बीज जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने का सूत्र – बीजोपचार

हमारे देश में धान्य का फसल उत्पादन तभी संभव है जब कृषि में अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों का विस्तृत रूप् से प्रयोग किया जाये। इस उपलब्धि को पाने के लिये वर्षो से सघन व लगातार अनुसंधान किये जाते रहे व चल भी रहे हैं। आधुनिक युग की उन्नत किस्में शत-प्रतिशत रोग रोधी नही पायी जाती  किन्तु इनकी उपज स्थानीय किस्मों की तुलना में बहुत अधिक होती हैं।

मृदा एवं बीज जनित रोग भी फसलोत्पादन घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं बीज जनित रोगों की जानकारी होने के समय से लेकर वर्तमान तक करीबन 1000 फफूँद, 100 जीवाणु, 127 विषाणु एवं 14 सूत्रकृमि बीजों के साथ संलग्न या निहित पाये जाये हैं। इतनी अधिक संख्या में रोगजनकों का बीजोड़ पाया जाना इस बात का संकेत करता है कि हम किसान भाईयों को इन तथ्यों से अवगत करायें जिससे कि ये समयानुसार बीज एवं बीजाकुरों को मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचा सकें व आर्थिक रूप से होने वाली क्षति को नियंत्रित कर सकें। यह सर्वविदित हैं कि 90 प्रतिशत फसलों का प्रजनन बीजों द्वारा ही संभव है और इनका संबंध प्रत्यक्ष रूप में धान्य उत्पादन से है उसी प्रकार से 90 प्रतिशत स्वस्थ अंकुरण के लिये सीधा संबंध बीजोपचार से है किसान भाईयों के लिये बीजोपचार एक महत्वपूर्ण सिद्ध पहलु हैं।

महत्व

बीजोपचार का महत्व बीज एवं मृदा जनित रोगों के नियंत्रण हेतु अत्यंत आवश्यक है इसमें प्रयुक्त फफूंदनाशक बीजो की सतह पर चिपककर अंकुरण के समय हानिकारक जीवाणु एवं फफूंदो से बीजाकुरों की रक्षा करते हैं।

मुख्य प्रकार

1.बीज रोगाणुनाशक

अतः बीजजनित रोग जिनमें रोगकारक बीजो के अंदर स्थापित होता हैं, के उन्मूलन के लिये इस विधि का प्रयोग किया जाता है उदाहरण के लिये गेहूँ एवं जौ का अनावृंत कंडवा, जौ का धारीदार रोग इत्यादि। इस प्रकार में उष्ण जलोपचार, तापोपचार एवं रसायनिक उपचार भी आते हैं बीज संक्रमण में रोगजनक बीज के गहरे ऊतकों अथवा उसके भ्रुण में उपस्थ्ति होता है अतः बीज रोगाणुनाशक के रूप में वही फफूंदनाशक व रसायन कार्य कर सकते हैं जिनको बीज द्वारा अवषोषित किया जाए तथा बीज को बगैर हानि पहुंचाये रोगजनक को नष्ट कर दें।

 2. बीज निर्बाधन

बाह्म बीज जनित रोगों, जिनमें रोगकारक, बीजों की सतह पर उपस्थित होते हैं, के नियंत्रण के लिये इसका प्रयोग किया जाता है उदाहरण के लिये जौ का आवृत कंड, ज्वार का अनाव्रंत, दाना कण्ड एवं गेहूँ का बंट इत्यादि।

(अ) दैहिक फफूंदनाशक

ये रासायनिक दवायें जो पौधे के तंत्र में प्रवाहित होकर प्रयोग स्थान से दूर स्थित, रोग जनक को नियंत्रित करती हैं।

दैहिक

क्रं

तकनीकी नाम

व्यापारिक नाम

उपयोग की मात्रा

रोग नियंत्रण

1

 

2

 

3

 

4

 

 

5

 

6

 

7

ट्राइडीमार्फ

थायोफास्फेट

 

इडिफेनफास

 

ब्लोरोथेलेनेल

 

डायनोकैप

 

अकार्बनिक गंधक

 

थायोविट फार्मासल्फ

कैलिक्सीन

विटाजीन

 

हिनोसान

 

कवच

 

केराथेन

 

सलफेक्स

 

थायोविट

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

 

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

 

छिड़काव 0.3 प्रतिशत

 

छिड़काव 0.01 प्रतिशत

 

छिड़काव 0.3 प्रतिशत

 

