मधुमक्खी पालन

प्रबन्धन तकनीक

मधुमक्खी प्रजाति

यांमधुवाटिका (एपियरी) स्थापित करने की अपेक्षाएंहमारे देश में वास्तविक मधुमक्खियों की कम से कम 3 प्रजातियां और डंकरहित मधुमक्खियों की 3 प्रजातियां हैं। इनकी अनेक उप-प्रजातियां औरजातियां भी हैं। पिछली सदी के छठे दशक में इस देश में लाई गई विदेशीमधुमक्खी, ऐपिस मेलीफेरा हमारे देश में भली प्रकार स्थािपत हो चुकी है। इन्हेंमिलाकर अब हमारे देश में मधुमक्खी की व्यापक किस्में उपलब्ध हैं, जिनकाउपयोग शहद उद्योग के विकास में किया जा सकता है। ये हैं: ऐपिस फ्लोरीया, छोटी मक्खी; ऐपिस सेराना इंडिका, सामान्य भारतीय शहद की मक्खी; ऐपिस डोर्साटा, बड़ी मक्खी; तथा ट्राइगोना इरिडिपेनिस, डंकविहीनमक्खी। इसके अतिरिक्त अनेक एकल मधुमक्खी प्रजातियां हैं, जैसे बाॅम्बस,सेरेटीना, हेलिक्टस, आदि। इनमें से ऐपिस सेराना इंडिका तथा ऐपिसमेलिफेरा को पाला जा सकता है।

 

मधुमक्खी पालन (मौन पालन) का व्यवसाय करने वाले मधुमक्खी पालक 5 छत्तों से मधुमक्खी पालन आरंभ करें, जिसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए इस उद्योग को लाभप्रद बनाया जाए। पांच छत्तों के साथ मधुमक्खी पालन आरंभ करने में लगभग   15,000 के निवेश की आवश्यकता होती है, जिसमें 12,000 अनावर्ती (नाॅन-रिकरिंग) व्यय भी सम्मिलित है। शहद तथा मधुमक्खी से जुड़े अन्य उत्पादों को बेचकर पहले ही वर्ष जो आमदनी प्राप्त होती है, उससेमधुमक्खी उद्योग स्थापित करने में व्यय की गई राशि वसूल हो जाती है।

मधुवाटिका (एपियरी) स्थापित करने की अपेक्षाए

घने पुष्प वाले पौधों से युक्त क्षेत्र उदाहरण के लिए वन, वन-क्षेत्र, कृषि फार्मतथा फल-बागान मधुमक्खी पालन के लिए आदर्श हैं।

1. मधुवाटिका की स्थापना

यह अनेक घटकों पर निर्भर है जैसे:वनस्पति: मधुवाटिका ऐसी जगह स्थापित की जाती हैं, जहाँ मधु देने वाले फूल भारी मात्रा में उपलब्ध हों। हमारे अधिकांश सदाबहार या अर्ध-सदाबहार वनों व रोपाई क्षेत्रों तथा सफेदा, शीशम, करंज आदि जैसे वृक्षों से युक्त खेतों; लीची, नींबू वर्गीय फलों, आम, आड़ू, आलूबुखारा, खुबानी, सेब के बागों तथा अन्य बागानों को मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों के रूप में चुना जा सकता है। जब फूल  बहुतायत में उपलब्ध होते हैं तो प्रति हेक्टेयर 4 काॅलोनियों की सिफारिश की जाती है। जल की उपलब्धता: मधुवाटिका के चारों ओर जल का उपलब्ध होना आवश्यक है। प्रत्येक छत्ते के लिए सर्दियों में प्रतिदिन लगभग 45 मि.ली. जल की आवश्यकता होती है, जबकि गर्मी के मौसम में प्रत्येक छत्ते के लिए प्रतिदिन 1000 मि.ली. जल की आवश्यकता होती है।

 

