वैज्ञानिकों का मानना है कि फलों के बाग हेतु अधिक उपजाऊ मृदा अच्छी नहीं होती है, परन्तु कम उपजाऊ मृदा जिसके भौतिक गुण जैसे मृदा का गठन, मृदा संरचना आदि अच्छें हों तो फल वृक्षों के लिए अधिक अच्छी रहती है । ऐसी मृदाओं में प्रबंधन करने पर फल वृक्षों की वृद्धि होती है । इसके साथ ही मृदा के प्रकार, मृदा पी.एच.मान. एवं उपजाऊपन की क्षमता का पता होना चाहिए । बाग की योजना बनाने से पहले मृदा का किसी प्रयोगशाला से परीक्षण जरूरी है ।
फलों को विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे रेतीली, दोमट, बलुई-दोमट आदि में पैदा किया जा सकता है, परन्तु बलुई-दोमट मृदा सबसे अच्छी रहती है । बलुई-दोमट 40 – 45 प्रतिशत रन्ध्राकांश, रेत 50 – 80 प्रतिशत, सिल्ट 0 – 50 प्रतिशत तथा मृत्रिका ( क्ले ) 0 – 20 प्रतिशत होता है । मृदा में जल निकास की व्यवस्था ठीक न हो तो उस मृदा को फलोत्पादन हेतु चुनाव नहीं करना चाहिए । साधारणतः नारियल हेतु रेतीली, लीची, पपीता, केला व चीकू हेतु दोमट, नींबू वर्गीय फलों, काजू व अमरूद हेतु बलुई दोमट एवं आम व कटहल हेतु जीवांशयुक्त दोमट मृदा अच्छी होती है ।
मृदा का उचित पी.एच.मान. पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है । अधिकतर फल वृक्षों हेतु मृदा का पी.एच.मान. 6.0 से 7.5 के बीच ठीक रहता है । यदि मृदा का पी.एच.मान. 9.0 से अधिक हो तो मृदा क्षारीय होती है, जो पौधों की जड़ों के लिए हानि प्रद होती है । इसी प्रकार यदि मृदा का पी.एच.मान. 4.0 से कम हो तो मृदा अधिक अम्लीय होती है, जो पौधों की वृद्धि के लिए उचित नहीं होती है । सभी सूक्ष्म जीवों के लिए उपयुक्त पी.एच.मान. 6.0 – 7.0 होता है । इस पी.एच.मान. पर सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं सक्रियता अधिक होती है ।
मृदा के विभिन्न पी.एच.मान. में उगाये जाने वाले फलवृक्षों का नाम इस प्रकार है
मृदा के प्रकार | पी.एच.मान. | उपयुक्त फलवृक्ष |
उदासीन | 7.0 | आडू, चेरी आदि |
हल्की अम्लीय | 6.0 – 6.5 | सेब, नाशपाती, आम, नीबू, लीची, नारियल आदि | |
अधिक अम्लीय | 5.0 – 6.0 | अन्नान, स्ट्राबेरी आदि | |
क्षारीय | 8.0 से अधिक | अमरुद, आंवला, फालसा, जामुन, करोंदा आदि |
फलोत्पादन हेतु आदर्श मृदा में जीवांश
पदार्थ की उचित मात्रा का होना आवश्यक है । मृदा में जैव पदार्थ पौधों और जीवाणुओं के सड़ने – गलने से बनता है । बागवानी फसलों में जीवांश निम्नलिखित स्त्रोतो से मिलता है ।
1 .फसलों के कार्बनिक अवशेष
2 .गेबर की खाद
3 .कम्पोस्ट
4.हरी खाद
5 .खलियाॅ
जीवांश पदार्थ मृदा की बनावट में मदद करता है, जिससे मृदा में अधिक संरघ्रता और वातन का विकास होता है । मृदा में जीवांश पदार्थों की अधिकता के कारण मृदा का कटाव कम हो जाता है । अधिक जीवांश पदार्थ के कारण मृदा की जल – धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है । कार्बनिक पदार्थ के अपघटन से मृदा को बहुत से पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर तथा सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, लोहा,मैंगनीज, बोरोन, मोलिण्डेनम मिलते हैं, जो मृदा की उपजाऊपन शक्ति को बढ़ाता है । कार्बनिक पदार्थों का भूमि में सड़ाव होने पर कार्बनिक अम्ल बनता है, जो अघुलनशील तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाता है
स्रोत-
- काशी हिन्दू विश्व विद्यालय बनारस ( यू. पी. )