छिड़काव 0.3 प्रतिशत

भभूतिया

धान ब्लास्ट

 

धान ब्लास्ट

 

अंगमारी, पर्णदाग

 

चूर्णिल आसिता

 

भभूतिया

 

काली चित्ती

 

(ब) अदैहिक फफूंदनाशक

ये दवायें पौधें के अंगो पर फफूंद या जीवाणु को नष्ट या निष्क्रिय करती है परंतु पौधे के तंत्र में प्रवाहित नहीं होती है। इनका छिड़काव, रोग आने से पहले या तुरंत बाद होना चाहिये।

क्रं

तकनीकी नाम

व्यापारिक नाम

उपयोग की मात्रा

रोग नियंत्रण

1 कापर आक्सीक्लोराइड फाइटोलान, कोपेसान क्यूप्रामार, ब्लकापर छिड़काव 0.3 प्रतिशत आलू टमाटर का  अंगमारी, मूंगफली का टिक्का
2 मेनकोजेब इंडोफिल एम-45 बीजोपचार 0.3 प्रतिशत छिड़काव 0.25 प्रतिशत उखटा आदि आलू सोयाबीन आदि का अंगमारी, गेरूआ पर्णदाग
3 थायरम थायरम थायराईड बीजोपचार 0.3 प्रतिशत बीज सड़न, अंकुर गलन, पद गलन उखटा आदि
4 केप्टान केप्टाफ बीजोपचार मृदा उपचार, 0.3 प्रतिशत छिड़ाकाव बीजजनित रोग सब्जियों की रोपणी एवं फसलों के जड़ सड़न रोग आदि

 

(स) प्रतिजैविक दवायें (एन्टीबाॅयोटिक्स)

आरिआंफजिन स्टेफ्टोमायसिन सल्फेट, टारिओंफजिन स्ट्राटिमाइसिन बीजोपचार एवं छिड़काव 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में फफूंद जनित पर्ण दाग एवं फलों में भंडारण सड़न, धान का जीवाणु जनित पर्णधारी रोग, सोयाबीन का जीवाणु स्फोट तथा गाभी का काली सड़न, तिल की जीवाणुजनित अंगमारी, नींबू का कैंकर आदि।

 पौध रोग नियंत्रण हेतु फफूंद हेतु प्रमुख फफूंदनाशक दवायें

व्यवहारिक नाम

व्यापारिक नाम

उपयोग की मात्रा

रोग नियंत्रण

कार्बनडाजिम वैविस्टीन, बेनगार्ड साफ, डोरासा बीजोपचार 0.2 प्रतिशत

छिडकाव 0.05 प्रतिशत

बीज सड़न, अंकुर गलन, चूर्णिल आसिता, एन्थ्रेकनोज अंगमारी, पर्ण दाग आदि
कारबोक्सिन आक्सीकार्बोथक्सिन बेनोमिल विटावैक्स

प्लांट वैक्स

बेनलेट

बीजोपचार0.2 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

बीजोपचार 0.2 प्रतिशत

गेहूँ का अनावृंत केडवा

गेरूआ

गेरूआ

ट्राइडिमीफोन बेलेटान छिड़काव 0.1 प्रतिशत सोयाबीन, मटर व मसूर व गेरूआ
थायोफिनेट मिथाइल टापसिन – एम. छिड़काव 0.1 प्रतिशत चूर्णिल आसिता, पर्णदाग आदि
प्रोपीकोनाजोल

हेक्जाकोलाजोल

एडिनफिनफोस

फास्फाइट एलीट

टिल्ट

कोन्टाक

हिनासान

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

सोयाबीन, मटर का गेरूआ

गेरूआ सोयाबीन, मसूर

धान का झुलसा

क्द्दूवर्गीय, सरसों, मटर आदि का मृदुरोमिल (डाउनी मिल्ड्यू)

मेटालेक्जिल एम. जेड बीजोपचार 0.2 प्रतिशत

छिड़काव 0.1 प्रतिशत

मृदुरोमिल, ड. फाइटोकथोरा जड़सड़न

 

(द) जैविक नियंत्रक

ये एक प्रकार की विषिष्ठ मृदोढ जीवाणु/फफूंद है जिनका उपयोग हानिकारक फफूंदों द्वारा उत्पन्न रोगों की रोकथाम के लिये बीजोपचार या छिड़काव या मृदोढ रूप में किया जाता हैं।

प्रमुख जैव नियंत्रक

क्रं.

