बरसीम की खेती

पशुओं को पौष्टिक आहार मौसम प्रदान करने हेतु बरसीम एक महत्वपूर्ण हरे चारे वाली फसल है । इसकी खेती सिंचित अवस्था में की जाती है । हरे चारे के लिए इसकी कटाई अनेक बार लगभग 20 दिनों के अंतराल पर करते हैं । पहली बार यह कटाई हेतु 50 से 55 दिनों में तैयार होती है । अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह में बोनी करने से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक में 6 से 7 बार कटाई कर सकते हैं । दलहनी फसल होने के कारण, इसकी खेती करने से भूमि की दशा में सुधार होता है ।

बरसीम के शुष्क पदार्थ की पाचनशीलता 70 प्रतिशत होकर इसमें 20 से 21 प्रतिशत प्रोटीन उपलब्ध रहता है । इसके खिलाने से पशु स्वस्थ रहते हैं, उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है तथा दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में वृद्धि होती हैं । अधिक उत्पादन होने पर हरे चारे का ष्हेष् अथवा साइलेज बनाते हैं, जो चारे की कमी होने के समय उत्तम पशु आहार होता है ।

 

उपयुक्त भूमि

बरसीम की खेती सभी प्रकार की भूमियों में होती है, किंतु दोमट भूमि और जिन भूमियों में जल धारण क्षमता अच्छी हो, सर्वोत्तम होती है । हल्की भूमि में इस फसल को अधिक सिंचाईयों की आवश्यकता होती है ।

 

भूमि की तैयारी

बरसीम का बीज अत्यंत छोटा होता है । इसलिए इसकी खेती करने के लिए भूमि की गहरी जुताई कर भुरभुरी मिट्टी वाला, समतल व खरपातवार रहित खेत तैयार करें । इसके बाद सिंचाई के लिए सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां बनाना चाहिए । एक हेक्टेयर खेत में लगभग 20 क्यारियां बनाने से सिंचाई करने में सुविधा होती है ।

 

खाद एवं अनुशंसित रासायनिक उर्वरक की मात्रा

बरसीम की अच्छी उपज लेने के लिए गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट 10 टन तथा 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. स्फुर और 20 कि.ग्रा. पोटाश/हे. की दर से बोनी पूर्व में खेत में बिखेर कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाना चाहिए ।

 

अनुशंसित किस्में

बरसीम की खेती के लिए अनुशंसित उन्नत किस्में यथा जवाहर बरसीम – 1, जवाहर बरसीम – 5, मस्कावी अथवा वरदान का स्वस्थ, पीले रंग का, खरपतवार रहित बीज उपयोग करना चाहिए ।

 

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

बरसीम की खेती करने के लिए 20 से 25 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर के मान से उपयोग करें । यदि बरसीम के बीज में कासनी ( चिकोरी ) के बीज हो तो बीज को 5 प्रतिश तनमक के घोल वाले पानी में डुबाना चाहिए । कासनी का बीज हल्का होने के कारण पानी की सतह पर तैरने लगेगा, इन्हे पानी की सतह से छन्नी द्वारा निकाल कर लेना चाहिए । बरसीम के शुद्ध बीज को नमक के घोल वाले पानी से निकालकर 2 – 3 बार शुद्ध पानी से धोना चाहिए ।

बोने से पहले बीजों को एक ग्राम कार्बनडेजिम् + दो ग्राम थायरम नामक फफूंद नाशक दवा/कि.ग्रा. बीज में मिलाकर उपचारित करना चाहिए । इससे बीज एवं भूमि में स्थित फफूंद जनित रोगों से बीज की सुरक्षा होकर अंकुरण अच्छा होगा ।  इसके बाद बीज को राइजोबियम ट्राइफोलाई नामक कल्चर से 5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें । राइजोबियम जीवाणु के साथ – साथ, पी.एस.बी. जीवाणु कल्चर की 5 ग्राम मात्रा/कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करने से स्फुर तत्व की उपलब्धता अच्छी होती है । उपचारित बीजों की बोनी तुरंत करना चाहिए ।

 

बोनी का समय एवं बोनी की विधि

बरसीम की बोनी अक्टूबर माह के द्वितीय सप्ताह में करने से अधिक उपज मिलती है । बोनी में विलम्ब करने से हरे चारे की कटाईयों की संख्या में कमी आती है । बरसीम की बोनी निम्न विधियों से की जा सकती है –
1.  पहली विधि में सर्वप्रथम खेत में बनी हुई क्यारियों में पानी भरें और इसके बाद उपचारित बीज को समान रूप से छिटककर बोनी करें । ध्यान रखें कि खेत में पानी की सतह 5 से.मी. से अधिक न रहे ।
2. छूसरी विधि में खेत में बनी हुई क्यारियों में उपचारित बीज को समान रूप से छिटक कर बोनी करें फिर हल्की सिंचाई करें । ध्यान रखें कि क्यारियों में सिंचाई वाला पानी तेज गति से न बहे, इससे बीज पानी के बहाव की दिशा में इकट्ठा हो सकता है ।

 

सिंचाई एवं जल प्रबंध

बोने के 5 से 6 दिन बाद पहली सिंचाई करें । इसके बाद भूमि के प्रकार के अनुसार 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें, किंतु मार्च के महीने से सिंचाई 8 से 10 दिनों के अंतराल में सुनिश्चित करने में ध्यान रखें कि हर कटाई के बाद सिंचाई आवश्यक रूप से करना पड़े । इससे फसल की पुर्नवृद्धि एवं बाढ़ अच्छी होती है । इस प्रकार फसल के पूरे जीवनकाल में लगभग 13 से 15 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है ।

 

कटाई प्रबंधन

बरसीम हरे चारे की अनेक बार काटी जाने वाली फसल है । इसकी पहली कटाई बोनी के 50 से 55 दिनों पर करें । इसके बाद फरवरी के अंत तक 25 से 30 दिन के बाद तथा इसके वाली प्रत्येक कटाई 20 से 25 दिन के अंतर पर करें । कटाई के समय यह ध्यान रखें कि पौधों को 8 से 10 से.मी. की ऊँचाई से काटा जावे, ताकि इनकी पुर्नवृद्धि शीध्रता से हो तथा अधिक उपज प्राप्त हो सके ।

 

संभावित उपज

अक्टूबर मध्य में बोई गयी फसल से 6 से 7 कटाईयों में लगभग 900 से 1000 क्विंटल द्वारा हरा चारा/है. प्राप्त होता है । बोनी में विलम्ब से क्रमशः उपज में कमी होती जाती है । पहली कटाई में अधिक समय लगता है, तथा हरे चारे का उत्पादन भी कम प्राप्त होता है । अतः हरे चारे का उत्पादन बढ़ाने के लिए बोनी करते समय बरसीम के बीज में 2 कि.ग्रा. सरसों या 10 कि.ग्रा. जई का बीज/है. की दर से मिलाकर बोने से पहली कटाई के समय चारा उत्पादन में वृद्धि होती है तथा बाद में बरसीम के उत्पादन में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है ।

 

बीजोत्पादन

बरसीम का बीज तैयार करने के लिए हरे चारे की कटाई मार्च के प्रथम सप्ताह तक ही करना चाहिए । इसके बाद फसल को बीज उत्पादन के लिए छोड़ देना चाहिए । इस प्रकार 3 से 4 कटाईयों द्वारा 400 से 500 क्विंटल/है. हरा चारा उत्पादन के साथ-साथ 4 से 5 क्विंटल/है. बीज का उत्पादन प्राप्त होता है ।

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय,

 

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