बाबची की खेती

परिचय

बाबची एक औषधीय खरपतवारी है, जो सीधा बढ़ता है, इसकी डालियों पर धब्बे से रहते हैं । पत्ती गोल तथा इसके दोनों ओर काले धब्बे रहते हैं । फूल छोटा ( 10-30मि.मी.) नीला सफेद रंग का गुच्छे में पत्ती के सिरे पर रहते हैं । फल काला गोल रहता है । एक फल में एक गोल बीज चिकना रहता है ।

 

क्षेत्र

बबची सम्पूर्ण भारत में खरपतवार जैसा पैदा होता है कुछ जगहों पर इसकी कास्त भी की जाती है ।

 

उपयोग

बाबची का बीज दवाईयों के काम आता है । बाबची  के बीज से जो तेल निकलता है उसका निम्न रोगों में दवा के रूप में उपयोग किया जाता है ।

1. चर्म रोग जो बैक्टेरिया से उत्पन्न होता है । उसे खत्म करने के काम आता है ।

2. बाबची ल्यूकोडरमा एवं लुप्रोसी को खत्म करने के उपयोग में किया जाता है । बाबची बीज से जो तेल निकलता है । उससे मलहम बनाया जाता है तथा उसका उपयोग चर्म रोग खत्म करने के लिए किया जाता है । बाबची के बीज का उपयोग यूरोनेसन में तथा एनथेलमिटिक के रूप में किया जाता है ।

3. बाबची से कुष्ठ रोग निवारण किया जाता है । इसलिए इसे कुष्ठनाशक के नाम से भी जानते हैं ।

4. इसकी जड़ों के उपयोग करने से दांत मजबूत होते हैं । इसलिए इसका इस उद्देश्य से भी उपयोग किया जाता है ।

5. बाबची की पत्ती डायरिया को रोकने के काम भी आती है ।

 

रासायनिक संगठन

बीज ही पौधे का औषधीय उपयोग का भाग है । बीज एक चिपचिपे तैलीय छिल्के से ढंका होता है जिसमें कोमेरिन होता है । इसमें सोरलेन व आइसो सोरलेन आदि रासायनिक घटक होते हैं ।

 

भूमि

चूंकि बाबची एक खरपतवार है इसलिए यह सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है, परन्तु जल मग्न क्षेत्र में नहीं होती है ।

 

जलवायु

कोई विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता नहीं पड़ती है सभी प्रकार की जलवायु में इसे पैदा किया जा सकता है । यह खरीफ की फसल है जो रबी में पकती है ।

 

खाद

खाद की कोई संतुलित मात्रा की आवश्यकता नहीं पड़ती जमींन में जो भी खाद उपलब्ध है उसमें बाबची की खेती की जा सकती है । परंतु अधिक पैदावार लेने के लिए 2-3 टन गोबर की खाद पर्याप्त है ।

ग्रीष्म ऋतु में 1-2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । अन्यथा भूमि में जो पानी उपलब्ध रहता है वहीं पर्याप्त होता है ।

 

निंदाई

एक निंदाई करने में फसल अच्छी आ जाती है ।

 

कीड़े एवं बीमारियाँ

कोई विशेष बीमारियाँ इसको नुक्सान नहीं पहुंचाती सिर्फ एक नीब तितली की इल्ली पत्तियों को खा जाती है । इसके नियंत्रण के लिए इंडोसल्फान 35 ई.सी. 1-2 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर दवा का छिड़काव किया जा सकता है ।

 

उत्पादन

प्रति हेक्टेयर बाबची के बीज का उत्पादन लगभग 10 क्विंटल होता है ।

 

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर,मध्यप्रदेश

 

 

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