मशरूम की खेती

मशरूम मेहनत  की खेती है। और जैविक तरीके की खेती है। इसके  लिए देसी खाद और देसी भूसा ले सकते हैं। ये आसानी से  बिकती भी है जिसके  लिए  कहें  की मार्किट की  कोई  प्रॉब्लम नहीं होती। मशरूम की खेती सर्दी में होती है लेकिन आप  तापमान कंट्रोल करके भी पैदा  कर सकते हैं।

मशरूम की  किस्में :

भारत  में  सिर्फ  दो ही  किस्में  कामयाब  है-  बटन और ढींगरी मशरूम

मशरूम की खेती का समय :

आखिर सितम्बर से लेकर अप्रैल के पहले हफ्ते तक ऊगा सकते हैं ( लेकिन अगर आप एयर कंडीशन कमरा रखते हैं या तापमान काम है तो एक महीना पहले और एक महीना बाद तक भी ऊगा सकते हैं। ) तापमान चौदह से पचीस डिग्री होना चाहिए। और

मशरूम कम्पोस्ट तैयार करना :

कम्पोस्ट  बनने में  पचीस दिन  लगते हैं। और आठ बार कम्पोस्ट को पलटा जाता है।

1)  गेहूं का भूसा (पुआल ) दस क्विंटल  या फिर धान का भूसा (पुआल ) बारह क्विंटल

2) अमोनियम सल्फेट या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट तीस किलो।

3) सुपर फास्फेट दस किलो

4) पोटाश दस किलो

5)   यूरिया दस  किलो

6) जिप्सम एक क्विंटल

7) गेहूं का चोकर एक क्विंटल

8) फुराडॉन पांच सो ग्राम।

9) बी एच सी पांच सो ग्राम।

10)  बिनोला खली 60 किलो

कम्पोस्ट  बनने से पहले पेंतालिस घंटे पहले  भूसे की पतली तेह फर्श पर बिछा लें। और अच्छी तरह से उलट पलट करें। फिर पानी  के  फवारे से अच्छी  तरह तर कर दें। इस अवस्था में भूसे में नमि की पत्र पनझतर प्रतिशत होनी चाहिए। भूसे की लम्बाई तीन इंच हो तो बढ़िया है।  भूसा गीला नहीं होना चाहिए। फर्श इस तरह का हो की भूोसे पर से उतरा पानी दोबारा  ढेर पर फेंका जा सके। लगातार दो दिन तक भूसे पर पानी गिराए फिर तोड़ के देखें अंदर से भूसा सूखा न हो अगर सूखा है तो फिरसे पानी गिराए।

भिगोने के बाद इसमें ऊपर दी गई सामग्री डालें|

ऊपर दी गई सभी चीजों  को अच्छी तरह से मिक्स  कर  लें। और  फिर  डेढ़ मीटर चौड़ा ढाई मीटर उच्च और जितना चाहे लम्बा ढेर बनायें। नमी बनाए  रखने  के लिए  एक या दो बार बहरी सतह पर पानी छिड़कें।

  • फिर  पहली  पलटी 3 दिन बाद  करें।
  • 6  दिन  बाद  दूसरी पलटी  दें
  • फिर 9 दिन तीसरी पलटी करें और जिप्सम और फुरा डॉन  मिला दें।
  • 12 दिन  फिर  पलटी दें
  • पांचवी पलटी  का समय 15 दिन आता है। और  बी एच सी  मिला दें।
  • छठी  पलटी  18  दिन होगी।
  • सातवीं पलटी 21 दिन होगी
  • और  24  दिन कम्पोस्ट बिजाई के लिए तैयार हो जाता है।

(याद  रहे  हर पलटी  को एक बार ढेर और  एक बार लाइन बनना है और ऊपरी सतह अंदर और अंदर  की सतह  बहार करनी होती है )फिर कम्पोस्ट को बेड्स पर बिछा दें और  एक क्विंटल कम्पोस्ट में 700 gram  से 1 kilo स्पान (मशरुम का बीज ) अच्छी तरह से मिलाया जाता है। बिजाई की गई कम्पोस्ट को शेल्फ पर या पॉलीथिन बैग में हल्का दबा के भरें। शेल्फ में एक क्विंटल प्रति वर्ग मीटर और बैग में दस  से पंद्रह किलो एक बैग में कम्पोस्ट भरें। बिजाई के बाद इसे रद्दी अखबार से धक दें।

बिजाई के बाद दिन में दो बार हलके पनि का छिड़काव कर  लेना चाहिए।

छेह से सात दिन  बाद धागा नुमा मशरुम की फफूंदी दिखाई देने लगती है। जो के बारह से पंद्रह दिन में कम्पोस्ट की सतह को सफ़ेद कर देते हैं।

फैली हुई फफूंदी को आवरण मुर्दा से धक दिया जाता है।

आवरण मुर्दा  कैसे बनाए ?

सामग्री  दो साल पुरानी गोबर  और बगीचे की मिटटी तीन अनुपात एक को पक्के  फर्श  पर  रख  कर इसमें चार प्रतिशत फर्मलीन का घोल पानी  में  मिला  कर अच्छी  यरह  मिला  लें।  इसके  बाद  इसे तीन  से  चार  दिन  तक उलट पलट करते  रहें। और  पूर्ण रूप से  फर्मलीन गंध रहित करें। इसका  पी एच सात  दशमलव पांच होना चाहिए।  इसके बाद इसकी चार सेंटीमीटर  मोटी सतह  कम्पोस्ट पर  बिछा दें

आवरण मर्द बिछाने के बाद दो प्रतिशत फर्मलीन घोल का छिड़काव करें। आवरण मुर्दा के बाद  एक या दो बार पानी का छिड़काव करें। आवरण मर्दा बिछाने  के पंद्रह से अठारह दिन बाद मशरूम  निकलना स्टार्ट हो जाता  है। और पचास से साठ  दिन तक निरन्तर मशरूम निकलता है। मशरुम  को   दिन में  एक  या  दो बार  अंगुलिओं के सहारे ऐंठ  कर  निकल  लेना चाहिए।

तुड़वाई :

बटन मशरूम ,उतर भारत में बटम  मशरूम अच्छी रहती है। बतम मशरूम  काटने  के लिए  लम्बी दण्डी रखें  ता के जियादा देर  तक  रखी जाये। जियादा छोटी मशरूम न तोड़ें। ये  बहुत नाज़ुक चीज  है पैकिंग में और तोड़ते  समय धियान से रखें और  पैकिंग  छोटी रखें। इसकी पैकिंग  ऐसे  करें  की न  नमी  काम हो न  जियादा। छोटे छोटे  छेड़  होने  चाहिए। इस्पे जियादा  वज़न न  हो।  जिस  गाडी में जा  रहे हैं उस  गाड़ी में  जियादा  गर्मी न  हो। आप मशरूम को सुखा  कर  भी  बेच  सकते हैं।

पचीस बय  साठ  फुट   की झौंपड़ी में पचपन बाई चार फुट के सोलह सेल में अस्सी क्विंटल कम्पोस्ट डालने  पर। पंद्रह क्विंटल बटन मशरुम निकल जाती  है। जिसको एक सो बीस रूपए प्रति किलो के हिसब से  बेच सकते हैं। और  एक लाख अस्सी हज़ार की  कुल आमदनी होती है। जिसमे उगने  की  कुल  लगत पेंतालिस हज़ार रुपये  आती हैं। बाकी मुनाफा ही है।

 

Source-

  • modernkheti.com
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