनित रोगों जैसे ग्रीवा गलन, मूल विगलन आदि से बचाव के लिए भूमि को उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए ट्राइकोडर्मा पाउडर 5.0 किग्रा., प्रति हेक्टेयर 2.5 कु. वर्मीकम्पोस्ट अथवा गोबर की खाद में मिलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
- जिस खेत में उकठा या अन्य मृदा जनित रोग जैसे ग्रीवा गलन, मूल विगलन आदि का प्रकोप अधिक होता है उसमें 3-4 वर्ष तक मसूर व चने की फसल न उगायें।
उकठा रोग के लिए सावधानियां
1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
1. रोग रोधी प्रजातियों का प्रयोग करें।
2. सूत्रकृमियों को कम करने करने के लिए गर्मी की जुताई करें।
3. ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम/किग्रा. तथा स्यूडोमोनास फ्लोरीसेंस 2 ग्राम/किग्रा. की दर से बीज को उपचारित करें या थीरम 2 ग्राम व कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/किग्रा. से बीज उपचारित करें।
4. उर्द, मूंग के साथ तिल व अरहर के साथ ज्वार, बाजरा अथवा मक्का की समान्तर कृषि विधियाॅ अपनाये।
5. सूखे की अवस्था न आने दें। फसल पूर्ण पकने पर कटाई करें। मड़ाई के पश्चात् अन्न को भण्डारण में कीटों से सुरक्षा के लिए अल्यूमिनियम फास्फाइड की दो गोली प्रति मैट्रिक टन की दर से प्रयोग में लायें।
मसूर के कीट
१.माहू कीट
यह कीट समूह में पत्तियों तथा पौधों के अन्त कोमल भागों से रस चूसकर क्षति पहुचाता
है।
उपचार
इसकी रोकथाम हेतु निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से
छिड़काव करें।
1. मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी. 1.0 लीटर।
2. क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.0 लीटर।
२.फलीछेदक कीट की पहचान
फलियों में छेद करके दानों को नष्ट करता है।
उपचार
फलीछेदक से 5 प्रतिशत प्रकोपित फलियां दिखाई देते ही बैसीलस थूरिजेंसिस 1 किग्रा. या फेनवेलरेट 750 मिली. या मोनोक्रोटाफास
कटाई तथा भण्डारण
फसल पूर्ण पकने पर कटाई करें। मड़ाई के पश्चात् अन्न को भण्डारण में कीटों से सुरक्षा के लिए अल्यूमिनियम फास्फाइड की दो गोली प्रति मैट्रिक टन की दर से प्रयोग में लायें।
1. क्षेत्र विशेष हेतु संस्तुत प्रजाति के प्रमाणित बीज की बुवाई समय से करें।
2. बीज शोधन अवश्य करें।
3. फास्फोरस एवं गन्धक हेतु सिंगिल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें।
4. बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर दाने के आकार एवं बुवाई के समय को ध्यान में रखते हुए निर्धारित करें।
5. रोग का नियंत्रण समय से करें।
6. अंकुरित बीज को धान की कटाई से 15 दिन पूर्व बुवाई करने पर उपज में 30 प्रतिशत वृद्धि सम्भव है।
स्रोत-
- कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश