मटर का बुआई प्रबंधन-उत्तरप्रदेश

मटर अत्यधिक पौष्टिक होती है। इसमें पर्याप्त मात्रा में पाचनशील प्रोटीन, एवं कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज लवण पाए जाते हैं। इनकी औसत मात्रा लगभग सूखे दाने में 22.5 प्रतिशत प्रोटीन, 1.8 प्रतिशत वसा, 62.1 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.64 प्रतिशत कैल्शियम, 0.48 प्रतिशत लोहा, 0.15 प्रतिशत राइबोफ्लेविन, 0.72 प्रतिशत थियामीन तथा 0.24 प्रतिशत नियासीन एवं 11 प्रतिशत नमी भी पाई जाती है।

खेत की तैयारी

दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हैरो से करते हैं। फिर दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से या देशी हल से करते हैं, या एक ही लेते हैं। यदि पूर्व में धान की खेती की गई है तो उसमें मटर की खेती करने से पहले प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा. यूरिया जुते हुए खेत में डालकर पलेवा करते हैं। इसके बाद खेत की तैयारी करने से अंकुरण आदि

भूमि शोधन

भूमि शोधन के लिये फाॅस्फेटिका कल्चर 2ण्5 किग्रातथा मटर का राइजोबियम 2ण्5 किग्राण् और ट्राइकोडर्मा पाउडर 2ण्0 किग्राण् इन तीनों जैविक कल्चरों को एक एकड़ खेत के लिये 100 से
120 किग्राण् गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर 4.5 दिनों के लिये जूट के बोरे से ढकने के बाद खेत की तैयारी में अन्तिम जुताई के समय छिटक कर तुरन्त मिट्टी में मिला देते हैं।

भूमि शोधन से लाभ

मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है। वायुमण्डल के नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों में तथा मिट्टी में संचित होने में सहायता मिलती है। पौधों की दैहिक क्रिया में वृद्धि नियामकों, आॅक्जिन और विटामिन की वृद्धि होती है। मृदा में उपस्थित न उपलब्ध होने वाले पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मृदा संरचना में सुधार होता है व रोग-रोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

बीज की मात्रा

लम्बी प्रजाति – 80-100 किग्रा. प्रति हेक्टेयर, बौनी प्रजाति – 125 किग्रा. प्रति हेक्टेयर।

बीज शोधन

बीज जनित रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम या थिरम 2 ग्राम या मैंकोजेब 3 ग्राम को प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। प्रति 10 किग्रा. बीज में एक-एक पैकेट
अर्थात 200 ग्राम मटर का राइजोबियम कल्चर एवं पी.एस.वी. कल्चर प्रयोग करना चाहिए। जैविक एजेन्ट या बायो एजेन्ट जीवित जीवाणु होते हैं इसलिए इनकी निर्माण तिथि तथा प्रयोग कर सकने की अन्तिम तिथि देखकर ही प्रयोग करना चाहिए। जैव एजेन्टों से बीज-शोधन के बाद बीजों को सूरज की गर्मी और धूप से बचाना चाहिए। बायो-एजेन्ट से उपचारित बीज को रासायनिक उर्वरकों में नहीं मिलाना चाहिए।

बीज शोधन से लाभ

वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है तथा पौधों को जैविक नाइट्रोजन मिलता है। मिट्टी के
लाभदायक जीवाणुओं को जीवित रखने में सहायता मिलती है।

बुआई की दूरी

लम्बी प्रजाति की बुआई के लिए लाइन से लाइन 30 सेमी., बीज से बीज 12-15 सेमी. तथा बीज की गहराई 4-6 सेमी रखते हैं। बौनी प्रजाति की बोआई के लिए लाइन से लाइन 20 सेमी., बीज से बीज 10-12 सेमी. तथा बीज की गहराई 4-6 सेमी. रखते हैं।

बुआई का समय

समय से बोआई का समय – 15 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक, विलम्ब से बोआई का समय – 1 नवम्बर से 15 नवम्बर तक। देर से पकने वाले प्रजातियों की बोआई समय से अवश्य कर देना चाहिए अन्यथा उपज में कमी हो जाती है।

बुआई की विधि

बुआई हल के पीछे कुड़ों में 4 से 6 सेमी. गहराई पर करनी चाहिए। पन्त नगर सीड कम फर्टीड्रिल द्वारा मटर की बुआई करना अधिक लाभप्रद रहता है। ज्यादा क्षेत्रफल होने पर छिटकवा विधि से बुआई की जा सकती है। बुआई के समय भूमि में उचित नमी होना अनिवार्य होता है।

मटर का सिंचाई प्रबन्धन

पहली सिंचाई फूल आते समय करनी चाहिए तथा दूसरी सिंचाई दाना भरते समय करनी चाहिए। बोआई के बाद खेत को छोटी-छोटी क्यारियों एवं पट्टियों में बांट कर सिंचाई करनी चाहिए। हल्की भूमि में 6 सेमी. गहरी सिंचाई एवं भारी भूमि में लगभग 8 सेमीगहरी सिंचाई करनी चाहिए।

 

स्रोत-

  • कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश

 

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