बेहतर फसल उत्पादन के लिए बीज गुणवत्ता उन्नयन

बीज गुणवत्ता उन्नयन कटाई उपरांत बीज संवर्धन उपचार है, जिससे अंकुरण क्षमता, अंकुर और पौध विकास, एवं स्थापना और उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। ये तकनीकें बीज के भंडारण के दौरान बीज की गुणवत्ता को बनाए रखने में भी सहायक हैं।

 

बीज गुणवत्ता उन्नयन प्रौद्यौगिकी के लाभ

  • अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में समान एवं तीव्र अंकुरण और पौध स्थापना तथा बीज रोपण एवं अंकुरण के अन्तराल में कमी
  • पौध वनस्पति और जड़ विकास में बढ़ोत्तरी तथा पादप संख्या स्थापना की विश्वसनीयता में सुधार
  • बीज का जैविक एवं अजैविक कारकों से रक्षण, अधिक फसल उपज एवं गुणवत्ता, कीट आरै रागे सक्रंमण से  बचाव एव बहे तर बीज भण्डारण क्षमत

आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले बीज उन्नयन उपचार हंै- बीज प्रभंजन, रसायनों एवं पादप् तत्वों से बीज उपचार और सक्रिय सूक्ष्मजीवों से, पाॅलिमर कोटिंग, पैलेटिंग एवं चंुबकीय उपचार।

मक्का

बीज उन्नयन उपचार से कुल क्षेत्र उद्धव, उर्द्धगति, पौध की शाकीय एंव जड़ विकास (लंबाई, सतह क्षेत्र और घनत्व), पौध ऊॅँचाई और बीज उत्पादन में वृद्धि होती है। इन उपचारो से नर एंव मादा पैतृक जनक पौधों में पुष्पोदन (एन्थेसिस, सिल्किंग) 1-2 दिन पहले होता है, जो संकर बीज उत्पादन में
समकालीकरण (सिन्क्रोनाइजेशन) में सहायक होते हैं।

 

  • बीज प्रभंजन (17 घंटे) $ शुष्क ड्रेसिंग थिरम (3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज)
  • चुंबकीय उपचार (1000 जी./2 घंटे), क्रूज़र (5 एम. एल/कि.ग्रा. बीज)

चना

देशी एवं काबुली चने में पाद्प तत्वों (लहसुन, अदरक, हल्दी), सक्रिय सूक्ष्मजीव (ट्राइकोडरमा हारजियेनम) और थिरम से बीज उपचार से क्षेत्र उर्द्ध गति, पौध का ताजा और सूखा वजन, जड़ विकास (लंबाई, सतह क्षेत्र और धनत्व) में बढ़ोत्तरी, शीघ्र एंव समरूप पुष्पादन तथा अधिक उत्पादन होता है। लहसुन, हल्दी और प्रभंजन से उपचारित बीजों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण ग्रथिंयों का विकास बेहतर पाया गया।

 

प्रभावी बीज उन्नयन उपचार

  • शुष्क ड्रेसिंग थिरम के साथ (3 ग्रा./कि.ग्रा. बीज)
  • ट्राइकोडरमा हारजियेनम (10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज)
  • लहसुन/हल्दी (10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) $ साथ/बिना पाॅलीमर कोटिंग (पाॅली कोट)

 

कपास

बुवाई के दौरान उच्च तापमान से पौध स्थापना में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। थिरम  इमिडाक्लोप्रिड बीजोपचार से खेत में पौध स्थापना में बढ़ोत्तरी होती है।

 

Source-

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान

 

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