सामानयता गन्ने की बुवाई दो – तीन आंख वाले सेट्स काटकार कूड में सीधी की जाती है इस पद्धति से गन्ने की बुआई करने के लिए गन्नो बीज की मात्रा 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। बीज कि कटाई, परिवहन, टुकडे करने, बुवाई करने आदि में समय एवं श्रमिकों पर भी अधिक खर्चा आता है। ज्यादा वनज होने के कारण किसान गन्ने बीज का उपचार भी प्रभावी तरीके से नही कर पाता जिसके कारण बीज जनित रोगों का प्रभावी नियंत्रण नही हो पाता।
प्रति इकाई अधिक पैदावार व सूक्ष्म सिंचाई युनिट लगाने के लिए गन्ना बीज न्यूनीकरण की तकनीकें जैसे एस.टी.पी., एकल कलिका बुआई, एकल कलिका से तैयार पौध या बड़चिप से तैयार पौध की बुआई, उत्तक संवर्धन विधि से तैयार पौध की बुआई आदि प्रयुक्त की जा सकती है।ऊपर वर्णित विधियों में से एकल कलिका से तैयार पौध या बडचिप से तैयार पौध काफी लोकप्रियता हासिल कर रही है। इस विधि से पौध तैयार कर गन्ने की बुवाई करने से लगभग 80 प्रतिशत बीज की बचत हो सकती है। अतः यह तकनीकी किसानों के लिए खर्चा कम करके अधिक मुनाफा कमाने का एक दूसरा विकल्प है।
बड चिपर तथा एकल आँख कटर
कई तरह के बड़ चिपर व एकल आँख कटर आजकल प्रचलन में है। छोटे किसानों या सीमित स्तर पर पौध नर्सरी तैयार करने के लिए हस्त व पैर चालित बड़ चिपर व एकल बड़ कटर उपयुक्त होते है जिनकी कीमत 1000 से 2500 रूपये तक होती है। इन बड़ कटर को आसानी से खेत में ले जाया जा सकता है तथा खेत में ही बड़चिप या एकल बड़ को ही गन्ने से पृथक करके नर्सरी क्षेत्र में लाया जा सकता है।
बड़ चिपर से केवल आँखें व कुछ गाँठ का हिस्सा निकाला जाता है अतः बचा हुआ गन्ना आसानी से ट्राली में भरा व चीनी मिल यार्ड या गुड इकाई क्षेत्र में आसानी से उतारा जा सकता है। चूँकि बड चिपर में आँख के साथ गाँठ का कुछ हिस्सा ही निकला जाता है अतः पौध को अतिरक्ति पौशक तत्वों की व अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। एकल बड़ कटर से सवा से डेढ़ इंच आँख के साथ गाँठ व कुछ अंतरगाँठ का हिस्सा काटा जाता है जिसमें गन्ना अंकुरण के लिए पर्याप्त भोजन पदार्थ तथा जल अवषोशण के लिए पूरा जड़ बैंड होता है अतःएव गहन देखभाल की आवश्यकता नही होती। लेकिन बचे हुए पोरी टुकड़ों को मिल में भेजने व उतारे के लिए थोड़ी असुविधा होती है।
मोटर चालित बड़ चिपर व कटर
दक्षिण व पष्चिम भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेष, महाराश्ट्र आदि में कई किसान व्यावसायिक स्तर पर गन्ना पौध उगाते है व बिक्री करते है। चीनी मिलें भी अपने फार्म पर नई किस्मों के तीव्र प्रसारण तथा प्रचलित अच्छी किस्मों का रोगमुक्त बीज उत्पादन बड़े स्तर पर पौध उत्पादन द्वारा करती है। इसके लिए मोटर चालित बड़ चिपर व कटर प्रयोग में लाते है। आजकल दो तरह के बड़ चिपर व कटर प्रचलन में है। एक व्यक्ति द्वारा एक तरफ संचलित तथा दो व्यक्तियों द्वारा दो तरफ संचलित। यंत्र के आधार पर फिक्स की हुई विद्युत मोटर फेन बेल्ट द्वारा साफ्ट को घुमाती है, साफ्ट से स्टेनलेस स्टील के बडचिप या पूर्ण गाँठ युक्त बड काटने के लिए डिजाईन किये चाकू जुडे़ होते है।
