फोडर बीट जिसे सामान्य भाषा में चारा चुकन्दर भी कहा जाता हैं, एक अत्यधिक उपज देने वाली जमिकन्दीय फसल है। अन्य चारा
फसलों की तुलना में यह कम क्षेत्रफल व समय में अधिक चारा देती है। इसका पौधा सलाद के काम में आने वाले चुकन्दर जैसा ही होता है, किन्तु आकार मे बड़ा होता है व इसमें शर्करा की मात्रा कम होती है। पौधे में ऊपर की तरफ 6-7 पत्तियों का गुच्छा होता है। इसका कन्द थोड़ा जमीन के बाहर भी निकला होता है।
विश्व के उन सभी देशों में जहाँ पशुपालन व्यवसायिक तौर पर किया जाता है वहां यह फसल बहुत लोकप्रिय है। यह फ्रांस, ब्रिटेन, हाॅलैंड, न्यूजीलैण्ड, बेलारूस आदि देशों में चारे हेतु बहुतायत में उगाई जाती है। फोडर बीट एक उच्च ऊर्जायुक्त फसल है जिसमें औसतन 12-13 मेगाज्यूल ऊर्जा प्रति किलोग्राम शुष्क भार होती है। इसमें अन्य पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, खनिज तत्व एवं विटामिन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं (सारणी 1)। फोडर बीट की पत्तियां भी पौष्टिक होती हैं व कुल चारा उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा हैं। इससे पशुओं का स्वस्थ्य अच्छा रहता है, वजन बढ़ता है व दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है।
फोडर बीट पश्चिमी राजस्थान के लिए अत्यधिक उपयोगी फसल है। यहाँ पशुपालन आधारित खेती है व यहाँ के अधिकतर पशुओं में
ऊर्जा व खनिज की कमी पाई गई है। फोडर बीट इस क्षेत्र के लिए इसलिए भी उपयोगी है क्यांेकि इसे क्षारीय भूमि व खारे पानी से भी
उगाया जा सकता है। साथ ही यह फसल मार्च से जून तक उत्पादन देती है जिस वक्त अन्य मल्टीकट चारा फसलें जैसे जई, बरसीम, रिजका, आदि की गर्मी के कारण उत्पादकता घट जाती है व दूसरी नई फसलें छोटी होती है। हाल के दिनों में इस फसल पर काजरी, राष्ट्रीय डेरी डेवलपमेंन्ट बोर्ड (एन.डी.डी.बी.) और राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश के कृषि विभागों ने विभिन्न प्रयोग कर इसे विभिन्न परिस्थितियों में लाभकारी पाया है। फोडर बीट की निम्न वर्णित वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर निश्चित ही अत्यधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
भूमि का चयन व खेत की तैयारी
फोडर बीट हेतु दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है किन्तु इसे किसी भी प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। भूमि व पानी के खारेपन का भी इस फसल पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ता बल्कि इसके लगाने से भूमि में क्षार की मात्रा कम होती है। ख्ेात की तैयारी हेतु पहले मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से एक गहरी जुताई करें फिर क्रोस हैरो कर कल्टीवेटर के साथ पाटा लगा दें। इसके बाद पीजिया या अन्य साधन द्वारा 50-70 से.मी. की दूरी पर 15 से.मीऊची डोलियाँ बनाएं।
उन्नत किस्में
बाजार में उपलब्ध संकर किस्में – जे.के. कुबेर, मोनरो, जोना, जामोन, स्प्लेंडिड।
बीज एवं बुवाई
फोडर बीट की अच्छी फसल हेतु एक लाख पौधे प्रति हैक्टेयर होने चाहिए। इसके लिए 2.0-2.5 किलो प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बीज को डोलियों पर 20 से.मी. की दूरी से 2-4 से.मी. गहराई में लगायें। फोडर बीट की डोलियों पर बुवाई करने पर समतल बुवाई से अधिक उपज प्राप्त होती है। साथ ही इससे बनने वाली नालियों को सिंचाई करने के काम में लिया जाता है जिससे 20-25 प्रतिशत पानी की भी बचत हो जाती है। वैसे तो बाजार में उपलब्ध बीज उपचारित आता है किन्तु अगर न हो तो बीज को मैन्कोजेब व थीराम 2-2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें।
बुवाई करने के तुरंत बाद सिंचाई करें किन्तु ध्यान रहे कि पानी डोली के ऊपर तक न आने पाए और सिर्फ नालियों में ही रहें अन्यथा पपड़ी आ जाएगी व अंकुर बाहर नहीं निकल पायेगा। राजस्थान में इसकी बुवाई अक्टूबर से दिसम्बर तक कभी भी की जा सकती है।
