बासमती धान में समेकित फसल प्रबंधन

बासमती धान की फसल जो कि मुख्यतः हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब व उत्तराखण्ड राज्यों में उगाई जाती है, अनेक कीड़ों एवं रोगों के प्रकोप से प्रभावित होती है । किसान इनके नियंत्रण के लिए अन्धाधुन्ध रासायनिक कीटनाशकों एवं फफूंदनाशकों का अविवेकपूर्ण प्रयोग करते हैं जिससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है बल्कि चावल के दानों में कीटनाशी रसायनों के अवयव भी शेष रह जाते हैं जो कि मानव स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालते हैं । इसके अतिरिक्त फसल में उपस्थित लाभकारी या मित्र कीटों का भी रसायनों के इस्तेमाल से विनाश हो जाता है ।

समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आई.पी.एम.) एक ऐसी तकनीक है जिससे न केवल वातावरण प्रदूषित होने से बचता है बल्कि खेत में उपस्थित लाभदायक परजीवी व परभक्षी कीटों के संरक्षण में भी सहायता मिलती है । यहाँ पर बासमती धान में अपनायी जाने वाली उन्नत कृषि विधियाँ तथा कीट-रोगों के समेकित प्रबंधन (आई.पी.एम.) पर चर्चा की जा रही है ।

 

 क्या करें – नर्सरी लगाते समय

  • सिर्फ प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें । एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 15-18 किलो बीज लगायें ।
  • गोबर की सड़ी हुई खाद का एक क्विंटल प्रति 100 वर्ग मीटर के हिसाब से प्रयोग करें ।
  • नर्सरी में बीज बुबाई के लिए खेत को अच्छी प्रकार से तैयार करें । पक्षियों द्वारा होने वाले नुकसान से बचाव हेतु नर्सरी को पुआल से ढक दें ।
  • एक मीटर चैड़ी तथा थोड़ी ऊँची क्यारियां तैयार करें ।
  • कार्बेन्डाजिम फफूंदीनाशक द्वारा 2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर अथवा जैविक फफूंदीनाशक ष्ट्राइकोडरमाष् का 5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें ।
  •  रासायनिक उर्वरक एनःपीःकेः 0.75-1.0 कि.ग्रा.: 0.5 कि.ग्रा.: 0.5 कि.ग्रा. का प्रयोग प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के अनुसार करें ।
  •  खरपतवार नाशक के रूप में ब्यूटाक्लोर 50 ईसी 20-30 मिली. अथवा एनिलोफास 50 ईसी 10 मिली. अथवा पेन्डामेथिलीन 30 ईसी, 3.3 ली/है. प्रति 100 वर्ग मीटर का बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर प्रयोग करें ।

 

बासमती धान की रोपाई से पहले

  • बासमती धान की रोपाई वाले खेतों में हरी खाद (ढेंचा/मूंग) की फसल लें ।
  • रोपाई से एक सप्ताह पहले खड़ी हरी खाद की फसल जो लगभग 50-55 दिन की हो गई हो, की जुताई कर खेत में मिला दें ।
  • रोपाई से एक दम पहले गहन मारें (पडलिंग करें) ।

 

बासमती धान की रोपाई के समय

  • रोपाई के समय रासायनिक खाद एनःपीःकेः 40-50-40 कि.ग्रा. (पूसा बासमती – 1 तथा पूसा – 1121), तथा जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें (तरावड़ी तथा देहरादून बासमती में 30 कि.ग्रा. नत्रजन का प्रयोग  करें)
  • रोपाई से पहले पौध की जड़ों को स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स / 5.10 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक डुबोकर रखें ।
  • एक स्थान पर दो से तीन पौधों की रोपाई करें ।
  • रोपाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 20 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 15 सेमी. रखें ।
  • खरपतवारनाशक के रूप् में ब्यूटाक्लोर 50 ईसी 2-3 ली. अथवा एनिलोफाॅस 50 ईसी एक लीटर/है. का प्रयोग रोपाई के 3-5 दिन के अन्दर करें ।

 