व्यावहारिक नाम

व्यापारिक नाम

उपयोग की मात्रा

रोग नियंत्रण

1

 

 

 

 

 

 

ट्राईकोडरमा विरिडी

 

 

 

 

 

ईकोफिट, नर्सग वायोहिट

 

 

 

 

 

5-6 ग्राम प्रति किलो ग्राम

 

 

 

 

उगरा/विल्ट, जड़ सड़न, पाद गलन, सूखी सड़न बीज सड़न
2

 

ट्राईकोडरमा हरजिमानम ईकोफिट, निर्सग

वायोहिट

वायाहिट

5-6 ग्राम प्रति किलो

ग्राम

ग्राम

उगरा/विल्ट, जड़ सड़न, पाद गलन, सूखी सड़न बीज सड़न

 

3. बीज रक्षण

मृदा जनित रोगों में अंकुरण के समय बीजों की रक्षा के लिये इस विधि का प्रयोग किया जाता है, इसका मुख्य उद्देष्य है कि बीज की संपूर्ण सतह को फफूंदनाशक के द्वारा भली प्रकार ढक दिया जाए, अनेक सब्जियों में पूर्वादि भेद ‘‘आर्द्धपतन‘‘ उत्पन्न होते हैं, अतः यदि बीजों को फफूंदनाशक द्वारा उपचारित करके बोया जाए तो इनको मरने व सड़ने से बचाया जा सकता हैं।

बीजोपचार से लाभ

  1. पौध संख्या में वृद्धि
  2. अंकुरण क्षमता में बढोत्तरी
  3. बीजोढ एवं मृदोढ रोगों का नियंत्रण
  4. अंत अंतः एचं बाह्य रोगों से छुटकारा
  5. कम लागत एवं अधिक उपज

बीजोपचार की सामान्य विधि

  1. आवश्यकतानुसार बीज की मात्रा लें।
  2. स्वस्थ व स्वच्छ बीजों का चयन करें।
  3. मपी गयी फफूंदनाशक दवा लें।
  4. छोनों मिट्टी के घड़े या बीज उपचारित ड्रम में डालें।
  5. 10-15 मिनट तक घुमायें, हिलायें व मिलायें।
  6. फफूंदनाशक की एक सी परत बीजो पर चढायें।
  7. उपचारित बीज छाया व हवा में कुछ देर सुखायें।
  8. बीज उपचारित करने के बाद ही बोनी करें।

सावधानियाँ

  1. उपचारित बीज को किसी गीली जगह पर न रखें।
  2. बीज की उतनी ही मात्रा उपचारित करें जितनी की बोनी की आवश्यकता है।
  3. उपचारित बीजों को घरेलु उपयोग में न लायें। क्योंकि ये विषयुक्त होते हैं।
  4. फफूंदनाशक क्रय करते समय बनने एवं समाप्ति की दिनांक अवश्य देखें।
  5. जिस व्यक्ति के हाँथ या पाँव में, घाव खरोंच आदि हो उससे बीजोपचार न करवायें।
  6. दस्तानों व नकाब का प्रयोग अवश्य करें।
  7. फफूंदनाशक के खाली पैकेट या डब्बे नष्ट करें।
  8. बीजोपचार करने के पश्चात शरीर साबुन व स्वच्छ पानी से अच्छी तरह धो लें।
  9. बीजोपचार बंद कमरे में न करें व उपचारित बीज का भंडारण न करें।

हानियाँ

निर्धारित मापदंड विधि एवं सावधानियों का प्रयोग न करने पर बीजोपचार से हानि हो सकती हैं।

  1. अगर जरूरत से ज्यादा या अधिक मात्रा में फफूंद नाशक का प्रयोग पूरी तरह अंकुरण विफल कर देता है।
  2. इससे हानि उस समय भी हो सकती है जब बीज में निहित नमी की मात्रा अधिक हो या उसकी परिपक्वता के समय ।
  3. अर्ध विष की अधिकता भी या तो अंकुरध को नुकसान पहुँचाती है या अन्य विषमतायें भी पैदा करती हैं उदाहरण के लिये गेहँ व मक्का में।

एक उत्तम या आदर्श बीजोपचार औषधि के गुण

बीजोपचार का षत प्रतिशत प्रभाव देखने के लिये निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुणों एवं विशेषताओं का समावेष फफूंदनाशक में होना बहुत जरूरी हैं।