मोटरके चलने से साफ्ट से जुड़े चाकू जो निष्चित परिमाप के टुकड़ें काटने के लिए डिजाईन किए होते हैं वर्किंग प्लेटफार्म पर निश्चित अंतराल पर आगे पीछे या ऊपर नीचे घूमते है। कुछ यंत्रों में कलिका गाँठ एक टोकरी में व बची हुई पोरी अलग कंटेनर में गिरती है जिससे बीज आँख या चिप को अलग करने में कम समय लगता है। मोटर चलित बड़ कटर से एक दिन में एक व्यक्ति आसानी से 15 से 20 हजार चिप या एकल कलिका गाँठ गन्नों से विच्छेद कर सकता है।
गन्ने में बडचिप विधि द्वारा पौध तैयार करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
किस्म का चयन व बीज का स्रोत
बडचिप विधि से पौध तैयार करने के लिए स्वस्थ, अधिक गन्ना व चीनी उपज वाली अपने क्षेत्र के लिए अधिसूचित नई या लोकप्रिय किस्म का चयन करना चाहिए। बीज फसल किसी अनुसन्धान संस्थान से या चीनी मिलें के फार्म से लाकर या किसी अनुसंधान संस्थान या अन्य प्रमाणित संस्थान से उत्तक संवर्धन विधि से तैयार पौधे लाकर पूरी देख-रेख में तैयार की गई फसल का बड़ चिप हेतु चयन करें । फसल के स्वास्थ्य पर विषेश ध्यान रखे। यदि किसी बीज खेत में घसैला, पेड़ी बौनापन, कन्डुआ आदि रोगों के लक्षण दिखाई दे तो उस खेत के गन्नों को बड़चिप हेतु इस्तेमाल न करें।
आँख का चुनाव एवं फसल की उम्र
एक स्वच्छ आँख के चुनाव के लिए एक स्वच्छ फसल का होना बेहद जरूरी है। बीज फसल गिरी हुई न हो, आँख बाहर की तरफ उभरी न हो, वायवीय जड़े अंकुरित न हो। कटी-कटी या बीमार आंखें वाली गन्ने की पोरियों का चयन नहीं करना चाहिए। बडचिप तैयार करने के लिए एक स्वस्थ फसल जिसकी उम्र लगभग 8 से 10 महीने की हो, का चयन करना चाहिए। उचित व अच्छी साइज की बडचिप तैयार करने के लिए बड चिपर मशीन सहायता से उचित आकार की बडचिप (एक इंच गहरी व डेढ से दो इंच लंबी) बिना दरार के आसानी से निकाली जा सकती है। बडचिप काटते समय गन्ने की आंखों के साथ थोड़ा-थोड़ा पोरी गाँठ के हिस्से (भोज्य पदार्थ)का निकलना भी आँखे के अंकुरण के लिए जरूरी होता है।
बीजोपचार
निकाली गई आँखों को उचित अंकुरण के लिए उन्हें पोशक तत्वों के घोल से, कीटनाषक जैसे क्लोरोपायरीफास 2 मिलीलीटर प्रति लीटर तथा फंफूदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से तैयार घोल में बडचिपों या एकल आँख सेट को लगभग 5-10 मिनट के लिए उपचारित करें।
नर्सरी तैयार करना
पौध नर्सरी तैयार करने के लिए पोलीथिन की थैलियाँ, खांचो वाली ट्रे आदि उपयोग में की जाती है। एस.टी.पी. पौध उभरी हुई भू-षैया पर तैयार करते है। गन्ना पौध के लिए उत्तरी भारत में नर्सरी तैयार करने के लिए बराबर मात्रा में मिट्टी, रेत और वर्मी कंपोस्ट का मिश्रण 1:1:1 अनुपात में बनाकर अच्छी तरह मिला लिया जाता है। अच्छी तरह मिलाया गया मिश्रण कैविटी ट्रे में लगभग आधा भर दिया जाता है उसके पष्चात इन कैविटी ट्रे में बडचिप थोड़ी झुकी तिरछी पोजीषन में लगा दी जाती है। उसके पश्चात उन्हें अच्छी तरह तैयार मिश्रण से पूरा भर दिया जाता है इसके तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर दी जाती है जो कि इनके जमवार के लिए बहुत जरूरी है।