बासमती धान की रोपाई के बाद

  • पीला तना बेधक कीट की निगरानी हेतु गन्धपाश (फेरोमोन ट्रेप) 5 ट्रेप/है. की दर से प्रयोग करें ।
  •  तना बेधक तथा पत्ती लपेटक कीट के लिए परजीवी कीट ट्राइकोग्रामा जेपोनिकम अथवा ट्रा. काइलोनिस 1.5 लाख/है. के हिसाब से खेतों में छोड़ें ।
  • ब्लास्ट रोग का प्रकोप होने पर ट्राईसायक्लाजोल 75 ईसी 1.0 ग्रा. अथवा आइसोप्रोथिओलेन 40 ईसी 1.5 मिली हेक्साकोनाजोल 5 ईसी 1.5 मिली. अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्रा./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करें ।
  •  पर्णच्छद विगलन (शीथ ब्लाइट) रोग के प्रकोप के लक्षण प्रकट होने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी (1 ग्रा./लीटर पानी में) अथवा वेलेडिमाइसिन 3 एल (2.5 मि.ली./लीटर पानी में) हेक्साकोनाजोल 5 ईसी (2 मि.ली./लीटर पानी) फफूंदीनाशक का प्रयोग करें तथा प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए खेतों से पानी निकाल दें ।
  • जीवाणु जनित अंगमारी (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट) रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 15 ग्रा./है. का छिड़काव सिर्फ प्रभावित क्षेत्र में करें ।
  • भूरे तथा सफेद पीठ वाले फुदके का प्रकोप 10 प्रति पौधा से अधिक होने पर इथोफेनप्राक्स 10 ईसी 1.5 मिल.ली./दो लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 70 WG 30-35 मिली प्रति है. अथवा एसीफेट 75 SP 750 मिली. प्रति है. प्रति लीटर पानी में मिलाकर अथवा ब्यूपरोफेजीन 25 SC 800 मिली. /है. का प्रयोग करें । इन कीटों के नियंत्रण में परभक्षी मकड़ियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं अतः इनकी संख्या बढ़ाने का प्रयास करें तथा अत्यधिक जहरीले कीटनाशी का प्रयोग कम से कम करें ।
  •  तना बेधक कीट का प्रकोप 10 प्रतिशत ( मृृत गोभ ) से अधिक होने पर कारटाप दानेदार कीटनाशी 4G किग्रा. /है. का बुरकाव करें ।
  •  गन्धी बग का प्रकोप (प्रति पौधा 2-3 कीट) दूधिया दाने बनने की अवस्था में होने पर कार्बेरिल डस्ट का 25 किग्रा./है. की दर से बुरकाव करें ।
  • नाइट्रोजन 40-50 कि.ग्रा./है. (पूसा बासमती-1, पूसा-1121) का दो भागों में क्रमशः रोपाई के 25-30 दिन तथा 50-60 दिन पश्चात डालेें (तरावड़ी बासमती तथा देहरादूर बासमती में 30 किग्रा. है ) ।
  • कीटनाशी तथा अन्य रसायनों का प्रयोग केवल प्रभावित फसल क्षेत्र पर ही करें जिससे मित्र कीट जैसे मकड़ी व अन्य लाभदायक परभक्षी व परजीवी कीटों की संख्या बढ़ सके ।

 

कैसे करे नर्सरी के दौरान

  • अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद को फावड़े तथा टोकरी द्वारा ठीक से खेत में फैला दें ।
  • चैड़ी मेढ़ बनाने वाले यंत्र (रिजर) को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर ऊंची तथा चैड़ी मेढ़ बनायें ।
  • बीज को 24 घंटे तक पानी में भिगोंए तत्पश्चात पानी निकाल कर छाया में फैलाकर कार्बेन्डाजिम नाम फफूंदीनाशक 2 ग्रा./कि.ग्रा. को बीजों में अच्छी प्रकार मिला दें
  • रासायनिक उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा को बुवाई से पहले पडलिंग के दौरान अच्छी प्रकार खेत में मिला दें तत्पश्चात बीज की बुवाई

 

रोपाई के दौरान

  •   मिट्टी पलटने वाले हल या हेरा द्वारा रोपाई से एक सप्ताह पहले हरी खाद को खेत में जुताई कर अच्छी प्रकार से मिला दें ।
  •  टेक्टर के पीछे हेरो तथा पाटा लगाकर पानी भरे खेत में अच्छी प्रकार जुताई कर पडलिंग करें ।
  • पडलिंग के पश्चात संस्तुति मात्रा अनुसार रासायनिक उर्वरकों को खेत में छिड़काव दें ।
  • प्रत्येक स्थान पर दो से तीन पौधों की ही रोपाई करें ।
  • खरपतवारनाशी रासायन की आवश्यक मात्रा को 60 किग्रा. सूखी रेत अथवा पानी में अच्छी तरह से मिलाकर 3-5 सेमी. खड़े पानी में समान रूप से बिखेर दें ।

 

