मक्का की फसल के रोगों की सटीक पहचान उन रोगों के नियंत्रण को आसान बनाता है । यहां प्रस्तुत जानकारी किसानों को मक्का के रोग की पहचान समय पर और सही तरीके से करने मे सहायक हो सकती है। मक्का के कीट एवं रोग इस प्रकार हैं:-
मक्का के कीट एवं प्रबन्धन
1. मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीट
इस कीट की इल्ली पौधे की जड़ को छोड़कर समस्त भागों को प्रभावित करती है। सर्वप्रथम इल्ली तने को छेद करती है तथा प्रभावित पौधे की पत्ती एवं दानों को भी नुकसान करती है। इसके नुकसान से पौधा बौना हो जाता है एवं प्रभावित पौधों में दाने नहीं बनते है। प्रारंभिक अवस्था में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है एवं इसे पौधे के निचले स्थान के दुर्गध से पहचाना जा सकता है।
2. गुलाबी तनाबेधक कीट
इस कीट की इल्ली तने के मध्य भाग को नुकसान पहुंचाती है फलस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है जिस पर दाने नहीं आते है।
उक्त कीट प्रबंधन हेतु निम्न उपाय है-
- फसल कटाई के समय खेत में गहरी जुताई करनी चाहिये जिससे पौधे के अवशेष व कीट के प्यूपा अवस्था नष्ट हो जाये।
- मक्का की कीट प्रतिरोधी प्रजाति का उपयोग करना चाहिए।
- मक्का की बुआई मानसुन की पहली बारिश के बाद करना चाहिए।
- एक ही कीटनाशक का उपयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
- प्रकाश प्रपंच का उपयोग सायं 6.30 बजे से रात्रि 10.30 बजे तक करना चाहिए।
- मक्का फसल के बाद ऐसी फसल लगानी चाहिए जिसमें कीट व्याधि मक्का की फसल से भिन्नहो।
- जिन खेतों पर तना मक्खी, सफेद भृंग, दीमक एवं कटुवा इल्ली का प्रकोप प्रत्येक वर्ष दिखता है, वहाँ दानेदार दवा फोरेट 10 जी. को 10 कि.ग्रा./हे. की दर से बुवाई के समय बीज के नीचे डालें।
- तनाछेदक के नियंत्रण के लिये अंकुरण के 15 दिनों बाद फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे. अथवा कार्बोरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके 15 दिनों बाद 8 कि.ग्रा. क्विनालफास 5 जी. अथवा फोरेट 10 जी. को 12 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में पत्तों के गुच्छों में डालें।
मक्का के प्रमुख रोग एवं प्रबंधन
1. डाउनी मिल्डयू
बोने के 2-3 सप्ताह पश्चात यह रोग लगता है सर्वप्रथम पर्णहरिम का ह्रास होने से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती है, प्रभावित हिस्से सफेद रूई जैसे नजर आने लगते है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है।
उपचार
डायथेन एम-45 दवा आवश्यक पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव करना चाहिए।
2. पत्तियों का झुलसा रोग
पत्तियों पर लम्बे नाव के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़कर ऊपर की पत्तियों पर फैलता हैं। नीचे की पत्तियां रोग द्वारा पूरी तरह सूख जाती है।
उपचार
रोग के लक्षण दिखते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
3. तना सड़न
पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण प्रारंभ होता हैं तथा विगलन की स्थिति निर्मित होती हैं एवं पौधे के सड़े भाग से गंध आने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं व पौधे कमजोर होकर गिर जाते है।
उपचार
150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये।
Source-
- kisanhelp.in