बेर के कीट एवं रोग
१.फल मक्खी
यह कीट बेर को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है। इस मक्खी की वयस्क मादा फलों के लगने के तुरन्त बार उनमें अण्डे देती है। ये अण्डे लार्वा में बदल कर फल को अन्दर से नुकसान पहुँचाते है। इसके आक्रमण से फलों की गुठली के चारों ओर एक खाली स्थान हो जाता है तथा लटे अन्दर से फल खाने के बाद बाहर आ जाती है। इसके बाद में मिट्टी में प्यूपा के रूप में छिपी रहती है तथा कुछ दिन बाद व्यस्क बनकर पुनः फलों पर अण्डे देती है। इसकी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए मई-जून में बाग की मिट्टी पलटे। फल लगने के बाद जब अधिकांश फल मटर के दाने के साइज के हो जाए उस समय क्यूनालफास 25 ईसी 1 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 20-25 दिन बाद करें।
२.छालभक्षी कीट
यह कीट नई शाखाओं के जोड़ पर छाल के अन्दर घुस कर जोड़ को कमजोर कर देता है फलस्वरूप वह शाखा टूट जाती है, जिससे उस शाखा पर लगे फलों का सीधा नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए खेत को साफ सुथरा रखे, गर्मी में पेड़ों के बीच में गहरी जुताई करें। जुलाई-अगस्त में डाइक्लोरवास 76 ईसी 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर नई शाखाओं के जोड़ों पर दो-तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
३.चेफर बीटल
इसका प्रकोप जून-जुलाई में अधिक होता है यह पेड़ों की नई पतियों एवं प्ररोहो को नुकसान पहुँचाता है इससे पत्तियों में छिद्र हो जाते है। इसके नियंत्रण के लिए पहली वर्षा के तुरन्त बाद क्यूनालफास 25 ईसी 2 मिली या कार्बेरिल 50 डब्लूपी 4 ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
४.छाछया (पाउडरी मिल्डयू या चूर्णी फफूँद)
इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु के बाद अक्टूबर-नवम्बर में दिखाई पड़ता है। इससे बेर की पत्तियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाउडर सा जमा हो जाता है तथा प्रभावित भागों की बढ़वार रूक जाती है और फल व पत्तियाँ गिर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए केराथेन
एल.सी. 1 मिलीलीटर या घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 15 दिन के अन्तर पर दो-तीन छिड़काव पूर्ण सुरक्षा के लिए आवश्यक होते है।
५.सूटीमोल्ड
इस रोग से ग्रसित पत्तियों के नीचे की सतह पर काले धब्बे दिखाई देने लगते है जो कि बाद में पूरी सतह पर फैल जाते है और रोगी पत्तियाँ गिर भी जाती है। नियंत्रण के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब 3 ग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
६.पत्ती धब्बा/झुलसा रोग
इस रोग के लक्षण नवम्बर माह में शुरू होते है यह आल्टरनेरिया नामक फॅफूद के आक्रमण से होता है। रोग ग्रस्त पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा बाद में यह धब्बे गहरे भूरे रंग के तथा आकार में बढ़कर पूरी पत्ती पर फैल जाते है। जिससे पत्तियाँ सूख कर गिरने लगती है। नियंत्रण हेतु रोग दिखाई देते ही मेन्कोजेब 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर 2-3 छिड़काव करें।
Source-
- Central Arid Zone Research Institute