कैविटी ट्रे स्टार को छायादार स्थान पर या बंद कमरे में एक दूसरे के ऊपर रख कर उन्हें टाॅट पल्ली या जूट के बोरों मं गीला कर के रख दिया जाता है ताकि इन्हें कुछ दिनों तक सूर्य की रोषनी एवं वायु के संपर्क से दूर रखा जा सके। इसके पश्चात समय समय पर प्रत्येक रोज पानी देते रहना चाहिए, ताकि उचित मात्रा में आद्रता की स्थिति बनी रहे। यदि जरूरत हो तो रोषनी बल्ब जलाकर कत्रिम तरीके से गर्म एवं आर्द्रता की स्थिति उत्पन्न की जा सकती है ताकि आखों का जमवार ठीक हो सके।
लगभग 3 से 5 दिन में गन्ने की बडचिप से प्रिमोडिया निकलना षुरू हो जाते हैं इसके दो या तीन दिनों के बाद इनक तना निकल आता है। इसके 10-15 दिनो के बाद में सभी कैविटी टे को अलग-अलग रखकर सूर्य की रोषनी में रखें तथा पानी देते रहें। यदि जरूरत पडे़ तो यूरिया के 0.5 प्रतिशत घोल का स्प्रे करें। इसके पश्चात जब पोधे छः पत्ती वाले अवस्था में हो, पौधों की छंटाई करें। छंटाई करते समय कमजोर, हल्के व बीमार पौधों को अलग छंटाई करे। इस तरह से लगभग 20 दिनां बाद एक प्रतिशत यूरिया घोल का छिड़काव स्पे्र पंप की सहायता से करे। लगभग 25 से 35 दिनों बाद पौध में खेत में रोपई के लिए तैयार हो जाती है। दक्षिण भारत में वर्मी कंपोस्ट के स्थान पर कोयर पिट का भी उपयोग किया जा सकता है जिसे नारियल की रेषों से तैयार किया जाता है।
पौध का सेटलिंग की खेत में रूपाई करना
सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद 10 से 15 टन तथा वर्मी कंपोस्ट दो सौ से ढाई सौं किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में अच्छी तरह मिलाकर डालें। इसके पश्चात खेत में उचित दूरी की नाली (कुड) निकालें पौधे से पौधे की दूरी। फीट से 1.5 फिट तक रखे। नाली से नाली की दूरी किसान अपनी आवश्यकता अनुसार लगभग 3 फीट, 4 फीट व 5 फीट तक रख सकते है। पौध रोपाई के एक दिन पहले सभी ट्रे में पानी अच्छी तरह से डाले ताकि दुसरे दिन सेटलिंग निकालने के दौरान है।
पौध रोपाई के एक दिन पहले सभी ट्रे में पानी अच्छी तरह से डाले ताकि दूसरे दिन सेटलिंग निकालने के दौरान पौधे मिट्टी के गोले के साथ आसानी से निकले। इस तरह पौध रोपाई करने से पौधे की खेत में जमवार भी आसानी से होती है। इसके तुरंत बाद दीमक की रोकथाम के लिए 2 लीटर क्लोरोपायरीफाॅस प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करे। प्रारंभिक अवस्था में पौध पर ट्रांसप्लांट षाक देखा जा सकता है, लेकिन यह एक साप्ताहिक अन्तराल के बाद रिकवर हो जाता है।
पौध रोपाई के 10 से 15 दिन के बाद 30 किलो प्रति एकड़ 10 किलो जिंक सल्फेट तथा 50 किलो डाई अमोनियम फास्फेट का प्रयोग करें। पौध रोपण के से लगभग 15 से 25 दिनों के बाद मदर षूट को कैची से काट दिया जाए ताकि टिलर्स का फुटाव ज्यादा हो सके। इसके उपरांत समय-समय पर खेत में पानी देते रहें, ताकि नमी मी मात्रा उचित बनी रहे। कीड़े मकोड़े की समय-समय पर देखभाल करते रहें, जिससे कीड़े जैसेः कंसुआ व दीमक आदि की रोकथाम समय पर की जा सके। इसके बाद अन्य सस्य क्रियाएं सामान्य खेती की तरह अपनाएं।
बडचिप तकनीक पर पूर्व कार्य