  1. फफूँदनाशक पादप विज्ञान अर्थात बीजों एवं बीजांकुरों के लिये विषैला नही होना चाहिये।
  2. पौधों पर इसका अपशिष्ट प्रभाव अधिक लंबे समय तक रहना चाहिये।
  3. एक अच्छे फफूंदनाशक को घोलने पर भी विषैलापन धारण किये रहना चाहिये।
  4. यह उच्च संषक्ति वाला अर्थात पौधे की सतह पर भलि भाँति चिपकने वाला होना चाहिये, जिससे कि इसका प्रभाव अधिक लंबे समय तक पौधों पर बना रहे।
  5. एक आदर्ष फफूँदनाशक का मनुष्यों व पशुओं पर भी विषैला प्रभाव नही होना चाहिये।
  6. यह सरल एवं सुगमता से उपलब्ध होना चाहिये ।
  7. अच्छे फफूंदनाशक में यह भी गुण होना चाहिये कि इसको सरलता से तैयार किया जा सकें ताकि प्रयोग करते समय संचालक को कोई कठिनाई नही होना चाहिये।
  8. इसकी संगतता इसके नाश मारक रसायनों जैसे – कीटना|, मूल कृमिनाशी, खरपतवारनाशी इत्यादि तथा उर्वरकों के साथ भी होनी चाहिये जिससे कि यह इसके साथ आवश्यकता पड़ने पर मिलाया जा सकें।

पौध संरक्षण दवाओं के उपयोग में सावधानियाँ

  1. पौध संरक्षण दवाओं को उनके वास्तविक पैकेट में ही खरीदें खुली दवा कभी न खरीदें क्योंकि उनमें मिलावट होने का भय रहता हैं।
  2. भंडारण में रखते समय यह ध्यान रहे कि ये दवाईयाँ पशुओ और मनुष्यों के भोज्य पदार्थो से दूर रहे। इस प्रकार के स्थान पर कदांपि न रखें जहाँ बच्चो की पहुँच हो।
  3. इन दवाओ को हमेशा ताले में बंद रखें।
  4. संयुक्त कीटनाशक, फफूंदनाशक, नींदानाशक को ही उपयोग में लावें। उसकी मात्रा, मिश्रण करने की विधि तथा भुरकने का तरीका ठीक से समझ लें। प्रत्येक दवा के साथ उपयोग करने की विधि का पत्रक दिया रहता है या लेबल लगा रहता है। इस पर दिये गये निर्देशों को अच्छी तरह पढकर हिदायतों का पूर्णरूपेण पालन करना चाहिये।
  5. दवाओ के खाली टिन या थैलों को खाली होने के बाद नष्ट कर दें क्योंकि इनमें भी विष का असर रहता हैं।
  6. दवा मिलाया हुआ बीज, अनाज या फल फूल खाने के काम में या जानवरों को खिलाने के काम में न लावें। साग सब्जी और फलों को दवा छिड़कने के बाद कम से कम उस दवा के लिये निर्देषित अवधि तक न तोड़े और खायें। सब्जियों को बनाने से पहले खूब धोयें।
  7. दवा का घोल तैयार करते समय घोल को लकड़ी से हिलाये । हाँथ डालकर हिलाना खतरनाक है।
  8. जिन व्यक्तियों को चोट लगी हो या किसी प्रकार का कोई चर्म रोग हो, उन्ह दवाओ का घोल बनाना या उनका छिड़काव भुरकाव कभी भी नही करना चाहिये क्योंकि त्चचा कटी रहने पर दवा का सीधा संबंध रक्त और मांस से हो जाता है जो कि बहुत ही हानिकारक है।
  9. फसल पर छिड़काव या भुरकाव करते समय शरीर पर विशेषत: आँख नाक और मुँह पर दवा न गिरने दें। नाक मुँह पर कपड़ा बाँध लें और हाँथो में रबड़ के दस्ताने पहने।
  10. दवाओ का घोल बनाते समय तथा दवाओ का छिड़काव या भुरकाव करते समय पान सुपारी नही खाना चाहिये और न ही धुम्रपान करना चाहिये।
  11. दवाओं का छिड़काव या भुरकाव करते समय हवा दिशा का ध्यान रखें हवा की दिशा के साथ साथ चलें जिससे दवा शरीर तथा मुँह पर नही गिरेगी।
  12. यदि छिड़काव के समय मशीन के नोजल में कचरा आदि आ गया हो और फव्वार बंद हो गई हो तब उसे मुँह से फूंक मारके साफ नही करना चाहिये अन्यथा जहर मुँह द्वारा शरीर में प्रवेश कर सकता हैं।
  13. दवाओ के छिड़काव/भुरकाव के लिये अलग कपड़ो का प्रबंध रखें। प्रयोग करने के बाद उन्हे साफ करके रखें। स्वंय साबुन लगाकर अच्छी तरह नहायें। हाँथो और नाखूनों को रगड़ कर धोयें।
  14. दवाओं का भुरकाव/छिड़काव खाली पेट कभी न करें।
  15. उन तालाबों में दवाओ का छिड़काव/भुरकाव कदापि न करें जिनमें मछली पालन होता हो, कपड़े धोये जाते हो या जिसका पानी मवेषियों तथा मनुष्यों के पीने के काम में लिया जाता हो और न ही इन तालाबों में पौध संरक्षण यंत्रो को साफ करें।
  16. तेज हवा चलने पर छिड़काव/भुरकाव का काम स्थगित कर दें क्योंकि इससे दवा का शरीर पर पड़ने का भय रहता हैं।
  17. जुए आदि नष्ट करने के लिये विशेष कीटना| आते हैं उन्ही का प्रयोग करना चाहिये। साधारण कीटना| दवाओं का उपयोग पशुओ को नहलाने, वस्त्रो या सिर में डालने के लिये न करें। खाद्य पदार्थो में भी कीटनाशकी दवाओं को न मिलायें।
  18. भुरकाव या छिड़काव करने वाले व्यक्ति को बीच बीच में आराम करते रहना चाहिये।
  19. दवा का छिड़काव/भुरकाव करते समय या बाद में यदि किसी को बेचैनी महसूस होने लगे तो तुरंत डाक्टर या वैद्य को दिखायें।

