बैंगन के रोग एवं नियंत्रण

बैंगन में लगने वाले रोग इस प्रकार है:-

1. फोमाॅप्सिस अंगमारी तथा फल विगलन(फाॅमाॅप्सिस ब्लाइट तथा फ्रूट राॅट)

फोमाॅप्सिस वेक्सान्स के कारण होने वाले इस रोग के लक्षण तीन रूपों में दिखायी पड़ते हैं- (1) पौधशाला में आर्द्रपतन के रूप में (2) पौध लगाने के बाद खेत में अंगमारी (झुलसा) (3) फल लगने के बाद फल सड़न के रूप में। रोग की वृद्धि के लिए आर्द्र मौसम तथा 26° सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है। पत्तों पर अनियमित आकार का काला किनारा युक्त धूसर भूरा धब्बा दिखाई देता है। वृंत और तनों पर अंगमारी फैलता है और फलों पर छोटे धंसे हुए मटमैले दाग बनते हैं जो आपस में जुड़ कर विगलित क्षत बनाते हैं।

नियंत्रण
  • संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट करें।
  • बाविस्टीन 50 डब्लू पी (2 ग्राम/लीटर) पानी के घोल में नर्सरी से निकाले गये पौध की जड़ों को 20 मिनट डुबोयें तथा रोपाई के 3 सप्ताह बाद व आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
  • कम से कम 3 वर्ष का फसल चक्र अपनायें।
  • शकरकन्द तथा टमाटर को बैंगन के पास नहीं लगायें। खरपतवारों जैसे धतूरा को खेत से निकालकर का नष्ट कर दें।

 

2. जैवाण्विक मुरझान रोग (टमाटर, बैंगन एवं मिर्च)

यह रोग रालस्टोनिया सोलेन्सियारम नामक जीवाणु से होता है। इस रोग से पौधों की पत्तियां अचानक मुरझाकर नीचे की ओर झुक जाती हैं तथा अन्त में पूरा पौधा सूख जाता है। संक्रमित पौधों के तनों तथा जड़ों को काटकर साफ पानी भरे हुए शीशे के गिलास में डालने पर थोड़ी देर में पौधे से सफेद भूरा लसदार रस निकालता है, जिससे पानी दूधिया हो जाता है।

नियंत्रण
  • संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट करें।
  • कम से कम दो वर्षों का फसल चक्र अपनाएं।
  • जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
  • ब्लीचिंग पाउडर 12-15 कि.ग्रा./है. की दर से खेत में कूड़ों में प्रयोग करें।

 

3. उकठा रोग

यह रोग फ्युजेरियम आक्सीस्पोरम एफ. एस.पी. लाइकोपरसीकी है। संक्रमित पौधों की निचली पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं तथा बाद में पूरा पौधा पीला हो जाता है। पत्तियां नीचे की ओर झुक जाती हैं तथा पौधा मुरझा कर सूख जाता है। रोगी पौधे के तने को फाड़कर देखने पर भूरे रंग का दिखाई देता है। जड़ काली होकर सड़ने लगती है।

नियंत्रण
  • संक्रमित पौधें को खेत उखाड़ कर जला दें।
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
  • जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
  • बीज को कार्बेन्डेजिम 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से उपचारित करें।
  • फसल चक्र अपनायें।
  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियां लगाएं।

 

 4. बैंगन का छोटी पत्ती रोग 

 
यह बैंगन का एक माइकोप्लाजमा, जनित विनाशकारी रोग है जिसे ‘लीफ होपर’ नामक कीट से हिलता हैं। इसमें रोगी पौधा बोना रह जाता हैं। तथा पत्तिायां आकार में छोटी रह जाती हैं। प्राय: रोगी पौधों पर फूल नहीं बनते हैं। और पौधा झाड़ीनुमा हो जाता हैं। यदि इन पौधों पर फल भी लग जाते हैं तो वे अत्यंत कठोर होते हैं। रोगी पौधों को उखाड कर जला देना चाहिए।

नियंत्रण

लीफहोपर से फसल को बचाने के लिए 0.1 प्रतिशत एकाटोक्स या फोलीडोल का फल निर्माण तक छिड़काव करना चाहिए। पौधों को रोपाई से पूर्व टेट्रासाइक्लिन के 100 पी.पी.एम. घोल में डुबोकर रोपाई करनी चाहिए। रोग रोधी किस्में जैसे – पूसा पर्पिल क्लस्टर और कटराइन सैल 212 – 1, सैल 252-1-1 और सैल 252-2-1 उगाये। पेड़ी फसल ना लेवे।

 

5. बैंगन के सूत्रकृमि 

यह रोग सूत्रकृमि पेलाडोगाइन की अनेक प्रजातियों द्वारा उत्पन्न होता हैं जिससे रोगी पौधों की जड़ो में गाठें बन जाती हैं, रोगी पौधा बौना रह जाता हैं। पत्तिायां हरी पीली होकर लटक जाती हैं। इस रोग के कारण पौधा नष्ट तो नहीं होता किन्तु गांठो के सडने पर सूख जाता हैं। इसके द्वारा 45-55 प्रतिशत तक हानि होती हैं।

नियंत्रण

खेत मे नमी होन पर नीम की खली एवं लकड़ी का बुरादा 25 क्विंटल प्रति हेक्टयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए। रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए। नेभागान 12 लीटर प्रति हैक्टयर की दर से भूमि का फसल बोने या रोपने से 3 सप्ताह पूर्व शोधन करना चाहिए।

 

स्रोत-

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संसथान, नई दिल्ली 

 

Show Buttons
Hide Buttons