भारतीय कृशि अनुसंधान परिशद के गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर में डॉक्टर प्रसाद एवं डॉक्टर श्रीनिवासन ने 1996 में इस विधि पर षोधकार्य कर किया। उन्होंने बताया कि इस विधी से कम लागत पर अच्छी उन्नत किस्में तथा एडवांस लाइने कार्टूनों में पैक कर देष के एक कोने से दूसरे कोने तक आसानी से भेजी जा सकती है। अतः इस तकनीकी को एक स्वस्थ गन्ना बीज उत्पादन में किसानो, मिलों एवम् अनुसंधान संस्थानों तक भी आसानी से पहुचाया जा सकता है।
बडचिप तकनीक से पौध तैयार कर गन्ना बाने से फायदे
1. यह तकनीक किसानों के लिए खर्चा कम करके अधिक मुनाफा कमाने का एक दूसरा विकल्प है इस तकनीकी से गन्ने के बीज में लगभग 80 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है अतः गन्ना बीज खर्चे में 53 प्रतिशत की कटौती की जा सकती है।
2. इस तकनीकी द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाली स्वस्थ पौध आसानी कम समय में तैयार की जा सकती है।
3. इस तकनीक द्वारा बडचिप या इससे तैयार पौध आसानी से एक स्थान से दुसरे स्थान तक आसानी ले आया जा सकता है।
4. गन्ने से बडचिप बड चिपर मशीन से निकालने के बाद बचा हुआ गन्ना गन्ना मिल में या जूस के लिए या गुड बनाने के लिए काम में लिया जा सकता है।
5. इस विधि द्वारा तैयार पौध 4 से 6 सप्ताह में आसानी से तैयार हो सकती है अतः इस विधि द्वारा पौध तैयार करने तक किसान अपने खेत में गन्ने से पहले गेहूं की फसल ले सकते है क्योंकि गेहूं की फसल कटने के बाद तुरंत खेत की बुआई करके गन्ना बोया जा सकता है इस प्रकार किसान अपनी जमीन का पूर्ण सदुपयोग कर सकते है।
6. इस विधि द्वारा तैयार पौध में बचे रहने के लिए उत्तरजीविता लगभग 80 प्रतिशत तक रहती है
7. इस विधि द्वारा गन्ना लगाने से गन्ने में कलम में फुटाव प्रतिशत सामान्य रूप से गन्नालगाने की तुलना में काफी अच्छा रहता है।
8. सामान्य तरीके से फसल उगाने में लगभग 75000 गन्ने प्रति हेक्टेयर उगते है जबकि इस विधि से गन्ना लगाने से लगभग 1.4 लाख पोधे प्रति हेक्टेयर आसानी से उगाये जा सकते है इस विधि से गन्ना लगाने से प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या होती है क्योंकि जो पौधे मरने होते हैं वे प्रारंभिक अवस्था में ही मर जाते है।
9. इस स्वस्थ बीज उत्पादन प्रणाली के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी है क्योंकि इस विधि में अलग-अलग स्टेज पर पौधों की ग्रेडिंग की जाती है और स्वस्थ पौधे ही खेत में रोपाई किए जाते है।
10. इस विधि द्वारा पानी की बचत होती है जैसे इस विधि में सिंचाई की आवश्यकता सामान्य विधि की तुलना में काफी कम होती है अतः बदलती जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह विधि बहुत ही कामयाबी हो सकती है।
11. इस विधि द्वारा लगाए गए गन्ना फसल के क्लुम्प्स (मुडा) में फुटाव लगभग 10 से 25 गन्नो तक देखा जा सकता है जबकि सामान्य विधि से गन्ना लगाने में लगभग 5 से 7 गन्ने प्रति मुडा प्राप्त होता है।
12. वायु एवम जल की उपलब्धता अच्छी होने के कारण इस तकनीक से तैयार पौध स्वस्थ एवम जीवक्षम होती है जिससे उत्पन्न फसल भी बीमारियों एवम कीड़ो से रहित होती है।
13. इस विधि में पौध तैयार करते वक्त वृदी कारक रसायनों का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है जिससे इनकी उपयोग मात्रा को भी कम किया जा सकता है।
Source-
- गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर