अनाज के दाने का आधा अथवा आधे से अधिक वह भाग जिसमें भ्रूण अवस्थित हों, जिसकी अंकुरण क्षमता अच्छी हो एवं जो भौतिक एवं आनुवांशिक रूप से शुद्ध हो, बीज कहलाता है।
बीज का महत्व
कृषि उत्पादन में वृद्धि के विभिन्न कारकों में से बीज का एक विशेष महत्व है,क्योंकि यदि बीज खराब है तो शेष अन्य साधनों जैसे उर्वरक, सिंचाई आदि पर किया गया खर्च व्यर्थ हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कृषि सम्बन्धी सभी साधनों जैसे, बीज, उर्वरक, कीटनाशी, पानी, विद्युत उपकरण तकनीकी जानकारी आदि अपने आप में महत्वपूर्ण हैं और एक दूसरे के पूरक भी, परन्तु इनमें बीजों का स्थान सर्वाेपरि माना जाता है।
जब कृषक अपने पुराने बीज के स्थान पर उच्च गुणवत्तायुक्त प्रमाणित बीज की बुवाई करता है तो उसे बीज प्रतिस्थापन कहते हैं। बीज के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए यह आवश्यक है कि कि स्वपरागित फसलों यथा गेहूँ, धान, जौ, चना, मटर, मसूर, मूंग, उर्द आदि का बीज प्रत्येक चार वर्ष पर बदल कर बुवाई की जानी चाहिए। साथ ही पर परागित फसलों यथा मक्का, बाजरा, सूरजमुखी, अरहर, कपास, राई/सरसों/तोरिया आदि फसलों का बीज प्रत्येक तीन वर्ष पर बदल कर बुवाई की जानी चाहिए। किसानों द्वारा उच्च गुणवत्ता के बीज से बुवाई करने पर प्रति इकाई क्षेत्रफल में उत्पादन में सामान्य बीज से बुवाई कराने पर प्राप्त उत्पादन की अपेक्षा लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
बीज के प्रकार
1. प्रजनक बीज
इसका उत्पादन सीधे सम्बन्धित अभिजनक की देख-रेख में कराया जाता है। इस बीज से आधारीय बीज उत्पादन किया जाता है। प्रजनक बीज के थैलों में लगने वाले टैग का रंग पीला होता है तथा यह सम्बन्धित अभिजनक द्वारा जारी किए जाते हैं। इसकी आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत होती है।
2.आधारीय बीज
इस बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है जिसे आधारीय प्रथम बीज कहा जाता है एवं आधारीय प्रथम से तैयार किए गये बीज को आधारीय द्वितीय बीज कहा जाता है। इस बीज का उत्पादन मुख्यतः राजकीय एवं कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि प्रक्षेत्रों पर तथा कुछ चयनित प्रशिक्षित बीज उत्पादकतों के प्रक्षेत्रों पर कराया जाता है। इस बीज का प्रमाणीकरण राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया जाता है एवं बीज के थैलों पर लगने वाले टैग का रंग सफेद होता है
3.प्रमाणित बीज
आधारीय बीज से उत्पादित बीज को प्रमाणित बीज कहा जाता है। सामान्यतः यही बीज किसानों को फसल उत्पादन हेतु बेंचा जाता है। इस बीज का उत्पादन भी बीज प्रमाणीकरण संस्था की देख-रेख में किया जाता है। प्रमाणित बीज में थैलों पर लगने वाले टैग का रंग नीला होता है।
4.सत्यापित बीज
यह बीज आधारीय या प्रमाणित बीज द्वारा तैयार किया जाता है। इसकी भौतिक शुद्धता एवं
अंकुरण क्षमता के प्रति उत्पादक स्वयं जिम्मेदार होता है। यह बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाता है और न ही इस बीज में थैलों पर बीज प्रमाणीकरण संस्था का टैग लगा होता है। मात्र उत्पादन संस्था का टैग लगा होता है इसकी अंकुरण क्षमता भी लगभग प्रमाणित बीज के समान होता है।
संकर बीज
संकर बीज क्या है ?