रोपाई के पश्चात

  • फेरोमोन ट्रेप (गन्ध पाश) को डंडों में बांधकर इस प्रकार खड़ा कर खेत में गाढ़ दें कि ट्रेप का निचला हिस्सा फसल से ऊपर रहे ।
  • टाइको कार्ड को केवल सांयकाल के समय निशान लगे स्थान से काटकर स्टेपलर द्वारा फसल की पत्ती से इस प्रकार लगाएं कि अण्डों वाली सतह नीचे की ओर रहे ।
  • परभक्षी मकड़ियों की संख्या फसल में बढ़ाने हेतु पुआल से तैयार बंडलों को रोपाई से 20 दिन बाद 20 बंडल/है. की दर से लगाएं तथा लगाने से पहले बंडलों को लगभग 10-15 दिनों तक मक्का/ज्वार की फसल में लगाकर रखें ताकि इनमें मकड़ियां स्थापित हो सकें ।
  • रसायनों का छिड़काव पावर स्प्रेयर / डस्टर द्वारा अथवा हस्तचालित स्प्रेयर द्वारा करें । दानेदार कीटनाशी को हाथ से दस्ताने पहनकर समान रूप से बुरक दें ।

 

क्यों करें

  • अच्छी प्रकार की सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ा देती है ।
  • ऊंची क्यारियों/मेढ़ पर बुवाई करने से नर्सरी में पौधों में गलन रोग कम हो जाता है तथा अनावश्यक जल जमाव के कारण मरने वाले पौधों की संख्या काफी कम हो जाती है
  •  रसायन द्वारा शोधित बीज बोने पर नर्सरी में लगने वाले रोगों से पौधों को बचाया जा सकता है ।
  •  हरी खाद के प्रयोग से भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ने के साथ-साथ भमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि हो जाती है तथा भूमि की संरचना में भी सुधार होता है ।
  •  स्यूडोमोनास फ्लोरसेंस के घोल में पौध की जड़ों को 30 मिनट तक डुबोकर रोपाई करने से बकाने रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है ।
  • एक ही स्थान पर दो-तीन पौधे रोपित करने से किसी पौधे के मरने की स्थिति में अन्य पौधों द्वारा भरपाई हो जाती है ।
  • खपतवार नाशी रसायन के प्रयोग से खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है ।
  • फेरोमोन ट्रेप में तना बेधक कीट के नर वयस्क आकर्षित हो कर फंस जाते हैं, जिससे इस कीट की उपस्थिति तथा भविष्य में आक्रमण के बारे में पता चल जाता है ।
  • अंडों के परजीवी ट्राइकोग्रामा द्वारा तना बेधक तथा पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण में मदद मिलती है ।
  • रसायनों का छिड़काव आवश्यकतानुसार (आर्थिक हानि स्तर से अधिक होने पर) कीट एवं रोग प्रभावित फसल क्षेत्र पर ही करने से मित्र कीटों को पनपने व बढ़ने का अवसर मिलता है ।

 

क्या न करें

  • अप्रमाणित तथा अनुपचारित बीज न बोंए ।
  • जिस भूमि में जल निकास की सुविधा न हो उसमें बासमती धान न लगायें ।
  • सिंचाई की सुविधा के बिना बासमती धान न लगायें ।
  • एक स्थान पर केवल एक पौधे की रोपाई न करें ।
  • नत्रजन का प्रयोग अनुमोदित मात्रा से अधिक न करें ।
  • पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप 20 प्रतिशत से कम रहने पर किसी भी रसायन का प्रयोग न करेें ।

 

क्यों न करें

  • अप्रमाणित तथा अशोधित बीज के प्रयोग से कीट एवं बीमारियां अधिक लगती हैं ।
  • जल निकास का उचित प्रबंधन न होने से बरसात में जल भराव के कारण शीथ ब्लाइट तथा ष्बैक्टीरियल ब्लाइटष् नामक रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है ।
  • बासमती धान के पौधों की अच्छी बढ़वार एवं फुटाव के लिए बार-बार पानी की आवश्यकता होती है ।
  • पत्ती लपेटक कीट के 15-20 प्रतिशत से कम प्रकोप से उत्पादकता में नगण्य कमी आती है  एक स्थान पर एक ही पौधे की रोपाई करने से कुछ पौधों के मरने के कारण बीच-बीच में जगह खाली रह जाती है तथा प्रति एकड़ पौधों की संख्या कम हो जाने के कारण उपज में कमी हो जाती है ।
  • अनावश्यक रूप से रसायनों का छिड़काव करने से मित्र कीट भी समाप्त हो जाएंगे अतः जब तक अत्यन्त आवश्यक न हो, छिड़काव न करें ।
  • नत्रजन के अनुमोदित मात्रा से अधिक प्रयोग से कीड़ों व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, साथ ही फसल पकने के दौरान उसके गिरने की संभावना बढ़ जाती है ।

 

 

 

स्रोत-

  • राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली
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