खाद एवं उर्वरक
फोडर बीट की अधिक उत्पादन क्षमता होने के कारण भूमि से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण होता है। इसीलिए फोडर बीट के खेत में हर तीसरे वर्ष खेत की तैयारी के समय 15-20 टन प्रति हैक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। इसके अलावा नत्रजन 150 किलो, फाॅस्फोरस 75 किलो व पोटाश 150 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से उर्वरक दें। नत्रजन की आधी मात्रा, फाॅस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ऊर कर दें। नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा दो बराबर हिस्सों में बुवाई के 30 व 50 दिन पर निराई के पश्चात् दें।
अन्तः शष्य क्रियाएं
फोडर बीट की अधिकतर किस्में मल्टीजर्म है यानि बीज से एक से अधिक पौधे भी निकल सकते है इसलिए अंकुरण के बीस दिन बाद पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 से.मीरख् ों व फालतू पौधों को उखाड़ दें। चूंकि इस फसल की आरंभिक बढवार बहुत धीमी होती है, इसलिए बुवाई के 30 व 50 दिनों के बाद निराई अत्यंत आवश्यक है। बुवाई के पचास दिन बाद डोलियों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दें।
सिंचाई
प्रथम सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद व मार्च तक 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, तत्पश्चात् जरूरत अनुसार 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
रोग एवं कीट नियंत्रण
वैसे तो इस फसल में रोग व कीड़े कम लगते है किन्तु जड़ गलन (स्कलरोटियम रोल्फसी) व पत्तों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों का कुछ प्रकोप हो सकता है। जड़ गलन की रोकथाम हेतु ट्राईकोडर्मा विरडी 1.25 ग्राम या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। पत्ते खाने वाले कीड़ों का आर्थिक स्तर तक नुकसान पहुँचने पर 5 प्रतिशत नीम के बीजों की खली के घोल का छिड़काव करें।
कटाई व खुदाई
फोडर बीट के कंदों की खुदाई से 40-50 दिन पहले पत्तियों को 2-3 इंच ऊपर से काट लें व पशुओं को चारे के रूप में खिलाएं। इसके पश्चात् फसल को सिंचाई के वक्त 25 किलो प्रति हैक्टेयर नत्रजन दें जिससे फसल तेजी से बढ़ेगी। जब नीचे की पत्तियां सूखने लग जाएँ व अन्य पीली पड़ने लग जाएँ तब इसके कंदों को खोद लें। आम तौर पर यह फसल 120 दिन में तैयारी हो जाती है किन्तु इसकी जड़े जमीन में खराब नही होती इसलिए खुदाई में जल्दबाजी न करें व मार्च से ही रोजाना आवश्यकतानुसार कंदों को निकलकर पशुओं को खिलाते रहें। खुदाई के वक्त ध्यान रहे कि कंदों की बाहरी परत को नुकसान न पहुंचे ।
फोडर बीट खिलाने की विधि
पत्तों व कन्दों को धो कर साफ कर लें और छोटे-छोटे टुकड़ों (3-5 से.मी.) में काटकर पशुओं को सीधे खिलाएं। एक पूर्ण वयस्क डेरी वाले पशु को धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते हुए 10-15 किलोग्राम (कन्द व हरे पत्ते) प्रतिदिन के हिसाब से खिलाएं। अधिक मात्रा में खिलाने से पशु में आफरा आ सकता है। भेड़-बकरी के लिए 4-7 किलोग्राम प्रति पशु उपयुक्त है। जिन दिनों पशुओं को फोडर बीट खिला रहें है उन दिनों इन्हें दिए जाने वाले बांटे की मात्र आधी तक कम की जा सकती है। फोडर बीट को काटकर धूप में सुखाकर भंडारित भी किया जा सकता है। बाद में इसे दाना (चोकट, चूरी, खली आदि) के साथ मिलाकर खिलाएं।
फसल चक्र
इस फसल को हर साल एक ही स्थान पर न बोयें। इसे चंवला, ग्वार, बाजरा, आदि खरीफ फसलों के बाद बोया जा सकता है|
उपज
उपरोक्त वर्णित कृषि क्रियाओं को अपनाकर काजरी द्वारा विभिन्न स्थानों पर किये गए परीक्षणों में 65-100 टन प्रति हैक्टेयर ताजा चारे का उत्पादन लिया गया है । प्रति कन्द का वजन डेढ़ से साढ़े तीन किलो होता है किन्तु इससे भी अधिक मोटे कन्द प्राप्त हो सकते है। इस फसल से हमें 40-50 पैसे प्रति किलो लागत पर अत्यंत पौष्टिक चारा उपलब्ध हो जाता है।
Source-
- Central Arid Zone Research Institute