2.काॅलोनियों का दिशा-निर्धारण

पवन के आयाम और दिशा को ध्यान में रखते हुए दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और दक्षिण- पश्चिम मुखी काॅलोनियां सर्वश्रेष्ठ हैं। सेट-अप: मधुमक्खियों के छत्ते क्षैतिज स्टैंडों पर जमीन की सतह के अनुसार रखे जाते हैं और इनका पतला सिरा थोड़ा नीचे की ओर झुका होता है। स्टैंड के पायों के नीचे पानी रख देना चाहिए, ताकि चींटियां शहद के छत्ते तक न पहुंच सकें। दो मधुवाटिकाओं के बीच की दूरी 3-4 कि.मी. के बीच होनी चाहिए।

 

3.मधुमक्खी से संबंधित उपकरण

देशी और परंपरागत छत्तों सहित इनकी अनेक किस्में हैं जिसमें लट्ठों, मिट्टी के पात्रों, दीवारों के धंसे हुए स्थानों, टोकरियों और बक्सों के आवास सम्मिलित हैं, जो विभिन्न आकार और आकृति के हो सकते हैं। वर्तमान मधुमक्खी पालन विधि में छत्ते लकड़ी के फ्रेमों पर बनाए जाते हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाए- ले जाए जा सकते हैं। इससे मधुमक्खी की काॅलोनियों का प्रबंधन व उन्हें बाहर निकालना आसान होता है।तीन प्रकार के चल छत्ते वाले फ्रेम सामान्यतः उपयेाग में लाए जाते हैं; मानकीकृत आई एस आई संस्करण युक्त न्यूटन किस्म के, ज्योलिकोट गांव किस्म के तथा लैंग्सट्राॅथ किस्म के।

छत्तों के अतिरिक्त मधुमक्खी पालकों को छत्ता स्टैंड, नाभिक बाॅक्स,धूमक, मधु निष्कासक मशीन, मधुमक्खी से बचाव के लिए नकाब, एप्राॅन तथा दस्तानों की आवश्यकता होती है। शहद व मधुमक्खी के मोम की साज-संभाल व प्रसंस्करण और छत्ता निर्माण के लिए चादरों तथा अन्य कार्यों के लिए मधुमक्खी उद्योग को भी विभिन्न प्रकार के उपकरणों और मशीनों की आवश्यकता होती है।

 

  • मधुमक्खी पालन एक काॅलोनी/कुछ काॅलोनियों से आरंभकरना चाहिए। जिसे प्राप्त अनुभव के आधार पर बाद में बढ़ाया जाना चाहिए।
  • मधुमक्खी के छत्तों को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां तेजहवाएं न चलती हों और तेज धूप न आती हो तथा जो भीड़-भाड़ वाले स्थानों से दूर
  • विशेषकर गर्मियों के मौसम में छत्ते के निकट पानी का अच्छास्रोत उपलब्ध होना चाहिए। छत्ते कम से कम 6-10 फुट की
    दूरी पर व स्टैंडों पर होने चाहिए।
  • छत्ते तक चींटियां तथा अन्य कीट न पहु, इससे बचाव केलिए स्टैंड के पायों के नीचे पानी से भरी तश्तरियां रख देनी
    चाहिएं।
  • छत्ते का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में होना चाहिए।
  • छत्ते के नीचे की जमीन घास, खरपतवार, काली चींटियां,दीमक आदि से मुक्त होनी चाहिए।
  • काॅलोनियों के आस-पास बर्र, छिपकलियां, मधुमक्खियों को खाने वाली चींटियां, आदि नहीं होनी चाहिए और इनसे
    बचाव किए जाने चाहिए।
  • छत्तों को बार-बार नहीं खोलना चाहिए और एक बार जांचकरते समय छत्ते से संबंधित सभी कार्य निपटा लेने चाहिए।
    जांच का कार्य खिली धूप वाले दिन किया जाना चाहिए।
  • ठंडे, बरसात वाले या तेज हवाओं वाले दिन अथवा रातों को छत्तों को नहीं छेड़ना चाहिए।

 

source-

  • iari.res.in

 

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