प्राथमिक उपचार

यदि काम करने वाले व्यक्ति को चक्कर आये, पेट में दर्द हो या उल्टी आए तब तुरंत प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिये और डाक्टर को बुलाना चाहिये यह काम जितना जल्दी किया जाए उतना ही अच्छा रहता है। सावधानी के साथ कार्य करने पर विषों का प्रभाव नही पड़ता है।

(1) निगले गये विष

रोगी के पेट से विष को निकाल देना चाहिये । इसके लिये उल्टी करना चाहिये। उल्टी करने के लिये एक ग्लास गर्म पानी में 15 ग्राम के लगभग नमक घोलकर या एक ग्लास गर्म पानी में 1 चम्मच पिसी हुई सरसों मिलाकर रोगी को पिला देना चाहिये। उल्टी तब तक कराई जाए जब तक पेट से निकलने वाला पानी बिलकुल साफ आना प्रारंभ न हो जाये।

मुँह में ऊँगली डालकर और गले के पास तक ले जाकर रोगी स्वंय उल्टी कर सकता हैं। यदि पेट भरा हुआ हो तब यह कार्य और भी आसान हो जाता है। यदि रोगी स्वंय ही उल्टी कर रहा हो तब उसे नमकीन पानी या सरसों का घोल देने के स्थान पर कुनकुना पानी ही देना चाहिये।

यदि रोगी बेहोश हो गया शरीर में ऐंठन हो तब उल्टियाँ कराने की आवश्यकता नही हैं।

(2) सूंघे गये विष

सूंघे गए विष में रोगों को खुली हवा में लिटाकर उसे चुस्त कपड़ो को उतार दें। यदि सांस ठीक प्रकार से न आ रही हो तब कृत्रिम श्वास करावें। यदि शरीर में ऐठन हो तो अंधेरे कमरे में लिटा दें।

(3) त्वचा पर लगा विष

शरीर को गर्म पानी से धो लें साबुन का उपयोग भी करें । धुलाई जितनी जल्दी की जाये उतना ही अच्छा हैं। शरीर से कपड़े उतारते समय पानी की तेज धार शरीर पर गिरती रहे।

(4) आँख में लगा विष

आँख की पलकों को खुला रखें। धुलाई सावधानी पूर्वक करें। आँख की धुलाई का कार्य डाक्टर के आने तक चालू रखें। आँख में कोई भी रासायनिक पदार्थ बिना डाक्टर की अनुमति के न डालें।

प्रशिक्षित व्यक्ति को चाहिये कि वह एट्रोपिन सल्पेट कैफिन और इपिनेफ्रीन जैसे उत्तेजकों का इनजेक्षन हाइपोडमिक दें तथा 5 प्रतिशत डेक्ट्रोज का घोल शिरा के माध्यम से शरीर में पहुँचा दें। यदि आवश्यक हो तभी खून भी दिया जायें।

 

Source-

  • Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya,Jabalpur( M.P.) 
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