दो विभिन्न आनुवांशिक गुणों वाले प्रजातियों के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति को संकर बीज कहा जाता है। यह बीज सर्वाेत्तम सामान्य प्रजातियों की तुलना में अधिक उपज देने की क्षमता रखता है।फसल उत्पादन के लिए संकर किस्म के बीज को प्रथम पीढ़ी के बीज के रूप में उपयोग में लाया जाता है क्योंकि पहली पीढ़ी में विलक्षण ओज क्षमता पायी जाती है तथा अगली पीढ़ी में उसके संकलित गुण विघटित हो जाते हैं और उसकी ओज क्षमता में बहुत हृास हो जाता है। अतः संकर किस्म के बीजों का लाभ एक पीढ़ी तक ही सीमित रहता है परिणाम स्वरूप किसानों को प्रत्येक बीज खरीद कर बुवाई करना आवश्यक है।
संकर बीजों का महत्व
1.संकर बीज में उत्पादन क्षमता अधिक देने वाली प्रजातियों से 12-15 प्रतिशत तक अधिक होती है।
2. अधिकतर संकर बीज प्रजातियां शीघ्र पकने वाली होती है जिससे खाद्यान्न शीघ्र उपलब्ध हो जाता है।
3. शीघ्र पकने के कारण सघन फसल चक्र अपनाने में सुविधा होती है।
4. संकर प्रजातियाँ सूखाग्रस्त क्षेत्रों हेतु भी विकसित की जा सकती हैं तथा सफलतापूर्वक उगायी जा सकती है।
5. संकर प्रजातियों में रोग रोधिता एवं कीट रोधिता अधिक होती है।
6. संकर बीज की फसल एक साथ पकती है। अतः फसल की एक साथ कटाई की जा सकती है, जिससे श्रमशक्ति की बचत होती है एवं शस्य क्रियाओं का सुविधापूर्वक मशीनीकरण किया जाता सकता है।
बीजों का रख-रखाव एवं भण्डारण
खलिहान स्तर पर
1.बीजों की मड़ाई/गहाई का कार्य इस प्रकार किया जाये कि एक प्रजाति के बीज का दूसरी प्रजाति के बीज में मिश्रण न होने पाए।
2. बीज को पुराने बोरों में भरने से पूर्व बोरों को पलटकर झाड़ लें, जिससे उन बोरों में किसी प्रकार के अन्य फसल/प्रजाति के अथवा पूर्व सत्र के दाने न रहने पाए।
3. पुराने बोरों को मैलाथियान/लिण्डेन कीटनाशक का प्रयोग करके कीट मुक्त करना भी सुनिश्चित कर लें।
4. बोरों में भरने से पूर्व बीज को वांछित/निर्धारित सीमा तक सुखा लें।
गोदाम स्तर पर
1.जिस गोदाम में बीज भण्डारित करने हो उसमें बीज केअतिरिक्त कोई अन्य वस्तु विशेष रूप से रासायनिक खाद का भण्डारण न किया जाये।
2. गोदाम वायुरोधी हो, गोदाम की फर्श जमीन से ऊँची हो, वह हवादार एवं सीलन से मुक्त हो।
3. बीज भण्डारण के पूर्व गोदाम के फर्श, दीवार तथा छत पर निम्न कीटनाशक दवाओं का घोल बनाकर छिड़काव कराएं।
लिण्डेन – 1 प्रतिशत
मैलाथियान – 3 प्रतिशत
डाॅई क्लोरो वाश 0.25 या 0.50 प्रतिशत एक लीटर प्रति 100 घनमीटर।
4. गोदाम की दीवार से 2 फुट की दूरी से चट्टे लगाए जाए। चट्टे से चट्टे की दूरी 3 फुट रखी जाय।
5. अलग-अलग प्रजातियों एवं अलग-अलग साइज के थैलों के चट्टे अलग-अलग लगाए जाएं।
6. थैलों का मुँह अन्दर की ओर रखा जाय।
7. भण्डारण के उपरान्त गोदाम को भी धूमीकरण करके बन्द कर देना चाहिए। गोदाम के एयरटाइट न होने की स्थिति में चट्टों पर धूमीकरण कवर डालकर धूमीकरण किया जाय। धूमीकरण के लिए सल्फास की एक से दो टिकिया प्रति टन बीज मात्रा या एक टिकिया प्रति 4 वर्ग मीटर क्षेत्र के हिसाब से किसी प्याली में रखकर बोरों के विभिन्न स्तरों पर नीचे से ऊपर तक इस प्रकार रखे कि गैस का फैलाव समान रूप से हो।
8. धूमीकरण के उपरान्त गोदाम के दरवाजों/खिड़कियों अथवा धूमीकरण कवर के चारों ओर गीली मिट्टी का प्रयोग करें जिससे गैस का बाहर रिसाव न हो सके। पूरी धूमीकरण की कार्यवाही 20 मिनट में समाप्त हो जाये। धूमीकरण के उपरान्त गोदाम को अथवा चट्टों को एक सप्ताह तक बन्द रखना
चाहिए। साफ मौसम में ही गोदाम खोलें तथा कम से कम 4 घंटे तक सभी दरवाजे एवं खिड़कियाों को खुला रखने के उपरान्त ही गोदाम में घुसना चाहिए।
9. साफ मौसम में गोदाम का समय-समय पर निरीक्षण किया जाये। थैलों की सिलाई के पास उंगलियों से रगड़कर जांच करें कि उसके नीचे-ऊपर कीड़ों के अण्डे तो नहीं हैं।
10. कीड़े दिखाई देने की स्थिति में धूमीकरण करें तथा एक माह पश्चात् पुनः गोदाम को धूमीकरण करें। गेहूँ बीज भण्डारित होने की स्थिति में अन्तिम धूमीकरण सितम्बर माह के अन्तिम सप्ताह में करना चाहिए। छिड़काव प्रत्येक 15 दिन की अवधि के उपरान्त करना चाहिए। जुलाई के मध्य से सितम्बर मध्य
तक विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए क्योंकि इसी अवधि में कीटों का सर्वाधिक प्रकोप होता है।
स्रोत-
- कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश