अन्य फसलों की भाँति मखाने की फसल में भी कीड़े एवं रोगों का प्रकोप बना रहता है। इस पफसल में मुख्यतः एपिफड, केसवर्म, जड़ भेदक के प्रकोप का खतरा बना रहता है। नर्सरी में मखाना का बिचड़ा तैयार करते समय एफिड के प्रकोप का ज्यादा खतरा रहता है। परन्तु केसवर्म एवं जड़ भेदक का प्रकोप पूर्ण रूप से विकसित मखाना के पौधे में दिखाई पड़ता है।
१.एफिड
एफिड सामान्यत मखाना के नवजात पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाते है। जबकि केसवर्म एवं जड़ भेदक क्रमशः पफूल एवं जड़ को नुकसान पहुँचाते हैं।
नियंत्रण
एपिफड एवं केसवर्म के प्रकोप से पौधे को सुरक्षित रखने के लिए 0.3 प्रतिशत नीम तेल के घोल का छिड़काव करना चाहिए। जड़ भेदक से बचाव के लिए 25 किलोग्राम नीम की खल्ली को प्रारम्भ में खेत की तैयारी करते वक्त डालना चाहिए।
२.झुलसा रोग
मखाना में होने वाला झुलसा रोग एक बहुत ही नुकसानदायक पफपफूँदीजनक रोग है। इसे उत्पन्न करने वाला आॅर्गेनिज्म को अल्टरनेरिया टिनुईस कहते हैं। यह प्रायः पूर्ण रूप से विकसित मखाना के पौधें में होता है। इस रोग से प्रभावित पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे या काले रंग का लगभग गोलाकार मृत क्षेत्रा जहाँ-तहाँ बन जाता है। इसमें प्रायः समक्रेंद्री बहुत सारे छल्ले एवं पटरी रूपी विकृति हो जाती जो टारगेट बोर्ड को इपफेक्ट देती है। बहुत सारे ध्ब्बे मिलकर बाद में बड़े एक पौधे द्वारा उत्पादित बीज 13 ध्ब्बे बनाते हैं। जब यह बीमारी अन्तिम अवस्था में होती है तो पत्ते पूरी तरह से जले या झुलसे हुये प्रतीत होते है।
नियंत्रण
मखाना में लगने वाले झुलसा रोग को नियंत्रित करने के लिए काॅपर आॅक्सिक्लोराइड, डाइथेर्न .78 या डाइथेन ड.45 का 0.3 प्रतिशत घोल का पन्द्रह दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
३.फल सड़न
हाल में मखाना में पफल सड़न रोग देखा गया है पर अभी तक इसे उत्पन्न करने वाले कीटाणु का पता नहीं चल पाया है। पिफर भी इसे कवक जनित रोग की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इस रोग में कार्बेन्डाजिम एवं डाइथेन ड.45 के 0.3 प्रतिशत घोल से पत्तियों पर छिड़काव करने पर यह बीमारी कापफी हद तक नियंत्रित हो जाती है। इस रोग से ग्रसित पौध पूर्ण रूप से स्वस्थ नजर आता है परन्तु इसके अविकसित पफल सड़ना शुरू हो जाते हैं जिससे आर्थिक उत्पाद कापफी प्रभावित होता है।
४.अति अंगवृद्धि (हाइपरट्राॅफी)
कुछ पौधें में अति अंगवृद्धि ;हाइपरट्राॅपफीद्ध रूपी बीमारी को देखा गया है हालांकि यह मखाना के पौधे के लिए गंभीर बीमारी नहीं हैं। लेकिन हाइपरट्राॅपफी से ग्रसित पौधे के पफूल एवं पत्ते असामान्य वृद्धि से प्रभावित उत्तकों की वजह से बुरी तरह से खराब हो जाते है। यह बीमारी डोसानसियोपसिस यूरेलि नामक पफपँफूद से भी होता है। पत्तियों एवं पफूलों में होने वाली असामान्य वृद्धि की वजह से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इस बीमारी के लक्षण किसी खास जगह पर नहीं होते लेकिन साधरणतः यह पत्रा पफलक से डंठल एवं पुष्पासन की तरपफ पफैलता है इस कारण पफूल के निचले हिस्से को कापफी क्षति होती है।
परिणामस्वरूप पफूल में बीज भी नहीं बन पाते। अभी तक इस बीमारी की रोक थाम के लिए कोई भी शोध् रिपोर्ट नहीं है। अतः जल्द से जल्द इस बीमारी की रोकथाम के लिए गहन अध्ययन एवं शोध् किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत-
- मखाना अनुसंधान केंद्र ,बिहार